For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी गम के दौर में भी हुई आखें नम नहीं पर- लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

गजल
2121    1221    1212    122

मेरे  रहनुमा  ही   मुझसे  मिले  सूरतें  बदल  के
भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।
न सितारे बोले  उससे  मेरा  हाल क्या है या रब
न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।

खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं
जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।
कहूँ लाल कह के  उसने न  गले  लगाया क्यों मैं
न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।

बड़ा ख्वाब  था  खिलाऊँ  उसे मोल की भी रोटी
न खरीद पाया नितनित चढ़ा भाव जो उछल के।5।
इतिहास  का  असर भी हुआ  करता है सुना था
नहीं साथ मेरे फिर क्यों भला काम मेरे कल के।6।

कभी गम के दौर  में  भी हुई आखें नम नहीं पर
रही साथ खुशियाँ तो अब तेरे अश्क यारा छलके।7।
तेरे अश्क कर  रहे  हैं  तेरे  दिल का आशकारा
मेरे रतजगों पे तू फिर मढ़े दोष क्यों उबल के।8।

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’


गजल
2121    1221    1212    122

मेरे रहनुमा  ही  मुझसे  मिले  सूरतें  बदल के
भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।
न सितारे बोले  उससे मेरा हाल क्या है या रब
न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।

खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हू मैं
जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।
कहूँ लाल कह के उसने न गले  लगाया क्यों मैं
न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यँू मचल के।4।

बड़ा ख्वाब  था खिलाऊँ उसे मोल की भी रोटी
न खरीद पाया नितनित चढ़ा भाव जो उछल के।5।
इतिहास  का असर भी हुआ करता है सुना था
नहीं साथ मेरे फिर क्यों भला काम मेरे कल के।6।

कभी गम के दौर में भी हुई आखें नम नहीं पर
रही साथ खुशियाँ तो अब तेरे अश्क यारा छलके।7।
तेरे अश्क कर रहे  हैं तेरे दिल का आशकारा
मेरे रतजगों पे तू फिर मढ़े दोष क्यों उबल के।8।

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी मुसाफिर

Views: 1009

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2017 at 9:26pm
आ.भाई विजय जी, स्नेह के लिए आभार ।
Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 9:37am

गज़ल अच्छी बनी  है, दिल से बधाई, लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2017 at 7:05am
आ. भाई समर जी, गजल पर पुनः उपस्थित हो महत्वपूर्ण जानकरी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद । साथ ही भाई रामअवध जी का भी आभार ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2017 at 7:01am
आ. भाई खुरशीद जी प्रशंसा के लिए आभार।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on July 31, 2017 at 10:43pm
समर कबीर साहब बहुत बहुत शुक्रिया भ्रम दूर करने के लिये।
मुझे ये शंका थी कि मैं जिस प्रकार से बह् को समझ रहा हूँ वह किसी बारीक नियम के अनुसार गलत न हो और अपनी गल्ती अभी दुरूस्त कर लें। आपको पुन: धन्यवाद।
Comment by Samar kabeer on July 31, 2017 at 6:07pm
जनाब राम अवध जी आदाब,जी हाँ,इस ग़ज़ल के अरकान 'मुतफाइलुन फ़ऊलून मुतफ़ाइलुन फ़्ऊऊलुन'भी होते हैं,और इसका नाम भी अलग है,लेकिन हमें ये देखना होता है कि आज के ग़ज़लकार ज़ियादा तर हिन्दी भाषी हैं,और इन बह्रों के नाम इतने मुश्किल होते हैं कि उन्हें याद करने में एक उम्र बीत जाती है,क्योंकि फ़ारसी भाषा की इस विधा की तक़रीबन 40,000 बह्रें होती हैं,लेकिन एक ग़ज़लकार अगर बहुत कोशिश करे तो 15 या 20 बह्रों से ज़ियादा में ग़ज़लें नहीं कह सकता,कुछ तो तीन या चार से आगे नहीं बढ़ते,हर बह्र में ग़ज़ल कहने के लिये फ़ारसी अरूज़ का ज्ञान बहुत ज़रूरी होता है जो आजके ग़ज़लकार के लिये एक तरह से नामुमकिन होता है,इसलिये नाम से ज़ियादा अरकान पर ध्यान देना आवश्यक है,ग़ज़ल की तक़्ति के लिये अरकान ज़रूरी होते हैं,और अरकान में जब कुछ तब्दीली करने के लिए ज़िहाफ़ का इल्म होना चाहिए,इसे आसान करने के लिए कभी 'फ़ऊलून'में से 'वाव'हज़फ़ करके उसे 'फेलुन'या 'फ़इलुन'कर दिया जाता है,और इसके लिए उर्दू के साथ साथ फ़ारसी भाषा का इल्म ज़रूरी होता है,जो आज कितने लोगों को आता है ? इसलिए हमें चाहिए के जिन अरकान से ग़ज़ल की तक़्ति हम आसानी से कर सकें वही याद रखे जाएँ और इल्मी मुबाहिसे से परहेज़ करें,क्योंकि फिर बात से बात निकलती है तो उसका कोई अंत नहीं होता,उम्मीद है आप संतुष्ट हुए होंगे ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2017 at 2:10pm
आ. भाई नरेंद्र जी, हर्दिक धन्यवाद ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on July 30, 2017 at 6:23am
आदरणीय समर कबीर साहब क्या इस ग़ज़ल की यह भी बह्र हो सकती है
मुतफाइलुन फऊलुन मुतफाइलुन फऊलुन
और क्या इस बह्र कानाम आपके बह्र के नाम से अलग हो जावेगा।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2017 at 11:36am
आ.भाई आशुतोष जी आभार..
Comment by khursheed khairadi on July 29, 2017 at 9:01am
आदरणीय लक्ष्मण सर, उम्दा अशआर हुए हैं। दिल से दाद क़बूल फर्मावें ।लाज़वाब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
12 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service