ये शब्द समर्पित उन भावनाओं को,
जो अव्यक्त रह गयी.
उस रुपहले संसार को,
जो ख्वाब बनकर रह गया.
ये शब्द समर्पित उस रिश्ते को,
जो बेनाम रह गया.
उस अनकही भाषा को,
जो मौन बनकर रह गयी.
यह अर्पण उस सादगी को,
जो आस बनकर रह गयी.
यह अर्पण उन लम्हों को,
जो साथ रहकर जी लिए.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बढिया प्रयास हुआ है, भाई. आपकी अन्य रचनाओं की भी प्रतीक्षा रहेगी.
सुन्दर ..
सुंदर अभिव्यक्ति, आपके समर्पण में हमारा भी समर्पण मिला लें, साथ रहें, सादर
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