जाते हुए साल
एक बात पूछनी है
सीधा सीधा सा बस एक सवाल
कि तुम हर साल बदलने वाला
केवलमात्र क्या एक अंक हो
अथवा समझते हो कि तुम निष्कलंक हो
सारी जिम्मेवारी समय के काँधों पर डाल
किसे बहलाते हो
कुछ बदल नहीं सकते
अथवा बदलना नहीं चाहते
तो फिर -फिर क्यों आते हो
एक चेतावनी समझ लेना
अब के तभी आना
जो यदि
बंद करा सको युद्ध को
मुक्त करा सको प्रबुद्ध को
अथवा वहीं रहना
किसी से न कहना
कि तुम हार गए हो
..........
मौलिक व…
Added by amita tiwari on December 15, 2023 at 12:00am — 1 Comment
1212-- 1122-- 1212-- 22
अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
परिंदे नीड़ में सहमे हैं, जाने डर कैसा
ख़ुद अपने घर में ही हव्वा की जात सहमी है
उभर के आया है आदम में जानवर कैसा
अधूरे ख़्वाब की सिसकी या फ़िक्र फ़रदा की
हमारे ज़हन में ये शोर रात-भर कैसा
सरों से शर्मो हया का सरक गया आंचल
ये बेटियों पे हुआ मग़रिबी असर कैसा
वो ख़ुद-परस्त था, पीरी में आ के समझा है
जफ़ा के पेड़ पे रिश्तों का अब…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on December 3, 2023 at 10:00am — 7 Comments
२१२२/१२१२/२२
*
सूनी आँखों की रोशनी बन जा
ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।
*
अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती
चैन पाऊँ कि तू नदी बन जा।२।
*
हो गया जग ये शीत का मौसम
धूप सी तू तो गुनगुनी बन जा।३।
*
मौत आकर खड़ी है द्वार अपने
एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।
*
मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल
आ के अधरों पे शायरी बन जा।५।
*
इस नगर में तो सिर्फ मसलेंगे
फूल जाकर तू जंगली बन जा।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 3 Comments
2122 1122 1122 22
ख़्वाब से जाग उठे शाह सदा दी जाए
पकड़े जायें अभी क़ातिल वो सज़ा दी जाए
बख़्श दी जाए कहीं जान ख़वातीनों की
अब तो ज़ालिम को कड़ी कोई सज़ा दी जाए
घूमते हैं वो दरिन्दे भी नकाबों में अब तो
जितना जल्दी हो उन्हें मौत बजा दी जाए
लोग अच्छे ही परेशान हैं वहशी दरिन्दों
इन्तिहाँ हो गयी अब लौ वो बुझा दी जाए
ज़ात इन्साँ की पशेमाँ है ज़रायम से 'चेतन'
तूफाँ कोई तो उठा कर…
Added by Chetan Prakash on November 27, 2023 at 12:57pm — 2 Comments
लगता है मेरे प्यारों को पैसा है मेरे पास
सच्चाई पर यही है कि क़र्ज़ा है मेरे पास
ए सी की रहने वाली तू मत प्यार कर मुझे
आवाज़ करता छोटा सा पंखा है मेरे पास
मुझसे बिछड़ के जूड़ा बनाती नहीं है अब
वो लड़की जिसका आज भी गजरा है मेरे पास
पापा ये मुझ से कहते हुए रो पड़े थे कल
कितने दिनों के बाद तू बैठा है मेरे पास
साया दिया था मैंने कड़ी धूप में जिसे
अब सिर्फ़ उसकी याद का साया है मेरे पास
अब…
ContinueAdded by Md. Anis arman on November 23, 2023 at 12:39pm — 3 Comments
ग़ज़ल -- 221 2121 1221 212
क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे
बन जाए गुलसिताँ वो जगह, तू जहाँ रहे
ज़ालिम का ज़ुल्म ख़्वाह सदा बे-अमाँ रहे
पर कोई भी ग़रीब न बे-आशियाँ रहे
आ जाए जिन को देख के आँखों में रौशनी
वो ख़ैर-ख़्वाह दोस्त पुराने कहाँ रहे
हर दम पराए दर्द को समझें हम अपना दर्द
दरिया ख़ुलूसो-मेहर का दिल में रवाँ रहे
काफ़ी नहीं है दिल में फ़लक चूमने का ख़्वाब
परवाज़ हौसलों…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on November 17, 2023 at 8:30am — 4 Comments
दोनों में से क्या तुम्हें चाहिए सुख या के संतोष
क्षणभंगुर सा हर्ष चाहिए, या जीवन भर का रोष
खुशी का जीवन लम्हो सा है, अब आए अब जाए
छोटी सी उदासी मन की पहाड़ हर्ष का ढाए
खुशी स्वभाव से चंचल पानी, कल कल बहता जाए
कभी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on November 9, 2023 at 1:36pm — No Comments
2121 2122 2121 212
खो गया सुकून दिल का कार हो गया जहाँ
गुम गया सनम भँवर में ख़ार हो गया जहाँ
कामयाबी तौलती दुनिया भरोसे जऱ ज़मी
फार्म जिनके हैं नहीं गुड़मार हो गया जहाँ
ज़िन्दगी जिसे कहा हमने कहीं छुपा गया
है निशान अपने ज़ालिम पार हो गया जहाँ
कार-ए-दुनिया और कुछ हैं और कुछ दिखें ख़ुदा
मारकाट हाल कारोबार हो गया जहाँ
तोड़ हद रहे सभी अब तो अदब जहान में
लाज लुट रही घरों मुरदार हो गया…
Added by Chetan Prakash on November 8, 2023 at 8:30pm — No Comments
दोहा पंचक . . . .
