For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना

वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना॥

मगर न बदला मुहब्बत का फलसफ़ा अपना॥

बड़े खुलूस से तुझको है मशवरा अपना।

हर एक शख़्स को देना नहीं पता अपना॥

दिलों के बीच मुहब्बत के गुल खिलाता गया,

जहाँ- जहाँ से भी गुजरा है काफ़िला अपना॥

हम एक दूजे से चुपचाप हो गए है अलग,

ज़रा सी बात पे टूटा है सिलसिला अपना॥

कुछ इस अदा से दिखा के वो चाँद सा चेहरा,

बस एक पल में दिवाना बना गया अपना॥

ये चंद साँसे भी हैं मौत से उधार मिली,

यहाँ पे कुछ भी नहीं दोस्त आपका अपना॥

हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,

नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥

किसी की ज़ुल्फ मेरे रुख़ पे हवा करती रही,

किसी की सानों पे सर रातभर रहा अपना॥

मुझे तो अपने ही कदमों का बस भरोसा है,

न हमसफ़र न ये मंज़िल न रास्ता अपना॥

बस आंखमूद के सबको गले लगाता हूँ,

हर एक बशर में मुझे दिखता है ख़ुदा अपना॥

शरर से आग से “सूरज” से बच गया लेकिन,

कली से फूल से तितली से दिल जला अपना॥

 

डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 509

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on July 27, 2013 at 4:31am

वाह वाह क्या कहने हर शेर नायाब डॉ साहब ! ग़ज़लगोई को मुकाम मिला है ..उम्दा और ऊँचा ...एक एक शेर की भावभूमि अपनी मजबूती की मिसाल है --

बड़े खुलूस से तुझको है मशवरा अपना।

हर एक शख़्स को देना नहीं पता अपना॥

हार्दिक बधाई स्वीकारें इस प्रस्तुति पर !

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 1:12am

हम एक दूजे से चुपचाप हो गए है अलग,

ज़रा सी बात पे टूटा है सिलसिला अपना॥

कुछ इस अदा से दिखा के वो चाँद सा चेहरा,

बस एक पल में दिवाना बना गया अपना॥

ये चंद साँसे भी हैं मौत से उधार मिली,

यहाँ पे कुछ भी नहीं दोस्त आपका अपना॥

हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,

नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥

जिंदाबाद भाई जिंदाबाद

क्या कमाल बेमिसाल शाइरी है ...

पोस्ट पर देर से आ सका इसके लिए अफ़सोस है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 7:35pm

डॉक्टर् साहब, कमाल कमाल !  इस ग़ज़ल पर मेरी भी दाद कुबूल करें

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 15, 2013 at 10:29pm

आदरणीय डॉ. सूर्या बाली जी सादर बहुत खुबसूरत गजल सभी शेर बहुत उम्दा हैं और मुझे तो साहब मक्ता बड़ा ही पसंद आया है.बहुत बहुत दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Parveen Malik on July 15, 2013 at 8:22pm
डॉ. साहब हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत गज़ल ..... बधाई !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 4:13pm

बहुत शानदार गज़ल आदरणीय डॉ० सूर्या बाली जी 

हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,

नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥

बस आंखमूद के सबको गले लगाता हूँ,

हर एक बशर में मुझे दिखता है ख़ुदा अपना॥

इन दो शेरों के होने पर विशेष बधाई 

सादर.

Comment by नादिर ख़ान on July 15, 2013 at 1:19pm

वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना॥

मगर न बदला मुहब्बत का फलसफ़ा अपना॥............क्या कहने ....

ये चंद साँसे भी हैं मौत से उधार मिली,

यहाँ पे कुछ भी नहीं दोस्त आपका अपना॥....... वास्तविकता यही है .....

हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,

नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥......  बहुत खूब

डॉ. सूर्या बाली सूरज जी किस किस शेर की तारीफ करें सब एक से बढ़कर एक हैं ।

Comment by रविकर on July 15, 2013 at 10:09am

बहुत बढ़िया है आदरणीय-
आभार आपका-

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service