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हर एक अदा

वो घटा आज फिर स बरसी है
मुद्दतों आँख जिस पे तरसी है

कल तलक जो मेरा मसीहा था
आज उसकी ज़बा ज़हर सी है

मर मिटा आपकी अदाओं पर
हर अदा आपकी कहर सी है

रूठ जाना ज़रा सी बातों पर
यह अदा भी तेरी हुनर सी है

खो न जाऊ तुम्हारी आँखों में
आँख "अलीम" तेरी नगर सी है

Added by aleem azmi on May 21, 2010 at 2:48pm — 6 Comments

चुपके चुपके

मैं रोता रहा रात भर चुपके चुपके
गई रात आई सहर चुपके चुपके

वह कुर्बत बढाने लगा आजकल है
मिलाता है मुझसे नज़र चुपके चुपके

तेरी चाहतें खीच लायी येह तक
मैं आया हू तेरे नगर चुपके चुपके

लगाया था तुमने मोहब्बत का पौधा
वह होने लगा है शजर चुपके चुपके

तेरी आशिकी का है चर्चा शहर में
यह फैली "अलीम" खबर चुपके चुपके

शजर - पेड़ , दरख़्त
कुर्बत - करीब आना

Added by aleem azmi on May 21, 2010 at 1:59pm — 4 Comments

आज की ग़ज़ल

इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए

आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए

अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए

गहराया है नशा, ज़रा तेज़ रक्स हो
गहरा गई है रात, ख़्वाब कोई सजाया जाए
दुष्यंत......

Added by दुष्यंत सेवक on May 21, 2010 at 11:42am — 5 Comments

Ghazal-4

ये अंधकार ये वातावरण जो भय का है.
यही समय तो नये सूर्य के उदय का है.

ये ज़िंदगी का बही जाने किस समय का है.
ना इसमे आय का व्योरा ना कोई व्यय का है.

परास्त हो के भी अब मन मेरा उदास नही.
किअबकी हार मे भी स्वाद कुछ विजय का है.

भटक रहा हूँ जो जीवन के इस मरुस्थल मे
है इसमे दोष किसी का तो बस समय का है.

Added by fauzan on May 20, 2010 at 10:40pm — 5 Comments

ग़ज़ल-2 (Aleem Azmi)

तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हू
महसूस हुआ है तुम्हे देख रहा हू

ऐसा भी नहीं है तुम्हे याद करू मैं
ऐसा भी नहीं है तुम्हे भूल गया हू

शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हू

ए रात मेरी सम्त ज़रा सोच के बढ़ना
मलूँ नहीं तुम्हे क्या मैं अलीम जिया हू

तकब्बुर - घमंड
सम्त - मेरी तरफ , जानिब
जिया -रौशनी उजाला

Added by aleem azmi on May 20, 2010 at 10:05pm — 5 Comments

गुरु को फासी कब चढाओगे ,

ओ दिल्ली वालो ,

हमें इतना बताओ ,

हिन्दुस्ता पे जो खाज परे हैं ,

उसको कब मिटाओगे ,

अफजल गुरु को ,

फासी कब चढाओगे ,

हिन्दुस्ता पे बहुत ऐसे खाज हैं ,

उसको मिटाना जरुरी आज हैं ,

मेहमान बनाके कब तक ,

पैसा लुटाओगे ,

अफजल गुरु को ,

फासी कब चढाओगे ,

मेरी नहीं ये ,

देश की मांग हैं ,

आपको तो भोट दीखता ,

हमें हिंदुस्तान हैं ,

हिंद में ख़ुशी का ,

दिन कब लावोगे ,

अफजल गुरु को ,

फासी कब चढाओगे ,

हिन्दू ,… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 2:10pm — 5 Comments

माओबादी के झंडा तले फुकने मत दो हिंदुस्तान ,

माओबादी के झंडा तले फुकने मत दो हिंदुस्तान ,

जनता माफ़ नहीं करेगी बोलेगी शैतान ,

जनता के नाम पर हिंदुस्तान को जला रहे हो ,

बिदेसी पैसा ले ले कर मौज मस्ती मन रहे हो ,

कब तक डरेगी जनता जिसे तू डरा रहे हो ,

जिस दिन डरना बंद करेगी हो जाओगे परेशान ,

माओबादी के झंडा तले फुकने मत दो हिंदुस्तान ,

झारखण्ड , छत्तीसगढ़ बंगाल में हाहाकार मचाये ,

बिहार में भी तुमने करोरो का तेल जलाये ,

मारते हो आम आदमी को जिसदिन ओ जागेगा ,

नजर नहीं आओगे मिट जायेगा नमो निसान… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 1:41pm — 4 Comments

दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,

दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,

थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले

*इश्क का शहर



सब्ज़ बाग़, सुर्ख गुल हम देख ही न पाये,

खिजां आ गई बहार आने से पहले



बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,

मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले

*बज़्म- महफिल



मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,

रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले

*नाखुदा- मल्लाह, नाविक



कैस, फरहाद, रांझा तो बीते दिनों की बात है,

राब्ता* रखिये जनाब, नए ज़माने से पहले

*राब्ता-… Continue

Added by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 1:05pm — 14 Comments

चाहत (ग़ज़ल )

गिला उनको हमसे हमीं से है राहत .
खुदा जाने कैसी है उनकी ये चाहत .
उनके लिए मैं खिलौना हूँ ऐसा .
जिसे टूटने की नहीं है इज़ाज़त .
इन्सां से नफ़रत हिफाज़त खुदा की .
ये कैसा है मज़हब ये कैसी इबादत .
बदन पे लबादे ख्यालात नंगे .
यही आजकल है बड़ों की शराफत .
सज-धज के मापतपुरी वो हैं निकले .
कहीं हो ना जाए जहाँ से अदावत .
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

Added by satish mapatpuri on May 20, 2010 at 1:00pm — 8 Comments

घिर आये स्याह बादल सरे शाम

घिर आये स्याह बादल सरे शाम
स्याह*-काले
और उदास ये जेहन क्यूँ हुआ
जेहन*-मन
पोशीदाँ अहसास क्यूँ उभर आये
पोशीदाँ*-छुपा हुआ
ये दिल तनहा दफ्फअतन क्यूँ हुआ
दफ्फअतन*-अचानक
यूँ तो अब तक चेहरे की ख़ुशी छुपाते थे
ग़म छुपाने का ये जतन क्यूँ हुआ
कोई चोट तो गहरी लगी होगी
ये संगतराश यूँ बुतशिकन क्यूँ हुआ
संगतराश*-मूर्तिकार, बुतशिकन*-मूर्तिभंजक
दुष्यंत......

Added by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 12:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल-1 (Aleem Azmi)

वह मेरा मेहमान भी जाता रहा
दिल का सब अरमान भी जाता रहा

अब सुनाउगा किसे मै हाले दिल
हाय वह नादान भी जाता रहा

हुस्न तेरा बर्क के मानिंद है
उफ़ मेरा ईमान भी जाता रहा

वह बना ले गए हमे अपना अज़ीज़
अब तो यह इमकान भी जाता रहा

दिन गए अलीम जवानी के मेरे
आँख पहले कान भी जाता रहा

Added by aleem azmi on May 19, 2010 at 9:43pm — 5 Comments

GHazal-3

तुमने अत्याचार का कैसे समर्थन कर दिया
मौन रह कर दुष्ट का उत्साहवर्धन कर दिया

धैर्य की सीमा का जब दुख ने उल्लंघन कर दिया
आँसुओं ने वेदना का खुल के वर्णन कर दिया

जिस विजय के वास्ते सब कुछ किया तुमने मगर
उस विजय ने ही तुम्हारा मान मर्दन कर दिया

चेतना की बिजलियों ने रोशनी तो दी मगर
एक मरुस्थल की तरह से मन को निर्जन कर दिया

मन तथा मस्तिष्क के इस द्वंद मे व्यवहार ने
कर दिया इसका कभी उसका समर्थन कर दिया.

Added by fauzan on May 19, 2010 at 12:14am — 9 Comments

एक प्रेमिका की अभिव्यक्ति

अब क्यूँ अपना रूप सजाऊं ,किसके लिए सिंगार करूँ .

दिल का गुलशन उजड़ गया तो ,फिर से क्यूँ गुलज़ार .

जब से गए -तन्हाई में मैं ,तुमको ही सोचा करती हूँ .

देख न ले कोई अश्क हमारा ,छिप -छिप रोया करती हूँ .

प्यार भी अपना -गम भी अपना ,क्यों इसका इज़हार करूँ .

दिल का -------------------------------------------

शीशा जैसे टूट गए जो, माना की वो सपने थे .

सच है आज पराये हो गए, पर कल तक तो अपने थे .

आज भी याद है कल की बातें, क्यों इससे इनकार करूँ .

दिल का… Continue

Added by satish mapatpuri on May 17, 2010 at 11:29am — 4 Comments

तीन बातें !

तीन चीजे कभी छोटी न समझे --शत्रु ,कर्जा,बीमारी.

तीन चीजे किसी की प्रतीक्षा नहीं करती--समय,मृत्यु,ग्राहक.

तीन चीजे भाई भाई को दुसमन बना देती है--जर,जोरू,जमीन.

तीन चीजे याद रखना चाहिए--सच्चाई,कर्त्तव्य,मृत्यु.

तीन चीजे असल उद्देश्य से रोकती है--बदचलनी,क्रोध,लालच.

तीन चीजे कोई चुरा नहीं सकता--बुद्धि ,चरित्र,हुनर.

