Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2017 at 8:03pm — 7 Comments
Added by Mohammed Arif on July 26, 2017 at 7:44pm — 13 Comments
गजल
2121 1221 1212 122
मेरे रहनुमा ही मुझसे मिले सूरतें बदल के
भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।
न सितारे बोले उससे मेरा हाल क्या है या रब
न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।
खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं
जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।
कहूँ लाल कह के उसने न गले लगाया क्यों मैं
न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।
बड़ा ख्वाब था खिलाऊँ उसे मोल की भी रोटी
न खरीद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 1:10pm — 18 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलात
मापनी २२१/२१२१/१२२१/२१२
करते नहीं हैं’ लोग शिकायत यहाँ हुजूर,
थोड़ी तो’ हो रही है’ मुसीबत यहाँ हुजूर.
बिकने लगे हैं’ राज सरे आम आजकल,
चमकी खबरनबीस की’ किस्मत यहाँ हुजूर.
बिछती कहीं है’ खाट, कहीं टाट हैं बिछे,
हो हर जगह रही है’ सियासत यहाँ हुजूर.
पलते रहे हैं’ देश में जयचंद हर जगह,
पहली नहीं है’ आज ये’…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 26, 2017 at 1:00pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 26, 2017 at 1:25am — 8 Comments
Added by surender insan on July 25, 2017 at 11:58pm — 7 Comments
बड़े बाबा के जिगरी दोस्त,छोटे चाचा यूँ तो हमारे परिवार की रिश्तेदारी में कुछ नहीं लगते पर रिश्तेदारों से बढ़कर करते हैं |घर पर कोई मौका हो गम का या खुशी का,पिछले चालीस सालों से,वे सदैव उपस्थित रहते हैं|घर के किसी भी सदस्य का जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह ,छोटे चाचा गुलाबजामन की हंडिया लेकर आते | ढेरों आशीष तो देते ही थे ,शेरो शायरी सुना कर माहौल को खुशगवार बना देते थे |हम सब भाई बहिन हँसते हुए आपस में कहते “वो आये नहीं ?”या “वो आ गए हैं |” “वो आ रहे हैं|”
आजकल के बच्चों व बहुओं…
ContinueAdded by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:30am — 5 Comments
एक भारत श्रेष्ठ भारत आइये मिलकर बनाएं
देश का सम्मान गौरव लक्ष्य हासिल कर बढ़ाएं
शांति के हम पथ प्रदर्शक ध्वज अहिंसा ले चलेंगे
विश्व गुरु बन कर पुन: संस्थापना सच की करेंगे
दें नहीं उपदेश अपने आचरण से कर दिखाएं
धर्म पूजा, जाति भाषा, वेश भूषा, बोलियाँ सब
एकता के सूत्र में बंध कर चली है टोलियाँ सब
संगठन में शक्ति है, ऐसी लिखें फिर से कथाएं
रेल का हमको दिखाई दे रहा है पथ समांतर
मूल में इसके छिपा है साथ…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments
कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
जब भी' की आपने सियासत की.
प्यार पूजा सदा ही हमने तो,
आपने कब इसकी इबादत की
जुल्म धरती ने सह लिए सारे,
आसमां ने मगर बगावत की
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 25, 2017 at 10:10am — 10 Comments
“सुन कमला, सारा काम निपट गया या अभी भी कुछ बाकी है!”
नहीं ‘मेमसाहब’ सब काम पूरा कर दिया है, दाल और सब्जी भी बना के फ्रिज मैं रख दी है, आटा भी गूंथ दिया है, साहब आयेंगे तो आप बना कर दे दीजियेगा !
“अरे बस जरा सा ही काम तो बचा है, कमला,ऐसा कर रोटी भी बना कर हॉट केस मैं रख जा !”
“मेमसाहब मुझे देर हो रही है, घर पर बच्चे भूखे होंगे !”
अरे चल पगली १५ मिनट में मर थोड़ी ही जायेंगे, चल जल्दी से बना दे !
गरीबी चाहे जो न…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 25, 2017 at 2:49am — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on July 25, 2017 at 2:30am — 8 Comments
दिल्ली में भी
सूरज उगता है
शहादरा में
काले धुएं की, ओट से
धीरे –धीरे संघर्ष करते
ठीक उसी तरह जैसे
माँ के गर्भ से कोई
बच्चा निकलता है
बड़ा होता है
बसों और मेट्रो में
लटक –लटक कर
धक्के खा-खा कर
जीवन जीना सीखता है
पसीने को पीता जाता है
पर थक हार कर भी
जनकपुरी की तरफ बढ़ता जाता है
रक्त से लाल होकर
वहीँ कहीं किसी स्टाप पर
चुपके से उतर जाता है
पर, सूरज का जीवन…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 24, 2017 at 11:10pm — 1 Comment
Added by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 2:45pm — 17 Comments
Added by Samar kabeer on July 24, 2017 at 12:00am — 25 Comments
तन्हा....
बहुत डरता हूँ
हर आने वाली
सहर से
शायद इसलिए कि
शाम ने सौंपी थी
जो रात
मेरे ख़्वाबों को
जीने के लिए
ढक देगी उसे सहर
अपने पैरहन से
हमेशा के लिए
और मैं
रह जाऊंगा
सहर की शरर से
छलनी हुए
ख्वाबों के साथ
तन्हा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 23, 2017 at 9:18pm — 10 Comments
धूप की तिरछी किरणें
बारिश की बूँदें
रंभाती हवाएँ
सभी एक संग ...
धूल के कण
मानो उड़ रहे हैं सपने
विचित्र रूप ओढ़े है धरती
सारा कमरा
चौकन्ना हो गया है
असंतोष मुझको है गहरा
लौट-लौट आ रहे हैं
दर्दीले दृश्य दूरस्थ हुई दिशाओं से
भूली भीषण अधूरी कहानी-से
उलझे ख़याल ...
तुम्हारे, मेरे
मकड़ी के जाल में अटके जैसे
हमारे सारे प्रसंग
जिनका आघात
हम दोनों को…
ContinueAdded by vijay nikore on July 23, 2017 at 3:00pm — 29 Comments
Added by मनोज अहसास on July 23, 2017 at 1:22pm — 1 Comment
जिन्दगी की रेलगाड़ी,
भागती सरपट चली.
मिल न पायीं दो पटरियाँ,
साथ पर चलती रहीं.
देख कर अपनों की खुशियाँ,
दीप बन जलती रहीं.
दे गयी राहत सफर में,
चाय की इक केतली.
मौसमों की मार…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 23, 2017 at 1:11pm — 9 Comments
Added by अनहद गुंजन on July 23, 2017 at 11:44am — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 23, 2017 at 10:47am — 13 Comments
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