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यह तेरी अर्जी है.....

यह तेरी अर्जी है
या फिर खुदगर्जी है

सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है

मैं तुम से रूठा हूँ
तुहमत ये फर्जी है

दिल मेरा है सोना
बहता गम बुर्जी है

गर्दिश, ग़ज़लें, गश्ती
यह मेरी मर्जी है 
~अमितेष
("मौलिक व अप्रकाशित")

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Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 11:22am

वाह अमितेष छोटी बहर में शानदार ग़ज़ल बन पड़ी है दाद कुबूलें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 30, 2013 at 10:38am

सुन्दर ग़ज़ल अमितेष जी, हार्दिक दाद क़ुबूल करें इतनी छोटी बहर पर इतना भाव प्रधान व प्रवाहमय लिखने के लिए.

एक बात: क्या मर्जी दर्जी अर्जी फर्जी खुदगर्जी के साथ बुर्जी लेना सही होगा????


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2013 at 10:12am

सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है----बहुत उम्दा शेर ,वैसे पूरी ग़ज़ल ही काबिले तारीफ है 

Comment by अमि तेष on January 28, 2013 at 2:02pm

sukriya

Comment by ram shiromani pathak on January 28, 2013 at 1:50pm

वाह वाह क्या रचना है!

Comment by अमि तेष on January 27, 2013 at 5:59pm

शुक्रिया सीमा जी 

Comment by seema agrawal on January 27, 2013 at 4:05pm

वाह वाह .....इतनी छोटी बहर में बहुत  बहाव  के साथ गज़ल कही है आपने काफिया भी बहुत रोचक है 

यह तेरी अर्जी है
या फिर खुदगर्जी है

मैं तुम से रूठा हूँ
तुहमत ये फर्जी है

.....बात करते हुए शब्द 

सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है...वाह कुछ नयापन मिला इस बात में (पर यहाँ है की जगह रदीफ  हैं हो गया है शायद देख लीजियेगा )

गर्दिश, ग़ज़लें, गश्ती
यह मेरी मर्जी है ..........क्या कहने 

बढ़िया गज़ल अमितेष जी 

Comment by अमि तेष on January 27, 2013 at 12:58am

शुक्रिया गणेश दादा 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 26, 2013 at 2:17pm

//सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है//

सुन्दर कहन , अच्छी ग़ज़ल , बधाई अमितेष जी ।

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