For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

अर्पणा शर्मा -"दीपोत्सव" कविता

मंगलमय हो दीपोत्सव यह शुभ-शुचित,

झिलमिलाये अमावस यह कार्तिक,

नेह-पुष्प तोरण हर द्वार सुसज्जित

सुंदर अल्पनायें आँगन-देहरी रचित,

विकारजन्य स्वदोषों से मुक्ति समाहित,

अंतस के भावों में हो यह कामना सन्निहित,

बैर, अहिंसा, अशांति ना हो किंचित,

ऐसी ज्योति करें सर्वत्र प्रज्वलित,

जनकल्याण सुख-सौभाग्य दीप प्रकाशित,

दीपज्योति वीर-बलिदान समर्पित,

सानंद न्यौछावर हुए जो देश के हित,

तम का क्षय हो, सर्वजन हों आनंदित,

नवचेतना, जागृति हो सर्वत्र… Continue

Added by Arpana Sharma on October 29, 2016 at 6:48pm — 6 Comments

सवैये-दीपावली विशेष-रामबली गुप्ता

मत्तगयंद सवैया (सूत्र=211×7+22; भगण×7+गागा)



ज्योति जले घर-द्वार सजे सब, हैं उतरे वसुधा पर तारे।

आज बनी रजनी वधु सुंदर ज्यों पहने मणि के पट प्यारे।।

थाल लिए जुगनू सम दीपक, नाच रहे खुश हो जन सारे।

आश-दिये हरते उर से तम, भाग रहे डर के अँधियारे।।1।।



किरीट सवैया (सूत्र=211×8; भगण×8)



कोटिक दीप जले वसुधा पर, है कितना यह दृश्य सुहावन।

झूम रहे नव आश भरे उर, पूज रहे मिल आज सभी जन।।

ज्योति जलाकर स्वागत में तव राह निहार रहे सबके मन।

हे! कमला…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on October 29, 2016 at 5:30pm — 9 Comments

इक दिया ....

इक दिया ....

थे कुछ दिए

तेरे नाम के 
जो बुझ के भी
जलते रहे

थे कुछ दिए
मेरे नाम के भी
जो जले
मगर
बे नूर से

बस इक दिया
देर तक
जलता रहा
जो था
हमारे
अबोले

प्यार का

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 29, 2016 at 4:22pm — 8 Comments

आओ मिलकर दीप जलाएँ(नवगीत)/सतविन्द्र कुमार राणा

आओ मिलकर दीप जलाएँ



करने सबकुछ जगमग-जगमग

प्रेम रौशनी हम छितराएँ

आओ मिलकर दीप जलाएँ।



जो सरहद पर लगे हुए हैं

इसकी बस रक्षा करने को

इसकी खातिर तैयार खड़े

जो जीने को औ मरने को

शत्रु को निढाल बनाते हैं

उर में उनका मान बढ़ाएँ।

आओ मिलकर दीप जलाएँ



तन में तो मन धरा सभी ने

जीवन सबको मिला हुआ है

बस जीवन को काट रहे जो

शिक्षण जिनका हिला हुआ है

अज्ञान तिमिर में डूबे जो

ज्ञान सभी तक लेकर जाएँ

आओ मिलकर दीप… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:47pm — No Comments

आओ मिलकर दीप जलाएँ(नवगीत)/सतविन्द्र कुमार राणा

आओ मिलकर दीप जलाएँ



करने सबकुछ जगमग-जगमग

प्रेम रौशनी हम छितराएँ

आओ मिलकर दीप जलाएँ।



जो सरहद पर लगे हुए हैं

इसकी बस रक्षा करने को

इसकी खातिर तैयार खड़े

जो जीने को औ मरने को

शत्रु को निढाल बनाते हैं

उर में उनका मान बढ़ाएँ।

आओ मिलकर दीप जलाएँ



तन में तो मन धरा सभी ने

जीवन सबको मिला हुआ है

बस जीवन को काट रहे जो

शिक्षण जिनका हिला हुआ है

अज्ञान तिमिर में डूबे जो

ज्ञान सभी तक लेकर जाएँ

आओ मिलकर दीप… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:46pm — No Comments

