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All Blog Posts (19,138)

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमको लेकिन सबने बस मुस्काते देखा है



झूठी बातें झूठे किस्से बतलाते हैं लोग

पत्थर को कब दर्पण से शरमाते देखा है



पर्दा रखना ठीक लगा हमको दुनिया में अब

फूलों पर जब भँवरों को मंडराते देखा है



कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो

अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है



मंदिर मंदिर मिन्नत करके जिसको पाया था

उसको ही कल हमने आँख दिखाते देखा है



गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में

उसको ही अब… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 12:37pm — 25 Comments

कुंडलिया छंद

कुंडलिया छंद 

 



नारी तू अबला नहीं, अपनी ताकत जान 

दोषी से कर सामना, पूरे कर अरमान। 
पूरे कर अरमान, तुझमे है शक्ति  ऐसी,…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 11:30am — 22 Comments

बेटी के शव पर.....तोटक छंद

बिटिया कछु बोलत नाहि कहौ

चुपचाप पडी कहती न सुनौ

यह तात पुकारत है तुम्ह को

अब धाय उठो उठ धाय चलौ



-----------



रखिया न भुला कहता बिरना

बतिया यह मोरि सुनो बहना

'छुटकी' नहि तोर सहाय भयो

अब धाय उठो उठ धाय चलो

---------

सखियाँ सब खेलन चाह रही

खटिया पर मात कराह रही

यह बात सुनौ नहि देर करौ

अब धाय उठो उठ धाय चलौ

------

बस एक सवाल बसै मन मे

क्यस भूल भयी यह जीवन मे

भगवान कहाँ हम चूक गये

नहि धाय उठे नहि धाय… Continue

Added by manoj shukla on April 14, 2013 at 8:30am — 14 Comments

ज़रूरत

आज ज़रूरत है

अपने अंदर झाँकने की

आपसी द्वेष और क्लेश से

ऊपर उठने की

 

सामने पड़ी वस्तु पर तो

शायद हम पैर न रखतें हैं  

पर दूसरों की भावनाओं को

पैरों तले कुचलने में न झिझकते हैं

  

जात -पात वर्ण भेद के मानकों पर

इंसानों को बाँटने में लग गए हैं

एक दूसरे को नीचा दिखाने की हर

प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह जुट गए हैं

 

पेड पत्थर कागज़ में तो

भगवान् का प्रतिरूप देख रहे हैं

 भगवान् द्वारा…

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Added by vijayashree on April 13, 2013 at 11:28pm — 13 Comments

पाक को चेतावनी....छंद कामरूप

यह देख दुनियाँ, खोल अंखियाँ, पाक की करतूत
गोली चलाता, बम गिराता, तानता बन्दूक
ये मान ले तू, जान ले तू, ना रहेंगे मूक
अब तू संभल जा, या बदल जा, कह रहे दो टूक


मौलिक व अप्रकाशित

Added by manoj shukla on April 13, 2013 at 11:08pm — 15 Comments

रफ्तार (चार मुक्तक)

उजाला चाहते हैं वज्म में खुद जलना होगा,

सफर तय करना है तो गिर कर सम्भलना होगा।

इतनी आसानी से मंजिल नहीं मिलती यारों,

जिन्दगी की रफ्तार को कुछ बदलना होगा॥



मंहगाई की रफ्तार यूँ बढ़ती जा रही है,

इसी के इर्द- गिर्द दुनिया सिमटती जा रही है।

तिस पर ये बेरोजगारी घोटाले और लूट,

ये जिन्दगी इक दलदल में बदलती जा रही है॥



सुना है उसने एक नई कार खरीद ली,

समझता है जिन्दगी में रफ्तार खरीद ली।

पर क्या पता उस नादान अहमक को,

अपने पाले में मुसीबत… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 13, 2013 at 9:03pm — 9 Comments

बेशक उसका जन्म हुआ है

बेशक उसका जन्म हुआ है

मंदिर में स्थापित देवताओं को

दूर से प्रणाम करने…

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Added by anwar suhail on April 13, 2013 at 8:40pm — 12 Comments


