For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,138)

फासला

मेरे आने और तुम्हारे जाने के बीच

बस चंद कदमों का फासला रहा

न मै जल्दी आया कभी

न कभी तुमने इंतज़ार किया

ये फासला ही तो था

जिसे हमने

संजीदगी और ईमानदारी के साथ निभाया

फासले को…

Continue

Added by नादिर ख़ान on February 1, 2013 at 11:30am — 15 Comments

फिर भी क्‍योंकर

मन में अक्षय स्‍नेह सभी के

समरस भाव प्रवणता है

फिर भी जाने क्‍योंकर सबने

बांटी कलुष,कृपणता है

छूत-पाक का लावा-लश्‍कर

हुलस चूम कब यम आया

कसक धकेले, सदा अकेले

बूंद-बूंद कब ग़म आया

फंसा जुए में गला सभी का

पगतल अतल विकलता है

जाने फिर भी हर लिलार पर

किसने मली खरलता है

तपिश उड़ेले स्‍वाद कषैले

लिए जागते दीप कहां

रूचिर अधर पर लुटे प्राण को

मिला दूसरा सीप…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on February 1, 2013 at 11:19am — 10 Comments

ग़ज़ल : बुना कैसे जाये फ़साना न आया

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)

(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२

बुना कैसे जाये फ़साना न आया,

दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,

लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,

पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,

चला कारवां चार कंधों पे सजकर,

हुनर था बहुत…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 10:59am — 21 Comments

उल्लाला गीत: जीवन सुख का धाम है -संजीव 'सलिल

अभिनव प्रयोग-

उल्लाला गीत:

जीवन सुख का धाम है

संजीव 'सलिल'

*

जीवन सुख का धाम है,

ऊषा-साँझ ललाम है.

कभी छाँह शीतल रहा-

कभी धूप अविराम है...*

दर्पण निर्मल नीर सा,

वारिद, गगन, समीर सा,

प्रेमी युवा अधीर सा-

हर्ष, उदासी, पीर सा.

हरी का नाम अनाम है

जीवन सुख का धाम है...

*

बाँका राँझा-हीर सा,

बुद्ध-सुजाता-खीर सा,

हर उर-वेधी तीर सा-

बृज के चपल अहीर सा.

अनुरागी निष्काम है

जीवन सुख का धाम…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on February 1, 2013 at 10:30am — 6 Comments

विवशता ..!!

रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!
उठती भाप,
बढ़ता ताप,
खौलता धमनियों में खून
मचल पड़ते नाखून
खरोंचने को ...खुद को
चिमटा,बेलन घर के अपने थे
आग पर चढ़ा दिया
जला दिया
इच्छाओं को ..
मैं चुपके से देखती हूँ
इन रोटियों में अक्स अपना !!
आती जाती हर आँख
सेंकती नज़र आती है रोटियाँ
भीतर उठता है धुआँ
और गहरे डूब जातीं हैं
भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
~भावना

Added by भावना तिवारी on February 1, 2013 at 8:46am — 9 Comments

"एक प्रयास"

एक प्रयास-;

सभी गुरुजनों व् मित्रों का सहयोग और अमूल्य सुझाव चाहूँगा!!

जान दे देते है प्यार में ,

ऐसे भी लोग है इस संसार में !

इतनी अथाह श्रद्धा कैसे ,

"दीपक" क्या वे बीमार थे प्यार में!!

इश्क का छूरा लेकर टहलती है ,

जहाँ मिले वहीँ हलाल देती है !

बड़ी पारखी नज़र है इनकी,

मोहब्बत के मारों को पहचान लेती है!

मनाने चले थे इद,

हो गयी बकरीद !

प्यार किया था जुर्म नहीं,

"दीपक" ऐसी ना थी उम्मीद!

