Added by Arpana Sharma on October 29, 2016 at 6:48pm — 6 Comments
मत्तगयंद सवैया (सूत्र=211×7+22; भगण×7+गागा)
ज्योति जले घर-द्वार सजे सब, हैं उतरे वसुधा पर तारे।
आज बनी रजनी वधु सुंदर ज्यों पहने मणि के पट प्यारे।।
थाल लिए जुगनू सम दीपक, नाच रहे खुश हो जन सारे।
आश-दिये हरते उर से तम, भाग रहे डर के अँधियारे।।1।।
किरीट सवैया (सूत्र=211×8; भगण×8)
कोटिक दीप जले वसुधा पर, है कितना यह दृश्य सुहावन।
झूम रहे नव आश भरे उर, पूज रहे मिल आज सभी जन।।
ज्योति जलाकर स्वागत में तव राह निहार रहे सबके मन।
हे! कमला…
Added by रामबली गुप्ता on October 29, 2016 at 5:30pm — 9 Comments
इक दिया ....
थे कुछ दिए
तेरे नाम के
जो बुझ के भी
जलते रहे
थे कुछ दिए
मेरे नाम के भी
जो जले
मगर
बे नूर से
बस इक दिया
देर तक
जलता रहा
जो था
हमारे
अबोले
प्यार का
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 29, 2016 at 4:22pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:47pm — No Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:46pm — No Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:43pm — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2016 at 1:30pm — 3 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2016 at 12:00am — 2 Comments
दिवाली – ( लघुकथा ) –
"अम्मा, हम लोग दिवाली क्यों नहीं मनाते, हमारी हर रात एक जैसी ही रहती है, न पटाखे, न रोशनी की लड़ियां, न नये कपड़े, न खीर पूड़ी वाले पकवान"।
"मनायेंगे मेरी बिट्टो, अगली साल जरूर मनायेंगे"।
"अम्मा, अगली साल ऐसा क्या होने वाला है"।
"तेरा बापू आयेगा परदेश से, ढेर सारे पैसे लेकर, इसलिये"।
"अम्मा, यही तसल्ली तुम पिछले तीन साल से दे रही हो"।
"बिटिया, तुम्हारे भाग्य में कम से कम यह तसल्ली तो है, बहुत लोगों के नसीब में तो यह तसल्ली भी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 28, 2016 at 7:13pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 28, 2016 at 10:00am — 7 Comments
धनतेरस के पर्व पर, कर लें कार्य महान|
निर्धन को बर्तन करें, दान आप श्री मान||
दीवाली लाये सदा, खुशियाँ अपरम्पार|
खील बताशे कह रहे, हम आये हैं द्वार||
लक्ष्मी और गणेश की, पूजा करिए साथ|
सब पर ही किरपा करें, मेरे भोले नाथ||
होई करवा चौथ का, लगे अनोखा मेल|
पर्वों की अब देखिये छूटी जाती रेल||
इस दीवाली लग रही, फीकी सी सब ओर|
सीमा पर प्रहरी तकें, एक सुहानी भोर||
डाल दिये झूले सभी मन…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on October 28, 2016 at 9:20am — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2016 at 1:00am — 2 Comments
फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन
आँखों आँखों में जादूगरी हो गयी |
उसका मैं हो गया वह मेरी हो गयी |
उनकाअहसास महफ़िल में उसदम हुआ
यक बयक जब वहाँ रोशनी हो गयी |
फ़ायदा तो उठाएगा इस का जहाँ
आपसी प्यार में गर कमी हो गयी |
कोई अपनी कमी को नहीं देखता
क़ौल सबका है दुनिया बुरी हो गयी|
आगये वक़्तेआख़िर इयादत को वह
पूरी ख्वाहिश मेरी आख़िरी हो गयी |
वक़्त आया है जिस दिन से मेरा…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on October 27, 2016 at 9:30pm — 8 Comments
सौतेली माँ हो रही, सभी जगह बदनाम
राज त्याग वन को गये,त्रेता में श्री राम।।
त्रेता में श्री राम, हुए शिकार सब जाने
कोख से रहे लगाव, सुने फिर सबके ताने
कैसे बदले भाव, आज भी बनी पहेली
दशरथ को अघात,आज भी दे सौतेली |
माँ की ममता कोख से, जग जाने यह बात,
सौतेली सहती रहे, पुत्रों से आघात ।
पुत्रों से आघात, बड़ा ही पहने पगडी
ह्रदय झेलता शोक, चोट जो लगती तगड़ी
प्रभु करें उद्धार, भाव में आये समता
ह्रदय भरे सद्भाव, सभी में माँ…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2016 at 2:04pm — 2 Comments
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२
बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम
सुनो, इस क़दर भी न टूटेंगे हम
किये जा रे पूँजी सितम दर सितम
इन्हें शाइरी में करूँगा रक़म
जो रखते सदा मुफ़्लिसी की दवा
दिलों में न उनके ज़रा भी रहम
ज़रा सा तो मज़्लूम का पेट है
जो थोड़ा भी दोगे तो कर लेगा श्रम
जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है
सभी देवताओं को रहता है भ्रम
मुआ अपनी मर्ज़ी का मालिक बना
न अब मेरे बस में है…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 27, 2016 at 11:30am — 8 Comments
नफरत न करना ..
प्यार
कितनी पावन
अनुभूति है
ये
पात्रानुसार
स्वयं को
हर रिश्ते
के चरित्र में
अपनी पावनता के साथ
ढाल लेता है
ये
आदि है
अनंत है
ये जीवन का
पावन बसंत है
प्यार
तर्क वितरक से
परे है
प्यार तो
हर किसी से
बेख़ौफ़
किया जा सकता है
मगर
नफ़रत !
ये प्यार सी
पावन नहीं होती
ये वो अगन है
जो ख़ुद…
Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 8:30pm — 4 Comments
Added by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 5:02pm — 8 Comments
उपहार.....
मौसम बदलेगा
तो
कुछ तो नया होगा
गुलों के झुरमट में
मैं तुम्हें
छुप छुप के
निहारता होऊंगा
तुम भी होगी
कहीं
प्रकृति के शृंगार की
अप्रतिम नयी कोपल में
छिपी यौवन की
नयी आभा सी
क्या
दृष्टिभाव की
ये अनुभूति
बदले मौसम का
उपहार न होगी
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 1:21pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 26, 2016 at 10:30am — 4 Comments
1212 1122 1212 22
जो हिकमतों से मुक़द्दर तराश लेते हैं
पड़े जो वक़्त वो मंज़र तराश लेते हैं
वो मुझसे पूछने आये हैं मानी हँसने का
सुकूँ के पल से जो महशर तराश लेते हैं
उन्हे यक़ीन है वो आँधियाँ बना लेंगे
हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं
अगर मिले उन्हे रस्ते में भी पड़ा पत्थर
तो उसके वास्ते वो सर तराश लेते हैं
उन्हे है जीत का ऐसा नशा कि लड़ने को
हमेशा ख़ुद से वो कमतर तराश लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 26, 2016 at 9:21am — 4 Comments
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