For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो नन्हा नेत्रहीन

रामनवमी के सुअवसर पर मुझे आगरा -मथुरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर यमुना किनारे स्थित सूरकुटी के नेत्रहीन विद्यालय के नेत्रहीनों के साथ कुछ समय बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।यह क्षेत्र सूर-सरोवर (कीठम-झील) के समीप हैऔर महाकवि सूरदास की कर्मस्थली गऊघाट पर अवस्थित है।यहीं सूर-श्याम मंदिर भी है,जहाँ सूरदास जी श्यामसुंदर की भक्ति में डूबे रहते थे।इसके समीप ही पाँच सौ वर्ष प्राचीन वह कुआँ भी है,जिसके विषय में यह किवदंती प्रचलित है कि एक बार जन्मांध सूरदास जी इस कूप में गिर गए थे,तब भगवान श्रीकृष्ण ने कुएँ के समीप स्थित वृक्ष से उतरकर स्वयं उन्हें कुएँ से बाहर निकाला था।सूर-श्याम मंदिर के समीप ही नेत्रहीन विद्यालय परिसर में आगरा-मथुरा एवं आस-पास के अनेक नेत्रहीन निवास करते हैं। वे सभी यहाँ रहकर शिक्षा ग्रहण करते हैं और अपना जीवन-यापन करते हैं।आगरा के वन्य क्षेत्र में स्थित यह विद्यालय नगर की सीमा से बाहर एवं जीवन की विभिन्न सुविधायों से रहित है,किन्तु प्रकृति के सुरम्य वातावरण एवं यमुना के मनमोहक तट पर स्थित होने के कारण यहाँ के निवासियों को बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ प्राप्त हैं।वानरों का आतंक यहाँ के लोगों का जीवन कठिन बनाता है,फिर भी वे सब यहाँ प्रसन्न हैं।यहाँ पर सभी दोनों नेत्रों से अंध है,पर कुछ ऐसे भी हैं,जिनकी एक आँख ठीक है।यहाँ तक कि विद्यालय के प्रधानाचार्य भी पूर्णरूपेण अंधे हैं।इनकी सहायतार्थ कुछ नेत्रवान लोग भी यहाँ रहते हैं।वैसे तो विद्यालय में अनेक सदस्य ऐसे थे ,जिनकी दयनीय स्थिति मन को द्रवित कर रही थी,किन्तु उन सबसे भिन्न एक छोटा बालक था,जिसे अपने बिस्तर पर शांत भाव से लेटे देखकर मैं अनायास ही स्वयं को उससे बातें करने से न रोक सकी। वह इस विद्यालय का सबसे नन्हा सदस्य है।आयु लगभग सात -आठ वर्ष है।मेरे पूछने पर उसने अपना नाम बताया-लक्ष्मण।"कहाँ से आये हो ?" जब मैंने यह पूछा तो उसने कहा-"मथुरा से।"मैंने प्रश्न किया " घर में और कौन-कौन है ?" उसका उत्तर था-"पापा हैं,दादी हैं,ताऊ -ताई हैं,उनके बच्चे हैं।"माँ और भाई-बहन कहाँ हैं?जब मैंने यह पूछा तो उसने बताया कि एक सड़क - दुर्घटना में माँ की मृत्यु हो गयी,एक बहन है,वो बहुत छोटी है,जो नानी के घर पर रहती है।पापा क्या करते हैं?इस प्रश्न के उत्तर में उसने कहा - वो शराब पीते हैं।उसका उत्तर सुनकर मैं सन्न रह गयी। पिता की शराब ने ही संभवतः उस नन्हें अंध बालक को परिवार से दूर कर दिया है। तुम्हें यहाँ कौन लाया था?मेरे ताऊ जी मुझे यहाँ छोड़कर गए थे।उसकी करूण - कथा मेरे अंतर्मन को झकझोर गयी। उसके परिजनों की हृदयहीनता मेरी संवेदना को कचोट गयी। उसका वह सुन्दर प्यारा मुखमंडल बरबस ही किसी को आकर्षित करने में समर्थ था।इतने सुन्दर और दयनीय स्थिति के इस बालक को कैसे इसके परिजनों ने त्याग दिया।जब इसे अपनों के सहारे की इतनी आवश्यकता है,तब कैसे उन लोगों ने इसे अस्सहाय छोड़ दिया,यही सब सोचते-सोचते मेरा मन द्रवित हो उठा और मेरी आत्मा मानो मुझसे कहने लगी कि इस बच्चे को अपने घर ले चल।यदि आज इस बालक की माँ जीवित होती तो क्या वह अपने पुत्र को इस प्रकार इस नेत्रहीन विद्यालय में अकेला रहने को भेज देती। कैसा है वह पिता जो अपनी संतान की स्वयं देख-भाल न कर सका?कैसे हैं,वे लोग जो अपने बच्चे को इस प्रकार अस्सहाय छोड़कर,स्वयं से दूर कर जीवन जी लेते हैं?एक वो लोग भी होते हैं,जिनके संतान नहीं होती,तो वो एक बच्चे के लिए तरसते हैं,और दूसरे ये लोग हैं,जिन्हें ईश्वर ने संतान का अनुपम वरदान दिया है तो ये उस वरदान को सहेज नहीं पा रहे हैं।वो नन्हा लक्ष्मण अपनी दयनीय अवस्था में भी पूर्ण निर्विकार भाव से मुझे छात्रावास के उस कक्ष में बैठा हुआ इस संसार से अनभिज्ञ, स्वयं में रमा हुआ शांतचित्त रूप में आज भी दिखाई देता है।
'सावित्री राठौर'
[सत्यकथा - मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 840

