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कविता : मैं रसिक लाल, तुम फूलकली

आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों, मित्रों एवं प्रिय पाठकों आप सभी को सादर प्रणाम. भौंरा और फूल पर आधारित उनके मिलन एवं विरह पर एक कविता लिखने का छोटा सा प्रयास किया है, आशा है आप सभी को पसंद आएगा.

रसिक लाल = भौंरे का नाम

मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.

मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

तुम मीठे रस की मलिका हो,

मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.

तुम मंद - मंद मुस्काती हो,

मैं होता रहता घायल हूँ.

मेरा तन काला, तुम मखमली.

मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

जब ऋतु बसंती बीत गई,

तब तेरी मेरी प्रीत गई.

तुम मुरझाई मैं टूट गया,

मौसम मतवाला बीत गया.

नैना भीगे मुस्कान चली

मैं रसिक लाल, तुम फूलकली..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 11:07am

आदरणीय सुरेन्द्र सर सादर प्रणाम काफी समय के बाद आपकी टिपण्णी मिली बड़ी प्रसन्नता हुई. हार्दिक आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 11:04am

अनुज रामशिरोमणि पाठक जी हार्दिक आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 11:03am

आदरणीया गीतिका जी सादर आप निःसंकोच अपनी बात कह सकती हैं मुझे बुरा नहीं लगता मैं अन्यथा नहीं लेता क्यूंकि अन्यथा लेने से मेरी कमियां दूर नहीं होंगी आप सभी की बातों पर ध्यान देने एवं समझने से दूर होंगी.

1. मेरा तात्पर्य केवल इतना था कि भौंरा स्वयं को शुष्क धरा के समान मानता है और उसकी प्रेमिका एक नम बदली है उसके बरसने ही ही उसकी प्यास समाप्त होती है.

२. मै तन काला ? क्या यह ठीक है

3. तुम मुरझाई मैं टूट गया, // फिर मुरझाई फिर टूट गयी (मेरा यहाँ तात्पर्य फूल के मुरझाने पर भौंरे का ह्रदय टूटने से है)

4. मौसम मतवाला बीत गया. // मिलने की बेला  बीत गयी ( प्राची दीदी द्वारा - सुझाव रूठ गया) अधिक बेहतर है अन्यथा दोनों पंक्तियाँ समतुकांत नहीं हो सकेंगी)

पुनः हार्दिक आभार आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 10:53am

आदरणीय अशोक सर हार्दिक आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 10:53am

आदरणीय राणा प्रताप भ्राताश्री हार्दिक आभार आपका मैं आपकी बात का मान रखता हूँ कोशिश करता हूँ कुछ सुधार करूँ, आपका स्नेह प्राप्त हुआ और क्या चाहिए. स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 10:51am

आदरणीय श्री विजय निकोर सर हार्दिक आभार आशीष यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 10:50am

आदरणीया प्राची दीदी मेरी किसी भी रचना पर आपका अनमोल अनुमोदन मेरे लिए सदैव प्रेरणादाई एवं सकारात्मक उर्जा का श्रोत होता है. दीदी मैंने मात्राओं पर ध्यान नहीं दिया था मैं अपनी त्रुटी स्वीकार करता हूँ. आप सदैव प्रयासरत रहती हैं हमे सही दिशा देने हेतु. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

बीत गया की जगह रूठ गया बहुत ही सुन्दर सुझाव है.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 10:46am

आदरणीय केवल प्रसाद जी एवं आदरणीया सावित्री जी आप दोनों का आभार.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 10:45am

आदरणीय श्री सतीश सर जी सादर प्रणाम रचना पर आपका अनुमोदन बेहद सुखदाई है, ओ बी ओ पर आने के बाद अन्यथा जैसा शब्द शब्दकोष के हटा दिया है आदरणीय, निःसंकोच आप अपनी बात कह सकते हैं. उम्मीद करता हूँ कि अगली बार आपको निराश नहीं करूँगा. स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 10:43am

आदरणीया कुंती जी सादर स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

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