दिल के बिना जैसे कोई नादान जिन्दा रह गया
वैसे हो बेघर इक हसीं अरमान जिन्दा रह गया
है आदमी ही आदमी की जान का दुश्मन हुआ
यारों खुदा का है करम इंसान जिन्दा रह गया
टूटा हमारा हौसला उम्मीद फिर भी थी जवां
रख आरजू जीने की ये बेजान जिन्दा रह गया
मेरे खुदा मुझ पर तेरा रहमो करम हरदम रहा
तूफ़ान में अदना सा ये इंसान जिन्दा रह गया
लगते रहे हर रोज ही इल्जाम तो हम पर बड़े
माँ की दुआओं से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 3:46pm — 22 Comments
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जुम्मन ख़ाँ
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अब तो थोड़ा सोचो और विचारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
सच्चाई को कब तक ओढ़ो और बिछाओगे
ख़ुदग़र्ज़ी से, मक्कारी से आँख चुराओगे
मुँह में रखकर राम बगल में छुरी नहीं रखते
नीयत कभी किसी की ख़ातिर बुरी नहीं रखते
निश्छल चेहरे पर छाया जो ये भोलापन है
सच मानो जुम्मन ख़ाँ सबसे शातिर दुश्मन है
थोड़ा सा तो डूबो धन-दौलत की चाहत में…
Added by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 13, 2013 at 2:30pm — 12 Comments
5+7+5+7……..+5+7+7 वर्ण
जीवन कैसा
एक चिटका शीशा
देह मिली है
बस पाप भरी है
भ्रम की छाया
यह मोह व माया
अहं का फंदा
मन दंभ से गन्दा
शब्द हैं झूठे
सब अर्थ हैं छूटे
तृप्ति कहीं न
सुख-चैन मिले न
फाँस चुभी है
एक पीर बसी है
प्यास बढ़ी जो
अब आस छुटी जो
किसे पुकारें
अब कौन उबारे
एक सहारा
माँ यह तेरा द्वारा
हे जगदम्बे!
शरणागत तेरे
आरती…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 1:00pm — 33 Comments
1222, 1222, 122.
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ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?
लहू दिल से निचोड़ा क्यूँ करें हम?
.
फ़ना हो जाएगा सबकुछ जहां में,
ये झूठा फिर दिखावा क्यूँ करें हम?
.
उगेंगे एक दिन कांटें ही कांटें,
ज़हन में याद बोया क्यूँ करें हम?
.
नहीं परवाह है उनको हमारी,
बिना कारण ही रोया क्यूँ करें हम?
.
हमारे काम खुद ही बोलतें है,
ज़ुबानी कोई दावा क्यूँ करें हम?
.
जुदा है रास्ते तुमसे हमारे,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 13, 2013 at 12:30pm — 26 Comments
भूख
यह सच्ची घटना कई साल पहले की है जब मैं मात्र १८ वर्ष का था। गुजरात के आनन्द शहर से दिल्ली जा रहा था। रास्ते में बड़ोदा (अब वरोदरा) स्टेशन पर ट्रेन बदलनी थी.. फ़्रन्टीयर मेल के आने में अभी २ घंटे बाकी थे। रात के लगभग ११ बजे थे। समय बिताने के लिए मैं स्टेशन के बाहर पास में ही सड़क पर टहलने चला गया। एक चौराहे पर छोटी-सी लगभग ५ साल की बच्ची खड़ी रो रही थी, रोती चली जा रही थी। मेरा मन विचलित हुआ। मैंने उससे पूछा..." क्या नाम है तुम्हारा?" ..वह रोती चली गई। पास में एक…
ContinueAdded by vijay nikore on October 13, 2013 at 12:00pm — 17 Comments
2122. 1212. 22
कब वो खाली शराब पीता है
हुस्ने ताजा शबाब पीता है
कैसे खिलती वहाँ कली अबतर
वो तो खूने हिजाब पीता है
इतनी भोली खला कि क्या जाने
फिर वो अर्के गुलाब पीता है
ऐसी तदबीर जानता है वो
दिल में उठते हुबाब पीता है
जाने तसतीर भी नहीं उसकी
तब भी सारे खिताब पीता है
ऐसी तौक़ीर दूरतक जानिब
सबकी खाली किताब पीता है
पीना फितरत बना लिया उसने
बैठे ही लाजवाब पीता है
हिजाब -…
Added by Poonam Shukla on October 13, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
क्यों बे साले तेरी ये मजाल ... दो टके का मजदूर हो के मुझसे ज़बान लड़ाता है !
