For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

शिशिर (नवगीत पर एक प्रयास)

शीत जैसे जम गयी,

नम धूप लगती है।

 

ठिठुरते रात भर

सार में सारे ही पशु

भोर कि शाला में

ठिठुरते सारे ही शिशु,

फिजां रंगीन दिखे

मन रूप लगती…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on January 30, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे/चौबारे क्‍यों हमें डराय

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे

चौबारे क्‍यों हमें डराय.. .

उदयाचल का

कोई जादू

कंगूरों पर

चल ना पाय

**कल जोड़े

भयभीत किरण भी

पल-पल काया

खोती जाय

पड़े तीलियों

के भी टोंटे

झूठे दीपक कौन जलाय ?

कहो दर्द के.....................

रोटी-बेटी

पर चिनगारी

रोज पुरोहित

ही रख आय

उलटा लटका

सुआ समय का

बड़े नुकीले

सुर में गाय

हर फाटक…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 12:30pm — 12 Comments

कभी नहीं बन सकता

कभी नहीं बन सकता हूँ मै हरिश्चंद्र जी का अनुगामी

..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||

कितने ही शब्दों को मैंने सच्चाई से डरते देखा

अपने ही भावों को अक्सर अंतर्मन में मरते देखा

दुःख की सर्द सुबह और रातें पीड़ा की गर्मी भरते हैं

आहों की स्वरलहरी दबकर आत्मपीड मंथन करते हैं

कल्पित दुनिया नहीं मिटा सकती है सच की सूनामी

..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||

नहीं मिला है मुझे अभी तक दर्पण जैसा परम हितैषी

खोजे केवल मुझको मुझमे…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 12:16pm — 7 Comments

क्या जाने ..!!

कब होंगीं बातें 

क्या जाने ..!!
 
खटरागों से 
भरी जिंदगी ,
बिसरा प्रेम 
और बंदगी !
जिनमें…
Continue

Added by भावना तिवारी on January 30, 2013 at 12:16pm — 10 Comments

ग़ज़ल : बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

आदरणीय गुरुजनों, मित्रों एवं पाठकों यह ग़ज़ल मैंने तरही मुशायरा अंक -३१, हेतु लिखी थी परन्तु समय न मिलने के कारण न तो प्रस्तुत कर सका और नहीं है मुशायरे में अच्छी तरह से भाग ले सका. क्षमा प्रार्थी हूँ सादर

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,

कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,

बदलता गया…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 11:19am — 18 Comments

रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने

जुरत-आमोज मेरे दिल ये क्या किया तूने

खगूर-ए-हम्द से भी कर लिया गिला तूने



फ़िक्रे-फ़र्दा न कोई गम कभी रहा हमको

कजा से संग दिल मेरे बचा लिया तूने



सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन

हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने



अजल से चल रहा है क्या कभी ये सोचा है

रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने



खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ

जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??



संदीप पटेल "दीप"



जुरत-आमोज - साहस सिखाने…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 29, 2013 at 9:09pm — 14 Comments

"धमाके के बाद "

क्यूँ छलक रहा अश्रु मेरा ,
क्यूँ जा रहा सुख मेरा !
करुणा बढ रही ह्रदय में ,
हाहाकार है स्वरों में !!

क्या ज़िन्दगी यहाँ सस्ती है ,
यह शमशान या बस्ती है !
जहाँ करते आमोद -प्रमोद सानन्द,
अब वीरान पड़ा है भू-खंड !

क्यूँ हो रहे तुम अधीर ,
प्रश्न करते ये मृत शरीर!
दिल से बस आह !निकलती,
जिनकी पूर्ति नम ऑंखें करती!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on January 29, 2013 at 7:19pm — 7 Comments

कोरा कागज़

कोरा कागज़

अगर तू चाहती तो कभी भी

कोरे कागज़ पर मुझको

अँगूठा लगाने को कह सकती थी

और जानती हो, मैं..

