लो हँसी दूब
बादल जो छलके
बहुत खूब
*
नेह की बूँद
मन पांखुरी पर
गिरी अब,लो
*
मन विभोर
कर गए बदरा
जी सराबोर
*
मुंह चिढाया …
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 16, 2013 at 11:04pm — 9 Comments
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चूल्हा चौंका झाड़ू बरतन,
गगरी पनघट औ पानी रॆ !!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,
अम्मा बाबू कॆ बदना की,
मैं किलकारी थी अँगना की,
तुलसी छॊड़ भई सजना की,
रॊटी जलॆ तवा कॆ ऊपर,
ऎसहिँ जलॆ जवानी रॆ !!१!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,
,
वॊ बचपन की सखी-सहॆलीं,
साथ साथ मॆरॆ सब…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 9:00pm — 11 Comments
काठमांडू नेपाल में होटल शंकर में अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकला मंच मुरादाबाद द्वारा आयोजित दिनांक 8 जून से 11 जून तक हुई अंतराष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी में द्वारा 134 लेखकों को लेकर संपादित की गई पुस्तक त्रिसुगंधि गीत ग़ज़ल व कविताओं का संकलन 296 पृष्ठों की इस पुस्तक का लोकापर्ण करते अतिथिगण , कार्यक्रम के अध्यक्षडॉ हरिराज सिंह नूर पूर्व कुलपति इ .वी .वी, मुख्य अतिथि थे डॉ आर के मित्तल कुलपति टी .एम .यू…
ContinueAdded by asha pandey ojha on June 16, 2013 at 8:30pm — 18 Comments
मित्रॊ,,,,
मॆरा यह किसी बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास
आप सबकॆ चरणॊं मॆं समर्पित है,ख़ामियां बतानॆ की कृपा करॆं,,,
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मुफ़ाईलुन (हजज़)
वज्न = १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
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कहीं हमनॆ सुना था इस, ज़मानॆ मॆं हिफ़ाज़त है !!
यहाँ हर एक कॆ दिल मॆं, अदावत ही अदावत है !!१!!
उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,
सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है !!२!!
अदा कॆ साथ दॆतॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 5:30pm — 19 Comments
सघन वृक्ष सा विशाल अडिग,
तपन में शीतलता देता !
तुफानों से हर पल लड़ता ,
फिर भी सदा सहज वो दिखता !
अपनी इन्हीं बातो के कारण ,
वो एक पिता कहलाता !
.
कठोर सा यह दिखने वाला ,
दिल से कोमलता दिखलाता !
बेटी के दर्द से विचलित ,
डान्ट वरी माई डॉटर कहता !
पर उसकी विदाई पर वो ,
खुद को असहाय है पाता !
लाख चाहकर भी वो अपने,
अनवरत आँसू रोक ना पाता !
अपनी इन्हीं बातो के कारण ,
वो एक पिता कहलाता !
.
बात बात पर डाँट…
Added by D P Mathur on June 16, 2013 at 9:00am — 3 Comments
पिता हूँ , शायद कह ना पाऊँ,
माँ सा प्यार ना दिखला पाऊँ !
चाहत है पर मन में इतनी,
प्यार में नम्बर दो कहलाऊँ !
जीवन की हर कठिन डगर में,
साथ खड़ा हो पाऊँ !
जब जब तुम्हें धूप सताये ,
छॉव मैं बन जाऊँ !
माँ तो नम्बर एक रहेगी ,
मैं , नम्बर दो कहलाऊँ !
.
समुंद्र भले ही कोई कहे ,
आँसुओं से बह जाऊँ !
तुम्हारी एक आह पर ,
विचलित मैं हो जाऊँ !
पत्थर हूँ ,
पर ,सुनकर दर्द तुम्हारे ,
मोम सा पिघल जाऊँ…
Added by D P Mathur on June 16, 2013 at 8:30am — 2 Comments
!!! घर की मुर्गी दाल बराबर !!!
कालिमा की घोर नाशक आभा दबे पांव क्षितिज मे अपना आधिपत्य जमाने को उतावली हो रही थी और इधर नित्य क्रिया के फलस्वरूप मुर्गे ने कुकड़ू कूं.............. कुकड़ू कूं........बांग के साथ ही जीवनमय युध्द का बिगुल फूंक दिया। सृष्टि में एक विस्मयकारी, मुग्धकारी और मनोहारी दृश्यों का सजीव प्रस्तुति प्रसारित होने लगा। मुर्गा किशोरवय था। शिकार का हर दांव-पेंच बहुत ही बारीकी से समझता था। इसीलिए आज भी…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 16, 2013 at 7:59am — 12 Comments
देखकर लोग बहुत दंग,पूत ,
ढोल बजते औ मृदंग,पूत !
तुमसे अब कौन मुक़ाबिल है
जीत लेते हो खूब जंग ,पूत !
एक बिल्ली थी वो भाग गई,
तुम तो निकले दबंग,पूत !
कौन तुमसे हिसाब मांगेगा ?
डाल दी है कुएं में भंग,पूत !…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 15, 2013 at 11:37pm — 4 Comments
!!!-ः दोहे:-!!!
