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प्रियतम मेरे

प्रियतम मेरे 

फिर वही शाम वही तन्हाई 
दिल में मेरे वही दर्द ले कर आई 
....................................
प्रियतम मेरे 
ढूँढ़ रही है बेचैन निगाहें 
कहाँ खो गये दुनिया की भीड़ में
......................................
प्रियतम मेरे
मजनू बना प्यार में तेरे 
आईना भी नही पहचानता मुझे
.....................................
प्रियतम मेरे 
दर्देदिल…
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Added by Rekha Joshi on February 16, 2013 at 11:30pm — 21 Comments

गीत : ... सच है संजीव 'सलिल'

*

कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.

फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...

*

ढाई आखर की पोथी से हमने संग-संग पाठ पढ़े हैं.

शंकाओं के चक्रव्यूह भेदे, विश्वासी किले गढ़े है..

मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.

मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..

ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-

दूर किया अंतर से अंतर, भुला पावना-देना सच है..



कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 16, 2013 at 7:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कागज

कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|

आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)



मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|

शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||



भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|

मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||



टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|

कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||



फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|

कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||



रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…

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Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments

"इस दर्द से उबार दो "

ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !


नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!


ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!


काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!


राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:24pm — 6 Comments

आराधना

एक शक्ति

जागृत हो

आराधना

करनी चाहियें

ईश्वर…

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Added by Tushar Raj Rastogi on February 16, 2013 at 1:00pm — 8 Comments

जिंदगी इतने गम क्यूँ देती है ?

ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है

गम के संग आंसू भी देती है

आंसुओं संग दर्द भी देती है

दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती है

तनहाइयों संग फिर रुस्वाइयाँ भी देती है ……

फिर भी हर किसी को जीने की ही चाह होगी

हर पल हर किसी को जीवन की…

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Added by Parveen Malik on February 16, 2013 at 1:00pm — 12 Comments

"बसंत"

"बसंत"

मैंने देखा है 

आज दीवार के पीछे से 

*ढूंक रहा था 

कहीं कोई देख न ले 

उसको ऐसे नग्न 

इस बार प्रेम की 

तेज हवाएं 

उतार के ले गयीं 

उसके पीले वस्त्र 

और 

बदले में दे गयीं थी 

कुछ ताज़ा गुलाब 

जिनकी पंखुड़ी पंखुड़ी …

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 12:00pm — 12 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : उत्प्रेरण / गणेश जी बागी

"माँ टिफिन बैग में रख दी हो ना",  पूछते हुए राहुल बैग लेकर स्कूल निकल गया। कालोनी के आठ-दस लड़के एक ही स्कूल में पढ़ते थे। साथ ही स्कूल जाते थे।

इधर राहुल में एक बदलाव मैंने नोट किया था । टिफिन ले जाने में आनाकानी करने वाला राहुल जो मुश्किल से दो पराठे लेकर जाता, अब तीन पराठे लेकर जाने लगा था । दोपहर में पडोसी मिसेज गुप्ता मिल गई थी बताने लगी कि राहुल और उसका ग्रुप आज कल समाज सेवा में लगा है । …

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2013 at 10:38pm — 28 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मनमीत तेरी प्रीत

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे

हर भाव को सामर्थ्य दे

विह्वल हृदय में गूँजती

मृदुनाद सी सुरधीत है....

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

सूर्यास्त नें चूमा उदय

दे हस्त…

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Added by Dr.Prachi Singh on February 15, 2013 at 8:00pm — 35 Comments

GAZAL-हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले ! SALIM RAZA REWA

                ||ग़ज़ल|

हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले !

साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले !

इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !

ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !

जीले खुशिओं की पतवार है हाँथ में…

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Added by SALIM RAZA REWA on February 15, 2013 at 7:00pm — 13 Comments

सोच

निशा की आँखे  दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये ..  . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ गयी ..  आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने…

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Added by Neelima Sharma Nivia on February 15, 2013 at 6:30pm — 9 Comments

"माँ शारदा स्तुति" बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

सभी आदरणीय सदस्यों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 

"माँ शारदा स्तुति" 



दोहा-

विद्या दाती शारदे, दो विद्या का दान 

मोह लोभ का नाश हो , मिटे दंभ अभिमान 



चौपाई- 

वागीश्वरि माँ शारद प्यारी|  पूजें तुमको सब नर नारी ।।

माँ सब तुमसे वाणी पाते|  देव दनुज नर सारे ध्याते ।।

श्वेत वर्ण सम चन्द्र सुशोभित| चार भुजा मुख मंडल…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 15, 2013 at 4:00pm — 8 Comments

करूँ किस मुख से...

