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इश्क में हो गये है शेर सब

इश्क में हो गये है शेर सब 
शेरनी की गरज पर ढेर सब 

है बनी शायरी अब फुन्तरू 
आम से हो गये है बेर सब 

हां कलम भी कभी हथियार थी 
चुटकुला अब, समय का फेर सब 

जे छपे, वे छपे, हम रह गये 

चाटने में हुई है देर सब 

खो गये मीर, ग़ालिब, मुसहफ़ी 
लिख रहे है खुदी को जेर सब 
~अमितेष 
मौलिक व अप्रकाशित 

फुन्तुरु - मजाक 
मीर - मीर तक़ी 'मीर'

ग़ालिब - असद उल्लाह खां ग़ालिब 
मुसहफ़ी - शैख़ गुलाम हम्दानी मुसहफ़ी 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 2:20pm

उर्दू शब्दों का अर्थ बताने से आपके बात हर पाठक तक पहुचती है ..और सीखने को भी मिलता है ..सादर बधाई के साथ 

Comment by अमि तेष on June 6, 2013 at 9:38am

 Abid ali mansoori jee, Shyam Narain Verma jee,  coontee mukerji jee,  संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' jee,  MAHIMA SHREE jee, Saurabh Pandey jee,  रविकर jee और  वीनस केसरी भाई  .......... आप सभी का शुक्रिया ..... सौरभ जी ..वीनस भाई मेंरे बड़े भाई जैसे है .....और मेंटर है ......उनकी हर बात मेरे लिए महत्वपूर्ण है ..... 

Comment by रविकर on June 6, 2013 at 9:03am

गजब---


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 7:39am

अरे वाह !!

अमितेष भाई जी, क्या ग़ज़ब किया है आपने.. . ::-))))

इस मासूम मग़र निहायत चुलबुले तंज़ को बचा कर रखियेगा, आगे यह जवान हो कर ग़ज़ब ढाने वाला है.. . 

दाद .. भरपूर दाद..

वीनस भाई के कहे में दम है, देखियेगा..

Comment by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 1:19am

भाई जी अच्छी ग़ज़ल कही है और अशआर बहरो वज्न में दुरुस्त भी हैं मगर अपने जो अरकान चुना है वह लयात्मक और अनुमत्य है इस पर मुझे शंका है

अगर इसे २१२ / २१२ / २२१२ से बदल कर २१२२ / २१२२ / २१२ कर लें तो रचना विधान के अनुरूप हो जायेगी

आपकी सुविधा के लिए मतले पर एक सुझाव प्रस्तुत है देखें लयात्मकता कैसे कई गुना बढ़ गई है ....
इश्क में यू / तो हुए है शेर सब 
शेरनी की इक गरज पर ढेर सब

इश्क में यू / तो हुए है / शेर सब 
शेरनी की / इक गरज पर / ढेर सब

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 12:06am

हा हा  क्या बात है अमितेष जी .. बहुत ही बढ़िया!!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 9:00pm

बढ़िया तन्जीदा लेखन.. बधाई हो अमितेष जी!

Comment by coontee mukerji on June 5, 2013 at 7:08pm

वाह  ! क्या अंदाज़ है . मनोरंजक ./ सादर

Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 12:08pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 10:04am
वास्तविकता की झलक दिखाई देती है जनाब आपकी रचना मेँ,बधाई!

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