मुख्य प्रबंधक
अंतर्द्वंद्व // गणेश जी "बागी"

ठगती है,

बार बार,

अंतरात्मा,

आश्वासनों से,

ठीक हो जाएगा,

सब ठीक हो जाएगा,

एक अंतर्द्वंद्व,

सत्य असत्य,

दिल दिमाग़ के मध्य,

नही डिगेगा,

कभी नही डिगेगा,

चलते जाना है,

सत्य के मार्ग पर,

जो घटित होना है,

हो जाय,

कौन अमर यहाँ,

कोई नही,

कोई भी तो नही,

फिर डर कैसा,

उस अहंकार से,

जो क्षण भंगुर है,

चल हट !

चलने दे,

कार्य पथ पर बढ़ने दे,

वो सामने देख…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 8:00pm — 38 Comments

वह सड़क बंद है

हर तरफ खौफनाक सन्नाटा

कहीं कोई आवाज नहीं

हालांकि दर्द हदों को छू गया।

 

जिंदगी

दरकने लगी है

तप रही है जमीन,

पानी की बूंद

गायब हो जाती…

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Added by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 6:00pm — 26 Comments

नारी तू नहीं है अबला

नारी तू नहीं है अबला

--------------------

नारी तू नहीं है अबला 

है शक्ति  स्वयं पहचान 

खुद  को शोषित  मान  ले 

फिर  कौन  करे  सम्मान 

दूषित  जग  से लड़ना होगा

खुद  ही आगे बढ़ना…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2013 at 6:00pm — 25 Comments

कुण्डलियां

कुण्डलियां

सुधार के बाद पुनः प्रस्तुत

हॅसी हुदहुद खंजन से, पिकहु कूक रहि जाय।

बुलबुल मैना खग गुने, सुगा भी टेटियाय।।

सुगा भी टेटियाय, काग कांव कांव करता।

चातक बया तिलेर, टिटेहरी टेर कसता।।

बगुला रखता मौन, हंस गौरैया सरसीं।

मयूर बुलाय कौन, खिलखिल सब चिडि़यां हॅसीं।।

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 13, 2013 at 2:30pm — 15 Comments

जान हथेली पर ले चलते , भारत माँ के वीर जवान |

जागे रहते वीर जवान | 
जान हथेली पर ले चलते , भारत माँ के वीर जवान |
देश दुनिया शांती चाहते , मेरा देश कितना  महान |
छुप छुप कर बैरी वार करें , मुश्किल में दे देते जान |
सात समुंदर…
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Added by Shyam Narain Verma on April 13, 2013 at 11:43am — 9 Comments

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया

शादी की प्रथम सालगिरह की पूर्व संध्या में अपनी जीवन संगिनी को समर्पित एक रचना



शाम सुहानी रात दीवानी दिवस एक लाया

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया



मन में अंतर्द्वंद बहुत था कैसा होगा वो

सपने देखे जैसे मैंने वैसा होगा वो

या नाज़ुक सुंदर फूलों के जैसा होगा वो

छुईमुई सा शरमाएगा क्या ऐसा होगा वो



तभी सामने इक सुंदर सा चाँद निकल आया

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया



हाथ में सुन्दर वरमाला औ तुम थी सकुचाई

धीरे धीरे पग रख रख… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 6:50pm — 29 Comments

माँ , याद तुम्हारी

याद तुम्हारी , कितनी प्यारी ,

धीरे-धीरे मन के आँगन में ,

चुपके से आ जाती हे |



याद तुम्हारी , बड़ी दुलारी ,

आँखों  से  , अंतर मन को ,…

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Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 12, 2013 at 6:00pm — 15 Comments

सागर में भी तडपे मछली , जब लहरों में फँस जाये |

जाल में पडी मछली रोये -कविता |
सागर में भी तडपे मछली , जब लहरों में फँस जाये |
जाल डाले आते शिकारी , फिर उनसे कौन बचाये |
साथ  नहीं देता जब कोई , फिर आशा कौन दिलाये |
जब फँस गयी…
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Added by Shyam Narain Verma on April 12, 2013 at 3:14pm — 8 Comments

