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जिस दम सूरज ढल जाएगा - SALIM RAZA REWA

22 22 22 22 -

जिस दम सूरज ढल जाएगा

रात  का  जादू  चल जाएगा

-

सँभल के चलना सीख लें वर्ना

कोई  तुझको  छल  जाएगा

-

दुनिया  का  दस्तूर  यही है…

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Added by SALIM RAZA REWA on February 3, 2013 at 10:30pm — 9 Comments

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

हुई गया प्रभु से मिलनवा 

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

लख चुरासी तूने नरक बिताया

प्रभु नाम तूने कभी नही ध्याया

अब लिया देह में जन्मवा 

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

आठों पहर किनी चुगली निंन्दवा

कानों में घोला विष का प्याल्वा 

अब पाया प्रभु का चिन्तनवा

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

जन्म डुबोई तूने भोग में रसनवा

कड़वी वाणी बोली कड़वा वचनवा 

अब पाया राम नाम का प्रसादवा 

सुन रे अनाड़ी…

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Added by Aarti Sharma on February 3, 2013 at 7:16pm — 15 Comments

किसकी सदा ?

आईने में एक प्रतिबिम्ब

खड़ा है मौन !

आँखों के पीछे से

आवाज आई - कौन ?

है कौन यह अपरिचित?

क्या है यह अपना मीत ?

यह कैसी है संवेदना?

यह किसकी है सदा ?…

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Added by Anwesha Anjushree on February 3, 2013 at 7:00pm — 11 Comments

मंजुल धरा ...

हल्की- सी पवन क्या चली..

पीपल के बातुनी पत्तों की बातें ही चल पड़ी !

नीम के पत्ते थोड़े से अनुशासन में रहकर हिले ,

और सखुए के पत्तों ने..

पवन के पुकार की कर दी अनसुनी !

चिड़ियों की शुरू हुई चहल पहल..

सबसे छोटी चिड़िया ने की पहल ,

काम कम पर शोर ज्यादा ,

सारे भुवन में उसने मचाई हलचल !

तिमिर ने अपना आँचल समेटा ,

रवि ने ली जम्हाई,

तारे भी थके से थे,

उन्होंने अपनी बाती बुझाई !

शशि को तो मही से है प्रेम ..

वह तो है अलबेला…

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Added by Anwesha Anjushree on February 3, 2013 at 7:00pm — 10 Comments

आज के रिश्ते - लघुकथा

इंजिनियर रामबाबू अपनी बेटी दिव्या को एयरपोर्ट छोड़कर अभी-अभी घर लौटे थे। दिव्या ने IIM से एमबीए किया था। एक प्रतिष्ठित कंपनी में बतौर मैनेजर लाखों कमा रही थी। रामबाबू को अपनी बेटी पर खासा गर्व था। नातेदारों से लेकर जान-पहचानवाले सभी लोगों से बात-बातपर वो दिव्या का ही जिक्र छेड़ते थे। अन्य के मुकाबले आर्थिक स्थिति काफी अच्छी होने के कारण रिश्तेदारी में भी उनकी विशेष इज्जत थी। आज छुट्टी थी और कोई खास काम भी नहीं था सो रामबाबू आराम से पलंगपर पसर गये। लेटे-लेटे ही उन्होंने अपनी पत्नी शर्मिला से…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on February 3, 2013 at 4:30pm — 6 Comments

"आश्रित"

आदत हो गयी है,

आंख बंद करने की!

अच्छा बुरा कुछ भी हो ,

आदत हो गयी सहने की !!

आश्रित बनकर जीते है,

फेकी हुयी रोटी खाते है ,

हत्या कर देते है स्वाभिमान की ,

शायद! इसलिए झुककर जीते है !!

हम एक झूठी दुनियां में ,

अधखुली नींद सोते है!

वाह्य कठोरता दिखाते है !

अन्दर से फिर क्यूँ रोते है !!

आडम्बरों से भरा जीवन ,

बन चुकी कमजोरी है ,

वास्तविकता से सम्बन्ध नहीं ,

क्या ऐसा करना ज़रूरी है !!

आखिर कब तक यूँ…

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Added by ram shiromani pathak on February 3, 2013 at 4:09pm — 1 Comment

अभिनव प्रयोग- उल्लाला मुक्तक: -संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग-

उल्लाला मुक्तक:

संजीव 'सलिल'

*

उल्लाला है लहर सा,

किसी उनींदे शहर सा.

खुद को खुद दोहरा रहा-

दोपहरी के प्रहर सा.

