For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कजरे  गजरे  झाँझर  झूमर  ,  चूनर  ने   उकसाया था
हार  गले  के  टूट  गये  सब  ,  ऐसा  प्यार  जताया था


हरी चूड़ियाँ  टूट  गईं , क्यों  सुबह-सुबह  तुम रूठ गईं
कल शब  तुमने ही  तो मुझको , अपने पास बुलाया था


जितनी करवट उतनी सलवट, इस पर  काहे का झगड़ा
रेशम की  चादर  को  बोलो , किसने  यहाँ  बिछाया था


हाथों की  मेंहदी  ना बिगड़ी  और  महावर ज्यों की त्यों
होठों  की  लाली  को  तुमने , खुद  ही  कहाँ  बचाया था


झूठ  कहूँ  तो  कौवा  काटे   ,   मैंने   दिया  जलाया था
खता  तुम्हारी  थी जो तुमने , खुद ही दिया बुझाया था


नई  चूड़ियाँ  ले  लेना   तुम  ,  हार  नया  बनवा  लेना
अभी - अभी  तो  पिछले  हफ्ते  ही  इनको बनवाया था ||


(मौलिक एवम् अप्रकाशित)


अरुण कुमार निगम

Views: 948

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 7:32pm

आदरणीय वाह! लाजवाब रचना है यह तो! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 7:29pm

आदरणीय अरुण भाईजी,  जय हो...  :-)))

इस ऊमस भरे मौसम में उभ-चुभ हुए मनस को आपने क्या सरस फुहार का झोंका मारा है !
कहते हैं न लोहा लोहे को काटता है. सर्वोपरि, रचना प्रतिपद अपने भोले प्रश्नों से बार-बार मानों चिकोटी काट-काट मुदित करती है. आर्द्र मौसम में पसीने का माहौल कमाल कर रहा है.

बधाई स्वीकारें प्रभु इस मनसायन रचना पर !!
 

 
शिल्प की दृष्टि से आपने 16-14 की यति पर 30 मात्रिक छंद-रचना की है. लेकिन स्वरूप रखा है द्विपदी का !!

दो पदों को छोड़ दें तो अन्य पद तुकांतता की दृष्टि से तो नहीं किन्तु मात्रिकता की दृष्टि से ताटंक छंद का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं.

इस प्रस्तुति को लावणी के निकट अधिक पाता हूँ. जहाँ पदांत मगण (222) की अनिवार्यता नहीं होती. लावणी महाराष्ट्र में अति लोकप्रिया नृत्य-गायन विधा है.

जय-जय

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 1:33pm

सुन्दर कोमल भावों से भरपूर रचना के लिए बधाई, आदरणीय अरुण जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by ganesh lohani on July 16, 2013 at 4:46pm

आदरणीय श्री अरुण जी प्रणाम , बहुत सुंदर रचना | प्रेम और सृंगार का मधुर मिलन| डर रूठने का पूर्वानुमान पर विनती|

"नई चूड़ियाँ ले लेना तुम , हार नया बनवा लेना" अभी - अभी  तो  पिछले  हफ्ते  ही  इनको बनवाया था ||
श्रावण की तीज भी तो आने वाली है, दो हफ्ते बाद ही सही खरीददारी एक साथ हो जाएगी |

Comment by वेदिका on July 16, 2013 at 2:17pm

श्रंगार रस की ये रचना तो बहुत कमाल बन पड़ी है!!
बड़ी ही प्रिय प्रेम दशा का चित्रण!!
बधाई स्वीकारें!!


फिर फिर बांहों में लेने का, अच्छा एक बहाना था
फिर फिर पुचकारा था मुझको फिर फिर मुझे रुलाया था,,,   

Comment by Savitri Rathore on July 16, 2013 at 2:01pm

सुन्दर एवं सुकोमल भावों से युक्त श्रृंगार - वर्णन .......बधाई हो।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 1:02pm

वाह वाह आदरणीय क्या श्रन्गार पिरोया है आपने वाह वा

घूर रहे हो गुस्से में वो प्यार हमारा भूल गये
रात अभी बीते कल की जब माथा चूम सुलाया था

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 15, 2013 at 11:17pm

आदरणीय अरुण निगम साहब सादर, सुन्दर प्यार भरी रचना सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 15, 2013 at 10:46pm

झूठ  कहूँ  तो  कौवा  काटे   ,   मैंने   दिया  जलाया था
खता  तुम्हारी  थी जो तुमने , खुद ही दिया बुझाया था

वाह ! बहुत सुन्दर गीत पढ़ कर आनंद आ गया, हार्दिक बधाई श्री अरुण कमार निघं जी 

झूट बोलू कौवा काटे,मैंने दिया जलाया था 

दीप बुझा देने का भी,भान मुझे कराया था 

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on July 15, 2013 at 8:32pm

झूठ  कहूँ  तो  कौवा  काटे   ,   मैंने   दिया  जलाया था
खता  तुम्हारी  थी जो तुमने , खुद ही दिया बुझाया था


नई  चूड़ियाँ  ले  लेना   तुम  ,  हार  नया  बनवा  लेना
अभी - अभी  तो  पिछले  हफ्ते  ही  इनको बनवाया था ||

बहुत सरस अति सुन्दर .........................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service