For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,131)

कायरता या बुद्ध Copyright ©.







ज्ञात हैं हमें कि हर भाव

इतना शक्तिशाली होता है

कि वो आपका जीवन

बदल दे

असीम शक्ति का

प्रमाण है भाव

व्यक्त न भी हो सके तो

क्या

है वो ही प्रणाम

जो पशुओं और मनुष्य में

करता है चुनाव

एक ऐसा ही भाव है

कायरता।





कायरता, बुजदिली

या जो भी कह लो

अद्भुत शक्ति है इसमें

जो काया पलट दे

और साधारण से

असाधारण , अनुपम में बदल दे

भय हो जब हार… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 10:01pm — 2 Comments

2010 की अगस्त क्रांति Copyright ©

जैसे ही अगस्त आया है



वैसे ही सब कवियों ने



तिरंगा उठाया है



और स्याही में कलम डुबो के



सब को यह दिलासा दिलाया है



कि “हम भूले नहीं हैं



भारत हमारा है”



काला है , गोरा है



अभिशप्त है तो क्या हुआ



दरिद्र है तो क्या हुआ



भ्रष्ट है तो क्या हुआ



बाकी न सही पर



अगस्त आते ही हमे याद



ज़रूर आया है



भारत हमारा है।







शब्दावली से… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 8:30am — 10 Comments

मुक्तिका: मन में दृढ़ विश्वास लिये. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



मन में दृढ़ विश्वास लिये.



संजीव 'सलिल'

**

मन में दृढ़ विश्वास लिये.

फिरते हैं हम प्यास लिये..



ढाई आखर पढ़ लें तो

जीवन जियें हुलास लिये..



पिये अँधेरे और जले

दीपक सदृश उजास लिये..



कोई राह दिखाये क्यों?

बढ़ते कदम कयास लिये..



अधरों पर मुस्कान 'सलिल'

आयी मगर भड़ास लिये..



मंजिल की तू फ़िक्र न कर

कल रे 'सलिल' प्रयास… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 4, 2010 at 8:37am — No Comments

सुलेखा पांडे की तीन कविताएँ

अजनबीपन



दर्पण के पीछे है

एक और दर्पण

मन के भीतर है

एक और मन



शब्दों के जाल में

अनजाने भाव है

ऊपर से गहराई

नापते हैं हम



रात की सियाही में

दर्द के सैलाब पर

अंधेरे की चादर

तानते हैं हम



शूलों के दर्द में

फूल जो महका

उसकी ही रुह से

अनजान है हम



अपनी ही काया के

भीतर जो छाया है

उसकी सच्चाई कब

पहचानते हैं हम



दर्पण के पीछे..

मन के… Continue

Added by Narendra Vyas on August 3, 2010 at 4:12pm — 3 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल-6 (योगराज प्रभाकर)

कई बरसों के बाद घर मेरे चिड़ियाँ आईं

बाद मुद्दत ज्यों पीहर में बेटियाँ आईं !



ज़मीं वालों के तो हिस्से में कोठियाँ आईं,

बैल वालों के नसीबों में झुग्गियाँ आईं !



जाल दिलकश बड़े ले ले के मकड़ियां आईं

कत्ल हों जाएँगी यहाँ जो तितलियाँ आईं !



झोपडी कांप उठी रूह तलक सावन में,

ज्योंही आकाश पे काली सी बदलियाँ आईं !



ऐसे महसूस हुआ लौट के बचपन आया,

कल बड़ी याद मुझे माँ की झिड़कियां आईं !



बेटियों के लिए पीहर में पड़ गए ताले

हाथ… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on August 2, 2010 at 9:00pm — 7 Comments

क्षितिज के पार

नज़र को धोखा बार- बार यही होता है.
यूँ तो कुछ भी क्षितिज के पार नहीं होता है .
खुदा बनाता है क्यों उनको हसीं.
जिनके दिल में तमिज़े प्यार नहीं होता है .
दिल भले साज़ है पर सबसे जुदा.
ये वो सितार जिसमे तार नहीं होता है.
उनकी मासूमियत पे हैरां हूँ.
ये भी नहीं कहते ऐतबार नहीं होता है .
रेत में गुल खिला रहे हो पुरी.
दिलजलों के लिए बहार नहीं होता है.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

Added by satish mapatpuri on August 2, 2010 at 4:53pm — 1 Comment

भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,

भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,

सोहराबुदीन कौन था जिसको दिए सब मिटाए ,

कोई कहता था आतंकबादी था वो बड़ा हठीला ,

किया क्यों उसके कारण मुश्किल किसी का जीना ,

मर गया तो मिट गई बाते क्यों उल्टी हवा बहाए ,

भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,

जो ऐसा काम किया क्यों उसे सूली पे चढाते हो ,

अफजल गुरु को जो बचाए उसको सलाम बजाते हो ,

जागो हिंद के जागो भाई करो उसको सलाम ,

जो इस तरफ के कालिख पोतो के काम करे तमाम ,

सिद्ध हुआ था आतंकबादी मारे तो तगमा… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 2, 2010 at 2:00pm — 2 Comments

गीत... प्रतिभा खुद में वन्दनीय है... संजीव 'सलिल'

गीत...



