For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों की भाषा

"रिश्तों की भाषा"

"नहीं समीर, इतना आसान कहां होता है सब कुछ भूल पाना।" वर्षो पहले एक रात अचानक उसे छोड़ कर चले जाने वाला पति आज फिर सामने खड़ा सब भूलने की बात कर रहा था।
"तान्या ! मैं मानता हूँ कि मैं तुम्हारे प्रेम को नकारकर 'उसके' साथ चला गया था लेकिन अब मेरा उससे अलगाव हो चुका है और मैं हमेशा के लिए तुम्हारे पास लौट आना चाहता हूँ।" उसकी आवाज और आँखे दोनों में अधिकार भरी याचना नज़र आ रही थी।
"आज तुम लौटना चाहते हो लेकिन उस समय तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि मेरा क्या होगा ? अगर मेरे मित्र ने साथ नहीं दिया होता तो मैं ऐसे समय में जीवन का सामना कभी नहीं कर पाती।"
"तान्या ! अब तुम्हे उसका अहसान लेने की कोई जरूरत नहीं, हम फिर एक साथ रह सकते है।" उसने आगे बढ़कर तान्या के हाथ थाम लिए।
"समीर ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ।" जाने क्यों उसे समीर के हाथों में पति-प्रेम की अपेक्षा एक पुरुष-प्रेम का अहसास अधिक लगा। "तुम्हारे पीछे मुझे कुछ समय अपने मित्र के साथ भी रहना पड़ा और........., " समीर का चेहरे पढ़ते हुए तान्या ने सवालियां नजरे उस पर टिका दी। ".... हमारे बीच इसे लेकर कभी कोई दुविधा नहीं होगी !"
"तान्या ! तुम कैसे भूल गयी कि तुम एक 'ब्याहता' थी ?" बदलते भावो के साथ उसकी आवाज भी तल्ख़ होने लगी। ".......ये मेरी ही गलती थी जो मैं लौट कर चला आया।" और उसकी प्रतिक्रिया जाने बिना बात पूरी करते करते वो मुँह फेर चुका था।
वो खामोश खड़ी उसे दूर तक जाते देखती रही, देखती रही। दिल बार बार कह रहा था। "तान्या, उसे बताओ कि तुम सदा उसकी ही रही हो।" लेकिन जहन दिल को नकार एक ही बात कह रहा था। "जिस्म की देहरी पर खत्म होने वाले रिश्ते निस्वार्थ रिश्तों की भाषा नहीं पढ़ पाते।"
'विरेंदर वीर मेहता'
(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 599

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on April 2, 2016 at 6:36pm
आदरणीया राहिला जी कथा पर आपकी होंसला बढाती प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार। कथा और कथा का प्रस्तूतिकरण आपको अच्छा लगा, मानो मेरा लिखना सफल हो गया। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on April 2, 2016 at 6:32pm
आदरणीया नीता कसार जी रचना पर आपकी विवेचनात्मक टीप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार। रचना के जरिये मैंने पुरुष की उस मानसिकता को भी दिखाना चाहा है जो स्त्री के उन विचारो पर आपत्ति दर्ज करता जिन विचारो को जीवन में अपनाना अपना हक़ समझत है। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on April 2, 2016 at 9:49am
आभार आदरणीय RAM BALI GUPTA जी कथा पर आप की प्रोत्साहन टिप्पणी के लिए। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on April 2, 2016 at 7:56am
सादर आभार आदरणीय तेजवीर सिंह भाई जी रचना पर प्रोत्साहन टिप्पणी के लिए। आप की प्रत्क्रियाओ का सदैव ही स्वागत है। सादर।
Comment by Nita Kasar on April 1, 2016 at 7:55pm
ग़लतफ़हमियाँ दायरें बढ़ा देती है काश वह पत्नि की भावनाओं को समझने का प्रयास करता तो दायरे की दुनिया की खाई पाटी जा सकती थी लाजवाब कथा के लिये बधाई आद० वीर मेहता जी ।
Comment by रामबली गुप्ता on March 30, 2016 at 10:13am
वाह वाह बहुत ही सुंदर लघुकथा आदरणीय वीरेंद्र वीर जी
Comment by Rahila on March 30, 2016 at 1:08am
शानदार...,वाह्ह्ह. .बहुत बेहतरीन रचना । तारीफ़ के काबिल । बहुत बधाई आदरणीय सर जी! वार्तालाप की हर दूसरी लाइन पंच सी लगी । बहुत सटीक समाप्ति । सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on March 29, 2016 at 8:53pm
हार्दिक बधाई वीर मेहता जी!बेहतरीन लघुकथा!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
17 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service