साहेब, गरियाते काहे हैं, मजदूर तो आपौ हैं
क्या बकता है हरामखोsss
माई बाप ... पिछले हफ्ता एक मई का आपै तो कहे रहेन ,,, "हम सब मजदूर हैं"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by वीनस केसरी on October 13, 2013 at 12:00am — 25 Comments
बोलो किसको राम कहूँ मै
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सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !
धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे
अपना अपना बचा रहे है
चौक चौक मे दुर्योधन बन
चौसर द्युत सा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 12, 2013 at 9:30pm — 38 Comments
मेरे अल्लाह ! तू लड़की बनाना
मुझे आता नहीं, चोटी बनाना//१
.
बनाना चाहता हूँ ‘आदमी’ को
बुरा है पर, ज़बरदस्ती बनाना//२
.
मुझे इक 'माँ' लगे है, देख लूं जो
सनी मिट्टी लिए रोटी बनाना//३
.
न डूबेगा समंदर में, लहू के
शिकारी सीख ले कश्ती बनाना//४
.
चला वो, तीर-भाले को पजाने
सिखाया था जिसे बस्ती बनाना//५
.
उजालों से मुहब्बत है, मुझे भी
सिखा दे माँ मुझे तख्ती…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 12, 2013 at 5:00pm — 33 Comments
बह्र— 2122/2122/2122/22
थाम के कांधे को हाथों में कलाई देना
याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना
प्यार ने जिसके बना डाला है काफिर मुझको
ऐ खुदा उनको जमाने की खुदाई देना
तरबियत आंसू की कुछ ऐसे किया है हमने
अब तो मुश्किल है मेरे गम का दिखाई देना
याद आती है जुदाई की घड़ी जब हमको
तो शुरू होता है चीखों का सुनाई देना
बिन तेरे खुश रहने का इल्जाम था सिर मेरे
काम आया मेरे अश्कों का सफाई देना
जब भी रूठा हूं…
Added by शकील समर on October 12, 2013 at 3:30pm — 24 Comments
सुकुमार के पास और कोई चारा नहीं बचा था, व्यापार में हुए 200 करोड़ रुपये के घाटे वह सहे तो कैसे, अब या तो वह शहर-देश छोड़ कर भाग जाए या फिर काल का ग्रास बन जाए| सुकुमार को कोई राह सुझाई नहीं दे रही थी| सारे बंगले, ज़मीनें, कारखाने बेच रख कर भी इतना बड़े नुकसान की पूर्ति नहीं कर सकता था| फिर भी वो पुरखों की कमाई हुई सारी दौलत और जायदाद का सौदा करने एक बहुत बड़े उद्योगपति मदन उपाध्याय के पास जा रहा था| मदन उपाध्याय देश के जाने-माने उद्योगपति थे, उनके कई सारे व्यवसायों में…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 12, 2013 at 1:20am — 20 Comments
रमाकांत को पचास वर्ष की आयु में सात पुत्रियों के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ती हुयी थी | आज बेटे की छठी बड़े धूमधाम से मनाई जा रही थी | मित्रों और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था कहीं तिल रखने की भी जगाह नही थी घर में | महिलाएँ बधाई गीत गा रहीं थीं | रमाकांत सपत्नी खुशी से फूले नही समा रहे थे | बेटियाँ चुपचाप ये सब देख रहीं थीं | सबसे छोटी बेटी जो मात्र तीन वर्ष की थी अपनी सबसे बड़ी बहन की गोद में बैठी थी | सभी बहने देख रहीं थी कि कैसे सभी उसके नन्हें से भाई को गोद में ले कर स्नेह दिखा रहे थे | माँ…
ContinueAdded by Meena Pathak on October 11, 2013 at 5:36pm — 24 Comments
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
जग से नाता तोड़ चला हूँ,मैं
जग से नाता तोड़ चला हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
उनसे मिलन की, आस लिए
अंधरों बड़ी प्यास, लिए
दर बदर मैं, भटक रहा हूँ, हाँ
दर बदर मैं, भटक रहा हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
आएगी कब वह, रात सुहानी
होंगी जब वो,मेरी दीवानी
रात और दिन यही, सोच रहा हूँ, मैं
रात और दिन यही, सोच रहा हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ
हर…
ContinueAdded by Devendra Pandey on October 11, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी
=================
चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ
पल भर तो ठहर जाना
नैनों की भाषा क्या है
कुछ गुनगुना सुना-ना
-------------------------
*आईना जरा मै देखूँ
क्या मेरी छवि बसी है
कोमल-कठोर बोल तू
पलकें उठा , शरमा-ना
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आँखों मे आँखें डाले
मै मूर्ति बन गया हूँ
पारस पारस सी हे री !
