Added by amod shrivastav (bindouri) on March 31, 2016 at 9:12am — 6 Comments
फाइलुन फाइलुन मुफाईलुन
(212 212 1222)
ये जमीं से या जाँ से उठता है
जो धुआँ है कहाँ से उठता है
ये जो गर्दो गुबार है क्या है
क्यों ये फिर कारवाँ से उठता है
हर तरफ शोर सा ये है कैसा
क्यों सदा आसमाँ से उठता है
जख्म सीने में पल रहा कोई
दर्द दिल के मकाँ से उठता है
दो कदम साथ क्या चले रहबर
अब धुआँ आँ-जहाँ से उठता है
इश्क को उम्र लग गयी शायद
दर्द अब जिस्मो जाँ से उठता है
दर्द को आह से सुकूँ…
Added by Hem Chandra Jha on March 31, 2016 at 12:00am — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 30, 2016 at 6:38pm — 8 Comments
Added by kumar gourav on March 30, 2016 at 5:43pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 30, 2016 at 11:32am — 6 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 29, 2016 at 7:06pm — 8 Comments
हाथों को मेरे तुम थाम लो
मेरा ही बस तुम नाम लो
कानों में अमृत रस घोलो
मैं सुनती रहूँ बस तुम बोलो|
केशों को मेरे तुम सहलाओ
बातों से मेरा जी बहलाओ
बादल तुम नेह के बरसाओ
नैनों में छिपा लूँ आ जाओ|
नज़रों से मुझे तुम पढ़ते रहो
नित स्वप्न सुरीले गढ़ते रहो
आगे ही आगे बढ़ते रहो
सोपान ह्रदय के चढ़ते रहो|
जीवन की मुझे तुम आस दो
नेह का अपने विश्वास दो
यौवन का मुझे मधुमास दो…
ContinueAdded by sarita panthi on March 29, 2016 at 6:52pm — 5 Comments
बेवफाई ....
एक जानवर
अपने मालिक को
इंसान समझने की
गलती कर बैठा
उसे अपना खुदा समझ बैठा
वक्त बेवक्त उसकी रक्षा करने को
अपना फर्ज समझ बैठा
उसके हर इशारे पर
जानवर होते हुए भी
खुद को न्योछावर कर बैठा
डाल दिये टुकड़े तो खा लिए
वरना खामोशी से
अपने पेट से समझोता कर बैठा
अपने दर्द को
अपने कर्मों की सजा समझ बैठा
जगता रहा वो रातों को
ताकि मालिक चैन से सो सके
इक जरा सी गलती ने
मालिक ने उसकी पीठ पर
जानवर का…
Added by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 2:53pm — 2 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 29, 2016 at 10:00am — 8 Comments
आज बस में खड़े खड़े आये
सबके चेहरों को देखते आये ।
पिछली यादें तलाश करते हुए
हम तेरे शहर में चले आये ।
और कुछ काम भी नहीं मुझको,
आज मिलने ही आपसे आये ।
जैसे कुछ खो गया था मेरा यहाँ
हर गली मोड़ देखते आये ।
मेरी औक़ात क्या महब्बत में
इस जहाँ में बड़े बड़े आये ।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on March 28, 2016 at 11:00pm — 5 Comments
212 2112 2112 222
सोच अच्छी हो तो मस्जिद या शिवाला देगी
तंग हो और अगर खून का प्याला देगी।1।
लाख अनमोल कहो यार ये हीरे लेकिन
पर हकीकत है कि मिट्टी ही निवाला देगी।2।
जब हमें भोर में आँखों ने दिया है धोखा
कौन कंदील जो पावों को उजाला देगी।3।
आशिकी यार तबायफ की करोगे गर जो
स्वर्ग से घर में नरक सा ही बवाला देगी।4।
आप हम खूब लडे़ खून बहाना मकसद
राहेरौशन तो जमाने को मलाला देगी।5।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2016 at 3:00pm — 3 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 28, 2016 at 3:00pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 28, 2016 at 1:26pm — 6 Comments
१२२ १२२ १२२ १२२
मेरी नाव का बस यही है फ़साना
जहाँ हो मुहब्बत वहीं डूब जाना
सनम को जिताना तो आसान है पर
बड़ा ही कठिन है स्वयं को हराना
न दिल चाहता नाचना तो सुनो जी
था मुश्किल मुझे उँगलियों पर नचाना
बढ़ा ताप दुनिया का पहले ही काफ़ी
न तुम अपने चेहरे से जुल्फ़ें हटाना
कहीं तोड़ लाऊँ न सचमुच सितारे
सनम इश्क़ मेरा न तुम आजमाना
ये बेहतर बनाने की तरकीब उसकी
बनाकर मिटाना…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 28, 2016 at 9:49am — 16 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 27, 2016 at 3:58pm — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:51pm — 5 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 7:00am — 11 Comments
दिखा दे आईना मिला दे खुदी से
अब ऐसे कोई इम्तहान नहीं होते ......
मसीहा के घर न उगे ज्यों मसीहा
बेईमान के हमेशा बेईमान नहीं होते.......
गलियों के ज़िम्मे वो मासूम बचपन
जिनके सर निगेहबान नहीं होते ........
किस्से उनके भी कम नहीं होते
जिनके कभी दर्ज़े बयान नहीं होते ......
महलों में ही चलती हैं…
Added by amita tiwari on March 26, 2016 at 8:04pm — 9 Comments
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ......
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको
कुछ मीत मनाने हैं मुझको
जो अब तक पूरे हो न सके
वो गीत बनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
कब मौसम जाने रूठ गया
कब शाख से पत्ता टूट गया
जो रिश्तों में हैं सिसक रहे
वो दर्द अपनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
क्यूँ नैन शयन में बोल उठे
क्यूँ सपन व्यर्थ में डोल उठे
अवगुंठन में तृषित हिया के
अंगार मिटाने …
Added by Sushil Sarna on March 26, 2016 at 6:22pm — 10 Comments
74
आस
===
पलकों भरे प्यार को हम
नित आस लगाये रहे देखते,
मुट्ठी भर आशीष के लिये
कल, कल कहकर रहे तरसते,
कल की जिज्ञासा ले डूबी सारा जीवन
हम हाथ मले बेगार बटोरे रहे तड़पते।।
तिनके ने नजर चुराई ऐंसी,
हम मीलों जल में गये डूबते,
विकराल क्रूर भंवरों में फिर,
बहुविधि क्रंदन कर रहे सिसकते,
सब आस साॅंस में सूख गयी,
हम तमपूरित जलमग्न तहों में रहे भटकते।।
संरक्षण भी जो मिला हमको,
निर्देशों की बौछार लिये,…
Added by Dr T R Sukul on March 26, 2016 at 3:14pm — 4 Comments
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