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ग़ज़ल : दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है

ग़ज़ल
(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)

दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,

जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,

इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,

कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,

खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...

("मौलिक व अप्रकाशित")

Views: 462

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 7:41pm

बहुत खूब बंधुवर ...................

आदरणीय गुरुदेव और आदरणीय गणेश सर से सहमत हूँ आप भी अमल करें

जय हो


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2013 at 8:27pm

ग़ज़ल अच्छी है, सुन्दर ख्याल है, कुछ मिसरा और स्पष्ट होने चाहिए थे, जैसा की आदरणीय सौरभ भईया ने भी इशारा किया है, कदम -कदम को शार्ट हैण्ड लिखने की क्या जरुरत, बधाई इस प्रस्तुति पर |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2013 at 6:55pm

बहरे मुजारे मुसमन अखरब - मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन - 221 /  2121 / 1221 / 212

कदम-२ ..????

खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ, ..??

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2013 at 4:48pm
बहुत सुन्दर गजल के लिए बधाई श्री अरुण शर्मा अनंत भाई 
 

जिन्दा हमारे भीतर हैवान हो रहा है,

भीतर निष्प्राण बैठा इंसान रो रहा है ।

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 4, 2013 at 3:44pm

धन्यवाद अजय सर

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 4, 2013 at 3:44pm

आभार भाई शिरोमणि पाठक साहब

Comment by Dr.Ajay Khare on February 4, 2013 at 2:46pm

sharma ji badia vyang likha he badhai

Comment by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 1:14pm

दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,

इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,

वाह वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!

भावपूर्ण रचना मित्र हार्दिक बधाई .................

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