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हर सफ़े का हिसाब बाकी है- ग़ज़ल

2122 1212 22/112

देख लीजे ज़नाब बाकी है,

हर सफ़े का हिसाब बाकी है।

जब तलक इंतिसाब बाकी है,

तब तलक इंतिहाब बाकी है।

बर्क़-ए-शम से मिच मिचाए क्यों,

आना जब आफ़ताब बाकी है?

चंद अल्फ़ाज पढ़ के रोते हो,

पढ़ना पूरी क़िताब बाकी है।

रौंदने वाले कर लिया पूरा,

अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है।

'बाल' अच्छा कहाँ यूँ चल देना,

जब कि काफ़ी शराब बाकी है।

---

इंतिसाब: उठ खड़े होना।

इंतिहाब: लूटना,…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 19, 2021 at 10:30pm — 3 Comments

"किनारा "

मानो उन्हें  किसी की  प्रतीक्षा थी . उनका मन कुछ बैचैन हो रहा था ,वे अंदर ही अंदर कुछ असहाय सा महसूस कर रहे थे .हाथ पीछे की ओर बांधे वे द्वार पर आकर खड़े हो गए  तभी उनकी नजर सामने की और गई .वो धीमे-धीमे  चलकर  वह आती हुई कुछ दूरी पर खड़ी हो गई . दोनों ने एक दूसरे को देखा .

"तुम ? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा .कितना बदल गई हो ,ये सफेद केश , ये कृश काया..." वे बोले 

"फिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?" उसका प्रतिप्रश्न 

" तुम्हारी हँसी का वो नूर, चहरे की निश्चलता आज भी वैसी ही है…

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Added by नयना(आरती)कानिटकर on March 19, 2021 at 10:00pm — 2 Comments

जोगिरा सा रा रारा रा,..

16,11 मात्रा अंत मे गुरु लघु

1

ले राधा जैसी चंचलता, कृष्णा जैसा प्यार।

बरसाने में खेली जाए,होरी भी लठमार।

जोगिरा सा रा रारा रा,..

2

कृष्ण गए थे हँसी ठिठोली, करने राधा…

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Added by Rachna Bhatia on March 19, 2021 at 3:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल-उदासी इस क़दर मुझमें उतरती जा रही है

1222      1222      1222      122

ग़मों की दिन-ब-दिन क़िस्मत सँवरती जा रही है

उदासी इस क़दर मुझमें उतरती जा रही है



अभी तो वक़्त है पतझर के आने में,हवा क्यों

चली ऐसी कि मन वीरान करती जा रही है



बहारों ने चमन लूटा मगर बाद-ए-सबा ये 

खिज़ाओं पे हरिक इलज़ाम धरती जा रही है



फ़िराक-ए-यार का मौसम बहुत नज़दीक…
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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 19, 2021 at 10:30am — 14 Comments

ग़ज़ल: इश्क़ समझे न कोई दीवाना

2122 1212 22

देख कर मुस्कुराना शर्माना

इश्क़ समझे न कोई दीवाना

है कयामत हर इक अदा इनकी

जुल्फ़ें बिखराना हो या झटकाना

सिर्फ़ आता है इन हसीनों को

दिल चुराना चुरा के ले जाना

क्यों किसी का यूँ दिल जलाते हो

क्यों बनाते हो यूँ ही दीवाना

कितना मुश्किल है चाहतों में सनम

पास रहकर भी दूर हो जाना

बेक़रारी में आहें भरता है

जी न पाता है कोई दीवाना

साल हा साल लम्हा…

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Added by Aazi Tamaam on March 16, 2021 at 9:00pm — 11 Comments

पूरा किया है कौन वचन आपने जनाब -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



चाहे कमाया खूब  हो धन आपने जनाब

लेेेकिन ज़मीर करके दमन आपने जनाब।१।

*

तारीफ  पायी  नित्य  हो  दरवार  में भले

मुजरा बना दिया है सुखन आपने जनाब।२।

*

ये  सिर्फ  सैरगाह  रहा  हम  को  है पता

माना नहीं वतन को वतन आपने जनाब।३।

*

उँगली उठायी नित्य  ही  औरों के काम पर

देखा न किन्त खुद का पतन आपने जनाब।४।

*

देखो लगे हैं  लोग  ये  घर  अपना फूँकने

ऐसी लगायी मन में अगन आपने जनाब।५।

*…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 8:30am — 9 Comments

ग़ज़ल: खिड़की पे माहताब बैठा है।

2122 1212 22

आँख में भरके आब बैठा है।

खिड़की पे माहताब बैठा है।

**

रातभर वाट्सऐप पे है लड़ा

नोजपिन पे इताब बैठा है।

**

सुर्ख़ आँखें अफ़ीम हों गोया

पलकों को ऐसे दाब बैठा है।

**

यूँ ग़ुलाबी सी शॉल है ओढ़े

जैसे कोई गुलाब बैठा है।

**

धूप में खिल रही हैं पंखुरियाँ

खुश्बू में लिपटा ख़्वाब बैठा है।

**

सुब्ह से पढ़ रहा हूँ मैं उसको'