*

झरते पीपल पात सा,

श्वेत कुमुदनी गात सा.

उल्लाला मन मोहता-

शरतचंद्र मय रात सा..

*

दीप तले अँधियार है,

ज्यों असार संसार है.

कोशिश प्रबल प्रहार है-

दीपशिखा उजियार है..

*

मौसम करवट बदलता,

ज्यों गुमसुम दिल मचलता.

प्रेमी की आहट सुने -

चुप प्रेयसी की…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 3, 2013 at 2:30pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गल्तियों को मान लेना चाहिये

ज्ञानियों से ज्ञान लेना चाहिये

गल्तियों को मान लेना चाहिये |

स्वस्थ रहने का सरल सिद्धांत है

पेय - जल को छान लेना चाहिये |

रास्ते सब खुद ब खुद मिल जायेंगे

लक्ष्य मन में ठान लेना चाहिये |

इस जहां में दोस्तों की शक्ल को

दूर से पहचान लेना चाहिये |

धन न वैभव सुख कभी दे पाएंगे

प्रेम का वरदान लेना चाहिये |

दिल कहे कि पात्रता रखता है तू

तब कोई सम्मान लेना चाहिये |

ज़िंदगी का अर्थ क्या है ऐ अरुण

अनुभवों से जान लेना चाहिये…

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Added by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 11:00am — 9 Comments

लघुकथा: चौथा खम्भा

१३-१४ साल के आसपास की उम्र होगी उसकी ! शायद कुछ अंडे चुराए थे उसने ! बस इसीलिए लोग उसे बेतहाशा पीट रहे थे ! कहीं से पुलिस को इत्तला हुई ! पुलिस पहुंची ! बहुत मशक्कत हुई, पर लोग उसे बख्शने को तैयार न थे ! आखिर पुलिस को लाठीचार्ज और हवाई फायर करना पड़ा ! दो-चार लोग घायल हुवे, पर उसे बचा लिया गया ! अगले दिन खबर थी, “जनता के रक्षक हुवे भक्षक” ये खबर खूब चली ! पुलिस ने इस खबर को देखा और अगले मामले में शांत रही ! कोई लाठीचार्ज, कोई हवाई फायर नही ! अगले दिन खबर थी, “पब्लिक की सरेआम गुण्डागर्दी,…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on February 3, 2013 at 7:15am — 7 Comments

बुन्देलखंडी लोकगी "बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ"

दोस्तों इक बुन्देलखंडी लोकगीत लिखने का प्रयास किया है 

आप सभी से स्नेह की आशा है 



बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ

नैयाँ इतनी कमाई मैं का करूँ 



पाला पड़ो है जम के भैया 

फसल अकड के लैय जम्हैया 



खितवा सादा उगाई मैं का करूँ 

बैरन हुई मँहगाई मैं का…
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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 10:22pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
(ग़ज़ल) ,कमी तो रहेगी 122 122 122 122

यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी 

उदासी जहन  में जमी तो रहेगी 

 

हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर 

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी 

 

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 

मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी 

 

करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में 

हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी 

 

 

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी 

 

वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ 

रगो  में झलक…

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Added by rajesh kumari on February 2, 2013 at 8:16pm — 28 Comments

"गरीबी में आटा गीला"

गरीबी में हुआ गीला आटा,

फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !

रोटी छीन गयी क्षण भर में ,

खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!

क्या रोटी हो गयी अनमोल ,

इश्वर अब तो कोई पथ खोल !

मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल  मन से ,

कब दूर होगी गरीबी इस जीवन  से !

इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,

अब तो दिखा दो कोई राह !!!!

ईश्वर !

गरीबी का करो अभिषेक ,

थोड़ा लगाओ अपना विवेक !

यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,

सदैव गीला आटा पाओगे !

हटाओ ये गरीब की ओट,

तू…

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Added by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:30pm — 7 Comments

उल्लाला मुक्तिका: दिल पर दिल बलिहार है -संजीव 'सलिल'

उल्लाला मुक्तिका:

दिल पर दिल बलिहार है

संजीव 'सलिल'

*

दिल पर दिल बलिहार है,

हर सूं नवल निखार है..



प्यार चुकाया है नगद,

नफरत रखी उधार है..



