For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा

"चंदा ने चांदनी से कहा

इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा

बतलाऊँ तुझको क्या मैं अपनी रज़ा 
कहूँ अर्ज़ ए हाल क्या ,करूँ कैसे बयाँ
हुआ जबसे ये दिल तुझसे आश्ना 
नासमझ से हो गई आशिकी की ख़ता ,मेरी ज़ाँ

लहरों ने पानी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा

अंजुमन का तेरे अलग ही है समाँ
सफ़र ज़िन्दगी का लगे ख्वाबों सा
सिखा दी कुर्बत ने तेरे ,जीने की अदा
मिली तुम मुझे 

,लगा ज़िंदगी मेहरबाँ ,मेरी ज़ाँ

धडकनों ने रागिनी से कहा 

इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा 

जुदा तुझसे तो मैं अधूरा ही रहा 

ये रुत ,सबा ,फ़ज़ा ,सावन की घटा
सूना सूना सा था ये सारा जहाँ
होना न कभी मुझसे ख़फा ,मेरी ज़ाँ

तसव्वुर ने कहानी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा

चाहा बढ़कर ज़िंदगी से तुझे ,चाहूँगा सदा
बिछा दूँ क़दमों में तेरे ,फूलों की रिदा
न ले अब और मेरे सब्र का इम्तिहाँ
हो इंतज़ार की इन्तहा ,मेरी ज़ाँ

`चराग़' ने रौशनी से कहा
इस दिल ने अपनी ज़िन्दगानी से कहा''

~~~ चिराग़

April 22, 2013 

[पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित ]

रज़ा [चाहत]

आश्ना [परिचित]

कुर्बत [सानिध्य]

तसव्वुर [कल्पना]

रिदा [चादर]

Views: 437

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 2:43pm

आदरणीय केडिया जी 

सादर 

सुन्दर प्रयास 

लगे रहिये 

बधाई. 

Comment by Kedia Chhirag on April 25, 2013 at 11:38pm

आदरणीय,आप सभी से जो प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन मुझे प्राप्त हुआ उसके लिए सर्वथा कृतज्ञ रहूँगा ....मैं कोई कवि नहीं न काव्य विधा के नियम कानून से परिचित हूँ यद्यपि आप सभी गुरु समान अग्रजों के क्षत्रछाया में इसे सीखने और समझने की अभिलाषा से ही यहाँ आया हूँ ताकि मैं अपनी रचना की त्रुटियों को सही कर काव्य विधा सम्मत स्वरुप में उन्हें अद्यतन कर सकूँ ......मुझे आप सभी के स्नेहाशीष एवं पथ प्रदर्शन की सर्वथा आवश्यकता रहेगी ....... सादर /चिराग़ 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 25, 2013 at 8:25am

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना आदरणीय चिराग जी बधाई कुबुलें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 24, 2013 at 12:45pm

रचना के बहुत सुन्दर भाव, तदनुरूप सुन्दर शब्द चयन इस हेतु हार्दिक बधाई 

किन्तु रचना में सुगढ़ शिल्प का अभाव भी है, जिसे और वक्त दे कर आसानी से साधा जा सकता है...आदरणीय बृजेश जी और गीतिका जी के सुझाव सर्वथा उचित हैं...

रचनाकर्म और सुगढ़ होता रहे यही शुभकामनाएं हैं.

Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 8:39pm

लिखना जारी रखें।
इस प्रयास पर ढेरों बधाई।
सादर!////////////////////भाई ब्रिजेश जी की बात से मै सहमत हूँ //हार्दिक बधाई 

Comment by वेदिका on April 23, 2013 at 8:02pm

सारी सलाहें आदरणीय बृजेश जी ने दे दी ...उनको संज्ञान में लीजिये ....
बड़ी रचनाएँ पाठकों को भटका देती है ...छोटी और सारगर्भित रचना प्रभाव छोड़ने में सफल रहती है ...

सुन्दर रचना पर बधाई लीजिये

Comment by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 5:42pm

चिराग जी आपने यहां अपनी अलख जला दी इसके लिए बधाई। एक बात कहना चाहूंगा कि आप रचना के बीच में जो शब्दाथ लिखते हैं ऐसा न किया करें। इससे पढ़ते समय तारतम्यता भंग होती है। शब्दार्थ रचना के नीचे दिया करें।
दूसरी बात यह जरूर प्रयास किया करें कि रचना किस विधा में लिखी गयी है इसका जिक्र जरूर किया करें। इससे खुद को लाभ होता है।
तीसरी बात रचना लिखने के बाद खुद जरूर रचना को कई बार पढ़कर संतुष्ट हो लें कि रचना कोई संशोधन तो नहीं चाह रही है।
मैंने आपकी यह पहली रचना पढ़ी है। पहली बार के लिए इतना ही सुझाव। आगे जैसे प्रयास करते जाएंगे रचना का स्तर खुद ब खुद और सुंदर होता जाएगा। लिखना जारी रखें।
इस प्रयास पर ढेरों बधाई।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service