Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 16, 2013 at 7:30am — 13 Comments
मेरा राम आयेगा
नित्य मुँह अंधेरे फूल चुन चुन
गली आंगन थी रही सजा,
एक आस एक चाह लिये
कही शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
शाम ढल जाती सूरज थकता
देकर अंतिम किरण जाता,
एक अटूट विश्वास बढ़ाता,
कहती शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
बचपन गया , जवानी बीती
पलक बिछाए राह निहारती,
प्रौढ़ा दिनभर मगन रहती
कहती शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
वन उपवन भी थक चले
बोले ' तू बूढ़ी हो गयी , जा
कहीं विश्राम कर , छोड़ ये जिद्द '
शबरी बोली -…
Added by coontee mukerji on April 16, 2013 at 2:35am — 11 Comments
ये प्रेम मिलन का गीत नहीं,
विरह का विवशता-गान सही।
आज तुम मेरे मन के मीत नहीं,
तो प्राणों से बिछुड़ी जान सही।
ये नयन तुम्हारी छवि के दर्पण,
तुम नहीं तो अश्रु का स्थान सही।
ये मन तुम्हारी स्मृतियों का आँगन,
तुम नहीं तो पीड़ा का श्मशान सही।
चाहा था तुमसे मैंने केवल गहन प्रेम,
यदि नही तो उपेक्षा और अपमान सही।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक और अप्रकाशित]
Added by Savitri Rathore on April 15, 2013 at 10:52pm — 10 Comments
Added by manoj shukla on April 15, 2013 at 9:04pm — 21 Comments
Added by Kavita Verma on April 15, 2013 at 9:00pm — 8 Comments
माँ तुझे प्रणाम
धरती सी सहनशील
हिमालय सी शालीन
जीवन का द्वार
स्नेह की बौछार
बस दुलार ही दुलार
ममता का साकार रूप
प्रभात की पहली धूप
प्रारब्ध के पुण्य का फल
पहली साँस महसूस कराने वाली
अंगुल पकड़ चलाने वाली
पहली शिक्षा देने वाली
सबसे पहले आंसू पोंछने वाली
आत्मविश्वास जगाने वाली
जो सब है मेरे पास
उसी का दिया है अहसास
मेरी ख़ुशी मे मुझसे ज्यादा ख़ुश
मेरे गम में मुझसे…
ContinueAdded by vijayashree on April 15, 2013 at 8:07pm — 19 Comments
महंगाई ने कमर तोड़ दी, बेरोजगारी ज़िन्दगी लील गयी होगी
जनता के सेवक हो ,पर मदद की उम्मीद, आपसे करेंगे,आपको धोखा हुआ होगा
चारा खा गया, कोयले खिला रहा होगा, खेल खेल में खेल कर गया होगा
वो वफादार देश के लिए मर मिटेगा ,आपको धोखा हुआ होगा
जनता का सेवक हूँ जी जान लगा दूंगा , गिडगिडा रहा होगा…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on April 15, 2013 at 6:33pm — 7 Comments
(दशकों पहले आदिल लुख्नवी की एक रचना ‘दुम’ पढने में आयी थी, उससे प्रेरित हो कर 1986 में ये रचना की. वैसे आदिल जी की रचना भी अंतर्जाल पर उपलब्ध है. आशा है, सुधी जनो को ये प्रयास भी नाकारा तो नहीं लगेगा. ये भी मेरे पूर्व प्रस्तुतियों की भांति अप्रकाशित रचना है)
दुम
कुदरत की नायाब कारीगरी है…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 15, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
हिन्दी गजल...
गर्मियों की शान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
धूप में वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हर पथिक हारा थका, पाता यहाँ विश्राम है,
भेद से अंजान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,
मोहिनी, मृदु-गान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हाँफते विहगों की प्यारी, नीड़ इनकी डालियाँ,
और इनकी जान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
रुख बदलती है मगर, रूठे नहीं मुख मोड़कर,
सृष्टि का…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 15, 2013 at 5:30pm — 28 Comments
| जिसे हमने देवता माना , सरेआम डूबा डाला | |
| जवानी जिस पर लूटा दिया , छोड़ शादी रचा डाला | |
| दिल से जिसको पूजा हमने , हमें मिट्टी बना डाला | |
| कसमें वादों की… |
Added by Shyam Narain Verma on April 15, 2013 at 3:00pm — 7 Comments
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी को समर्पित ,
ये रचना लगभग २५ बर्ष पूर्व लिखी गयी ,
जो आज भी प्रासंगिक है |…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 15, 2013 at 2:00pm — 11 Comments
मोरे अँगना मे फूल खिलो आज
री गोरी मोरे ...............आज
मुख लागे है चंद चकोरा
कोमल कोमल तन है गोरा
लोचन लागे हैं अभिरामा
सोचूँ का दैइ हों मैं नामा
नाचे मनवा हमारो छेड़ साज़
मोरे अँगना मे फूल खिलो आज
खिल खिल हँसता देखे हमको
चितवन खूब लुभावे सबको
देखत कौन अघाय छवि को
दिन में धूल चटाय रवि को
करे बगिया खुदी पे आज नाज़
मोरे अँगना मे फूल खिलो आज
सोचूँ जियरा भींच भींच…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on April 15, 2013 at 1:32pm — 12 Comments
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
मन की प्रणय पाती साजन को मिली आज
हुआ यकायक मुझे अंदेशा
भेजा उसने कोई संदेशा
नेह नीर बिना शुष्क हुई थी
देह प्रीत बिना रुष्ट हुई थी
लिपट पवन संग हिय तरु की डारि हिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
आह्लादित मन लहका- लहका
प्रीत उपवन है महका- महका
मिले गले जब भ्रमर औ कलिका
हया दीप संग जलती अलिका
विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 15, 2013 at 11:54am — 33 Comments
जिन्दगी का जबाब
कल राह मे जिन्दगी से मुलाकात हो गयी ।
पूछा जो एक सवाल* तो जिन्दगी नाराज हो गयी।
बोली देता है मुझको दोष, बता तुने क्या अच्छा किया है…
ContinueAdded by बसंत नेमा on April 15, 2013 at 10:30am — 8 Comments
!!! सत्यम शिवम सुन्दरम !!!