और वो लेके किताब बैठा…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 15, 2021 at 10:32pm — 16 Comments

कुछ कुण्डलियाँँ "गप या गप्प" पर

रहते  यारों   संग   थे,  मस्ती   में   हम  डूब

बचपन  में  होता  रहा,  गप्प   सड़ाका  खूब

गप्प सड़ाका  खूब, नहीं चिंता  थी  कल की

आह! मगर वह नाथ' ज़िन्दगी थी दो पल की

आया अब यह दौर, जवानी  जिसको  कहते

अपने में  ही  मस्त,  जहाँ  हम  सब  हैं  रहते



ऑफिस में गप  मारना, बहुत  बुरी  है  बात

देख लिया  यदि  बॉस  ने,  बिगड़ेंगे  हालात

बिगड़ेंगे   हालात,   मिले   टेंशन  पर  टेंशन

घट  जाए  सम्मान,  कटे  वेतन  औ'  पेंशन

भभके उल्टी  आग, बन्द थी जो माचिस  में

हर…

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Added by नाथ सोनांचली on March 15, 2021 at 5:16am — 4 Comments

ग़ज़ल

1212 1122 1212 22

निहाँ दिलों में यहां कितने राज़ गहरे हैं,

कि चश्म-ए-तर पे तबस्सुम के देखो पहरे हैं।

मिलो किसी से अगर फासला ज़रा रखना,

यहां मुखौटे लगाए हज़ार चहरे हैं।

ये इंतिजार हमें है सुने वो ख़ामोशी,

मगर ये इल्म नहीं था वो दिल से बहरे हैंl

ग़ज़ब का हौसला है देख मेरी आंखों का,

कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।

तुम्हारी याद जो महफ़िल में दफ़अतन आई,

इसी सबब से मेरे बहते अश्क ठहरे…

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Added by Pratibha Sharma on March 13, 2021 at 11:30am — 7 Comments

ग़ज़ल-मचलेंगे जज़्बात हमारे

221--1221--1221--122

1

कैसे न सनम मचलें'गे जज़्बात हमारे

महफ़िल में अगर गाएंगे नग़्मात हमारे

2

दुनिया का वतीरा भी निभा सकते हैं लेकिन

इन सबसे अलहदा हैं ख़यालात हमारे

3

ईमान की बाज़ार में कीमत नहीं कुछ भी

किस तर्ह से फिर सुधरेंगे हालात हमारे

4

जल जल के बुझी जाती है उम्मीदों की शम्मा

दम तोड़ते हैं साथ सवालात हमारे

5

माज़ी को सिरहाने तले रख सोचते हैं हम

क्यों एक से रहते नहीं दिन रात…

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Added by Rachna Bhatia on March 13, 2021 at 9:00am — 8 Comments

ग़ज़ल (जो दर्द रूह का है ज़बाँ पर न आयेगा)

2212 - 1221 - 2212 - 12 

जो दर्द रूह का है ज़बाँ पर न आयेगा

शिकवा भी कोई सुनने यहाँ पर न आयेगा 

उसका पयाम ये है कि आयेगा 'दफ़्न' पर 

ली थी क़सम जो उसने यहाँ पर न आयेगा 

वो साथ मेरे यूँ तो रहा है तमाम उम्र 

सुनता है मेरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ, पर न आयेगा 

जलकर ये ख़ाक़ हो भी चुका है वजूद अब 

तुमको नज़र ज़रा भी धुआँ पर न आयेगा 

नज़रों के रास्ते जो उतर दिल में करले घर 

अब तीर ऐसा कोई कमाँ पर न…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 12:09am — 2 Comments

ग़ज़ल~ तुझसे मिलकर

22 22 22 22 22 22 22

तुझसे मिलकर हम जो रो लेते तो अच्छा होता..

जख्मी दिल को नमक से धो लेते तो अच्छा होता।



हम अपने सर को रखकर कुछ पल तेरे दामन में..

कतरा कतरा आँसू बो लेते तो अच्छा होता।

सहरा सहरा दरिया दरिया पर्वत पर्वत वन वन..

पल भर खुद को खुद से खो लेते तो अच्छा होता।



हर पल है जब आंखों में तेरे सपनों का जगना.

कोई दिन हम तुझमें सो लेते तो अच्छा होता।

जब अपनों के हो न सके,तेरा होना हो न सका …

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2021 at 8:00am — 4 Comments

ग़ज़ल (इक जहाँ और बसाओ तो चलें)

2122 - 1122 - 22/112

इक जहाँ और बसाओ तो चलें   

फिर मुझे अपना बनाओ तो चलें 

उम्र भर साथ निबाहो तो चलें

फ़ासिले दिल के मिटाओ तो चलें

चन्द क़दमों की रिफ़ाक़त क्या है

हर क़दम साथ बढ़ाओ तो चलें

ज़िन्दगी हम ने गवाँ दी यूँ ही             

हासिल-ए-इश्क़ बताओ तो चलें

जितने पर्दे हैं उठा दो न सनम

राज़ उल्फ़त के सुनाओ तो चलें  

              

ज़िन्दगी ! ऐसी भी क्या उजलत…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 12, 2021 at 12:13am — 4 Comments

लौट भी आओ न ....

