For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,112)

धर्म और राजनीति

धर्म धुरी है इस जगती की

धर्म सृष्टि का है आधार..

धर्म न्याय से ही सुस्थिर है

इस दुनिया के सब व्यापार.



धर्म सिखाता है बेटे को

माँ का हो पूरा सम्मान..

धर्म मान कर ही सीमा पर

सैनिक देता अपने प्राण ..



सूर्य चन्द्र भी धर्म मान कर

देते हैं प्रकाश उपहार ;

धर्म मान निज वृक्ष फूलते

नदियाँ जल देतीं साभार ...



पत्नी माँ दोनों हैं स्त्री ,

किन्तु पृथक इनका स्थान

माँ माँ है पत्नी है पत्नी,

धर्म कराता इसका… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 11, 2010 at 3:38pm — 3 Comments

आज मैं सोचता हूँ,

आज मैं सोचता हूँ,

आज मैं सोचता हूँ की वो दिन फिर वापस आ जाए,

फिर वेसे ही मौज मनाए,

तितली के पिछे हम जाए,

फूल के महको मे खोजाये,



तब तो हम थे धूम मचाते,

समय बिताया हसते गाते,

सखाओ के संग बात बनाते,

समझ ना पाया दिन केसे जाते,



ये केसा दिन आया देखो,

खुद भि समझ ना पाया देखो,

कहा है जाना क्या करना है,

अब तक समझ ना पाया देखो,

जीवन के इस रंग मंच पर,

अपना पात्र निभाया देखो,



मन चंचल को माना लिया है,

उसको सब… Continue

Added by pankaj jha on August 11, 2010 at 3:37pm — 2 Comments

मुक्तक

बिजलियाँ दिल पे गिराते जाइये --
आप तो बस मुस्कराते जाइये --
हर किसी से दिल नहीं मिलता मगर --
हाथ तो सबसे मिलाते जाइये |

तेरे नाम से ही मुझको दुनियां ने पुकारा है --
मेरी ज़िन्दगी का आखिर तू ही तो सहारा है --
परदा जो हटा दो तो दीदार मयस्सर हों --
हम गैर सही लेकिन परदा तो तुम्हारा है |

पहले तो मुझे होश में आने की दवा दो --
फिर आपकी मर्ज़ी है जो चाहे सजा दो --
जब टूट ही गया दिल जी के भी क्या करें --
जीने की दुआ दो या मरने की दुआ दो |

Added by jagdishtapish on August 11, 2010 at 9:22am — 1 Comment

ऐसे भी ज़माने में लोगो

ऐसे भी ज़माने में लोगो



ऐसे भी ज़माने में लोगो गमनाक फ़साने होते हैं

दुनिया से तो लाजिम है लेकिन खुद से भी छुपाने होते हैं



कुछ और नए देना है अगर दीजेगा मगर हंसते हंसते

नासूर बना करते हैं जो वो जख्म पुराने होते हैं



उठता है कोई जब दुनिया से कांधे पे उठाया जाता है

महफ़िल से उठाने के पहले इल्जाम लगाने होते हैं



पूछो न शबे फुरकत में क्यों ये दामन भीगा रहता है

दिल रोता है अन्दर अन्दर हँसना तो बहाने होते हैं



सौ बार तपिश मैखाने की… Continue

Added by jagdishtapish on August 10, 2010 at 10:56pm — 1 Comment

गीत: कब होंगे आजाद... ----संजीव 'सलिल'

गीत:

कब होंगे आजाद

संजीव 'सलिल'

*

*

कब होंगे आजाद?

कहो हम

कब होंगे आजाद?....

*

गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.

भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..

मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-

नोच-खा रहे

भारत माँ को

ले चटखारे स्वाद.

कब होंगे आजाद?

कहो हम

कब होंगे आजाद?....

*

नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.

धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..

आँख दिखाते सभी… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 10, 2010 at 5:02pm — 2 Comments

हम आज के इंसान हैं

हम आज के इंसान हैं, हम आज में जीते हैं.

वो और लोग होंगे, जो समाज में जीतें हैं.

गीता- कुरान पढ़तें हैं, मानते नहीं.

इंसान हैं, इंसानियत को जानते नहीं.

ज़ख़्मी को देखतें हैं, ठहरते नहीं.

लाल खून देखकर, सिहरते नहीं.

हम वो घड़े हैं जो, संवेदना से रीते हैं.

हम आज के इंसान हैं, हम आज में जीते हैं.

15 अगस्त आता है, तो राष्ट्र-गान गाते हैं.

घर के मुंडेर पर, तिरंगा भी फहराते हैं.

रचनाकार हैं, रचनाधार्मिता को पोसते हैं.