तू जान डाल जा ना
------------------------
खिलता गुलाब तू…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 11, 2013 at 12:00am — 22 Comments
कैकई के मोह को
पुष्ट करता
मंथरा की
कुटिल चाटुकारिता का पोषण
आसक्ति में कमजोर होते दशरथ
फिर विवश हैं
मर्यादा के निर्वासन को
बल के दंभ में आतुर
ताड़का नष्ट करती है
जीवन-तप
सुरसा निगलना चाहती है
श्रम-साधना
एक बार फिर
धन-शक्ति के मद में चूर
रावण के सिर बढ़ते ही जा रहे हैं
आसुरी प्रवृत्तियाँ
प्रजननशील हैं
समय हतप्रभ
धर्म ठगा सा…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on October 10, 2013 at 11:30pm — 26 Comments
चिड़िया के दो बच्चों को
पंजों में दबाकर उड़ गया है एक बाज
उबलने लगी हैं सड़कें
वातानुकूलित बहुमंजिली इमारतें सो रही हैं
छोटी छोटी अधबनी इमारतें
गरीबी रेखा को मिटाने का स्वप्न देख रही हैं
पच्चीस मंजिल की एक अधबनी इमारत हँस रही है
कीचड़ भरी सड़क पर
कभी साइकिल हाथी को ओवरटेक करती है
कभी हाथी साइकिल को
साइकिल के टायर पर खून का निशान है
जनता और प्रशासन ये मानने को तैयार नहीं हैं
कि…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 10, 2013 at 7:43pm — 25 Comments
सीमांकन दूजा करे, मर्यादा सिखलाय |
पहला परवश होय तब, हृदय देह अकुलाय |
हृदय देह अकुलाय, लगें रिश्ते बेमानी |
रविकर पानीदार, उतर जाता पर पानी |
यह परिणय सम्बन्ध, पके नित धीमा धीमा |
करिए स्वत: प्रबन्ध, अन्य क्यूँ पारे सीमा -
मौलिक / अप्रकाशित
(दुर्गा-पूजा / विजयादशमी की मंगल-कामनाएं )
Added by रविकर on October 10, 2013 at 4:00pm — 11 Comments
2 1 2 2 2 1 2 2 2 2 1 2
तेरी मैं परछाई , तुम हो मेरी पिया
अब कहीं लागे नहीं तुम बिन यह जिया/
आसमाँ से है उँचा,सागर से गहन
ऐसा सच्चा प्यार हमने तुमको किया/
चाँद तुम मेरे अगर, मैं हूँ चाँदनी
ऐसा है अपना मिलन ओ मेरे पिया/
आइना तुम हो अगर मैं तस्वीर हूँ
अक्स तुझमें मेरा ही है दिखता पिया
तुम अगर दीया हो तो 'बाती' हूँ तेरी
हैं अधूरे एक दूजे बिन ओ पिया/
मैं समाई सिन्धु में जैसे…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on October 10, 2013 at 11:30am — 9 Comments
एक आसमान को छूता
पहाड़ सा / दरक जाता है
मेरे भीतर कहीं ..
घाटियों में भारी भरकम चट्टानें
पलक झपकते
मेरे संपूर्ण अस्तित्व को
कुचल कर
गोफन से छूटे / पत्थर की तरह
गूँज जाती हैं.
संज्ञाहीन / संवेदनाहीन
मेरे कंठ को चीर कर
निकलती मेरी चीखें
मेरे खुद के कान / सुन नहीं पाते
मैं देखता हूँ
मेरे भीतर खौलता हुआ लावा
मेरे खून को / जमा देता है
जब तुम न्याय के सिंहासन पर बैठ कर
सच की गर्दन मरोड़कर
देखते देखते निगल…
Added by dr lalit mohan pant on October 10, 2013 at 11:00am — 16 Comments
Added by Poonam Shukla on October 10, 2013 at 10:34am — 12 Comments
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