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क्रमशः -जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन की संक्षिप्त रपट - लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

जयपुर के दिग्गी हाउस में चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल जावेद अख्तर और प्रसून जोशी सहित कई साहित्यकारों ने विभिन्न विषयों पर अपनी राय और अनुभव साझा करते हुए सेशन को गरमाया ।
ओ बी ओ के सुधि पाठकों के लिए दूसरे दिन (दि 25-1-13)के कुछ प्रमुख अंश प्रस्तुत है :-
जावेद अख्तर के छोटे से जुमले ने लोगो के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी । अलग अलग जुबां भी कैसे रिश्ते और लोगो को जोड़ती है जावेद ने इसकी कई मिसाल दे डाली । इस गजल सत्र में वे हिंदुस्तानी जुबान की पहचान पर तल्ख़ दिखे तो उर्दू को किसी धर्म की भाषा मानने पर एतराज भी जताते हुए कहा की कोई भाषा किसी क्षेत्र विशेष की तो हो सकती है, लेकिन धर्म या सम्प्रदाय की नहीं । राजनीतिज्ञों पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा की राजनेता गजल पढ़ते है, लेकिन मुझे उनके गलत पढने पर एतराज है । "जिन्हें प्यार है उन्हें कम से कम। जिन्हें नहीं उन्हें दम-ब-दम, मेरे साक़िया मुझे ये बता, तेरे मयकदे का मिजाज है कि मजाक" जैसे शेर के जरिये राजनैतिक व्यवस्था पर भी चुटकी ली । सत्र में उन्होंने अपनी गजल भी सुनाइ । उन्होंने एक शिक्षक की तरह गजल, गजल और नज्म के अंतर, गजलो के शेरो में इस्तेमाल हो रही उपमाओं के संकुचित अर्थ पर खुलकर बात की । गजल कैसे इरान जाकर अपने आयामों को और फैलाकर रदीफ़ के रूप में विकसित हो सकी, कैसे वह महबूब के आगोश से निकलकर व्यवस्था पर चोट करने में समर्थ हुई और कैसे ग़ालिब और मेरे के गजलों से प्रगतिशीलता का रास्ता दिखाया, इसे भी बखूबी समझाया । एक शेर "इमां मुझे रोके तो खिचे है मुझे इश्क,काबां मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे" का जिक्र करते हुए ग़ालिब की दूरंदेश नजर के बारे में बताया ।
प्रसून जोशी - गीतकार प्रसून जोशी कहते है कि माँ के रश्ते को इतना गौरवान्वित किया है कि इसने औरत से उसकी निजता ही छीन ली ।औरत को लेकर तेजी से बदल रही समाज की सोच फेस्टिवल के दौरान खुलकर सामने आई । फिल्म अभिनेत्री शबाना अजमी और प्रसून जोशी ने औरत की सेक्सुअलिटी से जुड़े प्रश्नों को कुछ इस अंदाज में बयां किया कि वहा फ्रंट लॉन में औरत को लेकर पीढ़ियों के बीच सोच में आदमकद बदलाव सामने आया । शबाना आजमी ने फिल्म निर्माताओ की नियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि औरत की सही छवि पेश नहीं करते और औरत को सौन्दर्य को नहीं, बल्कि उसकी देश को वस्तु बनाकर पेश कर रहे है ।
प्रसून जोशी ने कहा कि उन्होंने गालियों पर रिसर्च की है । भारतीय गालियों में माँ या बहिन पर निशाना साधा जाता है, जबकि पश्चिमी समाज में सीधे उसे कहा जाता है जिसे कहना होता है । उन्होंने पुरानी कहावतो - "डोली आई है,अर्थी जावेगी'" "दूधो नहाओ पूतों फलो, और चूड़ियाँ पहन कर बैठा है" जैसी कहावतो को महिला विरोधी बताया ।
साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कही कि दुनिया में भारत संभवतः एक मात्र देश ऐसा है, जहा रामायण और महाभारत महाकाव्य रोजमर्रा की जिन्दगी में सुने, देखे और कम से कम पांच हजार परफोर्मेंस रोज किये जाते है । भारत में क्लासिकल रोजमर्रा जिन्दगी का हिस्सा है । कवि जब खुद की आवाज से थक जाते है तो नई आवाज के लिये अनुवाद करते है ।
अन्य साहित्यकारों में शर्मीला टैगोर, एंड्रयू सोलोमन, मधु त्रेहान, होमी भाभा, रेंज असलन,जाने माने इटालियन लेखक कार्लो पिज्जाती अदि कई लब्ध प्रतिष्ठित लेखको ने भी फेस्टिवल में शिरकत कर अपने अनुभव बांटे ।

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 2:19pm

 अवस्य ही पूरी कर सबके लाभार्थ पोस्ट करे, हमें इन्तजार रहेगा

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 1:49pm

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की प्रथम दिन के रपट के बाद दुसरे दिन की रपट भी बनाकर पोस्ट की 

अपने प्रथम दिन की भी पढ़ी होगी । दो दिन की रपट पर विशेष उत्साह नहीं देख आगे की रपट नहीं लिखी । वर्ना अंतिम दिन की संक्षिप्त रपट लिख कर विशेष लेखको के महत्वपूर्ण अंश भी लिखकर पोस्ट करने का विचार था । एक तो ओबी ओ पर उन दिनों महोत्सव में तीन दिन सुधि पाठको की व्यस्तता भी रपट न पढने का कारन रहा । अब उपलब्ध करना मुश्किल होगा श्री किशन कुमार जी । रपट पढने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 30, 2013 at 1:30pm

हार्दिक आभार भाई श्री राजेश कुमार झा जी, प्रथम दिन और दुसरे दिन की दो रपट के बाद ओ बी ओ के सुधि पाठको उत्साह में कमी के कारण ही शेष दिनों की रपट तैयार नहीं की । शायद सब मुशायरे में गए हुए थे । आपका पुनः आभार 

Comment by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 1:19pm

बढि़या रिपोर्ट दी है आपने आदरणीय लड़ीवाला जी, इससे पता लगता है कि कितने विद्वान वहां रहे और कितने केवल पहचान बनाने के लिए झाड़-झंकाड़ में मुंह घुसाते रहे । आगे भी आपसे अपेक्षाएं रहेंगी, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 27, 2013 at 5:44pm

जपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन की रपट पढ़ कर सराहना करने के लिए धन्यवाद सीमा जी, जावेद अख्तर और महाश्वेता देवी के विचार प्रथम दिन की रपट में भी पढ़ सकते है । पाठको की उत्सुकता होती तो आगे के दिनों का विवरण भी प्रस्तुत किया जा सकता है । पुनः धन्यवाद आद सीमा अग्रवाल जी ।

Comment by seema agrawal on January 27, 2013 at 3:28pm

जयपुर  में चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल का  विवरण बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है आपने ,जाबेद अख्तर जी का ये बयान कि भाषा किसी क्षेत्र विशेष की तो हो सकती है, लेकिन धर्म या सम्प्रदाय की नहीं एक विद्वान का ही  नज़रिया हो सकता है.....बहुत बहुत धन्यवाद इस रिपोर्ट के लिए 

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