प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...

संजीव 'सलिल'

**



प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...

*

प्रतिभा मेघा दीप्ति उजाला

शुभ या अशुभ नहीं होता है.

वैसा फल पाता है साधक-

जैसा बीज रहा बोता है.



शिव को भजते राम और

रावण दोनों पर भाव भिन्न है.

एक शिविर में नव जीवन है

दूजे का अस्तित्व छिन्न है.



शिवता हो या भाव-भक्ति हो

सबको अब तक प्रार्थनीय है.

प्रतिभा खुद में वन्दनीय है.....

*

अन्न एक ही खाकर… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:45am — 3 Comments

आचार्य संजीव 'सलिल तथा डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री : श्रेष्ठ गीतकार अलंकरण से सम्मानित

सितारों की महफ़िल में आज डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल

लखनऊ, गुरुवार, २९ जुलाई २०१०

ब्लोगोत्सव-२०१० को आयामित करने हेतु किये गए कार्यों में जिनका अवदान सर्वोपरि है वे हैं डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल जिन्होनें उत्सव गीत रचकर ब्लोगोत्सव में प्राण फूंकने का महत्वपूर्ण कार्य किया. ब्लोगोत्सव की टीम ने उनके इस अवदान के लिए संयुक्त रूप से उन दोनों सुमधुर गीतकार को वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार का अलंकरण देते हुए सम्मानित करने का निर्णय… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:41am — 2 Comments

किसी को मत अपना मान परिंदे

किसी को मत अपना मान परिंदे
ये दुनिया बड़ी बेईमान परिंदे
मंदिर-मस्जिद ढूंढ़ रहा किसको
हर गली बिकता भगवान परिंदे
मोह का झूठा बंधन दुनियादारी
मत उलझा इसमें जान परिंदे
सांसों के पंख नहीं वश में अपने
ज़िस्मानी पंख झूठी शान परिंदे
मन की तिजोरी जब तक खाली
दौलत पर कैसा अभिमान परिंदे
जितना ऊपर उड़ता जीवन पंछी
खुलता सच का आसमान परिंदे
दुनिया में जो जीना चाहे सुख से
बंद रख आँखें और कान परिंदे
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

Added by asha pandey ojha on August 2, 2010 at 10:15am — 8 Comments

दोस्तों के दिल में रहते हैं

हवाओ से कह दो अपनी औकात में रहे

हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।

फिज़ाओं से कह दो अपनी हदों में रहे

हम बहारो से नहीं घटाओ से बनते है।

फूलो से कह दो कही और खिले

हम पंखुड़ी से नहीं काँटों में रहते हैं।

दुश्मनों से कह दो कही और बसे

हम कही और नहीं दोस्तों के दिल में रहते हैं।

Added by praveena joshi on August 1, 2010 at 4:02pm — 9 Comments

तेरा नाम लेकर

होती है सुबह,ओर ढलती है मेरी शाम बस तेरा नाम ले लेकर

करने लगा शुरू मे आज कल हर काम बस तेरा नाम लेकर



कोई पीता है खुशी मे, किसी को गम, पीना सीखा देता यहाँ

मैने पीया है अपनी ज़िंदगी का हर जाम बस तेरा नाम लेकर



कोई करता है तीरथ यहाँ तो कोई जाता है मक्का ओर मदीना

हो गये पूरे इस जीवन के मेरे सारे धाम बस तेरा नाम लेकर



कोई भागता है दौलत के पीछे तो कोई शोहरत का दीवाना यहाँ

मुझे मिल जाती जहाँ की खुशियाँ तमाम बस तेरा नाम लेकर



किसी को जन्नत… Continue

Added by Pallav Pancholi on July 30, 2010 at 1:33am — 4 Comments

जब हवा पागल बनती है

पागल किसे कहते है

मैं नहीं जानता

मगर इतना जानता हू कि

अगर आप पर

पागलपन सवार है

तो हिमालय लांघना

कौन सी बड़ी बात है ॥





दोस्तों ,....

हवा जब पागल बनती है

उसे तूफ़ान कहते है

और ....

तूफ़ान घंटे भर में

वह कर देता है जो

हवा वर्षों से नहीं कर सकती ॥





मेरे युवा दोस्तों ....

आइये हमलोग भी तूफ़ान बने

छतविहीन घरों को छत देने के लिए

वृक्षों को नई जड़ देने के लिए

आईये ....

तूफ़ान बन फसलों के साथ… Continue

Added by baban pandey on July 29, 2010 at 9:15pm — 2 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
पावस-गीत

.

नव-पावस के भीगे हम-तुम...

