For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

हुई गया प्रभु से मिलनवा 

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

लख चुरासी तूने नरक बिताया

प्रभु नाम तूने कभी नही ध्याया

अब लिया देह में जन्मवा 

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

आठों पहर किनी चुगली निंन्दवा

कानों में घोला विष का प्याल्वा 

अब पाया प्रभु का चिन्तनवा

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

जन्म डुबोई तूने भोग में रसनवा

कड़वी वाणी बोली कड़वा वचनवा 

अब पाया राम नाम का प्रसादवा 

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

धन कमाया तूने तोड़ के तनवा

सिर खपाया तूने जोड़ के धनवा

अब खोला प्रभु  बैंक में खतवा

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

माटी मिलाय दई माटी में मितवा

बिसराय दियो राम का नामवा

अब जाना हरी का स्वरूपवा

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

हुई गया प्रभु से मिलनवा 

सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aarti Sharma on February 6, 2013 at 4:40pm

आदरणीय मनोज जी,होस्लाफ्जाही के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..आभार 

Comment by Manoj Nautiyal on February 6, 2013 at 4:29pm

अध्यात्म की आधारशिला मन की चंचल वृत्तियों का बेहद सुन्दर चित्रांकन किया है आपने आरती जी ,,,,बहुत सुन्दर 

Comment by राजेश 'मृदु' on February 6, 2013 at 3:13pm

अरे.... मैंने त्रुटियों की कहां बात कही ?  मैंने तो केवल यह कहा कि मन की उदात्‍त प्रकृति को ध्‍यान में रख एक कविता लिखिए ताकि मेरे मन का दूसरा पहलू भी आनंद उठा सके अभी तो अनाड़ी मनवा ही आनंद उठा सका है

Comment by Aarti Sharma on February 6, 2013 at 2:23pm

आदरणीय राजेश जी..आप मन को परमेश्वर तभी कह सकते है जब मन पांचो इन्दिरियों को वश में  करने क बाद. केवल सत्कर्म का आदेश दे...मेरा भाव मन को अनाड़ी कहने का तब तक था जब तक उसे परमात्मा का बोध नही हुआ था...जब उसने हरी का स्वरुप जान लिया तो अनाड़ी कहाँ रहा...मन के हारे हार है .मन के जीते जीत..मन को  जीतने के बाद ही अध्यात्म का रास्ता शुरू होता है..त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी  हु ..आभार.

Comment by राजेश 'मृदु' on February 5, 2013 at 6:57pm

'अनाड़ी मनवा' जिस भावभूमि में यह कविता लिखी गई है वह अध्‍यात्‍म का क्षेत्र है एवं अध्‍यात्‍म में मन तो परमेश्‍वर है, उस अर्थ में इसे अनाड़ी कहना उचित नहीं लगा, पार्थिव अर्थ में जो मन है उसके अनेक प्रतिरुप हैं, यहां यह सगुणात्‍मक होकर अपने विदेहपन का परित्‍याग कर विकानजन्‍यता को प्राप्‍त होता है  । रचना सुंदर है परंतु मुझ जैसे पाठकों का भी ध्‍यान रखें जो अर्थ का अनर्थ निकालते हैं, आपकी अगली रचना मेरे दोनों भावों को संतुष्‍ट करेगी यही कामना है, सादर

Comment by Aarti Sharma on February 4, 2013 at 9:46pm

सर मेरी रचना आपको गुनगुनाने लायक लगी ..इससे ज्यादा ख़ुशी की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है... मुझे मार्गदर्शन की आवश्कता है और सिखने की चाह  कभी खत्म नही होती..इस मंच से मुझे बहुत कुछ सीखना है ..आपका बहुत बहुत धन्यवाद .. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2013 at 9:13pm

वाह आदरणीया आरती जी वाह, मैं तो इस रचना को गुनगुना रहा हूँ , अच्छी रचना हुई है, किन्तु सुधार की बहुत संभावनाएं हैं, बधाई इस प्रस्तुति पर |

Comment by Aarti Sharma on February 4, 2013 at 7:35pm

आदरणीय भाईसाहब आपको मेरी लिखी रचना पसंद आई,मेरा लेखन कार्य सफल हुआ ..आप गुरु जनो की छाया में  बहुत कुछ सीखना है..आभार 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2013 at 4:35pm

माटी मिलाय दई माटी में मितवा,बिसराय दियो राम का नामवा

अब जाना हरी का स्वरूपवा,सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...

आदमी को सत्य की खोज करने में काफी समय लग जाता है , जीवन भर धन जोड़न में लगा रहता है, जब

आत्मा का स्वरुप पहचानता है तब तक भौतिक शारीर को छोड़ जाने का समय हो जाता है । बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति 

की रचना बधाई स्वीकारे आरती शर्मा बहन जी 

Comment by Aarti Sharma on February 4, 2013 at 11:37am

आपका बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी..आपको मेरी रचना पसंद आई...ये मंच आपकी और आदरनीय सर बागी जी की ही की देन है..यदि आप मुझे प्रेरित नही करते तो ये संभव नही था..आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
47 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service