पानी - पानी हो रही, लोकतंत्र सरकार।
हर क्षेत्र में असफल है, देश विदेश करार।।1
पानी नकसिर चढ़ गया, लोक तंत्र बेहाल।
जल संसाधन लूटता, बोतल भर कर माल।।2
जल संकट से घिर गया, अब यह पृथ्वी लोक।
जन मन रंजन कर रहा, नहि भविष्य का शोक।।3
सुबह बाल रवि तेज है, प्रखर प्रचण्डहि धूप।
सलिल अंबु जीवन लिए, मिलते नहि नल कूप।।4
जल ही जीवन जान लें, नीर वारि पय तोय।
पानी बिना सृष्टि नहीं, धरा हवा नभ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 10:10pm — 9 Comments
एक कली प्यारी सी
मासूम सी
खिलना चाहती थी
वह भी
इस खूबसूरत दुनिया
देखना चाहती थी
पर लोगों को कुछ
और चाहिए था
इसलिए मार दिया उसको
आखिर क्यों
वे ऐसा कदम उठाते हैं
जन्म लेने से पहले ही
उस कली को उखाड़ फेंकते हैं
प्रश्न पूछता हूँ उनसे
क्यों वे ऐसा करते हैं
किस चीज़ की चाह है उनकी
जो लडकियां नहीं कर सकती
इतिहास के पन्नो को उठाकर…
ContinueAdded by SAURABH SRIVASTAVA on June 15, 2013 at 9:00pm — 7 Comments
मुझे क्यूं लगता है , तुम्हे खो दुंगा ,
तुम्हें पा लिया है ,
ये भी तो मात्र एक भ्रम है !
जाने क्यूं लगता है ,रो दुंगा ,
ये भी तो मात्र एक भ्रम है !
नदी के किनारों सा,
साथ चलते चलते ,
क्यूं समझता हूँ ,मिलन होगा !
अनवरत साथ बह पा रहा हूँ ,
ये भी तो मात्र एक भ्रम है !
जाने क्यूं समझता हूँ ,
तुम, ये, वो सब मेरा है !
शाशवत सच ये कहता है ,
जो भोग लिया वो सपना है ! ,
जो उकेर दिया भाव ,वो अपना है !
प्रकृति का मात्र यही एक क्रम…
Added by D P Mathur on June 15, 2013 at 2:30pm — 6 Comments
आशा के सहारे इंसान अपनी सारी उम्र गुजार देता हैI यही कि अब अच्छा होने वाला है अब सब सही हो जाएगा1 मैं सोचती हूँ क्या सचमुच सब सही हो जाएगाIजिंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लगेगी1भगवान देता है माना पर मुझे दिया अस्त-व्यस्त बिखरा हुआI अब उसे समेटना हैI यहाँ संभालो तो वहाँ की चिंता,वहाँ संभालो तो यहाँ की चिंता क्या करूं?पता नही कब सब कुछ सही होगा,होगा की नही1 जीवन के इस करूक्षेत्र में आशा और निराशाके इस महाभारत में कहीं कौरव न जीत जाए1भगवान कृष्ण तुम कहाँ हो? सुनते क्यों नही ?पुकारते-पुकारते थक गई…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 15, 2013 at 11:41am — 4 Comments
!!!ःः! दोहे !ःः!!!
पानी - पानी हो रही, लोकतंत्र सरकार।
हर क्षेत्र में असफल है, देश विदेश करार।।1
पानी नकसिर चढ़ गया, लोक तंत्र बेहाल।
जल संसाधन लूटता, बोतल भर कर माल।।2
जल संकट से घिर गया, अब यह पृथ्वी लोक।
जन मन रंजन कर रहा, नहि भविष्य का शोक।।3
क्षीण बाल रवि तेज है, प्रखर प्रचण्डहि धूप।
सलिल अंबु जीवन लिए, मिलते नहि नल कूप।।4
जल ही जीवन जान लें, नीर वारि पय तोय।
सृष्टि पानी बिना नहीं, धरा हवा नभ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 9:11am — No Comments
वो दिखे ही नहीं इन दिनों
दूज का चन्द्रमा हो गए
इतने बीमार हम भी नहीं
अपनी खुद ही दवा हो गए
हैं सु-फल आपकी दृष्टि के
क्या थे हम और क्या हो…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 14, 2013 at 11:51pm — 13 Comments
!!! कुण्डलियां !!!
तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।
नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता।
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
मन की किताब के कुछ पन्ने
तुमको सुनाती हूँ मैं
कहीं पे हैं खुशियाँ खुद को समेटे
और गम हैं देखो चादर में लिपटे
सलवटें हजारों दर्द की पड़ी हैं
आशा की किरण पट खोले खड़ी है
खिड़कियों से उमंगें पवन बन के आती
देखो झरोखों से फिर जा रही हैं
कमरे के कोने में छिपी बैठी चाहत
लाल सुर्ख साड़ी में मुस्कुराहट शरमा रही है
हंसी फूलों में खिलखिला रही…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 14, 2013 at 8:00pm — 4 Comments
Added by Sarita Bhatia on June 14, 2013 at 7:00pm — 24 Comments
Added by Amod Kumar Srivastava on June 14, 2013 at 5:13pm — 14 Comments
प्रेम तुम्हारी कविता है…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on June 14, 2013 at 2:01pm — 11 Comments
वक़्त लगता है गहरा जख्म भरने में | |
वर्षों लगता है जिन्दगी सँवरने में | |
जिन्दगी के मोड़ पर मिलते हैं राही , |
पर सभी हिचकते हैं मदद करने में |… |
Added by Shyam Narain Verma on June 14, 2013 at 1:28pm — 10 Comments
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