11212 11212
इसी में तो मेरा जहान है
ये जो खंडरों सा मकान है
यूँ ही बोलने से बचा करें
यूँ कि तुंद-ख़ू ये ज़बान है
नया खून है वो है जोश में
अभी ज़िंदगी में उफान है
न है आसमाँ न है तू ज़मीं
तुझे ख़ुद पे कितना गुमान है
तेरी जाति क्या है बिसात क्या
तेरा ज़िस्म ख़ाक समान है
न क़ुसूर कोई 'तमाम' अब
न बची उमंग न जान है
मौलिक व अप्रकाशित
(आज़ी…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on January 18, 2024 at 4:30am — 6 Comments
दोहा त्रयी. . . शंका
शंका व्यर्थ न कीजिए, यह दुख का आधार ।
मन का छीने चैन यह , शूलों का संसार ।।
शंका का संसार में, कोई नहीं निदान ।
इसके चलते हों सदा, रिश्ते लहू लुहान ।।
शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार ।
प्यार भरे संसार में, यह भरती अंगार ।।
सुशील सरना / 17-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 17, 2024 at 2:59pm — 2 Comments
अनिमिष नयनों से
वसुधा को
वह गगन निहारा करता है।
शोख पवन
छूकर अवनी को
यूँ ही इतराया करता है।
कितना बेबस!
होकर सागर…
ContinueAdded by Dharmendra Kumar Yadav on January 17, 2024 at 12:49pm — 1 Comment
जिसे कहते भारत का गौरव
आज उस सम्राट की गाथा कहता हूँ
स्वर्णभूमि जो सुख-समृद्धि की, महिमा उस अमरावती की गाता हूँ॥
विश्व का केंद्र जो विश्व की धुरी थी
जिसे उज्जयिनी नगरी कहता हूँ
कीर्ति सौरभ जिसका चहुँ ओर था फैला, उसे महाकाल से रक्षित पाता हूँ॥
स्वर्ण-रजत मोती-माणिक की न कमी जहाँ पर
धन-धान्य से राजकोष को भरा मैं पाता हूँ
सच्चे परितोष थे नगर के जो, उन्हें संज्ञा नवरत्न से सुशोभित पाता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2024 at 10:00am — No Comments
.
कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.
फ़ानी बदन में ख़ुद को समाना पड़ा हमें
.
जश्न-ए-जहान था ही नहीं अपने वास्ते
आ ही गए तो जश्न मनाना पड़ा हमें.
.
फिर जब पहेली मौत…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on January 11, 2024 at 11:53am — 6 Comments
दोहा पंचक. . .
कितनी चंचल हो गई, बूंद ओस की आज ।
संग किरण के घास पर, नाचे बिन आवाज ।।
मौसम आया पोष का, लगे भयंकर शीत ।
मुख से निकले प्रीत के, कंपित सुर में गीत ।।
लो धरती पर हो गया , शीत धुंध का राज ।
भानु धुंधला सा हुआ, छुपा ताप का ताज।।
हरित पर्ण पर ओस ज्यों , लगती जीवन आस।
बूँद- बूँद में कल्पना, कवि की भरे उजास ।।
शीत भगाने के लिए, जलने लगे अलाव ।
धीमी-धीमी आँच में, चली प्रेम की नाव…
Added by Sushil Sarna on January 10, 2024 at 3:29pm — 3 Comments
आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली
बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए
पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना
ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं
मैं आऊँ मैं आऊँ…
ContinueAdded by AMAN SINHA on January 6, 2024 at 11:14pm — 1 Comment
212 212 212 212
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चोर का मित्र जब से बना बादशाह
चोर को चोर कहना हुआ है गुनाह
वो जो संख्या में कम थे वो मारे गए
कुछ गुनहगार थे शेष थे बेगुनाह
आज मुंशिफ के कातिल ने हँसकर कहा
अब मेरा क्या करेंगे सुबूत-ओ-गवाह
खून में उसके सदियों से व्यापार है
बेच देगा वतन वो हटी गर निगाह
