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All Blog Posts Tagged 'गीत' (163)

खुद को रावण सा लिक्खूँगा

मानवता की नए सिरे से

नूतन परिभाषा लिक्खूँगा।

राम कृष्ण सब लिखो स्वयं को।

खुद को रावण सा लिक्खूँगा।।



जब तक जला नहीं लेता मैं

खुद के भीतर की कामुकता।

जब तक खत्म नहीं हो जाती

शक्ति बाहुबल की अभिलाषा।



जब तक मनस नगर में पुष्पित

है अक्षय स्पृहा वाटिका।

तब तक नैतिकता पर कैसे

कहिये अभिभाषण लिक्खूँगा।।

राम कृष्ण सब लिखो स्वयं को।

खुद को रावण सा लिक्खूँगा।।



जब तक इन आँखों में छाये

हुए रहेंगे लोभ के बादल।

जब… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 26, 2015 at 9:52pm — 12 Comments

सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ अपनी अपनी प्रेम कहानी

है सजी महफ़िल यारों 

फिर से जख्मों को उठाओ 

याद फिर कर लो उसे 

जिससे मोहब्बत की थी यारों

फिर वही कुछ हँसते गाते 

रुठते और फिर मनाते 

अश्क़ जब आँखों में आये 

गीत  बन जब दर्द जाये

जख्म तुम सबको दिखाओ

फिर वही अपनी पुरानी

सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ

अपनी अपनी प्रेम कहानी |

उसको भी बतलाओ यारों

वो कहाँ और हम कहाँ हैं 

हमने तो जख्मों को अपने 

जीने का जरिया बनाया

गिर के खुद संभले जहाँ…

Continue

Added by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 7:00pm — 11 Comments

गीत- इश्क का जला/एक कोशिश

मुखडा -१६
अन्तरा- १४
इश्क का जला,इश्क का जला।
इश्क का जला, इश्क का जला ।

दिल से मेरे निकले धुआँ
कैसे करूं ये गम बयाँ
ये बेबसी की दास्ताँ
है कौन समझेगा यहाँ
जो अब तलक दिल में रहा
वो भी न मुझको पढ़ सका
इश्क का जला------

इक बार भी सोचा नहीं
परखा नहीं समझा नहीं
दिल से कभी देखा नहीं
तूने मुझे जाना नहीं
मजबुरीयों ने रोक रक्खा
है मेरा हर रास्ता
इश्क का जला-------

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Rahul Dangi Panchal on July 18, 2015 at 11:58pm — 4 Comments

गीत (समीक्षार्थ)

 

मनवा गाये, मनवा गाये,

मोरा मनवा गये रे



इक गौरैया घर में आई

चुन-चुन तिनका नीड़ बनायी

किया है उसने प्रियतम संग फिर

प्रेम सगाई रे

मनवा गाये मनवा गाये ................



इत्-उत् मटक-मटक दिखलाती

पिया को अपने खूब रिझाती

नित अठखेलियाँ करते दोनों

ज्यूँ भँवर बौराई रे

मनवा गाये ..................................



इक दूजे रंग रंगने लगे थे

प्रणय निवेदन करने लगे थे

आने को थी संतति उनकी

हुए सुखारे रे…

Continue

Added by Meena Pathak on July 7, 2015 at 10:05pm — 7 Comments

कोई मांग रहा, कोई छीन रहा।

कोई मांग रहा,

कोई छीन रहा।

तेरा मेरा करता मानव,

सब पा कर भी क्यों दीन रहा।



पत्थर युग से,

मंगल युग तक।

सूरत बदली मूरत बदली,

मन से फिर भी हीन रहा।



छू ले चांद,

कई बार भले।

पर धरती की अनदेखी है,

जहां बचपन कूड़ा बीन रहा।



क्षण भर 'देवी',

फिर खेल खिलौना।

धरा गगन को रोना आया,

तू ईश होकर भी,

समाधि में ही लीन रहा।



जीत लिया जग,

बना सिकंदर।

जाते जाते अपने दो क्षण,

विश्व विजेता मुर्दो…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 2, 2015 at 7:00pm — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत -- पूछता है अब विधाता - ( गिरिराज भंडारी )

रोक नदिया

तोड़ पर्वत

तू धरा को क्या बनाता

पूछता है , अब विधाता

 

देख कुल्हाड़ी चलाता 

कौन अपने पाँव में ही

कंटकों के बीज बोता

रास्तों में , गाँव मे ही

व्यर्थ सपनों के लिये क्यों आज के सच को  गवांता

तू धरा को क्या बनाता , पूछता है अब विधाता

 

इक नियम ब्रम्हाण्ड का है

ग्रह सभी जिसमें चले हैं

है धरा की गोद माँ की

खेल जिसमे सब पले हैं

माँ पहनती उस वसन में , आग कोई है लगाता 

तू धरा…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 14, 2015 at 9:21am — 21 Comments

कवि की मृत्यु के बाद / गीत (विवेक मिश्र)

दूर कोई कवि मरा है



जो मुखर संवेदना थी

आज कोने जा लगी है

थक चुका आक्रोश है यूँ

मौन इसकी बानगी है



अब इन्हें स्वर कौन देगा?