आओ मिलकर दीप जलाएँ(नवगीत)/सतविन्द्र कुमार राणा

आओ मिलकर दीप जलाएँ



करने सबकुछ जगमग-जगमग

प्रेम रौशनी हम छितराएँ

आओ मिलकर दीप जलाएँ।



जो सरहद पर लगे हुए हैं

इसकी बस रक्षा करने को

इसकी खातिर तैयार खड़े

जो जीने को औ मरने को

शत्रु को निढाल बनाते हैं

उर में उनका मान बढ़ाएँ।

आओ मिलकर दीप जलाएँ



तन में तो मन धरा सभी ने

जीवन सबको मिला हुआ है

बस जीवन को काट रहे जो

शिक्षण जिनका हिला हुआ है

अज्ञान तिमिर में डूबे जो

ज्ञान सभी तक लेकर जाएँ

आओ मिलकर दीप… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:43pm — 7 Comments

कचरे का लोकतंत्र या कचरे में लोकतंत्र (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

दीपावली पर्व की अगली सुबह थी या किसी बड़े जश्न की, ... लोकतंत्र सड़क पर था। जले हुए पटाखों व आतिशबाजी का लोकतंत्र था। अनेकता में एकता। विविधता। रंगभेद, जात-पांत रहित राष्ट्रीय ही नहीं वैश्विक नस्लों का मेल-जोल। सभी की ग़ज़ब की सहभागिता। देशी, विदेशी पटाखों व आतिशबाजी के जले हुए अवशेष नागरिकों के लोकतंत्र को चिढ़ा रहे थे। उधर सीमा पर दुर्योग दो पड़ोसी लोकतंत्रों के घात-प्रतिघात से परिलक्षित शहादतों पर नारेबाज़ी और भाषणबाज़ी करवा रहे थे। लोकतंत्र कचरे में तब्दील लग रहे थे। इधर स्वच्छता अभियान के… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2016 at 1:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल...तड़प बेबसी बेमुरब्बत की बातें

इस्लाह के लिए



बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन्

122  122   122   122

तड़प बेबसी बेमुरब्बत की बातें

न हमसे करो ये मुहब्बत की बातें



बयां है तुम्हारी अदब बामुल्ह्जा

कहानी सितम औ नजाकत की बातें



फँसाना ए उल्फत दफ़न सरज़मीने

परिष्तिश ए बुत ये इबादत की बातें



न बाकी अमन भाई चारे के रिश्ते

नजर आए हर सू अदावत की बातें



बसर इस तरह है सफ़र मुफलिसी का

ज़लालत के किस्से हिकारत की बातें

(मौलिक एवं… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2016 at 12:00am — 2 Comments

दिवाली – ( लघुकथा ) –

दिवाली – ( लघुकथा )  –

 "अम्मा, हम लोग दिवाली क्यों नहीं मनाते, हमारी हर रात एक जैसी ही रहती है, न पटाखे, न रोशनी की लड़ियां, न नये कपड़े, न खीर पूड़ी वाले पकवान"।

"मनायेंगे मेरी बिट्टो, अगली साल जरूर मनायेंगे"।

"अम्मा, अगली साल ऐसा क्या होने वाला है"।

"तेरा बापू आयेगा परदेश से, ढेर सारे पैसे लेकर, इसलिये"।

"अम्मा, यही तसल्ली तुम पिछले तीन साल से दे रही हो"।

"बिटिया, तुम्हारे भाग्य में कम से कम यह तसल्ली तो है, बहुत लोगों के नसीब में तो यह तसल्ली भी…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 28, 2016 at 7:13pm — 4 Comments

मिट्ठू का घर (बाल-लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

गुड्डू को बहुत मज़ा आता था जब पड़ोस वाली चाची का मिट्ठू उसका नाम बार-बार रटता था। आख़िर उनके बेटे से ज़्यादा समय गुड्डू ही तो मिट्ठू मियाँ को दिया करता था, कभी उसकी पसंद का दाना चुगाकर या उसके साथ ख़ूब बातें करते हुए! बहुत ज़िद करने पर भी उसके मम्मी-पापा उसके लिए मिट्ठू नहीं ख़रीद रहे थे, जबकि चाची से उसने एक पुराना पिंजड़ा लेकर इंतज़ाम से रख दिया था। पापा को गुड्डू का पड़ोस में बार-बार जाना पसंद नहीं था। आज इतवार के दिन जब वह ज़िद पर अड़ा, तो पापा उसे मोटर-साइकल पर पार्क घुमाने ले जा रहे थे।… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 28, 2016 at 10:00am — 7 Comments

दीपावली पर कुछ दोहे ...