एक बंदर से उम्मीद है और क्या
मारता है गुलाटी करो वाह वाह
एक मौका सुनो फिर से दे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2024 at 12:46pm — 2 Comments
करुण रुदन करता नहीं, कोई जाता देख
चाहे लिखता वो रहा, हर दिन सुख का लेख।१।
*
कैसे मुख अब फेर लूँ, मन में लिए सवाल
इस से भी बदतर कहीं, ना हो आगत साल।२।
*
यादें छोड़ तमाम फिर, गया और इक वर्ष
लाभ हानि का लोग क्यों, करते हैं निष्कर्ष।३।
*
स्वागत को हर्षित हुए, करें विदा तो हर्ष
क्या बोलूँ अब मैं भला, कैसा था यह वर्ष।४।
*
साथ समय के नित जिसे, कोसा दसियों बार
वही बिछड़ते दे रहा, नया साल उपहार।५।
*
नये …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 10:00pm — No Comments
2122/१२१२/२२
***
दिल की कालिख सँवार आँखों में
कह रहे सब खुमार आँखों में।१।
*
फिर सुहाता न कोई भी उस को
उग गया जिस के खार आँखों में।२।
*
वार करती है जानलेवा वो
क्या लिए है कटार आँखों में।३।
*
दिल तो बेचैन उस की बातों से
दिख रहा पर करार आँखों में।४।
*
सिर्फ दुख से न होती नम लोगो
हर्ष भी लाता धार आँखों में।५।
*
मन की चाहत सुबास सरसों की
खिल गयी पर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:29pm — 1 Comment
२२१/२१२१/१२२१/२१२
रहती हो जिसके साथ मुसीबत हरी भरी
कैसे हो उस की यार तबीयत हरी भरी।१।
*
वो भाग्यवान तात से जिसको मिले सदा
आशीष लाड़ डाँट नसीहत हरी भरी।२।
*
सबने है आग द्वेष की सुलगा रखी बहुत
रखता है मन में कौन मुहब्बत हरी भरी।३।
*
बढ़ता न ताप दुनिया का ऐसे कभी नहीं
रखते धरा को लोग जो औसत हरी भरी।४।
*
बाँटें दुखों के बोझ को मिलके सदा यहाँ
दो ईश खूब सब को ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:22pm — 2 Comments
किसे बताए फिक्र किसे है, मेरे रहने की मर जाने की
किसे पड़ी यहाँ पर मेरी लिखी बात दोहराने की
मेरे खातिर यहाँ भले क्यूँ अपने आँसू बर्बाद करे
किसको इतनी मोहब्बत मुझसे जो समय अपना बेकार करे
सब अपने है बस अपने हैं, अपने बनकर रह जाएंगे …
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 30, 2023 at 11:01am — No Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2023 at 6:40pm — 2 Comments
गहरे तल पर ठहरे तम-सा,
ठहरा यह जीवन।
*
मौन तोड़ती एक न आहट,
घूरे बस निर्जन।
कौन रुका इस सूने पथ पर,
जो होगी खनखन।
घर आँगन दालानों की भी,
छाँव नहीं कोई।
दूर-दूर तक वीराना है,
गाँव नहीं कोई।
चले हवाएँ गला काटतीं,
सर्द बहुत अगहन।
*
कहीं चढ़ाई साँस फुलाए
कहीं ढाल फिसलन।
क़दम-क़दम पर भटकाने को,
ख़ड़ी एक उलझन।
लम्बा रस्ता पार न होता,
कितना चल आये।
चार क़दम पर…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2023 at 10:00pm — 4 Comments
दोहा पंचक. . . क्रोध
जितना संभव हो सके, वश में रखना क्रोध ।
घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित प्रतिरोध ।।
देना अपने क्रोध को, पल भर का विश्राम ।
टल जाएंगे शूल से, क्रोध जनित परिणाम ।।
शमन क्रोध का कीजिए, मिटता बैर समूल ।
प्रेम भाव की जिंदगी, माने यही उसूल ।।
रिश्ते होते खाक जब, जले क्रोध की आग ।
प्रेम विला में गूँजते, फिर नफरत के राग ।।
क्रोध बैर का मूल है, क्रोध घृणा की आग ।
क्रोध अनल के कब मिटे,…
Added by Sushil Sarna on December 24, 2023 at 12:49pm — 4 Comments
दोहा - सप्तक...