रहमत तेरी,ग़ुरबत तेरी.

करुणा निधान माया तेरी.

करूं गुणगान किस मुख से

कैसे करूँ बखान हस्ती तेरी... 

मै नादान, माया तेरी

समझ न पाई छाया तेरी

कण कण तू, ज़र्रे ज़र्रे तू 

है पत्ते पत्ते झांकी तेरी...

भवरा भी तू,और  फूल भी 

जीवन बगिया महकी मेरी 

कर नूर तेरे की बारिश से 

तर…

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Added by Aarti Sharma on February 15, 2013 at 2:00pm — 14 Comments

माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित आज का पुष्प।

माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित आज का पुष्प

कल की पयस्विनी पय को भटक रही,

ममता की मारी माँ मय को गटक रही।

आँचल में दूध नहीं पानी आँख का गया,

सहरी सैलाब में सील वो सटक रही।

खिलने दिया नहीं वो बीज ही मसल दिया,

बागवां खामोश सब कलियाँ चटक रही।

दूध में ही पी के दर्द भर लिया कलेजे में,

कदर कोई नहीं बात ये खटक रही।

पूजनीया देवों की अब लूट नीया हो गई,

बच्चों की जमात भी कितना…

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Added by mrs manjari pandey on February 15, 2013 at 11:00am — 12 Comments

आँख मिचौली वासंती संग

पीत वसन से सजी धरती सखि 

सोन से भाव में तोलि  रही सब 

सोंधी सी खुश्बू हिया अब उमड़ति 

प्रीति के चन्दन लपेटि रही अंग 

कुसुमाकर बनि काम कुसुम तन 

सिहरन बनि झकझोरि रहे हैं 

नील गगन रक्तिम बदरी मुख …

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 14, 2013 at 11:56pm — 17 Comments

सात सुरों में साज

  बसंत ऋतु पर दोहे
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
 

ऋतु बसंत का आगमन,खुशियों का उन्माद,

खुशबु है मन भावन सी,मधुर-मधुर सा स्वाद।
 
ऋतु बसंत दस्तक करे, जाड़े का…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 14, 2013 at 10:26pm — 14 Comments

कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो

पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो

सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो

हर शाख पर अब तो उल्लू है बैठा  
कहीं इन परिंदों को मिलने तो दो

अंधेरों से डरते सभी हैं यहाँ पर
जरा तुम ये सूरज निकलने तो दो

ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 6:50pm — 7 Comments

सूनेपन का रंग

  • सूनेपन का रंग

सूनेपन का रंग ...

पतझड़ के सूखे पत्तों -सा पीला,

मेले में खो गए भयभीत

बालक की नब्ज़-सा नीला,

या अमावस के गहन

अंधकार-सा गंभीर और काला,

सूनेपन का रंग

कैसा होता है?

घोर आतंक-सा वातावरण,

मौसम पर मौसम बेचैन,

जँगली हाँफ़ती हवाएँ

दानव-सी हँसी हँसती,

हर मास एक और पन्ना पलट

करता है गए मास का

अंतिम संस्कार।

पर सूनापन पड़ा रहता है,

वहीं का वहीं,

पुराने…

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Added by vijay nikore on February 14, 2013 at 4:00pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
प्रीत दिवस(कुछ दोहे )

प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |

प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?

सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |

निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||

पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |

अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||

युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |

खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||

पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |

प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है…

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Added by rajesh kumari on February 14, 2013 at 11:00am — 24 Comments

मूर्ख बनाना बंद करो

भोली जनता को नेता जी मूर्ख बनाना बंद करो।

जनता जाग गई अब दिल्ली धौंस दिखाना बंद करो॥



जन्तर मन्तर से जनता का आजादी अभियान शुरू।

झूठे वादे तानाशाही गया जमाना बंद करो॥



हम सब के मत से ही नेता तुम इतने मतवाले हो।

है तेरी कुछ औकात नहीं रौब दिखाना बंद करो॥



चूस रहे हो खून हमारा अब हमको अहसास हुआ।

शहद लगे विषधर डंकों को पीठ चुभाना बंद करो॥



हम सबके श्रम के पैसों से पाल रहे हो तुम गुण्डे।

परदे के पीछे से छुपकर तीर चलाना बंद…

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Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 14, 2013 at 5:00am — 19 Comments

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