राष्ट्र की दुहाई देकर, शासन को… Continue

Added by satish mapatpuri on August 10, 2010 at 4:30pm — 2 Comments


मुख्य प्रबंधक
कविता : बारिश के रंग

हाल- ए- दिल ऊंचे महलों से पूछो जरा,

मस्तियाँ बादलों की कैसी उन्हे लगती हैं,



जब सावन की पहली पड़ती फुहार,

धरा ख़ुशी से सोंधी खुशबू बिखेरती,

बच्चे उछलते कूदते मचलते खेलते,

चेहरे किसानो के उम्मीदों से चमकते,



हाल- ए- दिल झोपड़ियो से पूछो जरा,

आंशु बन बारिश छपरों से टपकती है,



खूब बारिश हुई भरी नदिया और ताल ,

मचलती तितलियाँ भी आँचल संभाल,

हवाओं को भी देखो चलती मदभरी,

दीवाना बनाने को हमें हठ पर अड़ी,



हाल- ए- दिल उन… Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 10, 2010 at 2:30pm — 32 Comments

बाबा की पाती

[आएश और आमश के लिए]





हमारे पास कुछ भी नहीं है



चंद औराक़ गर्दिशे-दौराँ के

चंद नसीहतें जो नस्ल दर नस्ल हम तक पहुंचीं

ऐसा विश्वास जहाँ श्रद्धा के अतिरिक्त

सारे सवाल अनुत्तरित और प्रतिबंधित

हैं



मैं कांपता था , लड़खडाने लगते थे क़दम

पसीने लगते थे छूटने

तुम मत डरना

कभी कुत्ते के भौंकने और बिल्ली के म्याओं म्याओं से



शिनाख्त रखना नहीं

न वजूद के पीछे

भागना

रैपर बन जाना

किसी भी साबुन की… Continue

Added by शहरोज़ Shahroz on August 9, 2010 at 10:30pm — 6 Comments

बेच दूंगा मैं खुद को खरीदेंगे आप

बेच दूंगा मैं खुद को खरीदेंगे आप

सोच के आज आया हूँ बाज़ार में --

दोस्तों मेरी कीमत जियादह नहीं

मैं भी बिक जाउंगा आपके प्यार में |



पहले हर बोल के मोल को तौलिये

'बाद में जो मुनासिब लगे बोलिए ---

बोल से ही तो जाहिर ये होता है के

'कितनी तहजीब होगी खरीदार में



इतनी जुर्रत कहाँ के लगा लूँ गले

ये भी हसरत नहीं के गले.से लगूं ---

जो मजा पा के सौ बार मिलता नहीं

वो मजा खो के पाया है एक बार में |



बिक रही है जमीं बिक रहा… Continue

Added by jagdishtapish on August 9, 2010 at 7:42pm — 3 Comments

हाइकु क्या है..??

हाइकु - ये जापानी काव्य प्रकार है । हाइकु अकसर कुदरत वर्णन के लिए लिखे गए हैं । जिसे " कीगो " कहते हैं । जापानी हाइकु , एक पंक्ति में लिखा जाता है और १९ वीं शताब्दी पूर्व इसे हिक्को कहा जाता था । मासाओका शिकी महोदय ने १९ वीं सदी के अंत तक इसे हाइकु नाम दिया ।



हाइकु , कविता में ३ पंक्तियाँ होतीं हैं । जिनका अनुपात है--



प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर , दूसरी में ७ अक्षर और फ़िर तीसरी पंक्ति में ५ अक्षर हों..



अकसर , संधि अक्षर भी एक अक्षर ही गिना जाता है… Continue

Added by विवेक मिश्र on August 9, 2010 at 2:56am — 2 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
वापस दे दो

जब्त किये है तुमने जो अल्फाज़ अभी वापस दे दो

अपने हिस्से की थोड़ी आवाज अभी वापस दे दो



मेरा ग़म, दिल की मायूसी, या फिर मेरी तन्हाई

दिल में छुपाये मेरे सारे राज अभी वापस दे दो



सूरज से जो लड़ आये थे खालिस जेठ महीने में

उन मदमस्त परिंदों की परवाज़ अभी वापस दे दो



सीमा पार से जो आया है वो बारूद है कर्जे का

मूल को छोड़ो ब्याज बहुत है ब्याज अभी वापस दे दो





अब एक प्यारा सा गाना भी सुनते… Continue

Added by Rana Pratap Singh on August 8, 2010 at 11:00pm — 3 Comments

गीत: हर दिन मैत्री दिवस मनायें..... संजीव 'सलिल'

गीत:

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

संजीव 'सलिल'

*

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

*

होनी-अनहोनी कब रुकती?

सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.

जैसा जो बीते हैं हम सब

वैसा फल हम नित पाते हैं.

फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?

कारण कृपया, मुझे बतायें

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

*

मन से मन की बात रुके क्यों?

जब मन हो गलबहियाँ डालें.

अमराई में झूला झूलें,

पत्थर मार इमलियाँ खा लें.

धौल-धप्प बिन मजा नहीं है

हँसी-ठहाके… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 11:32am — 3 Comments

मन को बांधना आसान नहीं

शब्दों की तरह

चाहता हू बांधना मन को भी

मगर मन ...

कौंधती है बिजली की तरह

बढती है लहरों की तरह

मन बाहर दौड़ने लगता है

ध्यान के दौरान

गंदे विचार कुलबुलाते रहते है ॥





बड़े ही द्वन्द में जीता है मन

आत्मा -परमात्मा के चक्कर में

गृहस्थ -वैराग्य के रास्तों पर

अपने -पराये की दहलीज पर

ठिठक जाता है मन ॥



खोये प्रेमी /खोया धन

पाने के लिए तपड़ता है मन ॥

सोचा था ...