कहीं हार में जीत…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 2, 2013 at 4:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल "संदली सा बदन है क्या कहिये"

========ग़ज़ल=======



संदली सा बदन है क्या कहिये

फूल जैसी छुअन है क्या कहिये



जल उठा है बदन तुझे छूकर

हुश्न है या अगन है क्या कहिये



सर से पा तक तुझे वो छूता है

आपका पैरहन है क्या कहिये



तीर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 3:47pm — 16 Comments

ढलकते आँसुओ को सहेजना चाहते है

ढलकते आँसू  (गीत)
लक्ष्मण लडीवाला
आँसू चाहे गम के हो, ख़ुशी के हो कपोलों को भिगोते है 
देखने वाले चाहेजो समझे, ख़ुशी या गम मगर रिझाते है ।
 
आँसू जब ढलकते है, ग़मों को कम करते राहत दिलाते है, 
ढलकते आँसू बेहद ख़ुशी से पड़ते दिल के दौरे से बचाते…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 12:30pm — 17 Comments

एक नज़्म ...तुम्हारे नाम

आज की रात बहुत भारी है 

पीर है या कि जैसे आरी है !! 

आती जाती हुई साँसों में दम निकलता है,

लम्हाँ-लम्हाँ तुम्हें पाने को दिल मचलता है !   

गहरे सन्नाटे में हर ओर तेरी आवाज़ें..

इस अंधेरे में जागतीं हैं कुछ तेरी यादें !

मेरी आँखों में तडपते…
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Added by भावना तिवारी on February 2, 2013 at 11:30am — 16 Comments

गणतंत्र की जय

 गणतंत्र की जय !

गणराज्य की जय !

गणतन्त्र की सरहदें,

, गणराज्य की सरहदें,

जो तय की थी हमने,

वो टूट क्यों जाती हैं,

प्रजा के जुटने पर ?

प्रजातंत्र / लोकतंत्र /गणतन्त्र !

प्रजा से डरता क्यों है ?

उसे तो हमने ही बुना था,

अपने लिए !

आज वो खोखला हो गया है !

या खोखला कर दिया गया है !!

वो अपनी ही शक्ति से,

गण से प्रजा से,

कतराता क्यों है ?

शायद गणतंत्र के रखवालों ने,

बदल दी…

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Added by RAJESH BHARDWAJ on February 1, 2013 at 9:16pm — 4 Comments

ग़ज़ल

आपकी नज़रें इनायत हो गई,

दूर बरसों की, शिकायत हो गई ।

आप हैं तो धडकनों में गीत है,

जिंदगी जैसे, रवायत हो गई ।

बात उनकी मानना बस!फ़र्ज़ है,

जो, जहाँ, जैसी, हिदायत हो गई ।

आपकी खामोशियों को देखकर,

बात अपनी बस! हिकायत हो गई |

फूल सी लम्बी थी उनकी जिंदगी,

साँस लेने में, किफायत हो गई |

मेरी नज़रों का ,करें वो शुक्रिया,

खूबसूरत वो, निहायत हो गई ।

बात टेढ़ी कब,  तलक रहती भला,

सादगी बोली, हिमायत हो गई |…

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Added by AVINASH S BAGDE on February 1, 2013 at 7:30pm — 13 Comments

सीख ( लघु कथा )

आज सुबह उठ कर घर का काम निपटाया बेटे को स्कूल भेज दिया | पतिदेव की तबियत कुछ ठीक नही तो वो अभी सो ही रहे थे |मैंने अपनी चाय ली और किचेन के दरवाजे पर ही बैठ गई कारण ये था कि आज आँगन में बहुत दिनों बाद कुछ गौरैया आयी थीं वो चहकते हुए इधर उधर फुदक रही थीं और मैं नही चाहती थी कि वो मेरी वजह से उड़ जाएँ | तो मैं वहीँ बैठ के उनको देखते हुएचाय पीने लगी | थोड़ी देर बाद गोरैया तो उड़…

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Added by Meena Pathak on February 1, 2013 at 5:00pm — 19 Comments

आंसू ...........ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं

ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं

बिना बोले कभी आंसू बहुत कुछ बोल जाते हैं

समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है

......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||

सिसक हो बेवफाई की कसक चाहे जुदाई की

पिघलता है सभी का दिल हवन की आहुती जैसे

ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है

कभी आंसू लगे सैनिक कभी हो सारथी जैसे ||

कहीं जब दूर जाए लाडला माँ से जुदा होकर

बहाए प्रेम के मोती दुआएं जब निकलती हैं

करे जब याद माँ का घर बहू जो बन…

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Added by Manoj Nautiyal on February 1, 2013 at 4:30pm — 8 Comments

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