मालिक सबका एक है (दोहा छंद)

मालिक सबका एक है, खुदा गॉड भगवान।

धर्म पंथ में बांटकर, भटक गया इंसान॥



निराकार साकार ही, दोनों ईश्वर रूप।

देह और छाया सदृश, संग-संग हैं धूप॥



सूरज तारे चांद सब, सगुण ईश के रूप।

नियति नियम निर्गुण कहें, अद्भुत भव्य अनूप॥



ईश प्राप्ति निज खोज है, खोज सके तो खोज।

मोह निशा से घिर मनुज, बाहर भटके रोज॥



आत्मरूप में जाग नर, भटक नहीं अन्यत्र।

तुझ में ईश्वर ईश तू, तू ही तू सर्वत्र॥



धूम- अग्नि दिन- रात से, सुख से दुख… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2013 at 1:04pm — 18 Comments

घनाक्षरी प्रथम प्रयास

सीस झुके है सबके ,करते हुए वन्दना

लोग न अघाते माता, माता बोले जाते है!

जिस ओर देखो उस, ओर दिखती है भीड़,

मन में कामना लिए, ध्यान किये जाते है!!

पल भर अपने को ,सब भूल जाते यहाँ ,

पूजन में लीन सब, कष्ट भूल जाते है !

जान…

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Added by ram shiromani pathak on April 12, 2013 at 1:00pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
प्रज्ञा पुंज (घनाक्षरी)

  

हिंदी भाषा के शिंगार  रस छंद अलंकार 

नव शब्द माल लेके गीत तो बनाइए 

 संधि प्रत्यय समास, हों मुहावरे भी ख़ास  

भाव रंगों  में डुबो के कविता  रचाइए 

गीत या निबन्ध हो नवल भाव  सुगंध हो 

साहित्य सरोवर में डुबकी  लगाइए 

विद्या वरदान मिले लेखनी को मान मिले 

अपनी राष्ट्र भाषा का मान तो बढाइए 

 

 

भाव गहन बढे जो ध्यान नदिया चढ़े जो 

लेखनी की नाव लेके पार कर जाइये 

ह्रदय में प्रकाश हो मुट्ठी भरा आकाश…

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Added by rajesh kumari on April 12, 2013 at 12:22pm — 16 Comments

कुण्डलियां

कुण्डलियां



ःः.1.ःः

मन्दिर-मन्दिर नेम से, पाथर  पूजा  जाय।

दीन दलित असहाय को, चोर समझ डपटाय।।

चोर समझ डपटाय, तनिक न रहम करत हैं।

लातन से लतियाय, पुलिस का काम करत हैं।।

बालक रो बतलाय, साब! कस बांधत जन्जिर।

रोटी हित दर आय, समझ दाता का मन्दिर।।



ःः.2.ःः

पोलिस थाना जान ले, आफत का घर होय।

रपट लिखाये जात हैं, मिले दुःख बहु रोय।।

मिले दुःख बहु रोय, समझ ना पावत कुछ हैं।

दारोगा  जी  सोय, दीवान  मांगत  कुछ हैं।।

उठ  दरोगा  डपटे, सबसे…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 12, 2013 at 11:06am — 8 Comments

जीवनशैली

  जीवनशैली 

उन्हीं रास्तों पर चलते चलते

ना जाने क्यूँ मन उदास हो गया

सोचने लगी दिखावों के चक्कर में

जीवन कितना एकाकी हो गया

संपन जीवनशैली के बावज़ूद

इसमें सूनापन भर गया है

 

मैंने ड्राईवर से कहा –

क्या आज कुछ नया दिखा सकते हो

जो मॉल या क्लबों जैसी मशीनी ना हो

जहाँ जिंदगी साँस ले सकती हो

जो अपने जहाँ जैसी लगती हो

 

ड्राईवर बोला –

मैडम है एक जगह ऐसी

पर वो नहीं है आपके…

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Added by vijayashree on April 12, 2013 at 9:00am — 20 Comments

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