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अगर हक़ माँगते अपना कृषक, मजदूर खट्टे हैं (ग़ज़ल)

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

अगर हक़ माँगते अपना कृषक, मजदूर खट्टे हैं

तो ख़ुश्बू में सने सब आँकड़े भरपूर खट्टे हैं

मधुर हम भी हुये तो देश को मधुमेह जकड़ेगा 

वतन के वासिते होकर बड़े मज़बूर, खट्टे हैं

लगे हैं आसमाँ पर देवताओं को चढ़ेंगे सब

तुम्हारे सब्ज़-बागों के सभी अंगूर खट्टे हैं

लड़ाकर राज करना तो विलायत की रवायत है

हमारे वासिते सब आपके दस्तूर खट्टे हैं

हमेशा बस वही कहना जो सुनना चाहते हैं सब

भले ही हो गये हों आप यूँ मशहूर, खट्टे हैं

हमारे स्वाद से मत भागिये हैं स्वास्थ्यवर्द्धक हम 

विटामिन सी बहुत है इसलिये भरपूर खट्टे हैं

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(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2021 at 6:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 18, 2021 at 9:43am

आ. भाई धर्मेंद्र जी, नये रूप में बिम्ब गढ़ने के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 14, 2021 at 3:51pm

//क्योंकि सड़े हुए या खराब खाद्य पदार्थों में बैक्टीरिया की वृद्धि के कारण अक्सर खट्टा स्वाद होता है इसी अर्थ का विस्तार आदमी, आँकड़े, दस्तूर इत्यादि के लिए किया गया है// ये ख़याल आपको मुबारक हो। 

मैं आपके इस फ़लसफ़े से सहमत नहीं हूँ। सादर। 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2021 at 1:21pm

जैसा कि कड़वाहट के साथ होता है, खट्टे का पता लगाना अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह उन खाद्य पदार्थों की पहचान करने में मदद कर सकता है जो खतरनाक हो सकते हैं, क्योंकि सड़े हुए या खराब खाद्य पदार्थों में बैक्टीरिया की वृद्धि के कारण अक्सर खट्टा स्वाद होता है

इसी अर्थ का विस्तार आदमी, आँकड़े, दस्तूर इत्यादि के लिए किया गया है जो स्वतः स्पष्ट है

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 14, 2021 at 12:34pm

//कवि का काम ही पुराने अर्थों को विस्तार देना है वरना सारी कविता हजार साल पुराने लेखन का दोहराव मात्र होकर रह जाएगी//

जी, बहतर है। हम भी अपनी शब्दावली को विस्तार दिये देते हैं ज़रा बताएं कि यहाँ आपने खट्टेपन के अर्थ को विस्तार देकर क्या नया अर्थ दिया है? 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2021 at 2:17am

हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया जनाब अमीर साहब, निवेदन है कि कवि का काम ही पुराने अर्थों को विस्तार देना है वरना सारी कविता हजार साल पुराने लेखन का दोहराव मात्र होकर रह जाएगी

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 13, 2021 at 12:46am

जनाब धर्मेंद्र कुमार सिंह जी आदाब, अपने चिर परिचित अंदाज़ में और बेबाक़ी के साथ उम्दा ग़ज़ल का प्रयास है बधाई स्वीकार करें, मगर रदीफ़ "खट्टे हैं'' के कारण कई मिसरों का वाक्य विन्यास सही नहीं है। तीसरा और छठा शे'र अच्छे हैं। आम तौर पर खट्टा होना सिर्फ़ अंगूर ही के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इन्सान को या आँकड़ों अथवा दस्तूर को खट्टा कहना कहीं सुनने में नहीं आता है। ग़ौर कीजियेगा। सादर।

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