धनतेरस के पर्व पर, कर लें कार्य महान|

निर्धन को बर्तन करें, दान आप श्री मान||

 

दीवाली लाये सदा, खुशियाँ अपरम्पार|

खील बताशे कह रहे, हम आये हैं द्वार||

 

लक्ष्मी और गणेश की, पूजा करिए साथ|

सब पर ही किरपा करें, मेरे भोले नाथ||

 

होई करवा चौथ का, लगे अनोखा मेल|

पर्वों की अब देखिये छूटी जाती रेल||

 

इस दीवाली लग रही, फीकी सी सब ओर|

सीमा पर प्रहरी तकें, एक सुहानी भोर||

 

डाल दिये झूले सभी मन…

Continue

Added by Abha saxena Doonwi on October 28, 2016 at 9:20am — 6 Comments

ग़ज़ल - मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया

ग़ज़ल



1121 2122 1121 2122

था नसीब का तकाजा वो बना ठना न आया ।

मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया ।।



कई जख़्म सह गए हम ये निशान कह रहे हैं ।

तेरी बदसलूकियों पे , मुझे रूठना न आया।।



ये वफ़ा की थी तिज़ारत,मैं समझ सका न तुझको ।

है सितम का इन्तिहाँ ये , मुझे टूटना न आया ।।



हुए हम भी बे खबर जब,वो नई नई थी बंदिश।

वो ग़ज़ल की तर्जुमा थी , हमे झूमना न आया ।।



था सराफ़तों का मंजर ,वो झुकी हुई निगाहें ।

बड़ी तेज आंधियाँ थीं ,… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2016 at 1:00am — 2 Comments

ग़ज़ल ( जादूगरी हो गयी )

फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन

आँखों आँखों में जादूगरी हो गयी | 

उसका मैं हो गया वह मेरी हो गयी |

उनकाअहसास महफ़िल में उसदम हुआ 

यक बयक जब वहाँ रोशनी हो गयी |

फ़ायदा तो उठाएगा इस का जहाँ 

आपसी प्यार में गर कमी हो गयी |

कोई अपनी कमी को नहीं देखता 

क़ौल सबका है दुनिया बुरी हो गयी|

आगये वक़्तेआख़िर इयादत को वह 

पूरी ख्वाहिश मेरी आख़िरी हो गयी |

वक़्त आया है जिस दिन से मेरा…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 27, 2016 at 9:30pm — 8 Comments

कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

सौतेली माँ हो रही, सभी जगह बदनाम

राज त्याग वन को गये,त्रेता में श्री राम।।

त्रेता में श्री राम, हुए शिकार सब जाने

कोख से रहे लगाव, सुने फिर सबके ताने

कैसे बदले भाव, आज भी बनी पहेली

दशरथ को अघात,आज भी दे सौतेली |

 

माँ की ममता कोख से, जग जाने यह बात, 

सौतेली सहती रहे, पुत्रों  से  आघात ।

पुत्रों से  आघात, बड़ा ही पहने पगडी

ह्रदय झेलता शोक, चोट जो लगती तगड़ी 

प्रभु करें उद्धार, भाव में आये समता

ह्रदय भरे सद्भाव, सभी में माँ…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2016 at 2:04pm — 2 Comments

न अब मेरे बस में है मेरा क़लम (ग़ज़ल)

बह्र : १२२ १२२ १२२ १२

 

बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम

सुनो, इस क़दर भी न टूटेंगे हम

 

किये जा रे पूँजी सितम दर सितम

इन्हें शाइरी में करूँगा रक़म

 

जो रखते सदा मुफ़्लिसी की दवा

दिलों में न उनके ज़रा भी रहम

 

ज़रा सा तो मज़्लूम का पेट है

जो थोड़ा भी दोगे तो कर लेगा श्रम

 

जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है

सभी देवताओं को रहता है भ्रम

 

मुआ अपनी मर्ज़ी का मालिक बना

न अब मेरे बस में है…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 27, 2016 at 11:30am — 8 Comments

नफरत न करना ..