कुछ अनचीन्हे कुछ परिचित-से मृदुभावों में जीएँ हम-तुम।



इस भावोदय की वेला में चलो अलस की साँझ भुला दें

चाह रहे जो कहना अबतक आज जगत को चलो सुना दें

इच्छाएँ कह अपनी सारी जड़-चेतन झन्ना दें हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे हम-तुम...



अर्थ बने क्यों रुकने के अब, अलि तन्द्रिल हो क्यों उपवन में

गंध बँधे कब तक कलियों में, पवन रुके कब तक आँगन में

नीरस-चर्या सभी बदल कर नव-उल्लास गहें मिल हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे… Continue

Added by Saurabh Pandey on July 27, 2010 at 2:02pm — 6 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
परिचय

.

कोई किसी से परिचय नहीं कराता

समय के साथ-साथ स्वयं परिचित होता जाता है हर अजनबी

नहीं रहती कोई इकाई बंद अपने आप में फिर

कहीं कुछ बनने लगता है

कहीं कुछ जनमने लगता है चुपचाप



ऐसा नहीं

अँधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी ही हो

चकचकाती इस उजली धूप से

बच पाने की इच्छा भी हो सकती है

वर्ना देखो उसकी आँखें

लाल डोरे की जालियाँ कितनी उलझती गई हैं, और

उलझाती गई हैं उसकी जाने कितनी वेगवती संभावनाएँ



यदि तुम्हारा अभिजात्य

इस… Continue

Added by Saurabh Pandey on July 27, 2010 at 2:00pm — 7 Comments

कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,

कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
1984 के दंगों के आरोपी को छोडती हैं ,
जनता के मांग पर फिर केस चलता हैं ,
उसके बाद दोबारा सज्जन कुमार अंदर जाता हैं ,
कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,
टाइटलर हैं किस्मत वाले दोबारा क्लीन चिट मिली ,
अमित शाह को लेकर भाजपा ने जो बक्तब्य दिया ,
आम आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता हैं ,
कौन कहता हैं सी बी आई का दुरूपयोग होता हैं,

Added by Rash Bihari Ravi on July 27, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

सावन का महीना

हसीना तेरे गालों पे पसीना जब भी आता है ।
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।
जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।
कहाँ इनकार है मापतपुरी सूरज के जलने से ।
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611

Added by satish mapatpuri on July 26, 2010 at 1:00pm — 5 Comments

चिंतन और आकलन: हम और हमारी हिन्दी संजीव सलिल'

चिंतन और आकलन:



हम और हमारी हिन्दी



संजीव सलिल'

*



हिंदी अब भारत मात्र की भाषा नहीं है... नेताओं की बेईमानी के बाद भी प्रभु की कृपा से हिंदी विश्व भाषा है. हिंदी के महत्त्व को न स्वीकारना ऐसा ही है जैसे कोई आँख बंद कर सूर्य के महत्त्व को न माने. अनेक तमिलभाषी हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकार हैं. तमिलनाडु के विश्वविद्यालयों में हिन्दी में प्रति वर्ष सैंकड़ों छात्र एम्.ए. और अनेक पीएच. डी. कर रहे हैं. मेरे पुस्तक संग्रह में अनेक पुस्तकें हैं जो तमिलभाषियों ने… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on July 26, 2010 at 10:38am — 6 Comments

यादें

कल आँखे खोली दुनिया में
कल को रुखसत हो जाएंगे
संग चले जो कह कर अपना
सब बेगाने हो जाएंगे
साथ तुम्हारा भी ना होगा
वादे सारे खो जाएंगे
दिल में दी थी जगह जिन्होने
क्या फिर बांहे फैलाएंगे?
हाँ, पर जिनको दी मुस्कानें
भुल नहीं हमको पाएंगे
रह ना सकेंगे इस दुनिया में
यादों में हम रह जाएंगे।।

"रिचा भारती"

Added by Raju on July 25, 2010 at 4:22pm — 3 Comments

गुरु पूर्णिमा पर : दोहे गुरु वंदना के... संजीव 'सलिल'

गुरु को नित वंदन करो, हर पल है गुरूवार.

गुरु ही देता शिष्य को, निज आचार-विचार..

*

विधि-हरि-हर, परब्रम्ह भी, गुरु-सम्मुख लघुकाय.

अगम अमित है गुरु कृपा, कोई नहीं पर्याय..

*

गुरु है गंगा ज्ञान की, करे पाप का नाश.

ब्रम्हा-विष्णु-महेश सम, काटे भाव का पाश..

*

गुरु भास्कर अज्ञान तम्, ज्ञान सुमंगल भोर.

शिष्य पखेरू कर्म कर, गहे सफलता कोर..

*

गुरु-चरणों में बैठकर, गुर जीवन के जान.

ज्ञान गहे एकाग्र मन, चंचल चित अज्ञान..

*

गुरुता…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on July 25, 2010 at 8:30am — 5 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छन्द पर उपस्तिथि और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ…"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" आदरणीय अखिलेश जी छन्द पर उपस्तिथि उत्साहर्धन और मार्गदर्शन के लिए आपका हार्दिक आभार। दीपोत्सव…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service