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RAJESH BHARDWAJ
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Male
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UTTARAKHAND
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KOTDWARA
Profession
TEACHING

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RAJESH BHARDWAJ's Blog

अर्पण

ये शब्द समर्पित  उन भावनाओं को,

जो अव्यक्त रह गयी.

उस रुपहले संसार को,

जो ख्वाब बनकर रह गया.

ये शब्द समर्पित उस रिश्ते को,

जो बेनाम रह…

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Posted on February 4, 2013 at 5:44pm — 4 Comments

गणतंत्र की जय

 गणतंत्र की जय !

गणराज्य की जय !

गणतन्त्र की सरहदें,

, गणराज्य की सरहदें,

जो तय की थी हमने,

वो टूट क्यों जाती हैं,

प्रजा के जुटने पर ?

प्रजातंत्र / लोकतंत्र /गणतन्त्र !

प्रजा से डरता क्यों है ?

उसे तो हमने ही बुना था,

अपने लिए !

आज वो खोखला हो गया है !

या खोखला कर दिया गया है !!

वो अपनी ही शक्ति से,

गण से प्रजा से,

कतराता क्यों है ?

शायद गणतंत्र के रखवालों ने,

बदल दी…

Continue

Posted on February 1, 2013 at 9:16pm — 4 Comments

शब्द

आज फिर बदली सी हवा है, 
उदास मन फिर आज अकेला है.


सावन की रिमझिम और ये तन्हाई,
आज रुसवाई को उनका जमाना हुआ है.

स्याह रातो में पसरा ये सन्नाटा ,
ये चाँद के रूठ जाने की सजा है.

राज शब्दों में ढूंढता है जिंदगी का मतलब.
ये खुद को बहलाने की इक दवा है .

Posted on October 4, 2012 at 6:00pm — 3 Comments

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