Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 12:37pm — 25 Comments
कुंडलिया छंद
नारी तू अबला नहीं, अपनी ताकत जान
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 11:30am — 22 Comments
Added by manoj shukla on April 14, 2013 at 8:30am — 14 Comments
आज ज़रूरत है
अपने अंदर झाँकने की
आपसी द्वेष और क्लेश से
ऊपर उठने की
सामने पड़ी वस्तु पर तो
शायद हम पैर न रखतें हैं
पर दूसरों की भावनाओं को
पैरों तले कुचलने में न झिझकते हैं
जात -पात वर्ण भेद के मानकों पर
इंसानों को बाँटने में लग गए हैं
एक दूसरे को नीचा दिखाने की हर
प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह जुट गए हैं
पेड पत्थर कागज़ में तो
भगवान् का प्रतिरूप देख रहे हैं
भगवान् द्वारा…
ContinueAdded by vijayashree on April 13, 2013 at 11:28pm — 13 Comments
Added by manoj shukla on April 13, 2013 at 11:08pm — 15 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 13, 2013 at 9:03pm — 9 Comments
Added by anwar suhail on April 13, 2013 at 8:40pm — 12 Comments
ठगती है,
बार बार,
अंतरात्मा,
आश्वासनों से,
ठीक हो जाएगा,
सब ठीक हो जाएगा,
एक अंतर्द्वंद्व,
सत्य असत्य,
दिल दिमाग़ के मध्य,
नही डिगेगा,
कभी नही डिगेगा,
चलते जाना है,
सत्य के मार्ग पर,
जो घटित होना है,
हो जाय,
कौन अमर यहाँ,
कोई नही,
कोई भी तो नही,
फिर डर कैसा,
उस अहंकार से,
जो क्षण भंगुर है,
चल हट !
चलने दे,
कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 8:00pm — 38 Comments
हर तरफ खौफनाक सन्नाटा
कहीं कोई आवाज नहीं
हालांकि दर्द हदों को छू गया।
जिंदगी
दरकने लगी है
तप रही है जमीन,
पानी की बूंद
गायब हो जाती…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 6:00pm — 26 Comments
नारी तू नहीं है अबला
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नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
खुद को शोषित मान ले
फिर कौन करे सम्मान
दूषित जग से लड़ना होगा
खुद ही आगे बढ़ना…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2013 at 6:00pm — 25 Comments
कुण्डलियां
सुधार के बाद पुनः प्रस्तुत
हॅसी हुदहुद खंजन से, पिकहु कूक रहि जाय।
बुलबुल मैना खग गुने, सुगा भी टेटियाय।।
सुगा भी टेटियाय, काग कांव कांव करता।
चातक बया तिलेर, टिटेहरी टेर कसता।।
बगुला रखता मौन, हंस गौरैया सरसीं।
मयूर बुलाय कौन, खिलखिल सब चिडि़यां हॅसीं।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 13, 2013 at 2:30pm — 15 Comments
| जागे रहते वीर जवान | |
| जान हथेली पर ले चलते , भारत माँ के वीर जवान | |
| देश दुनिया शांती चाहते , मेरा देश कितना महान | |
| छुप छुप कर बैरी वार करें , मुश्किल में दे देते जान | |
| सात समुंदर… |
Added by Shyam Narain Verma on April 13, 2013 at 11:43am — 9 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 6:50pm — 29 Comments
याद तुम्हारी , कितनी प्यारी ,
धीरे-धीरे मन के आँगन में ,
चुपके से आ जाती हे |
याद तुम्हारी , बड़ी दुलारी ,
आँखों से , अंतर मन को ,…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 12, 2013 at 6:00pm — 15 Comments
| जाल में पडी मछली रोये -कविता | |
| सागर में भी तडपे मछली , जब लहरों में फँस जाये | |
| जाल डाले आते शिकारी , फिर उनसे कौन बचाये | |
| साथ नहीं देता जब कोई , फिर आशा कौन दिलाये | |
| जब फँस गयी… |
Added by Shyam Narain Verma on April 12, 2013 at 3:14pm — 8 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2013 at 1:04pm — 18 Comments
सीस झुके है सबके ,करते हुए वन्दना
लोग न अघाते माता, माता बोले जाते है!
जिस ओर देखो उस, ओर दिखती है भीड़,
मन में कामना लिए, ध्यान किये जाते है!!
पल भर अपने को ,सब भूल जाते यहाँ ,
पूजन में लीन सब, कष्ट भूल जाते है !
जान…
Added by ram shiromani pathak on April 12, 2013 at 1:00pm — 13 Comments
हिंदी भाषा के शिंगार रस छंद अलंकार
नव शब्द माल लेके गीत तो बनाइए
संधि प्रत्यय समास, हों मुहावरे भी ख़ास
भाव रंगों में डुबो के कविता रचाइए
गीत या निबन्ध हो नवल भाव सुगंध हो
साहित्य सरोवर में डुबकी लगाइए
विद्या वरदान मिले लेखनी को मान मिले
अपनी राष्ट्र भाषा का मान तो बढाइए
भाव गहन बढे जो ध्यान नदिया चढ़े जो
लेखनी की नाव लेके पार कर जाइये
ह्रदय में प्रकाश हो मुट्ठी भरा आकाश…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 12, 2013 at 12:22pm — 16 Comments
कुण्डलियां
ःः.1.ःः
मन्दिर-मन्दिर नेम से, पाथर पूजा जाय।
दीन दलित असहाय को, चोर समझ डपटाय।।
चोर समझ डपटाय, तनिक न रहम करत हैं।
लातन से लतियाय, पुलिस का काम करत हैं।।
बालक रो बतलाय, साब! कस बांधत जन्जिर।
रोटी हित दर आय, समझ दाता का मन्दिर।।
ःः.2.ःः
पोलिस थाना जान ले, आफत का घर होय।
रपट लिखाये जात हैं, मिले दुःख बहु रोय।।
मिले दुःख बहु रोय, समझ ना पावत कुछ हैं।
दारोगा जी सोय, दीवान मांगत कुछ हैं।।
उठ दरोगा डपटे, सबसे…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 12, 2013 at 11:06am — 8 Comments
जीवनशैली
उन्हीं रास्तों पर चलते चलते
ना जाने क्यूँ मन उदास हो गया
सोचने लगी दिखावों के चक्कर में
जीवन कितना एकाकी हो गया
संपन जीवनशैली के बावज़ूद
इसमें सूनापन भर गया है
मैंने ड्राईवर से कहा –
क्या आज कुछ नया दिखा सकते हो
जो मॉल या क्लबों जैसी मशीनी ना हो
जहाँ जिंदगी साँस ले सकती हो
जो अपने जहाँ जैसी लगती हो
ड्राईवर बोला –
मैडम है एक जगह ऐसी
पर वो नहीं है आपके…
ContinueAdded by vijayashree on April 12, 2013 at 9:00am — 20 Comments
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