भाग्य का ही आसरा है



अनगिनत सी भावनायें

बीजता रहता है यह मन

किन्तु विरले जानते हैं

भावनाओं पर नियंत्रण



कब किसे है छाँटना और

कौन सा पौधा हरा है?



लेखनी जर्जर पड़ी है

पृष्ठ रस्ता तक रहे हैं

भाव, शब्दों से कहें अब

'हम अकेले थक रहे हैं'



पूर्ण है 'मुख' गीत का,… Continue

Added by विवेक मिश्र on April 27, 2015 at 8:30am — 9 Comments

कुछ बनना होगा ........'इंतज़ार'

तुम दीया हो तो मुझे बाती बनना होगा

तेरा साथ पाने को चाहे मुझे जलना होगा !

तुम अगर रात हो तो मुझे अँधेरा बनना होगा

तुम से मिलने को मुझे सवेरों से लड़ना होगा !

तुम ग़र दरिया हो तो मुझे समन्दर बनना होगा

तुमको फिर मुहब्बत में मुझ से मिलना होगा !

तुम अगर हवा हो तो मुझे धूल बनना होगा

मुझे आगोश में ले आँधियों में तुम्हें उड़ना होगा !

तुम अगर चाँद हो तो मुझे चकोरी बनना होगा

तुमको हर रात मेरा मिलन का गीत सुनना होगा…

Continue

Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 1:25pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत / नवगीत - क्या ये मेरा वही गाँव है --- गिरिराज भंडारी

क्या ये मेरा वही गाँव है

***********************

क्या ये मेरा वही गाँव है

सूरज अलसाया निकला है

मुर्गा बांग नहीं देता है 

नहीं यहाँ चिड़ियों की चीं चीं

ना कौवे की काँव काँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

दो पहरी सोई सोई है

दिवा स्वप्न में कुछ खोई है

यहाँ धूल में सनी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 9:32am — 22 Comments

मैं हूँ बीमारे गम :हरि प्रकाश दुबे

मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,

जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !

मेरा दिल कांच की चूड़ियां तो नहीं,

एक झटका लगे टूटकर गिर पड़े !

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

मेरे महबूब ने मुस्कराते हुए ,

नकाब चेहरे से अपने सरका दिया !

चौदहवीं का चाँद रात शरमा गया,

चौदहवीं का चाँद

जितने तारे थे सब टूटकर गिर पड़े !

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

जिक्र जब छिड़ गया उनकी अंगडाई का,

शाख से फूल यूँ ,टूट कर गिर पड़े…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:00am — 16 Comments

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो 

मेरे आँखों की पानी तुम हो 

मेरे ख्वाबों की रानी तुम हो 

मेरे दर्द की कहानी तुम हो 

हाँ तुम हो ,

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |

तुझसा कोई न आये

गर आये तो फिर न जाये 

तेरे बिन जिया न जाये 

ये दिल पाये जिसे पाये ,तुम हो 

हाँ तुम हो 

मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |

हर जगह से था मैं हारा 

था मैं वक़्त का मारा

मुझे मिला…

Continue

Added by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 10:42pm — 11 Comments

होली गीत

छाई रंगों की मधुर फुहार

रंगीली आई होली

सखी री आई होली

 

अंग सजन के रंग लगाऊँ

मन ही मन में खूब लजाऊँ

फगुनिया चलती बयार

सखी री आई होली

 

नेह में डूबी पवन बावरी

मन मंदिर में पी छवि सांवरी

नथुनिया की होठों से रार

सखी री आई होली

 

शाम सिंदूरी अति हर्षाये

अखियों से मदिरा छलकाए

चंदनियाँ करे मनुहार

सखी री आई होली

 

चम्पा चमेली गजरे में महके

दर्पण देख के मनवा…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 27, 2015 at 8:00am — 18 Comments

वो मुझे देखकर मुस्कराती रही..