निस्वार्थ प्रेम से जो जाता ,

सारी…

Continue

Added by ram shiromani pathak on January 31, 2013 at 9:36pm — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता-सह-आयोजन : एक विशद रिपोर्ट

ई-पत्रिका ओपेन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम (प्रचलित संज्ञा ओबीओ) अपने शैशवाकाल से ही जिस तरह से भाषायी चौधराहट तथा साहित्य के क्षेत्र में अति व्यापक दुर्गुण ’एकांगी मठाधीशी’ के विरुद्ध खड़ी हुई है, इस कारण संयत और संवेदनशील वरिष्ठ साहित्यकारों-साहित्यप्रेमियों, सजग व सतत रचनाकर्मियों तथा समुचित विस्तार के शुभाकांक्षी नव-हस्ताक्षरों को सहज ही आकर्षित करती रही है.



प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकरजी की निगरानी तथा…

Continue

Added by Saurabh Pandey on January 31, 2013 at 8:30pm — 12 Comments

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब 

तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता 

मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को 

तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||



तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में 

वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था 

तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी 

तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||



नज़र किसकी लगी…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on January 31, 2013 at 7:30pm — 9 Comments

"समीकरण"

"समीकरण"

कागज़ पर

दिल के समीकरणों से उलझा

सिद्ध क्या करना है ???

मुहब्बत

नफरत

आज़ादी

या बंदिशें

क्या हल होगा ??

कर्म करो फल बाद में देखेंगे

किन्तु आगाज कहाँ से करूँ

दिल से

या दिमाग से ???

लीजिये बन गया न

समीकरण

एक वाक्य

हमारे बड़े बड़े शाश्त्र कहते हैं

प्रेम अनंत है

अर्थात

प्रेम बराबर अनंत

अनंत अर्थात

अर्थात

हाँ गगन

तो प्रेम बराबर गगन

अर्थात प्रेम

गगन के समतुल्य है…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 4:23pm — 5 Comments


मुख्य प्रबंधक
हास्य घनाक्षरी - 1 / गणेश जी बागी

(1)

कुत्ते संग सोते हुए, फोटो एक खिचवा के,

फेस बुक पे झट से, चेंप दी मैडम जी |

लाइक और कमेंट बीच एक श्रीमान ने,

लिख दिया काश होता, कुत्ता मैं मैडम जी |

उल्टा पुल्टा सोचो नहीं, कुछ भी यूँ लिखो नहीं,

ये तो…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 31, 2013 at 2:00pm — 24 Comments

झूठ का सच (व्‍यंग्‍य)

झूठ सुहाना होता प्रियवर

सबके ही मन भाता है

ऐसी है यह लिपि अनोखी

हर भाषा में चल जाता है

झूठ धर्म इतना समरस है

हर देश में रच-बस जाता है

समता का संदेश सुहावन

जन-जन में फैलाता है

झूठ जानती केवल अपनाना

नहीं किसी को ठगती है

सातों जन्‍म निभाती सुख से

वफा हमेशा करती है

झूठ तो एक भोली कन्‍या है

जो चाहे मन बहलाता है

जब चाहे जी अपनाता इसको

जब चाहे जी ठुकराता…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 31, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

दोहे - एक प्रयास

शब्दों के भण्डार से, भरके मीठे बोल,

बेंचो घर-घर प्रेम से, दिल का ताला खोल,

नैनो से नैना मिले, बसे नयन में आप,

मधुर-मधुर एहसास का, छोड़ गए हो छाप,

मुख में ऐसे घुल गया, जैसे मीठा पान,

भाता सबको खूब है, दोहों का मिष्ठान,

मन में लागी है लगन,…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on January 31, 2013 at 12:13pm — 15 Comments

कलयुग

मान है,सम्मान है.

पर ईमान नही.

धन है दौलत है,

पर नियत नही.

चाह आसमान में उड़ने की,

पर मेहनत नही.

मंजिले है राहे है,

पर मुसाफ़िर नही.

मंदिर है भगवान है,

पर भक्त नही.

माँ है बाप है ,

पर सेवा नही.

भाई है बहन है,

पर प्यार नही.

नेता है भ्रष्टाचार है,

पर विकास नही.

संत है सत्संग है,

पर सत्संगति नही.

जन्म है मृत्यु है,

पर भय नही.