मैं ‘न’ न कहता ।

उस कोरे कागज़ पर फिर

तुम कुछ भी लिख सकती थी।



तुमने मेरे नाम पर मुझसे

अधिकार माँगा

मैंने वह आँखें मूँद के दे दिया,

पर जब "तुम्हारे" अपने नाम पर तुमने

मुझसे अधिकार माँगा,

मेरे ओंठों पर हर पल नाम तुम्हारा था,

अत: यह अधिकार मैं तुम्हें दे न सका ।



मेरे धुँधँले-धुँधले सुलगते वजूद ने

नीदों…

Continue

Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 3:00pm — 17 Comments

संस्मरण .... अमृता प्रीतम जी

संस्मरण ... अमृता प्रीतम जी

यह संस्मरण एक उस लेखक पर है जिसने केवल अपनी ही ज़िन्दगी नहीं जी, अपितु उस प्रत्येक मानव की ज़िन्दगी जी है जिसने ज़िदगी और मौत को,खुशी और ग़म को, एक ही प्याले में घोल कर पिया है  ... जिसके लिए ज़िन्दगी की "खामोशी की बर्फ़ कहीं से भी टूटती पिघलती नहीं थी।"

यह संस्मरण उस महान कवयित्रि पर है जो सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही...."पर मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई आवाज़ दे, और मैं यह भी जानती हूँ, मेरी…

Continue

Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 1:00pm — 17 Comments

"पैसे की दुनियां "

वाह रे पैसा ,

पैसे का अहंकार !

पैसे से सबकुछ

खरीदने को तैयार !

तो जाओ !!

पैसे से दो बूंद,

आंसू खरीद लाओ!

पैसे से खुशियों की,

एक दुकान तो लगाओ !

पैसे से रोते बच्चे को ,

एक मीठी नींद सुला दो !

वर्षों से खड़े वृक्षों को

थोड़ी सी सैर करा दो!!

पैसे से किसी का

दर्द कम कर दो

पैसे से किसी के दिल में

प्यार और सदभावना भर दो !

पैसे से ओंस की बूंदों में,

रजत आकर्षण डाल दो!

वीरान पड़े…

Continue

Added by ram shiromani pathak on January 28, 2013 at 1:30pm — 3 Comments

परेशानियाँ

बिन बुलाये आ जाती हैं

कहने पर कहाँ जाती हैं

और हम भी दिन- रात

सोते- जागते

उठते-बैठते 

उन्ही को याद करते हैं

उन्ही के बारे में सोचते हैं

उनके बिन जैसे जीना मुहाल है  

हमारे पास वक़्त नहीं है

और वो ठहरे फ़ुरसतिया 

फिर भी कौन ऐसा है 

जो नहीं करता उनकी खातिर

आखिर हैं तो अपनी ही न

छोड़ भी तो नहीं सकते

जीने के लिए वही तो वजह है

.

.

.

.

.

कितनी अजीज होती हैं न !

ये "परेशानियाँ"



संदीप पटेल…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 27, 2013 at 8:42pm — 5 Comments

उडती चिड़िया काट लिए ‘पर’ कहाँ प्यार है ??

भारत देश हमारा प्यारा, न्यारा इसका संविधान है

शीतल  धवल दुग्ध धार है कहीं उबलता क्या विधान है

तरह तरह की भाषा बोली हैं हम जोली

दुश्मन-मित्र हैं अपने घर ही कहीं है गोली

आस्तीन के सांप बनाये रखना दूरी

तिलक देख है  फंस -फंस जाती भोली-

जनता ! त्राहि -त्राहि कर न्याय मांगती

मुंह में राम बगल में छूरी  कहाँ जानती…

Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on January 27, 2013 at 12:58pm — 2 Comments

व्यंग्य : निबुहवा बाबा

एक बालक था | बालक बेरोजगार था | बहुत प्रयास किया, पर सही रोजगार नहीं मिला | अंततः थक हारकर वो जुगाड़ू बाबा की शरण में गया | उसने जुगाड़ू बाबा को अपना दुखड़ा सुनाया | उसका दुखड़ा सुनकर जुगाड़ू बाबा ने उसे दो मिर्च, एक काला धांगा और एक नींबू दिया और बोले इनको गूथ और बेच | बालक बोला- बाबा ! ये क्या रोजगार है ? बालक की बात सुनकर ऐसे मुस्कुराये जुगाड़ू बाबा, जैसे बालक ने कोइ बचकानी बतिया दी हो | वो बोले - बालक ! तू अभी अनुभवहीन है, तुझे इस संसार का कुछ नहीं पता है, इसीलिए ऐसी बेतुकी बात पूछ रहा है | इस…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on January 27, 2013 at 12:30pm — 6 Comments

