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सुनो स्त्री !

सुनो स्त्री !

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

और तुम देखोगी आत्मा को देह बनते !

 

तेज हुई सांसों की लय पर थिरकती छातियाँ

प्रेम कहेंगी तुमसे -

संगीत और नृत्य के संतुलन को !

सामंजस्य जीवन कहलाता है !

(ये तुम्हे स्वतः ज्ञात होगा)

सम्मोहन टूटते है अक्सर -

बर्तन फेकने की आवाजों से !

 

आँगन और छत के लिए आयातित धुप

पसार दी जाती है ,

शयनकक्ष की मेज पर !

रंगीन मेजपोश आत्ममुग्धता का कारण हो सकते है ,

जब बुझ जाएगा तुम्हारी आँखों का सूरज !

(अगर डूबता तो फिर उग भी सकता था)

 

थोपी गई धार्मिक स्मृतियाँ विस्मृत कर देतीं हैं -

प्रतिरोध की आदिम कला !

इस घटना को आस्तिक होना कहा जाएगा !

 

तो सुनो स्त्री !

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

बस , ह्रदय कर्ज़दार न हो
तुम्हारे कान गिरवी न रख दिए जाएँ !
(होंठ उम्र भर सूद चुकाते रहेंगे )

दूब ताकतवर मानी गई है ,

कुचलने वाले भारी भरकम पैरों से !

बीच समुन्दर ,

अकेला जहाज ,

मस्तूल पर तुम !

तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !

थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए !

 

 

 

……………………………...….. अरुन श्री !

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Comment

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Comment by Arun Sri on May 12, 2013 at 8:22pm

लक्षमण प्रसाद सर , आपकी सराहना के लिए धन्यवाद आदरणीय !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 2:41pm

थोपी गई धार्मिक स्मृतियाँ विस्मृत कर देतीं हैं -

प्रतिरोध की आदिम कला !इस घटना को आस्तिक होना कहा जाएगा !- बिलकुल सही कहा है आपने 

 

दूब ताकतवर मानी गई है ,

कुचलने वाले भारी भरकम पैरों से !

बीच समुन्दर ,अकेला जहाज ,

मस्तूल पर तुम !

तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !

थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए !-बहुत खूब एक सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on May 5, 2013 at 1:53pm

आदरणीय अरून जी मैं आपसे यह प्रश्न पूछता नहीं। दरअसल कई रचनाओं में मैंने यूं ही लिखा देखा तो मन में शंका थी। आपकी रचना में यह शब्द देखकर सोचा कि आपसे ही पूछ लूं हो सकता है कि यह कोई शब्द हो जिसका मुझे ज्ञान न हो।
आपका आभार!

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:48pm

अशोक रक्ताले सर , हार्दिक धन्यवाद आदरणीय !

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:48pm

बृजेश नीरज सर , "धुप" वास्तव में "धुप" नहीं , "धूप" है ! :-))))) :-))))) ! आपने इस टंकण की त्रुटी की ओर ध्यान  दिलाया , इसके लिए आपका आभारी हूँ ! और आपकी उदात्त सराहना के लिए भी ! सादर !

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:45pm

सीमा अग्रवाल मैम , कहते हैं एक पुरुष तब तक एक सम्पूर्ण मानव नहीं बन सकता जब तक उसमें एक स्त्री जीवित न हो ! फिर एक कवि का होना कैसे सार्थक जब उसकी लेखनी  स्त्रियोचित व्यवहार न करे ! आपने कविता को सराहा ! इसके लिए हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:42pm

सौरभ पाण्डेय सर , आपका प्रतिक्रिया भी किसी कविता से कम सुन्दर और मोहक नहीं ! आपकी उपस्थिति और शाब्दिक अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीय !

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:41pm

केवल प्रसाद सर , हार्दिक धन्यवाद आपका !

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:40pm

कुंती मुखर्जी मैम , आपने एक विशिष्ट अंदाज में सराहना की , मतान्तर भी प्रकट किया ! आपका हार्दिक धन्यवाद ! मैं कोई कवि (अच्छा ) नहीं हूँ बस अपने भाव लिखता हूँ ! इस कठोर वर्तमान में कठोर हुआ मन कोमलता कैसे लिखता ! जो अनुभूत है वही लिखा ! सादर !

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:36pm

अनवर सुहैल सर , आपने अतिशय मान दिया कविता को ! सादर धन्यवाद !

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