Added by Aarti Sharma on January 30, 2013 at 11:30pm — 24 Comments

बधू चाहिए,

बधू चाहिए, बधू चाहिए

अपने लल्ला के लिए एक बधू चाहिए

सुंदर सुशील पढ़ी लिखी गृह कार्य में दक्ष

सीता गीता रीता या मधु चाहिए

दहेज़ चाहिए न दान चाहिए

आपका प्यार व सम्मान चाहिए

लल्ला हमारा है गुणों की खान

देखने में लगता है सलमान खान

बी ई की पढ़ाई करी है 

हमने लाखों में फीस भरी है 

अच्छे पैकेज का वो कर रहा वेट

शादी में…

Continue

Added by Dr.Ajay Khare on January 30, 2013 at 11:00pm — 8 Comments

बहुत अच्छी है या रिश्वत बुरी है

वो जो कहते थे के चाहत बुरी है

दिवाने हो गए हालत बुरी है

बना अंधा फखत मगरूर कर दे

बढे गर इस कदर ताकत बुरी है

पचा पाए नहीं खैरात की जो

वही कहते हैं के दावत बुरी है

गँवा चैनो सकूँ ईमान अपना

पता पड़ता है के दौलत बुरी है

कहो मत बेबफा हमको हमनवा  

क़ज़ा दे दो न ये जिल्लत बुरी है

उसे लगता है दिल्लगी हँसना

मेरे हँसने की यूँ आदत बुरी है  

कतारों में खड़े रहना है…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 10:06pm — 6 Comments

प्रेम की बात करते हो

प्रेम की बात करते हो बड़े ही गर्व में रह कर 

प्रेम जब हो गया तुमको पहन ली शर्म की चादर ||



जहाँ पर प्यार होता है वहां इनकार होता है 

वहीँ इकरार की खातिर तड़पते हैं कई रहबर ||



गुरूर-ए -इश्क में रहना रिवाज -ए -हुस्न की फितरत

अदाओं की पनाहों में मिटे आशिक कई बनकर ||



तुम्हे मालूम है जब भी हमारा दिल धड़कता है 

मुझे मालूम होता है तुम्हारी याद है दिलबर…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 9:45pm — 1 Comment

व्यर्थ न निकले साँस

नवधा भक्ति पर आधारित दोहे
*लक्ष्मण लडीवाला
मन प्रपंच में नहि लगे, व्याकुलता बढ…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 30, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

देश हमारा

देश हमारा

देश हमारा कितना प्यारा , बोलें सब मीठी बोली ।

हिन्दू मुस्लिम भाई भाई  , सब  मिलकर खेलें होली ।

बहती रहतीं पावन  नदियाँ , सबकी भरतीं हैं झोली ।

हरे भरे फसल उगाकर ही , लोग मानते रंगोली ।

मुकुट  जिसका हिमालय जैसा , ऐसा देश हमारा है ।

जिसका पांव पाखरे निसदिन , हिन्द सागर की धारा है ।

वेष  भूषा अलग अलग है , अलग अलग ही है बोली ।

सभी लोग आदर करते हैं , एक रहे  चाहे टोली  ।

देश की शान पर  मरते हैं , ऐसा देश हमारा है ।

विश्व विजयी तिरंगा झंडा  , हम…

Continue

Added by Shyam Narain Verma on January 30, 2013 at 2:40pm — 4 Comments

शिशिर (नवगीत पर एक प्रयास)

शीत जैसे जम गयी,

नम धूप लगती है।

 

ठिठुरते रात भर

सार में सारे ही पशु

भोर कि शाला में

ठिठुरते सारे ही शिशु,

फिजां रंगीन दिखे

मन रूप लगती…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on January 30, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे/चौबारे क्‍यों हमें डराय

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे

चौबारे क्‍यों हमें डराय.. .

उदयाचल का

कोई जादू

कंगूरों पर

चल ना पाय

**कल जोड़े

भयभीत किरण भी

पल-पल काया

खोती जाय

पड़े तीलियों

के भी टोंटे

झूठे दीपक कौन जलाय ?

कहो दर्द के.....................

रोटी-बेटी

पर चिनगारी

रोज पुरोहित

ही रख आय

उलटा लटका

सुआ समय का

बड़े नुकीले

सुर में गाय

हर फाटक…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 12:30pm — 12 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service