१२२२/१२२२/१२२
ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है,
किसी की याद दिल में चुभ रही है.
.
मसीहा को मसीहाई चढ़ी है,
मसीहा को हमारी क्या पड़ी है.
.
कहीं पर अश्क मिट्टी हो रहे हैं
कहीं प्यासी तड़पती ज़िन्दगी है.
.
कई जुगनू चमक उट्ठे हैं
लेकिन कमी सूरज की रातों में खली है.
.
मेरी नज़रें जमी हैं आसमां पर,
न जानें क्यूँ वहाँ भी ख़लबली है.
.
रगड़ता है हर इक साहिल पे माथा,
समुन्दर की ये कैसी बे-बसी है.
.
गुनाहों में गिनीं जाएगी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2016 at 8:23am — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on May 9, 2016 at 5:30pm — 5 Comments
यह कौन है वहां उस छोर पर
जो देख रहा बादलों के कोर से
बैठ गया है जो वहां सालों से
न वो कोई ज़मीन पर रहता है
न ही आसमान को कोई हिस्सा है
दिखता है वो बहुत करीब मगर
जाने किस जहां में बस्ता है
दूर है वो पर करीब ही दिखता है
जब पूछते है पता उसका
कुछ मुस्कुराकर वो यह कहता है
बांवरा मन यह तेरा क्यों मुझको
इस बेचैनी से क्यों मुझको तू देखता है
क्षितिज हूँ मैं ,
आसमान का नहीं ,ज़मीन का भी नहीं
यह मेरा जहां है जहाँ तू मुझको…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 9, 2016 at 3:30pm — 5 Comments
Added by saalim sheikh on May 8, 2016 at 11:41pm — 5 Comments
पुण्य-तिथि
(२७ वर्ष उपरान्त भी लगता है ... माँ अभी गई हैं, अभी लौट आएँगी)
माँ ...
रा्तों में उलझे ख्यालों के भंवर में, या
रंगीले रहस्यमय रेखाचित्रों की ओट में
कभी चुप-सी चाँदनी की किरणों में
श्रद्धा के द्वार पर धुली आकृतिओं में
सरल निडर असीम आत्मीय आकृति
माँ की खिलखिलाती मुसकाती छवि
समृतिओं के दरख़तों की सुकुमार छायाएँ
स्नेह की धूप का उष्मापूरित चुम्बन
मेरे कंधे पर तुम्हारा स्नेहिल हाथ…
Added by vijay nikore on May 8, 2016 at 1:30pm — 31 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 8, 2016 at 7:30am — 6 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 8, 2016 at 7:00am — 5 Comments
बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२
इस दिल की लालसा पर एक बार तो अमल हो
बरसात आँसुओं की और प्यार की फ़सल हो
नाले की गंदगी है समुदाय की ज़रूरत
बहती हुई नदी में पर साफ शुद्ध जल हो
देवों के शीश पर चढ़ ये हो गया है पागल
ऐसा करो प्रभो कुछ फिर कीच का कमल हो
गर्मी की दोपहर को पूनम की रात लिखना
गर है यही ग़ज़ल तो मुझसे न अब ग़ज़ल हो
सरलीकरण में फँसकर विकृत हैं सत्य सारे
हारेगा झूठ ख़ुद ही यदि सच न अब सरल…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 7, 2016 at 9:16pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on May 7, 2016 at 7:30pm — 4 Comments
अरकान - 2122 2122 2122 212
दिल लगाकर दिल चुराना कोई सीखे आपसे|
तौर ये सदियों पुराना कोई सीखे आपसे|
कल सुबह नज़रें मिली औ शाम को ही गुफ्तगू,
रात को सपनों में आना कोई सीखे आपसे|
आपकी मख्मूर आँखें गोया मय के जाम हैं,
ये अदाएँ कातिलाना कोई सीखे आपसे|
सैंकड़ो उल्फ़त में अबतक बन गए हैं आशना,
इश्क में पागल बनाना कोई सीखे आपसे|
पीठ पीछे प्यार का इकरार करते हैं मगर,
सामने…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 7, 2016 at 4:00pm — 2 Comments
22-22-22-22-22-22-22-2
सच को लिख कर तुम दुनिया में होने का इज़हार करो
झूठी बातेँ सारी छोड़ो दिल को ना लाचार करो
गर जीवन में मुश्किल आए हिम्मत को मत हारो तुम
शिकवे छोड़ो मन में ठानो फिर ख़ुद को औज़ार करो
कितने अच्छे वो दिन लगते जब हम छोटे बच्चे थे
मम्मी पापा कहते फिरते मत दिन को बेकार करो
नफरत जग में जिसने बांटी देखो उसका हाल बुरा
तोड़ो सारी तुम दीवारें मिल के सबसे प्यार करो
मिट्टी पानी आग हवा केवल जरिया…
ContinueAdded by munish tanha on May 7, 2016 at 11:30am — 2 Comments
अतुकांत कविता : व्यवस्था
गर्मी से तपती धरती
चहुँ ओर मचा हाहाकार
बादल को दया आयी
चारो तरफ नज़र दौड़ाई
जाति देखी, धर्म देखा
सगे-सम्बन्धी, पैरवीकार देखा
खुद को सिमित करके
खूब बरसा, जमकर बरसा
कही बाढ़ तो कही सूखा
पुनः मचा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 7, 2016 at 10:30am — 9 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 7, 2016 at 6:44am — 6 Comments
बरसो तुम जीभर मरुथल में, अब खुद को बादल होने दो।
अपनी एक छुअन से मेरा पोर-पोर संदल होने दो।
जब खुशियों की सेज बिछी थी
तब आँखों में स्वप्न भिन्न थे,
रूठे-रूठे से हम थे या-
सौभागों के पृष्ठ खिन्न थे,
वक्र चाल हर तिरछे ग्रह की अब बिल्कुल निष्फल होने दो। अपनी एक....
