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जो चिरागों की लौ में पिघलता है ….

जो चिरागों की लौ में पिघलता है
वो हसरतों को रौ में बदलता है .

तेरे वजूद पे भरोसा है जिसको
आस्माँ से गिर कर भी सँभलता है.

ख्व़ाब जो नींदों के पार रहता है
वो जागती आँख में मचलता है .

चाँद है ,तारे हैं, तन्हाइयाँ भी हैं
ये दिल किसे ढूँढने निकलता है.

हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा
हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .

हासिल ए हयात अब भी बाकी है
सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है

.

-ललित मोहन पन्त
02.21 सुबह
13.07.2013

"मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 2:06pm

भाई ललित मोहन पन्त जी,  ग़ज़ल पर आपका प्रयास अच्छा लगा.

आपने इस मंच पर रचना पोस्ट करने से सम्बन्धित नियम आवश्य देख लिए होंगे. आप अपनी ग़ज़लआदि प्रविष्टियों के साथ उनकी बह्र का विन्यास या नहीं तो उनके मिसरों का वज़्न अवश्य दिया करें. इससे आपको ही लाभ होगा.

आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल में अन्य ऐब भी हैं. लेकिन क़ाफ़िया और रद्दीफ़ बेहतर निभाया गया है.

शुभेच्छाएँ

Comment by विजय मिश्र on July 15, 2013 at 4:50pm
"तेरे वजूद पे भरोसा है जिसको
आस्माँ से गिर कर भी सँभलता है."-- बहुत प्रभावित किया . आभार
Comment by dr lalit mohan pant on July 15, 2013 at 1:57am

arun kumar nigamji  NeerajMishra ji Shyam Narain Verma ji  आपकी हौसला अफजाई का शुक्रिया …  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:14pm

आदरणीय ललित मोहन पन्त जी, शानदार गज़ल के लिये बधाइयाँ............

Comment by Neeraj Nishchal on July 14, 2013 at 8:15pm

हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा,
हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .|

हासिल ए हयात अब भी बाकी है ,
सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है |

kya bolun aapki ye lines kisi chamatkaar se kam nhi lagti

Comment by Shyam Narain Verma on July 13, 2013 at 6:03pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

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