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कौन कहता हैं हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं

कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं,
नहीं विश्वास तो मल्टीप्लेक्स पर देखिये,
भीड़ लगी रहती टिकट सौ के करीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,

ट्रेनों में अक्सर आरक्षण फुल रहता हैं ,
अग्रिम पश्चात स्कार्पियो महीनो बाद मिलता हैं ,
हर किसी के पास पैसा बनाने की तरकीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,

शराब की दुकानें लोगो से भरी रहती हैं ,
हवाई जहाज में भी सीट नहीं मिलती हैं ,
पेपर पर राष्ट्र हमारा उन्नति के करीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 24, 2010 at 1:35pm
गुरु जी आप हमेशा एक यथार्थपरक मुद्दा चुनते है| आप अपनी कविताओं के माध्यम से हमेशा एक नयी चेतना जगाने का प्रयास करते हैं| इस बार भी अपने बड़ा सटीक मुद्दा चुना है| इस देश की यही तो विडम्बना है की यहाँ पर रिक्शे भी चलते है और मेट्रो भी| एक करारा व्यंग|
Comment by Rash Bihari Ravi on August 23, 2010 at 7:38pm
dhanyabad ganesh jee

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 23, 2010 at 7:34pm
गुरु जी अपने देश मे अमीरी गरीबी की खाई दिन पर दिन चौड़ी और गहरी होती जा रही है, आज मैकडोवेल ५ रुपये के पाँव रोटी के बीच कुछ सब्जिया भर कर बर्गर, आफर के रूप मे ९९ रु. मे बड़ी शान से बेच रहा है और १० रु किलो के आलू से चिप्स बनाकर बहुराष्टीय कम्पनियाँ ६०० रु किलो बेच रही है, और एक वर्ग ऐसा है कि वो खूब आराम से खा रहा है, दूसरी तरफ १०० रु दिहाड़ी के लिये मजदूर रोज गाँव से शहर १० रु भाड़ा खर्च कर के जाता है और काम नहीं मिलने पर इस चिंता मे घर आता है कि आज बच्चो को रोटी कैसे खिलाऊंगा ,
बहुत ही बढ़िया से आपने इस खाई का चित्रण अपनी कविता के माध्यम से किया है गुरु जी, बहुत बहुत बधाई आपको इस बेहतरीन और सार्थक रचना पर |

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