आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ चौहत्तरवाँ आयोजन है।
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छंद का नाम - सरसी छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 दिसम्बर’ 25 दिन शनिवार से
21दिसम्बर’ 25 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
सरसी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 दिसम्बर’ 25 दिन शनिवार से 21दिसम्बर’ 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जय-जय, जय हो
सरसी छंद
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रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश।
शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा देश॥
लाखों भूखे नंगे आये, सह अपराधी तत्व।
किन्तु पार्टियाँ वोट बढ़ाने, देते इन्हें महत्व॥
घुस पैठ किये फिर बस जाते, भारत में सर्वत्र।
जोड़ तोड़कर बनवा लेते, स्वयं पहचान पत्र।
नगर किनारे बस जाते हैं, आतंकी निर्बाध।
संत बने रहते हैं दिन में, रात करें अपराध॥
ढूंढ ढूंढकर नकली सारे, भेजें सीमा पार।
होगा तभी सुरक्षित भारत, औ सबका उद्धार॥
नाम जुड़े वोटर सूची में, विवरण हो सब ठीक।
सच्चे भारत वासी बनकर, रहो सदा निर्भीक॥
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मौलिक अप्रकाशित
आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी किया है. मतदान की प्रक्रिया में किसी का शामिल होना और देश का नागरिक होना दोनों को दो बातें कह कर प्रचारित अवश्य की जा रही हैं. लेकिन भारत का कोई नागरिक ही तो मतदान की प्रक्रिया में भाग लेगा, इसमें तो किसी को संशय नहीं होना चाहिए.
रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। ,,,,,,,,, सही बात
शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा देश॥ ... अवश्य.ही कोई देश अपनी भूमि पर घुसपैठियों को इस तरह से बर्दाश्त नहीं करता
लाखों भूखे नंगे आये, सह अपराधी तत्व। ......... इस पंक्ति के माध्यम से पड़ोसी देशों की हालत भी उजागर हो रही है.
किन्तु पार्टियाँ वोट बढ़ाने, देते इन्हें महत्व॥ ....... .बिल्कुल. सही बात. अलबत्ता, पार्टी स्त्रीलिंग संज्ञा होने से ’देती इन्हें महत्व’ होगा
घुस पैठ किये फिर बस जाते, भारत में सर्वत्र। ... .. तार्किक
जोड़ तोड़कर बनवा लेते, स्वयं पहचान पत्र। ....... ’स्वयं पहचान-पत्र’ का विन्यास छंद के हिसाब से साधा जाना उचित होगा
नगर किनारे बस जाते हैं, आतंकी निर्बाध।
संत बने रहते हैं दिन में, रात करें अपराध॥ ......... वाह
ढूंढ ढूंढकर नकली सारे, भेजें सीमा पार।
होगा तभी सुरक्षित भारत, औ सबका उद्धार॥ ....... सशक्त तर्क
नाम जुड़े वोटर सूची में, विवरण हो सब ठीक।
सच्चे भारत वासी बनकर, रहो सदा निर्भीक॥ ......... बहुत सही
आपकी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाइयाँ
शुभातिशुभ
आदरणीय सौरभ भाईजी
हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए।
१.... व्याकरण संबंधी सामान्य ज्ञान होते हुए भी लापरवाही के कारण छोटी त्रुटियाँ भी हो जाती हैं।
२.... घुस पैठ किये फिर बस जाते, भारत में सर्वत्र।
जोड़ तोड़कर बनवा लेते, खुद पहचान प्रपत्र।।
छंंद विन्यास के अनुसार यदि यह शंसोधन सही / गलत जो भी हो इस पर भी अपनी टिप्पणी देने की कृपा करें ताकि आवश्यक संशोधन कर सकूं।
सादर
"जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब. सादर
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने छंदों के माध्यम से ध्यान आकृष्ट किया है. इसकी हानियों को भी बताया है. बाकी तो चुनाव आयोग अपना कार्य कर ही रहा है. चित्र के एक सार्थक पहलु को आपने केंद्र में लिया है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. छंदों में अवश्य कुछ वाक्य विन्यास गेयता अनुरूप नहीं हैं. सादर
सरसी छंद :
हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर मचाते शोर ।
व्यर्थ पीटते हैं छाती वो, चुनाव थे कमजोर।।
बसा विदेशी जीत रहे थे, करते रहते खेल ।
मौज किया करते जीवन भर, मुफ्त सफ़र वो रेल ।।
रीढ़ बने रोहिंग्या उनकी, जाँच बनी है काल ।
हाहाकार मचाते अब वो, मरते कहीं अकाल।।
मौज मस्ती हुई गायब है, होगा अब सन्यास ।
राजनीति मरूधरा दलदल, पुनर्वास सायास।।
पीट रहे हैं छाती दल, जो करते व्यापार ।
कि वोट खरीदकर उनका, होता बेड़ा पार ।।
मार दहाड़ रो रहे अब दल, होगा बंटाधार ।
वोट चुराता अपराधी वो , मर एस आई आर ।।
मौलिक व अप्रकाशित
सरसी छन्द
लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट
नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट
हम ना बदले बदले नेता, हुए पिचहत्तर साल
साँसे टूटे आस पर नहीं,वोट रखो संभाल
अनगढ़ नेता अनपढ़ जनता, दोनों का ये हाल
एक रहे हरदम कतार में, एक चुनावी ताल
न जाने कहाँ ये ले जाएं, मिलकर अपना देश
ऐसा न हो लौट आने को, रस्ता बचे न शेष
हम बस लाईन तक पहुंचे,दुनिया मंगल चाँद
अपने ही घर यूँ रहते हैं, ज्यूँ शेर की माँद
एक वोट अधिकार मिला था, वो भी लो तुम छीन
नीरो बनकर खूब बजाओ, लोकतंत्र की बीन
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ पदों में गेयता का अभाव है.
नेता ससुर की एक उधेड़बुन ...18 मात्राएँ हो गयी हैं.
हम ना बदले बदले नेता ..... न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा "बदले नेता और न हम ही" इस तरह किया जा सकता है.
ज्यूँ शेर की मांद .... 10 मात्राएँ रह गयी हैं. सादर .
सरसी छंद
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हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार।
खड़े हुए मतदाता सारे, चुनने नव सरकार।
लेकिन मुख से गायब दिखती, सबके ही मुस्कान।
ज्यों करतूतें नेताओं की, सभी गये हों जान।।
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कड़ी धूप में खड़े हुए सब, देने अपना वोट।
संविधान की ख़ातिर हो या, पाकर थोड़े नोट।
मुश्किल है कह पाना सच भी, बदल गया है काल।
चलें जीत की आस लिये सब, नेता नित नव चाल।।
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अगर न समझे अगर न सँभले, तो होगा नुक्सान।
मतदाता ही होते हैं सब, लोकतंत्र की जान।
लोकतंत्र जो नहीं रहा तो, होगा सब कुछ नष्ट।
पायेंगे परिवार सभी के, नये-नये नित कष्ट।।
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मौलिक/ अप्रकाशित.
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