गाफिल क्यों अंजाम से, तू आखिर नादान ।
तेरे इस अस्तित्व की, मिट्टी है पहचान ।।
धू -धू कर यह जिस्म जला, जले साथ अरमान ।
इच्छाओं की रुक गई, मैं - मैं भरी उड़ान ।।
ढह जाएंगे सब यहाँ, पत्थर के प्रासाद ।
मलबे होगे दंभ के, रोयेंगे उन्माद ।।
साँसों का चप्पू चले, धड़कन करती नाद ।
चित्रित अधरों पर हुए, अधरों के अनुवाद ।।
और -और की लालसा, मिटी न मिटे शरीर ।
भौतिक युग का आदमी , रहता सदा फकीर ।।
साथी वो किस काम के ,दें…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 21, 2023 at 12:24pm — No Comments
हरा-केसरिया, श्वेत रंग का, तिरंगा झड़ा कहलाता है
हरियाली-साहस, सत्य दर्शाता
प्रतीक-एकता, अखंडता का बन जाता है॥
राम-कृष्ण-बुध जन्मे जहाँ पर, मन उस पवित्र भूमि को शीश नवाता है
आन-बान-शान भारत देश की
हर भारतीय की जान कहलाता है॥
सभी भाषाओं की जन्मधात्री, संस्कृत, जो सबसे पुरानी भाषा है
विभिन्न उत्कृष्ट संस्कार-संस्कृति की पवित्र…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 21, 2023 at 11:51am — No Comments
2122 1122 1122 22 / 112
अंधा आँखों का है हर शख़्स बता देगा तुम्हें
ख़ार खाया है ये जन्मों का दग़ा देगा तुम्हें
गुरु वो घंटाल ज़माने कभी सय्याद रहा
काट कर पर वो रखेगा जो सज़ा देगा तुम्हें
झाँसे में उसके न आया करो जानाँ कभी तुम
रहती दुनिया का दरिन्दा वो क़जा देगा तुम्हें
है नशा उसको सदारत का कई बज़्म सुना
ना तुम्हारा न वो मेरा ही जता देगा तुम्हें
है वो ख़ुदगर्ज़ निहायत कहीं हद से ज़ियादा
ख़ुद…
Added by Chetan Prakash on December 20, 2023 at 6:00pm — 2 Comments
आवाज़ों से जंग
उषा अवस्थी
आज प्रदूषण बढ़ रहा
बदल-बदल कर रूप
बेचें झाड़ू , वाइपर
चला रिकाॅर्डिंग खूब
चाकू, कैंची औ छुरी
पैनी करते नित्य
मस्तक में छुरियाँ चलें
सुनें रिकॉर्डिंग तिक्त
चादर, कम्बल या बिकें
बने-बनाए वस्त्र
सतत रिकॉर्डिंग चल रही
कर वाणी निर्वस्त्र
असहनीय ध्वनियाँ,मचा
कानों में हुड़दंग
कैसे जीतेगा मनुज
आवाज़ो से…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 18, 2023 at 11:55am — No Comments
दोहा पंचक. . . .
साथ श्वांस के रुक गया, जीवन का संघर्ष ।
आँचल अंक विषाद के, मौन हुआ हर हर्ष ।।
जैसे-जैसे दिन ढले, लम्बी होती छाँव ।
काल समेटे जिन्दगी, थमते चलते पाँव ।।
इच्छाओं की आँधियाँ, आशाओं के ढेर ।
क्या समझेगी जिन्दगी, साँसों का यह फेर ।।
पगडंडी पक्की हुई, क्षीण हुए सम्बंध ।
अर्थ क्षुधा में खो गई, एक चूल्हे की गंध ।।
पत्थर सारे मील के, सड़क किनारे मौन ।
अपने अन्तिम अंक को, पढ़ पाया है कौन…
Added by Sushil Sarna on December 17, 2023 at 11:30am — 2 Comments
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