हे शिव जय शिव, हर शिव कर शिव।
जल शिव नभ शिव, थल शिव नर शिव।।
अनल शमन शिव, भवम शवम शिव।
ज्योतिर्मय शिव, तिमिर जगत शिव।।
अखिल पवन शिव, धवल चन्द्र शिव।
महिमा शिव शिव, गरिमा शिव शिव।।
महा समर शिव, अजर अमर शिव।
कन कन शिव शिव, आत्मा शिव शिव।।
मसान घर शिव, मन्दिर हिम शिव।
हरिजन शिव शिव, हरि भज शिव शिव।।
सकल जगत शिव, समरथ है शिव।
मैं भी शिव शिव, तू भी शिव शिव।।
भजन सुजन शिव, भगत भुतन शिव।
कह जन शिव शिव, सुन…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 15, 2013 at 8:44am — 26 Comments
जिज्ञासाओ को छुती हुई
पल की खबर नही
ठूंठ की तरह खड़ी हुई
आज का पता नही
कल का ठिकाना नही
चल रही बेबाक सी
किसी का खौफ नही
बनती बिगड़ती फिर सवंरती
कैसी खोखली ये ज़िन्दगी
आगे दौड़ने की होड़ में रह गई पीछे
ताश के पत्तों सी बिखरी हुई …
ContinueAdded by Aarti Sharma on April 15, 2013 at 12:00am — 15 Comments
!!! सत्ता का सार !!!
सत्ता - सुशासन - सरकार
पेट्रोल - डीजल- गैस की मार
दर्द क्यों हम इसका झेलें
जिसके तन में हों पहिये चार
नेताओं की चलती है कार
काला - धन और भ्रस्टाचार
टूट - फूट और मरम्मत का कार्य
बस थोड़ा सा दंगा
और नर -संहार
उनकी कार में खूनी पेट्रोल
व्यभिचारी डीजल का शोर
बलात्कारी से हूटर चीखते
मंहगाई का पूरा काफिला ही संग चलता
ए.सी. ट्रेन - प्लेन का सुख
लेतें हैं चमचा- चापलूस- गद्दार
इनके पूत पालने में…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 10:42pm — 20 Comments
एक दौर
चलता है जीवन भर !
सफलता
पाता है कोई
कभी थम जाये सफ़र !
कमजोर
का साथ
देना सीखा,
ज़रुरत
मदद की
उसे ही रहती .
सदा साथ
नर का
देती रही ,
साया बन
संग उसके
खड़ी है रही ,
परीक्षा की घडी
आये पुरुष की
नारी बन सहायक
सफलता दिलाती…
ContinueAdded by shalini kaushik on April 14, 2013 at 8:30pm — 17 Comments
हमारे प्रथम रुदन से लेकर अंतिम श्वाश तक जीवन अनुभवों का एक सिलसिला है। सम्पूर्ण जीवन काल में हम प्रेम और घृणा, मान और अपमानं, ख़ुशी और गम आदि द्वंदों के बीच में झूलते रहते है। एक रोलर कोस्टर की भांति इसके उतार चढ़ाव हमें आकर्षित करते हैं।
"जीवन साईकिल की सवारी की भांति है। संतुलन बनाये रखने के लिए आगे बढ़ते रहना आवश्यक…
ContinueAdded by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 14, 2013 at 4:00pm — 10 Comments
नवगीत
छाँव निगलकर हँसता सूरज,
उगल रहा है धूप।
शीतलता को रखा कैद में,
गर्मी लाया साथ।
तप्त दुपहरी रानी बनकर,
बाँट रही सौगात।
फ्रूट-चाट, कुल्फी, ठंडाई,
सभी सुहाने रूप।
रातें छोटी दिन हैं लंबे,
लू का बढ़ा प्रकोप।
घने पेड़ भी तपे आग से,
शीत हवा का लोप।
चीं चीं, चूँ चूँ, कांव कांव सब,
ढूंढ रहे नल कूप।
सड़क किनारे ठेले वाले,
राहत लिए…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 14, 2013 at 1:30pm — 16 Comments
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