लुप्त हुई संवेदना, कड़वी हुई मिठास ।
अर्थ रार में खो गए , रिश्ते सारे खास ।।
*
पहले जैसे अब कहाँ, मिलते हैं इन्सान ।
शेष रहा इंसान में, बड़बोला अभिमान ।।
*
प्रीत सरोवर में खिले, क्यों नफरत के फूल ।
तन मन को छिद्रित करें, स्वार्थ भाव के शूल ।।
*
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
भूल -भाल कर दुश्मनी , सबकी माँगें खैर ।।
*
शर्तों पर यह जिंदगी , काटे अपनी राह ।
सुध-बुध खो कर सो रही, शूल नोक पर चाह…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2023 at 7:46pm — 4 Comments
तेरे बोलों के ख़ार आँखों में
दिख रहे हैं हजार आंखों में
मैनें देखा खुमार आँखों में
इश्क का बेशुमार आँखों में
इश्क है होशियार आँखों में
इश्क फिर भी गवार आँखों में
तेरी गलियों को छान कर जाना
होता क्या-क्या है यार आँखों में?
होठ बेशक हँसी से फैले हैं
दर्द पर बरकरार आँखों में।
'बाल' नादान है समझ तेरी
ढूंढती बस जो प्यार आँखों में।
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 3, 2023 at 9:30am — 7 Comments
221/2121/1221/212
****
सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर
नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।
*
उर्वर करेगा कोई तो फिर से ये सोच बस
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।
*
कीटों के प्रेत नोच के हर शब्द ले गये
रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।
*
पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम
नफरत के दौर प्यार के तेवर सँभालकर।४।
*
फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा
जिस ने रखा है हाथ में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2023 at 12:39pm — 3 Comments
किसे अपना कहें हम यहाँ
खंजर उसी ने मारी जिसको गले लगाया
किससे कहें हाल-ए-दिल यहाँ
हर राज उसी ने खोला जिसे हमराज़ बनाया
किसे जख्म दिखाये दिल का
हार घाव उसी ने कुरेदा जिसको भी मरहम लगाया …
ContinueAdded by AMAN SINHA on October 27, 2023 at 10:21pm — 2 Comments
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
हज़ज मुसद्दस महजूफ़
———————————
निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की,
उसे पर्वा नहीं मेरी ख़ुशी की
*
समझता ही नहीं जो दर्द मेरा,
निगाहों ने उसी की बंदगी की
*
वही इक शख़्स जो कुछ भी नहीं है,
हर इक मुश्किल में उसने रहबरी की
*
उसी का रंग है मेरे सुख़न में,
उसी से आबरू है शायरी की
*
उजाले गिर पड़े क़दमों पे आकर,
अंधेरों से जो मैंने दोस्ती की
*
अदीबों में है मेरा नाम…
Added by SALIM RAZA REWA on October 25, 2023 at 6:00am — 5 Comments
जीवन ....दोहे
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती, मुड़ कर बीते वर्ष ।।
क्या पाया क्या खो दिया, कब समझा इंसान ।
जले चिता के साथ ही, जीवन के अरमान ।।
कब टलता है जीव का, जीवन से अवसान ।
जीव देखता रह गया, जब फिसला अभिमान ।।
देर हुई अब उम्र की, आयी अन्तिम शाम ।
साथ न आया काम कुछ ,बीती उम्र तमाम ।।
जीवन लगता चित्र सा, दूर खड़े सब साथ ।
संचित सब छूटा यहाँ, खाली दोनों हाथ…
Added by Sushil Sarna on October 17, 2023 at 9:30pm — 6 Comments
लेबल्ड मच्छर ......(लघु कथा )
"रामदयाल जी ! हमें तो पता ही नही था कि हमारे मोहल्ले से मच्छर गायब हो गए हैं सिर्फ पार्षद के घर के अलावा ।" दीनानाथ जी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा ।
"वो कैसे ।" रामदयाल जी बोले ।
"वो क्या है रामदयाल जी । आज सवेरे में छत पर पौधों को पानी दे रहा था कि अचानक मुझे नीचे कोई मशीन चलने की आवाज सुनाई दी । नीचे देखा तो देख कर दंग रह गया ।"
"क्यों? क्या देखा दीनानाथ जी । पहेलियाँ मत बुझाओ ।साफ साफ बताओ यार ।" रामदयाल जी बोले…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 15, 2023 at 8:05pm — No Comments
पूजा बता रहे हैं
उषा अवस्थी
पाले हैं,यौन कुंठा
पूजा बता रहे हैं
न जाने ऐसे लोग
किस राह जा रहे हैं?
