नगर भर चले दौड़ काली हवा
है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।
*
गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर
बजा पात कहती है ताली हवा।२।
*
कभी दान जीवन सभी को दिया
हुई आज लेकिन सवाली हवा।३।
*
कहाँ से प्रदूषण धरा का मिटे
नहीं सीख पायी जुगाली हवा।४।
*
कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन
गयी लौट कुल्लू मनाली हवा।५।
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तनिक तो कहीं बात होती है कुछ
किसी की चली कब है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2024 at 11:04am — 6 Comments
दोहा पंचक . . .
बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।
इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।
सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।
कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।
सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।
वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।
छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।
सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।
कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।
देह क्षुधा के दौर में,…
Added by Sushil Sarna on March 5, 2024 at 3:45pm — 2 Comments
दोहा सप्तक - जीवन तो अनमोल है
जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग ।
पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग ।1।
जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार ।
कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार ।2।
जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।
अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ ।3।
जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप ।
इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप ।4।
जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।
बहुत कठिन है जानना , इसका अर्थ…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2024 at 2:36pm — No Comments
उदार शासक एक वीर योद्धा
कला-प्रतिभा का संरक्षक जिसे कहा
गुप्त वंश एक महान योद्धा, जिसे भारत का नेपोलियन सबने कहा।।
चंद्रगुप्त प्रथम का राजदुलारा
कुमारदेवी का पुत्र रहा
विनयशील जो मृदुलवाणी का, प्रखर बुद्धि का स्वामी हुआ।।
उत्तराधिकारी का प्रबल दावेदार
पराजित अग्रज काछा भी उससे हुआ
विजय अभियान की ख़ातिर जाना जाता, अजय-अभय एक योद्धा रहा।।
गृह कलह को शांत है…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on March 1, 2024 at 4:30pm — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२
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हमें एक नदिया मिली नाम की
न थी वो किसी प्यास के काम की।१।
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जिसे देश कहते हैं सब राम का
वहीं पर फजीहत हुई राम की।२।
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दुखाती है मन जो महज याद से
करो अब न बातें उसी शाम की।३।
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बिना उस के ये भी परायी गली
शरण में चलें कौन से धाम की।४।
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मिटायेगी वाणी सभी दूरियाँ
मिठासें रखो बस पके आम की।५।
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चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर
घड़ी आ गयी तन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 29, 2024 at 10:42pm — No Comments
जिन्हें भाव जग में खले दीप के
वही कहते आरे चले दीप के।१।
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यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के
तमस जी रहा है तले दीप के।२।
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बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को
नहीं एक हम ही छले दीप के।३।
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चले है तमस यूँ दिखा आँख जो
लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।
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कहाँ कब जले घर नहीं है पता
इरादे कहाँ अब भले दीप के।५।
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परायों से बढ़ आज अपनो से भय
न बाती ही कालिख …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2024 at 2:42pm — No Comments
अँधेरे उजाले मिले प्यार से
चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।
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नहीं काम आता किसी के कोई
मिटे दुख भला कैसे संसार से।२।
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हटा मैल मन का तनिक भी नहीं
नहा कर चले नित्य हरिद्वार से।३।
*
न बदला है कोई किसी के कहे
जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।
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अकेले न तुम हो असंतुष्ट अब
हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।
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शिखर चाहते हैं सजाना बहुत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2024 at 11:14pm — No Comments
बात यहीं खत्म होती तो और बात थी
यहाँ तो हर बात में नई बात निकल आती है
यूँ लगता है जैसे कि ये कोई बरगद का पेड़ है
जहां से भी खोदो एक नई साख निकल आती है
उलझने ऐसी है कि कोई छोड़ मिलती ही नहीं
एक को खींचो तो संग मे दो चार चली…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 26, 2024 at 11:30am — No Comments
दोहा त्रयी. . . . .
जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।
अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।
चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।
संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।
गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।
सुशील सरना / 23-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 22, 2024 at 1:31pm — 2 Comments
दोहा त्रयी. . . .
मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।
काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।
बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।
तीखी लगती स्वार्थ की, अब आँगन में धूप ।।
अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।
धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।
सुशील सरना / 11-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2024 at 2:06pm — 2 Comments
दोहा सप्तक. . . .
बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।
अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।
बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।
एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।
पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।
जीवन को मत दीजिए, दागदार उपहार ।3।
रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।
दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।
वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।
रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में…
Added by Sushil Sarna on February 6, 2024 at 2:19pm — No Comments
दोहा पंचक. . . नैन
नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार ।
नैनों को अच्छी लगे, नैनों से तकरार ।।
नैनों से तकरार का, लगे अजब आनन्द ।
हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।
नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।
नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।
नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।
नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।
नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।
नैन तीर पर हो सदा, लक्षित…
Added by Sushil Sarna on February 3, 2024 at 1:53pm — 2 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
हज़ार लोगों से दोस्ती की हज़ार शिकवे गिले निभाये।
किसी ने लेकिन हमें न समझा सभी से हमने फरेब खाये।
हमारे जीवन में अब तुम्हारी जगह तो कोई नहीं है लेकिन,
दुआ में होठों से फिर ये निकला खुदा तुम्हारे दरस दिखाये।
किसी के दिल में बसे रहो तुम,हमारे दिल को मसलने वाले,
यही तकाज़ा है दोस्ती का फरेब खाकर करे दुआये।
हमारी आँखें फ़टी रही पर पलट के तुमने कभी न देखा,
अजीब उलझन है जिंदगी की न याद आये न भूल…
Added by मनोज अहसास on February 2, 2024 at 8:40pm — No Comments
धूम कोहरा
उषा अवस्थी
धूम युक्त कोहरा सघन
मचा हुआ कोहराम
किस आयुध औ कवच से
जीतें यह संग्राम?
एक नहीं, अनगिन बने
कारण, होती वृद्धि
रोके से रुकता नहीं
क्रम,कैसे हो शुद्धि?
ढेरों टन कोयला दहन
कर विद्युत संयंत्र
धूम्र उगलते; जो जाकर
मिले बूंद के संग
वही हवा फिर साँस से
पहुँचे मानव अंग
स्वास्थ्य बिगाड़े,कष्ट दे
करे मनुज का…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 31, 2024 at 8:14am — 1 Comment
1222 1222 1222 1222
हमारा जिक्र छोड़ो आप कुछ अपनी कहो, बोलो ।
बहुत दिन बाद आये ख़्वाब में कहदो उठो,बोलो।
फिसलते वक़्त की गिनती ने हमको कर दिया गंभीर,
मगर माँ बाप कहते हैं कि बच्चे हो हँसो, बोलो।
कहीं पर सामना हो जाए तेरा मैं रहूँ खामोश,
तेरी आँखे बहे,मुझसे कहें,तुम भी…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 28, 2024 at 11:07pm — 3 Comments
1222 1222 122
1
मुझे महसूस करते थे खुशी से
मगर ये अब न कहना तुम किसी से
2
मुझे चाहत नहीं है अब किसी की
मुझे चाहत रही है पर सभी से
3
तुम्हारा नाम ही था कॉल में पर
मैं बातें कर रहा था अजनबी से
4
तनाफुर दिखता होगा शेर में अब
मैं शायद थक चुका हूँ शाइरी से
5
मैं अपने ग़म में ही मदहोश हूँ पर
हमें काफिर रिझाते मयकशी से
6
शुतुरगर्बा जबां पर आ गया है
बिठायें संतुलन कैसे सभी से
7
ये ज़ख़्मी शब्द हैं खामोश,रीते
तुझे…
Added by मनोज अहसास on January 28, 2024 at 10:05pm — No Comments
221 2121 1221 212
बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम
अपनी ही सुर्ख़ आँख में चुभते रहे हैं हम
ये और बात है की मुकम्मल न हो सका
इक ख़त किसी के नाम जो लिखते रहे हैं हम
सबसे जरूरी काम में पीछे रहे मगर
बाक़ी हर एक बात में आगे रहे हैं हम
वैसे तो हमसे जीतना मुमकिन न था मगर
अपनी रज़ा से आप से पीछे रहे हैं हम
इक रोज़ तन्हा छोड़ गए आप तो हमें
दर्द उम्र भर ये हिज़्र का सहते रहे हैं…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on January 26, 2024 at 9:30pm — 2 Comments
भले देख लो जग सारा, सबसे प्यारा देश हमारा.
कण कण में इसके अपनापन, अपना भारत सबसे न्यारा.
गंगा यमुना सरस्वती जैसे मिल कर संगम हो जाती.
अनेकताएं विविध यहाँ, एक हो हम दम जो जाती.
प्राचीनतम संस्कृति हमारी, सबको समावेशित कर देती.
अपनी पहचान बनाए रख मा, सबको अपना कर लेती.
सदियों आक्रान्ताओं से जूझे हम, नहीं कभी मिटी हस्ती.
है अमरत्व सनातन का, बनी रही अपनी मस्ती.
कालचक्र परिवर्तन में, राजतन्त्र मिट हुआ लोकतंत्र.
अपने शाश्वत…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on January 26, 2024 at 1:00pm — 1 Comment
राजपूत राजाओं को संगठित करता
एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था
थर-थर कांपते शत्रु जिससे, वह संग्राम सिंह महाराजा था॥
वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें
सिसोदिया वंश का गौरव था
विस्तार किया जो साम्राज्य का, हिंद देश का रक्षक था॥
सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने
खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था
एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥
सतलुज से लेकर नर्मदा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 23, 2024 at 2:54pm — No Comments
दोहा त्रयी. . . सन्तान
सन्तानों के बन गए ,अपने- अपने नीड़ ।
वृद्ध हुए माँ बाप अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।
अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।
क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।
सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।
वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।
सुशील सरना / 19-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 19, 2024 at 1:00pm — 4 Comments
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