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इनकार तू करता नहीं ... Inkaar Tuu Karta Nahin

इनकार तू करता नहीं...

मांगता मैं भी नहीं...|



हर बात तू समझ के...

कुछ बताता भी नहीं |



खुद को तनहा क्यों करूँ...

फ़िक्र करके बेवजह |



है रोम रोम में तू बसा ...

करूँ ख्वाहिशें किस के लिए |





मैं आया हूँ...

दो घड़ी के तेरे साथ के लिए ... |



भीड़ में भी मिलते...

तेरे अहसास के लिए... |



गुफ्तगू करता रहा...

शोर से कहीं बेखबर... |



बस तू ही काफी है,

इस रूह-ए-परेशां के… Continue

Added by भरत तिवारी (Bharat Tiwari) on August 15, 2010 at 8:50pm — No Comments

लहरा के तिरंगे को गुमान करूँ

मन तो करता है के सलाम करूँ | लहरा के तिरंगे को गुमान करूँ ||

चोर हैं देश का भेष है सिपाही का|

इन सफ़ेदपोशों का काम तमाम करूँ ||



घर बना कैद ये कैसी है आज़ादी |

जश्न तो तब जो सर-ए-आम करूँ ||



गान है राष्ट्र का साज हैं विदेशी |

सुनूँ कैसे क्या खुद को गुलाम करूँ ||



कहीं छपा के खबर अभी मत छापो |

क्या मज़ाक है देश को नीलाम करूँ ||



देश का हूँ तो क्यों ना लिखूँ ये आखिर |

कहते है भरत ना बोले तो आराम करूँ…
Continue

Added by भरत तिवारी (Bharat Tiwari) on August 15, 2010 at 12:30pm — 1 Comment

तिरंगे को सम्मान

माना की तुम भूल गए हो ,
दिलों दिमाग से खुल गए हो |
वो भी कुछ कम नहीं थे ,
पर दिमाग में उनके बल नहीं थे
तीन रंग उनकी कमजोरी थी ,
खेली खून की होली थी |
वो कहते ये चिर है माँ का ,
शहीद हुए जो धीर थे माँ का ,
जिसके लिए वो जान गवां दी
अपनी माँ की वस्त्र बचा दी
इसको थोड़ी पहचान दो ,बेटे
तीन रंग को सम्मान दो ,बेटे !!
.....रीतेश सिंह

Added by ritesh singh on August 15, 2010 at 8:39am — 7 Comments

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें.... संजीव 'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:



गीत



भारत माँ को नमन करें....



संजीव 'सलिल'

*



आओ, हम सब एक साथ मिल

भारत माँ को नमन करें.

ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ

इस धरती को चमन करें.....

*

नेह नर्मदा अवगाहन कर

राष्ट्र-देव का आवाहन कर

बलिदानी फागुन पावन कर

अरमानी सावन भावन कर



राग-द्वेष को दूर हटायें

एक-नेक बन, अमन करें.

आओ, हम सब एक साथ मिल

भारत माँ को नमन करें......

*

अंतर में अब रहे न… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 14, 2010 at 11:39pm — 5 Comments

तुम कब जानोगे? भारत-पाक विभाजन की ६३वीं बरसी पर

तुम कब जानोगे?









तुम पीछे छोड गये थे

मेरे बिलखते,मासूम पिता को

घुटनों-घुटनों खून में लथपथ

अधजली लाशों और धधकते घरों के बीच

दमघोटूं धुऐं से भरी उन गलियों में

जिसे दौड कर पार करने में वह समर्थ न था.

नफ़रत और हैवानियत के घने कुहासे में

मेरे पिता ने अपने भाईयों,परिजनों के

डरे सहमे चेहरे विलुप्त होते देखे थे.





दूषित नारों के व्यापारियों ने

विखण्डन के ज्वार पर बैठा कर

जो… Continue

Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on August 14, 2010 at 11:30pm — 10 Comments

पंद्रह अगस्त पर

कल पंद्रह अगस्त है. मैंने सोचा की कुछ लिखूं इस स्वतंत्रता दिवस पर. लिखने बैठा तो कुछ या पंक्तियाँ बनी मेरे मस्तिस्क और ह्रदय में. मई उनको आपके सामने रख रहा हूँ|



वर्षों से थी पराधीनता से भारत माता ग्रस्त|

समय सुहाना सैंतालिस का, आया पंद्रह अगस्त||



आया पंद्रह अगस्त हुआ था नया सवेरा|

देश हुआ आज़ाद, फिरंगियों ने भारत छोड़ा||



गैरों की मर्ज़ी से था, जो चलता जीवन|

अपने बस में हुआ, खिल गए वन औ' उपवन||



खिंजा हटी बागों से, आया था बहार का… Continue

Added by आशीष यादव on August 14, 2010 at 5:40pm — 5 Comments

व्याख्या (कविता)

व्याख्या
गूढ़ जीवन को सरल बोल दिए,
परिचय मिला जटिलता से,
सबको जीवन का सार बताया,
स्वयं बन गयी सारांश ताल,
स्वामिनी का रूप भी धर लिया,
पर मन बंदिनी से नहीं उबरा,
अंकुर ही मैंने अब तक रोपा है,
वाट वृक्ष बन नहीं किसी कोघोंटा है.

Added by alka tiwari on August 14, 2010 at 4:41pm — 3 Comments

चिंगारी

उष्ण आगोश था
मैं मदहोश था
ना मुझे होश था
ना मुझमे जोश था
मैं शीतस्वापन में था
ना ही मैं जगा
ना मुझे उठाया गया
ना ही मैं जला
न मुझे सुलगाया गया
मुझे तो बुझाया गया
अब राख ही राख है
और हैं एक चिंगारी


आपका :- आनंद वत्स

Added by Anand Vats on August 14, 2010 at 11:24am — 1 Comment


सदस्य टीम प्रबंधन
बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना

बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना

तरक्की के सफ़र में थोडा सा माजी बचा लेना



बनाओ संगेमरमर के महल चारो तरफ पक्के

मगर आंगन के कोने में ज़रा माटी बचा लेना



चुभी थी फांस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी

न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना



कोई भूखा तुम्हारे दर से देखो लौट ना जाये

तुम अपने खाने में से रोज़ दो रोटी बचा लेना



लगा पाओ वतन पर मरने वालो का कोई बुत भी

कोई नुक्कड़ तुम अपने बुत से भी खाली बचा लेना



(बहरे हज़ज़ मुसम्मन… Continue

Added by Rana Pratap Singh on August 14, 2010 at 10:00am — 5 Comments

और मैं कराहती रही

लूटो ..

कितना लूटोगे ???

अब तक कितनो ने लूटा ,

मगर

दुःख नहीं हुआ ,

कारण ???

मुग़ल बाहर से आये थे ,

अंग्रेज भी बाहर वाले थे ,

वो लूटते रहे ,

और मेरे अपनों को,

लूट में सहयोगी बनाते रहे ,

और मैं कराहती रही !!,

मगर तब भी उतना दुःख नहीं हुआ ,

जो अब होता हैं ,

मगर

तुम तो मुगलों और अंग्रेजो से भी ,

दो कदम आगे निकले ,

लूटो !!!

मगर तुम्हे धिक्कार हैं ,

अपनी माँ को भी नहीं छोड़ा,

अब कभी पैदा नहीं करुँगी… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 13, 2010 at 8:00pm — No Comments

मैं आठवीं सूची का भूखा नहीं हूँ ,,

क्या समझते हो ,

मैं थक के हार के ,

बैठ जाऊंगा ,

ये सोच जो हैं आपकी ,

इसे गलत साबित कर दूंगा ,

मैं हूँ भोजपुरी पुत्र ,

भोजपुरिया ,

और मैं दहाड़ता रहूँगा ,

चाहे आप मानो या ना मानो

मुझे भाषा ,

मैं आपके सीने पे चिंघाड़ता रहूँगा ,

कब तक मिटाते रहोगे मुझको ,

अपने सदन पटल से ,

अरे बेशर्मो ,

मुझे चाहने वाले....

हिंदुस्तान में हिंदी के बाद ,

सबसे ज्यादा हैं ,

मैंने ही दिया था राजेंद्र बाबु को ,

जिसका तुम गुणगान… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 13, 2010 at 7:00pm — 3 Comments

15 अगस्त पर विशेष

(15 अगस्त पर विशेष)



हर प्राचीर पर लहराता तिरंगा भारत की स्वतंत्रता की गाथा को दोहरा रहा है। स्वतंत्र्ाता सबको मिले। हमें बहुत कुछ मिला है। लेकिन क्या यह बहुत कुछ हम सभी भारतवासियों ने पाया है? मिलने और पाने में बहुत अंतर है।



देश में दो बार परमाणु परीक्षण किए गए तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद देश भर में फैली हिंसा ने भी हमें यह सोचने पर विवश किया कि क्या साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के विभाजन के बाद भी हमने इससे कोई सबक लिया? गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा देश झेल… Continue

Added by Jaya Sharma on August 13, 2010 at 5:02pm — 6 Comments

आदिकाल से रक्षा कर रहे हैं: नाग देवता

आदिकाल से रक्षा कर रहे हैं: नाग देवता

;समृद्धि का प्रतीक नागपंचमीद्ध

- जया केतकी

श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि नागपंचमी का त्यौहार सर्पाे को समर्पित है। इस त्योहार पर व्रत पूर्वक नागों की पूजा होती है। नागों का मूलस्थान पाताल लोक है। वेद-पुराणों में नागों का अस्तित्व महर्षि कश्यप और कद्रू से माना जाता है। पुराणों में ही नागलोक की राजधानी भोगवती पुरी है। विष्णु की शय्या की शोभा शेषनाग बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेशजी के अलंकरण में भी नागों की मह्त्त्वपूर्ण भूमिका है।…

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Added by Jaya Sharma on August 13, 2010 at 4:18pm — 4 Comments

