For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने

जुरत-आमोज मेरे दिल ये क्या किया तूने
खगूर-ए-हम्द से भी कर लिया गिला तूने

फ़िक्रे-फ़र्दा न कोई गम कभी रहा हमको
कजा से संग दिल मेरे बचा लिया तूने

सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन
हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने

अजल से चल रहा है क्या कभी ये सोचा है
रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने

खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ
जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??

संदीप पटेल "दीप"

जुरत-आमोज - साहस सिखाने वाला
खगूर-ए-हम्द - प्रशंसा करने के आदी
फ़िक्रे-फ़र्दा - कल की चिन्ता

Views: 786

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 4:49pm

आदरणीया उपासना जी .....ग़ज़ल को सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 4:48pm

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम

आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन सार्थक हुआ ..

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by upasna siag on February 1, 2013 at 5:17pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल 

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 31, 2013 at 10:39pm

आदरणीय भाई संदीप जी सादर, वाह वाह बहुत बढ़िया गजल रची है.बहुत बहुत दाद कबूलें. इस बात के लिए भी कि कुछ उर्दू लफ्जों का हिंदी मायना भी आपने लिख दिया है.वरना हम जैसे जो हिंदी ठीक से नहीं समझ पाते उर्दू को कैसे समझ पायें.आभार.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 8:50pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम

आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपसे दाद मिली

बहुत हर्ष हुआ

अपना ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2013 at 8:22pm

प्रिय संदीप शानदार ग़ज़ल कही है उर्दू शब्दों का इस्तेमाल भी सही जगह किया है दाद कबूलें 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:51pm

जी आदरणीय ये तो सिर्फ प्रयोग की तरह इस्तेमाल कर लिया है आगे ख्याल रखूँगा की आसान शब्दावली स्तेमाल हो

आपका बहुत बहुत शुक्रिया सराहना हेतु

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:50pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम

आपने ग़ज़ल पसंद की उसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया और आभार

स्नेह यूँ ही बनाए रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:48pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार भाई अरुण जी .......

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:47pm

आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

आपने सच कहा लेकिन उन दोनों शेर को लिखते समय एक जुनू था की कहीं ये अर्थ भूल न जाऊं तो प्रयोग ही कर लेता हूँ

इस तारीफ़ और हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service