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on April 26, 2013 at 8:48pm

आदरणीय  गीतिका जी,कुंती जी,रामशिरोमणि जी,केवल प्रसाद जी,मनोज जी,बृजेश जी,विजय जी,अशोक जी एवं प्राची जी,सादर नमस्कार !
आप सबके द्वारा मेरी रचना पर दी गयी प्रतिक्रिया व प्रशंसापूर्ण शब्द मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इनसे प्रेरित होकर मैं सदैव यह प्रयास करूँगी कि आप लोगों की अपेक्षाओं की कसौटी पर खरी उतर सकूँ।बहुत-बहुत आभार।

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 25, 2013 at 8:33am

आदरणीया सादर, बहुत ही मन को द्रवित करने वाली परिस्थिति से अवगत कराने हेतु आभार. यह स्थिति  अनजाने ही नेत्रदान के महत्व को भी प्रतिपादित कर रही है. सादर.

Comment by vijay nikore on April 24, 2013 at 7:11pm

सावित्री जी,

 

इस मार्मिक कथा को साझा करने के लिए धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 24, 2013 at 12:50pm

नेत्रहीन बालक के परिवार जनों की संवेदनहीनता से द्रवित मन से लिखे गए इस संस्मरण को साँझा करने हेतु आभार प्रिय सावित्री जी..

शुभ की कामनाएं.

Comment by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 9:39pm

आदरणीया सावित्री जी आपने मेरे कहन को मान दिया इसके लिए आभार!

Comment by manoj shukla on April 23, 2013 at 9:38pm
बहुत ही मार्मिक तथा मन को झकझोर देने वाली कथा... आदर्णीया..हार्दिक बधाई
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 23, 2013 at 9:00pm

आ0 सावित्री जी, वाह!  अतिसुन्दर  सत्य कथा, सुन्दर लेखन वास्तव में विचारणीय प्रसंग है।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 8:37pm

आदरणीया सावित्री जी , बहुत ही मार्मिक //सुन्दर बधाई स्वीकारें।

Comment by coontee mukerji on April 23, 2013 at 8:24pm

सावित्री जी बहुत मर्मस्पर्शि सत्य कथा कही है आपने .मैं और क्या कहूँ  इस जगह को मैं जरूर देखने  जाऊँगी . शुभ्कामनाएँ सहित .

कुंती .

Comment by वेदिका on April 23, 2013 at 7:55pm

बकौल आदरणीय बृजेश जी! //एक सुझाव देना चाहता हूं कि यदि आपने इस संस्मरण को छोटे छोट पैराग्राफ में बांटकर लिखा होता तो ज्यादा आकर्षक लगता तथा पाठक को भी पढ़ने में आसानी होती।//

शुभकामनायें सादर गीतिका 'वेदिका'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service