बहुत पुराना खत हाथों में है लेकिन,खुशबू ताज़ी है अब तक संवादों की

बहुत पुराना खत हाथों में है

लेकिन,

खुशबू  ताज़ी है

अब तक संवादों की 

हल्दी के दागों में

आँचल की सिहरन  

माँ की उंगली के

पोरों का वो कंपन 

नाम लिखा है मेरा,

जब जब जहाँ वहाँ 

फ़ैल गयी है

स्याही महकी यादों की

चन्दन चन्दन बातें

घर चौबारे की

मेंहदी की साज़िश

से छूटे द्वारे की

अक्षर अक्षर गमक रहा

मौसम मौसम

शब्द शब्द  हैं गंध

नेह…

Continue

Added by seema agrawal on January 27, 2013 at 12:00pm — 3 Comments

कैसा है गणतंत्र

कैसा है गणतंत्र  
 
घर घर जाकर देख ले, महिला है परतंत्र, 
गणतंत्र हम किसे कहे, हम पर हावी तंत्र 
 
दफ्तर जाकर देख ले, कैसा है गणतंत्र,
अफसर करे न चाकरी, हावी होता तंत्र 
 
खेल जगत में देख ले,…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 26, 2013 at 6:30pm — 6 Comments

क्रमशः -जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन की संक्षिप्त रपट - लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

जयपुर के दिग्गी हाउस में चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल जावेद अख्तर और प्रसून जोशी सहित कई साहित्यकारों ने विभिन्न विषयों पर अपनी राय और अनुभव साझा करते हुए सेशन को गरमाया ।

ओ बी ओ के सुधि पाठकों के लिए दूसरे दिन (दि 25-1-13)के कुछ प्रमुख अंश प्रस्तुत है :-

जावेद अख्तर के छोटे से जुमले ने लोगो के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी । अलग अलग जुबां भी कैसे रिश्ते और लोगो को जोड़ती है जावेद ने इसकी कई मिसाल दे डाली । इस गजल सत्र में वे हिंदुस्तानी जुबान की पहचान पर तल्ख़ दिखे तो उर्दू…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 26, 2013 at 2:30pm — 6 Comments

राजी कैसे मन को कर लूं मैं गणतंत्र मनाने को?

आओ मिल गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रगान का गान करें,

संकल्पित सपनों की आओ फिर से नयी उड़ान भरें.

नये जोश से ओत प्रोत हो हम गणतंत्र मनाते हैं,

लोकतंत्र में हो स्वतंत्र हम राष्ट्र गीत को गाते हैं..

किन्तु चाहता प्रश्न पूंछना लोकतंत्र रखवारों से,

सार्थकता क्या बची रहेगी इन ओजस्वी नारों से.

क्या तुमको भूंखे बच्चों की चीख सुनाई देती है,

क्या तुमको कोई अबला की पीर दिखाई देती है.

क्या तुमने बेबस माँओं की गोद उजड़ते देखा है.

कितनी मांगों…

Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 26, 2013 at 2:30pm — 2 Comments

यह तेरी अर्जी है.....

यह तेरी अर्जी है
या फिर खुदगर्जी है

सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है

मैं तुम से रूठा हूँ
तुहमत ये फर्जी है

दिल मेरा है सोना
बहता गम बुर्जी है

गर्दिश, ग़ज़लें, गश्ती
यह मेरी मर्जी है 
~अमितेष
("मौलिक व अप्रकाशित")

Added by अमि तेष on January 26, 2013 at 1:13pm — 9 Comments

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत: संजीव 'सलिल'

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:

लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर

संजीव 'सलिल'

*

लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर

भारत माता का वंदन...



हम सब माता की संतानें,

नभ पर ध्वज फहराएंगे.

कोटि-कोटि कंठों से मिलकर

'जन गण मन' गुन्जायेंगे.

'झंडा ऊंचा रहे हमारा',

'वन्दे मातरम' गायेंगे.

वीर शहीदों के माथे पर

शोभित हो अक्षत-चन्दन...



नेता नहीं, नागरिक बनकर

करें देश का नव निर्माण.

लगन-परिश्रम, त्याग-समर्पण,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 26, 2013 at 8:00am — 12 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service