लौट भी आओ न ....
लौट भी आओ न
देखो !
प्रतीक्षा की सीढ़ियों पर
साँझ उतरने लगी है
भोर अपने वादे से मुकरने लगी है
आँखों की मुट्ठियों से तन्हाई फिसलने लगी है
मेरी…
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Added by Sushil Sarna on March 11, 2021 at 8:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल (हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं)

221 - 1222 - 221 - 1222

हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं

होते ही ख़फ़ा हमसे दुश्मन से जा मिलते हैं 

गुलशन में तेरे हर दिन नए ग़ुंचे चटकते हैं

गिर जाते हैं कुछ पत्ते कुछ फूल महकते हैं

माली है तू हम सबका हम भी हैं तेरी बुलबुल 

हमको ये शरफ़ हासिल हम यूँ  ही चहकते हैं

आँखों में मुहब्बत भर देखा जो हमें तुम ने 

छाया है सुरूर ऐसा हम ख़ुद ही बहकते हैं

कुछ ऐसी तपिश तेरे पैकर की हुई…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 11, 2021 at 3:53pm — 8 Comments

ग़ज़ल: "दाँव पर आबरू सी रहती है "

2122 1212 22

बे सबब हाव-हू सी रहती है

दाँव पर आबरू सी रहती है

इश्क़ जब भी किसी से होता है

इक अजब जुस्तजू सी रहती है

लम्हा दर लम्हा दिल मचलता है

हर पहर आरज़ू सी रहती है 

यूँ लगे की हर एक चहरे पर

सूरत इक हू-ब-हू सी रहती है

मन भटकता है वन हिरन बनकर

खुशबु इक रू-ब-रू सी रहती है

ख़ुद से ही अब वो बात करता है

दिल में इक गुफ़्तगू सी रहती है

जलके सब ख़ाक हो…

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Added by Aazi Tamaam on March 11, 2021 at 1:00pm — 7 Comments

तात के हिस्से में कोना आ गया - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२



तात के  हिस्से  में  कोना आ गया

चाँद को भी सुन के रोना आ गया।१।

*

नींद  सुनते  हैं  उसी  की  उड़ गयी

भाग्य में जिसके भी सोना आ गया।२।

*

खेत लेकर इक इमारत कर खड़ी

कह रहा वो  बीज  बोना आ गया।३।

*

डालकर  थोड़ा   रसायन ही  सही

उसको आँखें तो भिगोना  आ गया।४।

*

पा गये जगभर की खुशियाँ लोग वो

एक दिल जिनको भी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2021 at 5:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल-कूचे में बेवफ़ा के

221 2122 221 2122

1

दरिया है आँसुओं का कूचे में बेवफ़ा के

जाना वहाँ से यारा दामन ज़रा बचा के

2

इक बात ये बता दे मेरे हसीन क़ातिल

लेता है जान कैसे तू यार मुस्कुरा के

3

पूछेगी इक न इक दिन तुमसे भी ज़िन्दगानी 

हासिल हुआ तुम्हें क्या ईमान को गँवा के

4

उल्फ़त की वादियों से रूठे रहेंगे कब तक 

देखें तो आप इक दिन दिल इनसे भी लगा के

5

पूछा है आसमाँ से कल रात छत पे आ कर

जीता है किस तरह वो…

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Added by Rachna Bhatia on March 10, 2021 at 1:30pm — 12 Comments

पत्थर ने दी हैं रोज नजाकत को गालियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/ २१२१/१२२१/२१२



पत्थर ने दी हैं रोज नजाकत को गालियाँ

जैसे नशेड़ी  देता  है  औरत  को गालियाँ।१।

*

भाती हैं सब को आज ये चतुराइयाँ बहुत

यूँ ही न मिल रही हैं शराफ़त को गालियाँ।२।

*

ये दौर नफरतों को फला इसलिए जनाब

देते हैं सारे  लोग  मुहब्बत  को गालियाँ।३।

*

दूल्हे को बेच सोचते खुशियाँ खरीद लीं

देता न कोई ऐसी तिजारत…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2021 at 5:30am — 8 Comments

मुखरता से हो रहा बदलाव (आलेख)

मुखरता से हो रहा बदलाव..... और बदल रही तस्वीर...!



विश्व की अन्य महिलाओं की तरह भारत की महिलाओं को आजादी से जीने और अधिकारों का उपयोग कर सर्वांगीण विकास करने के लिए संघर्ष नही करना पड़ा।समय के साथ सकारात्मक बदलाव भी हुये।पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में अपना उपस्थिति दर्ज कराके अपनी आजादी की नई ईबारत लिखती हौसले बुलंद महिलाओं ने देश-विदेश में अपनी सफलता, उपलब्धियों का परचम फहराया। अपने संघर्ष, मेहनत,जज्बा,जुनून से हर सीमाओं को लांघकर कामयाबी हासिल कर नई ऊंचाईयां छूकर प्रेरणा…

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Added by babitagupta on March 8, 2021 at 12:30pm — 3 Comments

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