अपनी-अपनी ज़िद को पकड़े
तन्हाई से खूब लड़े हैं,
लहरों की आवाजाही बिन
तट दोनों खामोश पड़े हैं,
पानी में कुछ तो हलचल हो, लहरें अब चंचल होने दो। अपनी एक....…
Added by Dr.Prachi Singh on May 7, 2016 at 5:30am — 4 Comments
अरकान – 1222 1222 1222 1222
कभी चाहत कभी हसरत कभी श्रृंगार है पैसा
कभी है फूल तो देखो कभी तलवार है पैसा |
जुदा माँ-बाप से कर दे लड़ाए भाई-भाई को,
बहाए खून का दरिया तो फिर बेकार है पैसा|
खुदा का शुक्र है घर में बरसती है सदा खुशियाँ,
कि रहते साथ सब मिलकर मेरा परिवार है पैसा|
इसे पाने की खातिर ही जहां में खोया है सब कुछ
मेरे आपस के सम्बन्धों में ये दीवार है पैसा…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 6, 2016 at 10:30pm — 3 Comments
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव ...
दूर दूर तक
काली सड़कें
न पीपल न छाँव
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
नीला अम्बर
पड़ गया काला
अब धरा पे फैला धुंआ
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
कंक्ट्रीट के
जंगल फैले
अब दिखता नहीं कुआं
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
हल-बैल का
अब युग बीता
ट्रैक्टर हुआ जवां
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
सांझ के खेले
ढपली मेले
खो गए जाने कहाँ
अखियाँ ढूंढें अपना…
Added by Sushil Sarna on May 6, 2016 at 6:01pm — 6 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
.
अश्क आँखों से फिर बहा जाये,
अपना जाये, किसी का क्या जाये.
.
तुम अगर चश्म-ए-तर में आ जाओ,
झील में चाँद झिलमिला जाये.
.
ढ़लती उम्रों के मोजज़े हैं मियाँ
इक बुझा जाए, इक जला जाये.
.
याद माज़ी को कर के जी लूँगा,
फिर जहाँ तक ये सिलसिला जाये.
.
ज़ह’न कहता है, कर ले सब्र ज़रा,
और दिल है कि बस…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2016 at 7:00am — 20 Comments
Added by रामबली गुप्ता on May 6, 2016 at 4:30am — 5 Comments
स्नेह का दीप चाहे विजन में जले किन्तु जलता रहे यह् बढे ना कभी
जो हृदय शून्य था मृत्तिका पात्र सा
नेह से आह ! किसने तरल कर दिया ?
जल उठी कामना की स्वतः वर्तिका
शिव ने कंठस्थ फिर से गरल कर लिया
अश्रु के फूल हों नैन-थाली सजे स्वप्न के देवता पर चढ़े ना कभी
आ बसी मूर्ति जब इस हृदय-कोश में
पूत-पावन वपुष यह उसी क्षण हुआ
रच गया एक मंदिर मुखर प्रेम का
साधना से विहित दिव्य प्रांगण हुआ
फूल ही सर्वथा एक शृंगार हो,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 5, 2016 at 9:39pm — 2 Comments
2122 - 1212 - 22
जख्म दे के हवा करे कोई
इस तरह भी वफ़ा करे कोई
आप तो मेरी जान हो जानम
देख कर ये जला करे कोई
प्यार में शर्त तुम लगाते हो
सोच कर के दगा करे कोई
दूर मंजिल तो रास्ता केसा
रात औ दिन चला करे कोई
वो बना है मरीज इस खातिर
पास उस के रहा करे कोई
हर कदम झूठ फ़िक्र धोखा है
अब कहाँ तक सहा करे कोई
.
मुनीश “तन्हा” नादौन…
ContinueAdded by munish tanha on May 5, 2016 at 9:00pm — 2 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |