For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

प्यार कैसे

अरसे से तेरी याद मे जिंदा हूँ,करूँ अब ओर इंतज़ार कैसे

हर कसम इश्क़ की तोड़ी है तूने,करूँ तेरे नये वादे पे ऐतबार कैसे



ये जो जख्म हैं सीने पे मेरे, इक नाज़ुक कली ने दिए हैं मुझे

काँटों के बीच खिले इस गुलाब से अब मैं करूँ प्यार कैसे



ना हो वो बदनाम मेरे नाम के साथ, ओढ़ ली इसलिए गुमनामी मैने

अब तुम ही बताओ लाउ उसका नाम ज़ुबान पर भरे बाजार कैसे



दियों की तरह अरसे से जला रखा हे दिल दुनिया उसकी रोशन करने को

आँखो मे आँसू लेकर अब ओर मनाउ दीवाली का यह… Continue

Added by Pallav Pancholi on June 17, 2010 at 12:15am — 5 Comments

कथा-गीत: मैं बूढा बरगद हूँ यारों... --संजीव 'सलिल'

कथा-गीत:

मैं बूढा बरगद हूँ यारों...

संजीव 'सलिल'

*

MFT01124.JPG



*

मैं बूढा बरगद हूँ यारों...



है याद कभी मैं अंकुर था.

दो पल्लव लिए लजाता था.

ऊँचे वृक्षों को देख-देख-

मैं खुद पर ही शर्माता था.



धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ.

शाखें फैलीं, पंछी आये.

कुछ जल्दी छोड़ गए मुझको-

कुछ बना घोंसला रह पाये.



मेरे कोटर में साँप एक

आ बसा हुआ मैं बहुत दुखी.

चिड़ियों के अंडे खाता था-

ले गया सपेरा, किया… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 17, 2010 at 12:06am — 6 Comments

पल दो पल में वो मेरे दिल के..!!

इक बार क्या मिला वो ,हर दिल अज़ीज़ हो गया ,

पल दो पल में वो मेरे दिल के, करीब हो गया ॥



अनजान थे जो अब तक, उसके असरार से ,

अंजुमन में हुई जब उसकी आमद, हबीब हो गया ॥



फिजां में ना था कही पे, उसका नामोनिशां ,

है हर शख्श की जुबां पर, यही ''मेरा नसीब हो गया ॥



जो बदनामी के डर से, राहें अपनी बदल गए ,

हैं ! वो बने हम -सफर ,कुछ किस्सा अजीब हो गया ॥



जिंदगी को करीने से, सजा रखी थी हमने ''कमलेश '',

उसने दस्तक दी जब से ,दिले -मंजर बे-तरतीब हो… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 9:35pm — 4 Comments

हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ....!!!

हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ,

जिसने हिला के रख दिया ,पूरे ब्रह्माण्ड को ॥



भोपाल मे इंसानी लाशों के, अम्बार लगे थे ,

बुझ गए जीवन दिए जो, अभी-अभी जगे थे ॥



कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,

जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥



जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,

खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥



सालों बाद स्मृत पटल पर, यादें धुंधली नही हुई हैं ,

भयावह मंजर से अब भी '' उसकी… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 11:48am — 7 Comments

हो गया.......

yeh meri pahli gazal hai is site par..... saath he saath jeeven me pahli baar ghazal likhne ki koshish ki hai aap sabhi ke sujhav amantrit hain









हाय मेरी मोहब्बत मोहब्बत ना रही.... यह तो अब एक फसाना हो गया............

रात ही तो आया था वो ख्वाब मे.... पर लगता है उससे मिले एक ज़माना हो गया



मुझे दिलासे दे देकर मुझसे भी ज़्यादा रोए हैं मेरी आँखो के आँसू.........

लगता है मेरा रोना उसके मुस्कुराने का बहाना हो… Continue

Added by Pallav Pancholi on June 16, 2010 at 1:25am — 13 Comments

SAATH

उमर भर
का साथ
निभ जाता
कभी एक ही
पल मैं
बुलबुले मैं
उभरने वाले
अक्स की उमर
होती है
फक्त एक ही
पल की

Added by rajni chhabra on June 16, 2010 at 12:40am — 7 Comments

माँ के आँचल सी

सर्दी मैं गर्मी और
गरमी मैं शीतलता
का एहसास
प्यार के ताने बने से बुनी
ममतामयी माँ
के आँचल सी
खादी केवल नाम नही हैं
खादी केवल काम नहीं हैं
खादी परिचायक है
सवाव्लंबन का
स्वाभिमान का
देश के प्रति
आपके अभिमान का
रंग उमंग और
प्यार के धागे से बुनी
देश ही नहीं
विदेश मैं भी पाए विस्तार
खादी को बनाइये
अपना जूनून
खादी दे
तन मन को सुकून

Added by rajni chhabra on June 14, 2010 at 4:35pm — 7 Comments

जाने क्यों तेरी याद आती.

अम्बर के वातायन से जब चाँद झांकता है भू पर, .

जाने दिल में क्यों हूक उठती - जाने क्यों तेरी याद आती.

स्वप्न संग कोमल शैय्या पर जब सारी दुनिया सोती.

किसी आम्र की सुघर शाख से कोकिल जब रसगान छेड़ती.

पागल पवन गवाक्ष- राह से ज्योंही आकर सहलाता,

तेरे सहलाए अंगों में जाने क्यों टीस उभर आती.

जाने दिल में क्यों हूक उठती- जाने क्यों तेरी याद आती.

बीते हुए पल का बिम्ब देख रजनी की गहरी आँखों में.

एक दर्द भयानक उठता है दिल पर बने हुए घावों में.

घावों से यादों का… Continue

Added by satish mapatpuri on June 14, 2010 at 4:31pm — 6 Comments

भोजपुरिया लाल : भारत रत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद

सदियों से भोजपुरिया माटी की एक अलग पहचान रही है। इस माटी ने केवल भोजपुरी समाज को ही नहीं अपितु माँ भारती को ऐसे-ऐसे लाल दिए जिन्होंने भारतीय समाज को हर एक क्षेत्र में एक नई दिशा एवं ऊँचाई दी एवं विश्व स्तर पर माँ भारती के परचम को लहराया। भोजपुरिया माटी की सोंधी सुगंध से सराबोर ये महापुरुष केवल भारत का ही नहीं अपितु विश्व का मार्गदर्शन किए और एक सभ्य एवं शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। यह वोही भोजपुरिया माटी है जिसको संत कबीर ने अपने विलक्षणपन से तो शांति, सादगी एवं राष्ट्र के… Continue

Added by Prabhakar Pandey on June 14, 2010 at 1:25pm — 7 Comments

त्रिपदिक मुक्तिका (अनुगीत) : सत-शिव-सुन्दर सृजन कर ---संजीव 'सलिल'

त्रिपदिक मुक्तिका (अनुगीत) :



सत-शिव-सुन्दर सृजन कर



संजीव 'सलिल'



*

*



सत-शिव-सुन्दर सृजन कर,



नयन मूँद कर भजन कर-



आज न कल, मन जनम भर.







कौन यहाँ अक्षर-अजर?



कौन कभी होता अमर?



कोई नहीं, तो क्यों समर?





किन्तु परन्तु अगर-मगर,



लेकिन यदि- संकल्प कर



भुला चला चल डगर पर.





तुझ पर किसका क्या असर?



तेरी किस पर क्यों… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 14, 2010 at 9:10am — 5 Comments

सामयिक त्रिपदियाँ : ---संजीव 'सलिल'

सामयिक त्रिपदियाँ :

संजीव 'सलिल'

*



raining.gif





*

खोज कहाँ उनकी कमर,

कमरा ही आता नज़र,

लेकिन हैं वे बिफिकर..

*

विस्मय होता देखकर.

अमृत घट समझा जिसे

विषमय है वह सियासत..

*

दुर्घटना में कै मरे?

गैस रिसी भोपाल में-

बतलाते हैं कैमरे..

*

एंडरसन को छोड़कर

की गद्दारी देश से

नेताओं ने स्वार्थ वश..

*

भाग गया भोपाल से

दूर कैरवां जा छिपा

अर्जुन दोषी देश का..

*

ब्यूटी… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 13, 2010 at 9:11pm — 4 Comments

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद: ---संजीव 'सलिल'

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद:

संजीव 'सलिल'

*

*

रुद्ध अगर पाओ कभी, प्रभु! तोड़ो हृद -द्वार.

कभी लौटना तुम नहीं, विनय करो स्वीकार..

*

मन-वीणा-झंकार में, अगर न हो तव नाम.

कभी लौटना हरि! नहीं, लेना वीणा थाम..

*

सुन न सकूँ आवाज़ तव, गर मैं निद्रा-ग्रस्त.

कभी लौटना प्रभु! नहीं, रहे शीश पर हस्त..

*

हृद-आसन पर गर मिले, अन्य कभी आसीन.

कभी लौटना प्रिय! नहीं, करना निज-आधीन..



Acharya Sanjiv Salil… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 13, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

समय पीछे से गंजा है

समय को पकड़ना
मानों ......
हाथो की हथेलियों से
बने बर्तन में
पानी को ज़मा करना ॥

समय को पकड़ना
मानो ....
समुद्र के किनारे आयी
लहरों को रोकना ॥

समय को पकड़ना
मानो ......
मुट्टी में रेत को
बाँध कर रखना ॥

समय रुकता नहीं
किसी ने सच कहा है
समय पीछे से गंजा होता है ॥
समय के आगे बाल है
चाहो तो , आगे से पकड़ सकते हो ॥
------------बबन पाण्डेय

Added by baban pandey on June 13, 2010 at 6:37am — 1 Comment

समाचार का बनाना

(खुशवंत सिंह का लेख पढने के बाद कि सिक्खों ने पंजाब के समराला शहर में १९४७ में गिरी मस्जिद बनाई ...पर मेंडिया वालो ने इसे समाचार नहीं बनाया .)



कुत्ता ...

जब आदमी को काटे

तो समाचार नहीं बनता

पर ...आदमी

जब कुत्ता को काटे

तो समाचार बन जाता है ॥



जब ..किसी से प्यार से बोलो

तो समाचार नहीं बनता

पर जब बे -अदब से पेश आओ

तो समाचार बन जाता है ॥



शादी की बातें

समाचार नहीं बनती

पर तलाक की हवा भी

समाचार बन जाती है… Continue

Added by baban pandey on June 13, 2010 at 6:30am — 5 Comments

ग़ज़ल ( उनको ही चाहा करेंगे... )

अब उनकी बेरुखी का न शिकवा करेंगे हम
लेकिन यह सच है उनको ही चाहा करेंगे हम ।

जायेंगे वो हमारी गली से गु़ज़र के जब
बेबस निगाह से उन्हें देखा करेंगे हम ।

तन्हाईयों में याद जब उनकी सताएगी
दिल और जिगर को थाम के तदपा करेंगे हम

करते नही कबूल मेरी बंदगी तो क्या
बस उनके नक्शे पा पे ही सजदा करेंगे हम ।

"अलीम" अगर वो यारे हसीं मेहरबान हो
जीने की थोडी और तम्मान्ना करेंगे हम ।

Added by aleem azmi on June 12, 2010 at 9:49pm — 5 Comments

सुन्दरकांड से

सुन्दरकांड

जामवंत के बचन सुहाए ! सुनि हनुमंत हर्दय अति भाए !!

तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई ! सहि दुख कंद मूल फल खाई !!

जब लगि आवों सीतहि देखी ! होइहि काजू मोहि हरष बिसेषी !!

यह कहि नाइ सबन्हि कहूँ माथा ! चलेउ हरषि हिएँ धरि रघुनाथा !!

सिंधु तीर एक भूधर सुन्दर ! कौतुक कूदी चढ़ेउ ता ऊपर !!

बार बार रघुबीर संभारी ! तरकेउ पवनतनय बल भारी !!

जेहि गिरि चरन देई हनुमंता ! चलेउ सो गा पाताल तुरंता !!

जिमि अमोध रघुपति कर बाना ! एही भांति चलेउ हनुमाना !!

जलनिधि… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on June 12, 2010 at 7:14pm — 7 Comments

कुछ बाते जो बुजुर्गो से सुना हु ध्यान देने योग हैं ,

कुछ बाते जो बुजुर्गो से सुना हु ध्यान देने योग हैं ,

१. नाशवान को महत्व देना ही बंधन हैं ,
२ सत्य ही कलिकाल की तपस्या हैं ,
३. नम्रता से कही हुई कठोर बाते भी अच्छी लगती हैं,
४ वस्तु , ब्यक्ति से सुख लेना महान जड़ता हैं,
५. यदि शांति चाहते हो तो कामना का त्याग करो ,
६. परमात्मा की प्राप्ति में भाव की प्रधानता हैं.
७. सच्ची बात को मान ले ये सत्संग हैं.
८. कiम करते समय भगवान को मत भूलो ,

अच्छा लागे तो गाठ बांघ लो भाई ,

Added by Rash Bihari Ravi on June 12, 2010 at 6:45pm — 1 Comment


मुख्य प्रबंधक
"बाल मजदूरी ठीक नहीं"

चाय पिला पिला कर ,

लोगो की सेवा वो करता रहा,

महज़ चार चाय की कीमत पर ,

मालिक उसको छलता रहा,

भूखी अंतड़िया ,

क्या जाने चाय की तलब ,

दो रोटियां, चोखे संग,

पाने को पेट जलता रहा ,

बैठे चायखाने मे

खादी पहने

कुछ उच्च शिक्षित लोगों के मध्य

"बाल मजदूरी…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 12, 2010 at 3:00pm — 27 Comments

सुविधाभोगी

(प्रस्तुत कविता हिंदी के विद्वान कवि प० राम दरश मिश्र द्वारा सम्पादित पत्रिका ' नवान्न ' के द्वितीय अंक में प्रकाशित है, मेरी इस कविता को उन्होनें गंभीर कविता का रूप दिया था )



न तो ---

मेरे पास

तुम्हारे पास

उसके पास

एक बोरसी है

न उपले है

न मिटटी का तेल

और न दियासलाई

ताकि आग लगाकर हुक्का भर सकें ॥

और न कोई हुक्का भरने की कोशिश में है ।



सब इंतज़ार में है

कोई आएगा ?

और हुक्का भर कर देगा ।

आज !

हर कोई

पीना…
Continue

Added by baban pandey on June 12, 2010 at 5:53am — 2 Comments

पिचकू पाड़े ,

डॉक्टर के पास पहुचे प्यारे प्यारे पिचकू पाड़े ,

बोले डाक्टर साहब क्या काम है पिचकू भाई ,

संग में जो आये बोले, परेशान हैं पिचकू पाड़े ,

बावन जोड़ा पूड़ी रात में ये खाये थे ,

संग में दही तीन किलो उड़ाये थे ,

घर का खाना ये कभी न खाते हैं ,

एक दिन खाकर तीन दिन तक पचाते हैं

सुबह से परेशान हैं, होती हैं खूब दौड़ाई ,

रुक जाये भागम-भाग,जल्दी दे दो कुछ दवाई ,

डाक्टर बोला थोड़ा कम तो खाओ यार ,

उम्र बढ़ी हैं कुछ तो अपना रखो ख्याल ,

डॉक्टर को भी बडे प्यार… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on June 11, 2010 at 8:00pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
12 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
21 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service