रचते हैं ढोंग ज्ञान का
कल्मष बढ़ा रहे हैं
लिखते अभद्र भाषा
निर्मल बता रहे हैं
अपने ही मन की ग्रन्थि
सुलझा न पा रहे हैं
बच्चों औ युवजनों को
क्या -क्या सिखा रहे हैं?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 11, 2023 at 3:30am — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . .
तर्पण को रहता सदा, तत्पर सारा वंश ।
दिये बुजुर्गो को कभी, कब मिटते हैं दंश ।।
तर्पण देने के लिए, उत्सुक है परिवार ।
बंटवारे के आज तक, बुझे नहीं अंगार ।।
लगा पुत्र के कक्ष में, मृतक पिता का चित्र ।
दम्भी सिर को झुका रहा, उसके आगे मित्र ।।
देह कभी संसार में, अमर न होती मित्र ।
महकें उसके कर्म ज्योँ , महके पावन इत्र ।।
तर्पण अर्पण कीजिए, सच्चे मन से यार ।
चला गया वो आपका,…
Added by Sushil Sarna on October 9, 2023 at 1:30pm — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
***
ये सच नहीं कि रूप से वो भा गयी मुझे
बारात उस के वादों की बहका गयी मुझे।१।
*
सरकार नित ही वोट से मेरी बनी मगर
कीमत का भार डाल के दफना गई मुझे।२।
*
दंगो की आग दूर थी कहने को मीलों पर
रिश्तों की ढाल भेद के झुलसा गई मुझे।३।
*
अच्छे बहुत थे नित्य के यौवन में रत जगे
पर नींद ढलते काल में अब भा गयी मुझे।४।
*
नद झील ताल सिन्धु पे है तंज प्यास यूँ
दो एक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2023 at 7:58am — No Comments
कुछ विचार
उषा अवस्थी
राष्ट्र, समाज, स्वयं का
यदि चाहें कल्याण
चोरी, झूठ, फरेब से
है पाना परित्राण
अशुभ निवारक गुरु चरण
वन्दन कर, छल त्याग
जिनके दर्शन मात्र से
पाप, शोक हों नाश
यह दुनिया हर निमिष पल
गिरे काल के गाल
क्यों पाना इसको भला?
जहाँ बचे न भाल
इस अनन्त ब्रम्हाण्ड में
पृथ्वी का क्या मोल?
पल-पल, घिस-घिस छीजती
तोल सके तो…
ContinueAdded by Usha Awasthi on October 8, 2023 at 6:52pm — 3 Comments
ईमानदारी ....
"अरे भोलू ! क्या हुआ तेरे पापा 4-5 दिन से दूध देने नहीं आ रहे ।"सविता ने भोलू के बेटे को दूध का भगोना देते हुए पूछा ।
"वो बीवी जी, पापा की साइकिल कुछ खराब हो गई इसलिए मैं दूध देने आ गया ।" भोलू के बेटे ने भगोने में दूध डालते हुए कहा ।
"अच्छा , अच्छा यह बता जब से तुम दूध दे रहे हो दूध इतना पतला क्यों है ? पापा तो दूध गाढ़ा लाते थे ।"
सविता ने कहा ।
"बीवी जी, यह साइकिल नहीं फटफटिया है । अगर दूध गाढ़ा बेचेंगे तो फटफटिया कैसे चलायेंगे…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 8, 2023 at 1:30pm — 2 Comments
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