बुढ़ापे के साथ

तन और मन ठंढा हो जाएगा… Continue

Added by baban pandey on August 8, 2010 at 7:31am — 4 Comments

लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा

लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा


अजनबी शहर में सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर घर मेरा चर्चा होगा

गम नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा

दामने जीस्त फिर भीगा हुआ सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा

कब्र में आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों में मरूँगा तो तमाशा होगा
मेरे काव्य संग्रह ---कनक--से -

Added by jagdishtapish on August 7, 2010 at 8:41pm — 7 Comments

जिंदगी

जिंदगी के नशे मे है झूमती जिंदगी

मौत के कुएँ मे भी है घूमती जिंदगी



जिंदगी की कीमत तो जिंदगी ही जाने

रेगिस्तान मे जलबूँद है ढूँढती जिंदगी



हो गर जवाब तो वो लाजवाब ही होवे

हर पल ऐसे सवाल है पूछती जिंदगी



कोई मिला खाक मे, कोई खुद धुआँ हुवा

धरती ओर गगन के बीच है झूलती जिंदगी



किसी का गम किसी की मुस्कुराहट यहाँ

हर हाल मे मुस्कुराके आँखे है मूंदती जिंदगी



जान ले "मासूम " रुसवाई नही किसी को यहाँ

मौत के भी खुश होकर पग है… Continue

Added by Pallav Pancholi on August 7, 2010 at 3:30pm — 3 Comments

प्रशांत ! Copyright ©

कैसे विनम्र सा बैठा



अथाह सागर फैला हुआ



मौत सा सन्नाटा सुनाई देता



इसके अन्दर सिमटा हुआ



बंद करके आँखें मैं



लेट गया सफ़ेद रेत पे



सुनने को आतुर था मन



सुर जो बनता



लहरों के साहिल पे टकराने से



जब पूरा ध्यान उन लहरों पर था



और मन के सारे द्वार मैंने खोल दिए



पहचानने को वो शक्ति मैं था बैठा



ऐसा लगता मानो कह रहा सागर



धैर्य हूँ मैं



शंकर हूँ और शक्ति हूँ… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 7, 2010 at 1:24am — No Comments


मुख्य प्रबंधक
मेरी दूसरी ग़ज़ल

दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,

क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,



मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए

बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,



माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,

डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,



इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,

फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,



मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,

चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,



कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,

ना… Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2010 at 1:00am — 27 Comments

yeh kaisaa saawan

यह कैसा सावन
--------------
सावन के झूलों के संग
हिलोरे लेती मैं
और मेरी
सतरंगी चुनर के रंग
कहाँ खो गए
अब के क्यों
बर्फ सी जमी है
सावन मैं
एहसास भी बर्फ सी
सफ़ेद चादर ओढ़े
सो गए.

Added by rajni chhabra on August 6, 2010 at 11:23pm — 4 Comments

हिन्दी वैभव: मगही / भोजपुरी / अंगिका / बघेली / उर्दू खड़ी बोली

हिन्दी वैभव:

हिन्दी को कम आंकनेवालों को चुनौती है कि वे विश्व की किसी भी अन्य भाषा में हिन्दी की तरह अगणित रूप और उन रूपों में विविध विधाओं में सकारात्मक-सृजनात्मक-सामयिक लेखन के उदाहरण दें. शब्दों को ग्रहण करने, पचाने और विधाओं को अपने संस्कार के अनुरूप ढालकर मूल से अधिक प्रभावी और बहुआयामी बनाने की अपनी अभूतपूर्व क्षमता के कारण हिन्दी ही भावी विश्व-वाणी है. इस अटल सत्य को स्वीकार कर जितनी जल्दी हम अपनी ऊर्जा हिन्दी में हिंदीतर साहित्य और संगणकीय तकनीक को आत्मसात करेंगे, अपना और हिन्दी का… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 6, 2010 at 7:57pm — 2 Comments

रैप टाइम (हास्य ) हिंगलिश- शैली

गिरते -पड़ते डांस करें, बिन सुर - ताल के गाना.

ये है रैप ज़माना - ये है रैप ज़माना.

स्कूल हो या कॉलेज हो, बस फिल्मों का नॉलेज हो.

क्या रखा है किताबों में, अलजबरा के हिसाबों में.

झगड़ा है इतिहासों में, टेंसन संधि- समासों में.

तर्कशास्त्र तो टेढ़ा है, इंगलिश एक बखेड़ा है.

राजनीति में पचड़ा है, अर्थशास्त्र एक दुखड़ा है.

कौन फंसे साइक्लोजी में, लफड़ा है बाईलोजी में.

पानीपत में कौन जीता, बेमतलब सर है खपाना.

ये है रैप ज़माना… Continue

Added by satish mapatpuri on August 6, 2010 at 4:00pm — 2 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service