मैं उसे देखकर मुस्कराता रहा,

वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।

उस कहानी का किरदार मैं ही तो था,

जो कहानी वो सबको सुनाती रही।।

मैं चला घर से मुझ पर गिरीं बिजलियां

बदलियां नफरतों की बरसने लगीं,

बुझ न जाए दिया इसलिए डर गया

देखकर आंधियां मुझको हंसने लगीं,

दुश्मनी जब अंधेरे निभाने लगे

रोशनी साथ मेरा निभाती रही,

मैं उसे देखकर मुस्कराता...

प्यास तुमको है तुम तो हो प्यासी नदी

एक सागर को क्या प्यास होगी भला,

हां अगर तुम…

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Added by atul kushwah on February 12, 2015 at 10:00pm — 14 Comments

" हँसकर पतवार चलाना रे "

सुख-दुःख तो आते जाते हैं................................... 

सुख-दुःख तो आते जाते हैं,  राही मत घबरा जाना रे !

जीवन की गहरी नदियाँ में, हँसकर पतवार चलाना रे !

 

हमने कुछ देखी रीत यहाँ,..................................

हमने कुछ देखी रीत यहाँ, श्रम से ही सब कुछ मिलता है !

ईमान –धरम के काँटों में, तब फूल मुकद्दर खिलता है !

 

दौलत तो आनी जानी है.................................

दौलत तो आनी जानी है, ना मन इसमें उलझाना रे…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on January 20, 2015 at 6:00pm — 21 Comments

"सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम्"

अखण्ड आर्यावर्त की, उमंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

बुद्ध-कृष्ण-राम की, पुनीत –भूमि पावनी !

सुहार्द सम्पदा अनन्त, श्ष्यता संवारती !

सतार्थ धर्मं युद्ध में, सशक्त श्याम सारथी !

परार्थ में दधीचि ने, स्वदेह भी बिसार दी !!

 

निनाद कर रही उभंग, बंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

धर्मं-जाति-वेश में, जरूर हम अनेक हैं !

परम्परा अनेक और बोलियाँ अनेक हैं…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on January 16, 2015 at 12:30am — 20 Comments

नाम तुम्हारे (गीत )

नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा

तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा

अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी

पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी

जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |

नाम तुम्हारे..........

गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला

बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला

जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |

नाम तुम्हारे ..........

खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी…

Continue

Added by somesh kumar on January 13, 2015 at 11:00pm — 9 Comments

गीत- जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है

२१२ २१२ २१२ २१२



जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है!

साल दर साल दिल का यही हाल है!!

मुझको तो इससे कुछ फर्क पडना नहीं!

ये गया साल है या नया साल है!!



स्याही किस्मत के उस पेज पर जा गिरी!

जिस पे तस्वीर थी मेरे दिलदार की!

या खुदा तुझसे ये क्या खता हो गयी!

मेरी किस्मत से वो अब जुदा हो गयी!

अब मुकद्दर मेरा दोस्त कंगाल है!

जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है......



नाम ही है सुना मैनें देखी नहीं!

शक्ल से तो कभी क्या बला है खुशी!

है… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on January 6, 2015 at 10:30pm — 11 Comments

बस प्यार ही जिंदगी होवे (गीत)

तू प्यार की राहों में चलना

बस प्यार ही जिंदगी होवे

तू यार तो सच्चा न हो

पर प्यार तो सच्चा होवे,-2

तू देख के लगे फकीरा

पर दिल का फ़कीर न होवे,

तू यार तो सच्चा न हो

पर प्यार तो…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 10:00pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत - आने वाला नया, नया कब रह पाता है ( गिरिराज भंडारी )

नया कहूँ तो, वैसे तो हर पल होता है

नया जागता तब है जब पिछला सोता है 

पर सोचो तो नया , नये में क्या होता है

हर पल पिछला, आगे को सब दे जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही गरीबी , भूख , वही है फ़टी रिदायें 

वही चीखती मायें , जलती रोज़ चितायें

वही पुराने घाव , वही है टीस पुरानी

वही ज़हर, बारुद, धमाका रह जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on December 21, 2014 at 11:48am — 25 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत / नवगीत - बर्तन भांडे चुप चुप सारे ( गिरिराज भंडारी )

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

*************************

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

चूल्हा देख उदासा है

टीन कनस्तर खाली खाली

माचिस देख निराशा है

 

लकड़ी की आँखें गीली बस 

स्वप्न धूप के देख रही 

सीली सीली दीवारों को

मन मन में बस कोस रही

 

पढा लिखा संकोची बेलन 

की पर सुधरी भाषा है

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

चूल्हा देख उदासा है

 

स्वाभिमान बीमार पडा है

चौखट चौखट घूम रहा

गिर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on December 17, 2014 at 11:00am — 26 Comments

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