तीन चीजे निकल कर वापस नहीं आती--तीर कमान से,बात जबान से,प्राण शारीर से.

तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते है--स्त्री,भाई और मित्र.

तीन चीजे जीवन में… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on May 16, 2010 at 5:00pm — 3 Comments

खवाहिश

न जीने की खवाहिश ज़हर चाहता हू
तुमाहरे ही हातों मगर चाहता हू

वो मिल जाए मुझको है जिसकी तमन्ना
मै अपनी दुआ में असर चाहता हू

कही मर न जाऊ यह लेकर तमन्ना
तुम्हरी झलक एक नज़र चाहता हू

है मुद्दत से कतए ताल्लुक हमारा
तुझे आज भी मै मगर चाहता हू

तेरा साथ काफी ए मेरे अलीम
न माल और दौलत न घर चाहता हू

katye means ------chod dena

Added by aleem azmi on May 16, 2010 at 4:03pm — 5 Comments

हमसफ़र

है कयामत या है बिजली सी जवानी आपकी
खूबसूरत सी मगर है जिंदगानी आपकी

तीर आँखों से चलाना या पिलाना होंठ से
भूल सकता हु नहीं मैं हर निशानी आपकी

आप मोहसिन है हमारे आपका एहसान है
हमसफ़र हमको बनाया मेहेरबानी आपकी

रूठ कर नज़रें चुराना मुस्कुराना फिर मगर
याद है सब कुछ मुझे बातें पुरानी आपकी

तुमसे वाबस्ता है मेरी जिंदगानी का हर वरक
ज़िन्दगी मेरी है कहानी आपकी

Added by aleem azmi on May 16, 2010 at 1:42pm — 4 Comments

लड़की / अमरजीत कौंके

लड़की / अमरजीत कौंके



बचपन से यौवन का

पुल पार करती

कैसे गौरैया की तरह

चहकती है लड़की



घर में दबे पाँव चलती

भूख से बेखबर

पिता की गरीबी से अन्जान

स्कूल में बच्चों के

नए नए नाम रखती

गौरैया लगती है लड़की

अभी उड़ने के लिए पर तौलती



और दो चार वर्षों में

लाल चुनरी में लिपटी

सखिओं के झुण्ड में छिपी

ससुराल में जाएगी लड़की



क्या कायम रह पायेगी

उसकी यह तितलिओं सी शोखी

यह गुलाबी मुस्कान

गृहस्थ की… Continue

Added by DR. AMARJEET KAUNKE on May 16, 2010 at 9:22am — 7 Comments

लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके

लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके



कंजक कुँआरी कविताओं का

एक कब्रिस्तान है

मेरे सीने के भीतर



कविताएँ

जिनके जिस्म से अभी

संगीत पनपना शुरू हुआ था

और उनके अंग

कपड़ों के नीचे

जवान हो रहे थे

उनके मरमरी चेहरों पर

सुर्ख आभा झिलमिलाने लगी थी



तभी अतीत ने

उन्हें क्रोधित आँखों से देखा

वर्तमान ने

तिरछी नज़रों से घूरा

और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई



इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर

मैंने उन कविताओं को

अपने मन… Continue

Added by DR. AMARJEET KAUNKE on May 16, 2010 at 6:34am — 5 Comments

मन की पतंग

पतंग सा शोख मन

लिए चंचलता अपार

छूना चाहता है

पूरे नभ का विस्तार

पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं

अनदेखी कर

सब बाधाएं

पग आगे ही आगे बढाएं



ज़िंदगी की थकान को

दूर करने के चाहिए

मन की पतंग

और सपनो का आस्मां

जिसमे मन भेर सके

बेहिचक,सतरंगी उड़ान



पर क्यों थमाएं डोर

पराये हाथों मैं

हर पल खौफ

रहे मन मैं

जाने कब कट जाएँ

कब लुट जाएँ



चंचलता,चपलता

लिए देखे मन

ज़िन्दगी के… Continue

Added by rajni chhabra on May 15, 2010 at 2:00pm — 8 Comments

Ghazal-2

धनी बहुत थे मगर अब फ़क़ीर कितने हैं
हमारे युग मे बताओ कबीर कितने हैं

जो युध भूमि मैं छाती को ढाल करते हों
तुम्हारे पास बताओ वो वीर कितने हैं

सती प्रथा पे करो टिप्पणी वरन सोचो
बिना चिता के सुलगते शरीर कितने हैं

जो देखीं सिलवटें मुख पर युवा भिखारॅन के
समझ गया हूँ यहाँ दानवीर कितने हैं

मिले हैं बन के अपरिचित सदा इसी कारण
उन्हे पता ना चले हम अधीर कितने हैं

Added by fauzan on May 14, 2010 at 9:19pm — 10 Comments

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