अय तिरंगे शान तेरी कम ना होने देंगे हम

तू हमारा दिल जिगर है तू हमारी जान है

तू भरत है तू ही भारत तू ही हिन्दुस्तान है

अय तिरंगे शान तेरी कम ना होने देंगे हम

तू हमारी आत्मा है तू हमारी जान है |



तेरी खुशबू से महकती देश की माटी हवा

हर लहर गंगा की तेरे गीत गाती है सदा

तू हिमालय के शिखर पर कर रहा अठखेलियां

तेरी छांव में थिरकती प्यार की सौ बोलियां

तू हमारा धर्म है मजहब है तू ईमान है |



जागरण है रंग केसरिया तेरे अध्यात्म का

चक्र सीने पर है तेरे स्फुरित विश्वास का

भारती की…
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Added by jagdishtapish on August 13, 2010 at 9:47am — 4 Comments

जागरण गीत

आज मै आप लोगो की सेवा में एक बार फिर अपनी रचना प्रस्तुत रहा हूँ. मुझे उम्मीद है की ये आप लोगो को पसंद आएगी. और आप लोगो का आशीर्वाद रूपी कमेन्ट अवश्य मिलेगा.

जागरण गीत



पूरब में जगी है भोर, पंछी करने लगे है शोर,

मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा,



जग जाएगा तो पायेगा जग में सुन्दर अमूल खजाना,

सोकर खोकर समय चूकि फिर रह जाए पीछे पछताना .

समय के रहते जाग, की अपना हिस्सा ले तू आज,

मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा,



अपना सब… Continue

Added by आशीष यादव on August 12, 2010 at 3:08pm — 9 Comments

अकाल

अकाल ....

एक दिन में नहीं

कह कर आता है ...धीरे -धीरे ॥



बादल रुठ जाते है

जमीन दरारें दिखाती है

कमल कुम्भला जाते है

चिड़ियों को नहीं मिलता अन्न

बगुले को नहीं मिलते कीटें

धान के खेतों में ॥





सरकार कहती है

कोई नहीं रहेगा भूखा

विदेशों से मंगा लिया जाएगा

चावल -गेहू -दाल ॥



क्या सरकार मिटा देगी

रामू काका के चेहरे पर उगी झुरीयां

जो मुनिया की शादी

टल जाने से हो गई है गहरी ॥



क्या सरकार देख पा… Continue

Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:47pm — 2 Comments

६३ साल का जवान सांप

मेरे घर के उत्तर- पश्चिम कोने पर

रहता है एक सांप

हमारे घर जितना पुराना ही

६३ साल का ॥



तीन बार हमें डंस चूका है

१९६५, १९७२, और कारगिल में

यद्दिपी कि तीनों बार

वह भाग खड़ा हुआ

मगर विष -वृक्ष बो गया है ॥



उसने कश्मीर में अपने

छोटे -छोटे बच्चो को जन्म दिया है

फुफकारते है उसके बच्चे कश्मीर में ॥

कश्मीर के लोगो का जीना

उसने तबाह किया हुआ है ॥





अब मेरे पुरे घर में ....

उसके विषैले बच्चे फ़ैल रहे है… Continue

Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:30pm — 1 Comment

जज़्बा !!! Copyright ©

जीवन के इस मोड़ पे

शब्दों से घटाने

और कविताओं के जोड़ में

अनुभवों के सागर में

और इस धरती पे जीवन के

निचोड़ से

क्या सीखा मैंने?

रोता रहा हूँ कई बार

और कोसा भी सबको मैंने

किस्मत के आगे भीख मागी

और पुकारा रब को भी मैंने…

Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 12, 2010 at 12:14pm — 3 Comments

रूठ गयी मुझसे प्रेयसी

आज पीने चला था जाम मैं,

प्रियतम ने प्याला थमा दिया|

चला था मैं इश्क लड़ाने,

उन्होने नज़रें झुका लिया|

कल्पना के हाथों से स्वयं

दो जाम बना दिया||

बड़ी नशीली आँखें उनकी,



मेरे मन मानस पर छा गयी|

श्यामल अंगूर की कोमल कलियों,

बीच शीशा लेकर आ गयीं|

नीर रसों के स्वाद ने मुझे

मधुघट की राह दिखा दिया|

मृदुल हथेली की चाहत ने,

उसे मादक द्रव्य बना दिया ||

एक बार ही तो था माँगा,

प्रेयसी, के…
Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on August 12, 2010 at 11:00am — 4 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल-7 (योगराज प्रभाकर)

कत्ल पेड़ों का हुआ तो, हो गया प्यासा कुआँ !

तिश्नगी अब क्या बुझाएगा भला तिश्ना कुआँ !



पनघटों पर ढूँढती फिरती सभी पनिहारियाँ,

एक दिन ये लौट कर आयेगा बंजारा कुआँ !



बस किताबों में नजर आएगा, ये अफ़सोस है

हो गया इतिहास अब ये भूला बिसरा सा कुआँ !



एक दिन बेटी को जिसकी खा गया था रात में,

उसको तो ख़ूनी लगे उसदिन से ही अँधा कुआँ !



मौत शायद टल ही जाये धान की इंसान की,

गर किसी सूरत कहीं ये हो सके ज़िन्दा कुआँ…
Continue

Added by योगराज प्रभाकर on August 12, 2010 at 12:30am — 11 Comments

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