नफरत न करना ..

प्यार

कितनी पावन

अनुभूति है

ये

पात्रानुसार

स्वयं को

हर रिश्ते

के चरित्र में

अपनी पावनता के साथ

ढाल लेता है

ये

आदि है

अनंत है

ये जीवन का

पावन बसंत है

प्यार

तर्क वितरक से

परे है

प्यार तो

हर किसी से

बेख़ौफ़

किया जा सकता है

मगर

नफ़रत !

ये प्यार सी

पावन नहीं होती

ये वो अगन है

जो ख़ुद…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 8:30pm — 4 Comments

अर्पणा शर्मा : "गोलगप्पा"/हास्य कविता

रसना लपलपाये देख गोलगप्पा,

चलो हो जाये कुछ धौल धप्पा,

धनिया, पुदिना, कैरी की चटनी,

और जोरदार इमली का खट्टा,

है मिलाया इसमें गुड़ का मीठा,

हींग और जीरे का लगाया है तड़का,

हरदिल अजीज, लाजवाब शै है

ये गोलगप्पा ,

भरे बाजार,लिये दोना सबरे खड़े,

ना होता कोई हक्का-बक्का,

मुँह में घुलाया, फिर जीभ से,

दिया अंदर धक्का,

गले में यह जा अटका,

साँस आधी ऊपर आधी नीचे,

बड़ी मुश्किल से गटका,

पर तब भी मन न माना,

जल्दी से एक और… Continue

Added by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 5:02pm — 8 Comments

उपहार.....

उपहार.....

मौसम बदलेगा
तो
कुछ तो नया होगा

गुलों के झुरमट में
मैं तुम्हें
छुप छुप के
निहारता होऊंगा

तुम भी होगी
कहीं
प्रकृति के शृंगार की
अप्रतिम नयी कोपल में
छिपी यौवन की
नयी आभा सी

क्या
दृष्टिभाव की
ये अनुभूति
बदले मौसम का
उपहार न होगी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 1:21pm — 8 Comments

एक ग़ज़ल-सतविन्द्र कुमार राणा

2122 2122 212
क्यों रहा गुस्ताखियों पे तू अड़ा
इसलिए ही गाल पर झापड़ पड़ा।

बैठ जा खाली पड़ी हैं कुर्सियाँ
तू रहेगा कब तलक यूँ ही खड़ा।

बेसुरी आवाज तेरी हो गयी
इसलिए ही तो तुझे अंडा पड़ा।

देख जिसके हाथ में अंडा नहीं
पास उसके है टमाटर इक सड़ा।

शाइरी को छोड़ के कुछ और कर
देख ले के फैसला ये तू कड़ा।

आब ‘राणा’ को मिला पूरा नहीं
देख खाली ही पड़ा उसका घड़ा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 26, 2016 at 10:30am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं ( गिरिराज भंडारी )

1212   1122   1212   22

जो हिकमतों से मुक़द्दर तराश लेते हैं

पड़े जो वक़्त वो मंज़र तराश लेते हैं

 

वो मुझसे पूछने आये हैं मानी हँसने का

सुकूँ के पल से जो महशर तराश लेते हैं 

 

उन्हे यक़ीन है वो आँधियाँ बना लेंगे

हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं 

 

अगर मिले उन्हे रस्ते में भी पड़ा पत्थर

तो उसके वास्ते वो सर तराश लेते हैं

 

उन्हे है जीत का ऐसा नशा कि लड़ने को

हमेशा ख़ुद से वो कमतर तराश लेते…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on October 26, 2016 at 9:21am — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service