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क्यूं

मुझे क्यूं लगता है , तुम्हे खो दुंगा ,

तुम्हें पा लिया है ,

ये भी तो मात्र एक भ्रम है !

जाने क्यूं लगता है ,रो दुंगा ,

ये भी तो मात्र एक भ्रम है !

नदी के किनारों सा,

साथ चलते चलते ,

क्यूं समझता हूँ ,मिलन होगा !

अनवरत साथ बह पा रहा हूँ ,

ये भी तो मात्र एक भ्रम है !

जाने क्यूं समझता हूँ ,

तुम, ये, वो सब मेरा है !

शाशवत सच ये कहता है ,

जो भोग लिया वो सपना है ! ,

जो उकेर दिया भाव ,वो अपना है !

प्रकृति का मात्र यही एक क्रम…

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Added by D P Mathur on June 15, 2013 at 2:30pm — 6 Comments

कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर

आशा के सहारे इंसान अपनी सारी उम्र गुजार देता हैI यही कि अब अच्छा होने वाला है अब सब सही हो जाएगा1 मैं सोचती हूँ क्या सचमुच सब सही हो जाएगाIजिंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लगेगी1भगवान देता है माना पर मुझे दिया अस्त-व्यस्त बिखरा हुआI अब उसे समेटना हैI यहाँ संभालो तो वहाँ की चिंता,वहाँ संभालो तो यहाँ की चिंता क्या करूं?पता नही कब सब कुछ सही होगा,होगा की नही1 जीवन के इस करूक्षेत्र में आशा और निराशाके इस महाभारत में कहीं कौरव न जीत जाए1भगवान कृष्ण तुम कहाँ हो? सुनते क्यों नही ?पुकारते-पुकारते थक गई…

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Added by Pragya Srivastava on June 15, 2013 at 11:41am — 4 Comments

पानी जैसा होइए

!!!ःः! दोहे !ःः!!!



पानी - पानी हो रही, लोकतंत्र सरकार।

हर क्षेत्र में असफल है, देश विदेश करार।।1

पानी नकसिर चढ़ गया, लोक तंत्र बेहाल।

जल संसाधन लूटता, बोतल भर कर माल।।2

जल संकट से घिर गया, अब यह पृथ्वी लोक।

जन मन रंजन कर रहा, नहि भविष्य का शोक।।3

क्षीण बाल रवि तेज है, प्रखर प्रचण्डहि धूप।

सलिल अंबु जीवन लिए, मिलते नहि नल कूप।।4

जल ही जीवन जान लें, नीर वारि पय तोय।

सृष्टि पानी बिना नहीं, धरा हवा नभ…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 9:11am — No Comments

गीतिका : हम झुनझुना हो गए !

वो दिखे ही नहीं इन दिनों 

दूज का चन्द्रमा हो गए 

इतने बीमार हम भी नहीं 

अपनी खुद ही दवा हो गए 

हैं सु-फल आपकी दृष्टि के 

क्या थे हम और क्या हो…

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Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 14, 2013 at 11:51pm — 13 Comments

!!! कुण्डलियां !!!

!!! कुण्डलियां !!!

तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।
नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता।
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2013 at 9:00pm — 16 Comments

मन की किताब के कुछ पन्ने

       मन की किताब के कुछ पन्ने

       तुमको सुनाती हूँ मैं

       कहीं पे हैं खुशियाँ खुद को समेटे

       और गम हैं देखो चादर में लिपटे

       सलवटें हजारों दर्द की पड़ी हैं

        आशा की किरण पट खोले खड़ी है

        खिड़कियों से उमंगें पवन बन के आती

        देखो झरोखों से फिर जा रही हैं

       कमरे के कोने में छिपी बैठी चाहत

       लाल सुर्ख साड़ी में मुस्कुराहट शरमा रही है

       हंसी फूलों में खिलखिला रही…

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Added by Pragya Srivastava on June 14, 2013 at 8:00pm — 4 Comments

मेरे पिता : सरिता भाटिया

मेरे पिता एवं भाई 



माँ ने जो बेशुमार प्यार दिया,

पिता ने चुपचाप दुलार किया !…

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Added by Sarita Bhatia on June 14, 2013 at 7:00pm — 24 Comments

सूनापन ..

रात में, मैं कतई अकेला होता हूँ..
और निर्जन अकेले में जो सभा जुटती है ..
उसमे जो कहते - कहते थकता नहीं है.
और सुनते - सुनते चीखने नहीं लगता है .
वह केवल में है होता हूँ...
क्यूंकि, मुझे अपने हिस्से करने आते हैं ..
और बांटने के सिवाय हार के और क्या है..
मेरे साथियों के पास ...
मेरे लिए कोई नहीं जी सकता ..
सब अपने लिए .. आकर जाने की तयारी करते हैं.. ..
रात में, मैं कतई अकेला होता हूँ..



"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Amod Kumar Srivastava on June 14, 2013 at 5:13pm — 14 Comments

प्रेम तुम्‍हारी कविता है

प्रेम तुम्‍हारी कविता है…

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Added by राजेश 'मृदु' on June 14, 2013 at 2:01pm — 11 Comments

वक़्त लगता है गहरा जख्म भरने में |

वक़्त लगता है गहरा जख्म भरने में |
वर्षों लगता है जिन्दगी सँवरने में |
जिन्दगी के मोड़ पर मिलते हैं  राही ,
पर सभी हिचकते हैं मदद  करने  में |…
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Added by Shyam Narain Verma on June 14, 2013 at 1:28pm — 10 Comments

!! भजन !!

!! भजन !!

जब चारो ओर अन्धेरा हो ।…

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Added by बसंत नेमा on June 14, 2013 at 1:16pm — 10 Comments

मधु गीति - कारीगरी करतार की

मधु गीति

 

कारीगरी करतार की

 

कारीगरी करतार की देखे चली हर जिन्दगी;…

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on June 14, 2013 at 4:00am — No Comments

दो ग़ज़लें

आपने चाहा ही नहीं दर्द का दरमां होना 

कितना आसान था दुश्वार का आसां होना 

.

आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता 

आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना 

.

नाम ए मर्ग है फूलों के लिए काली घटा 

दोशे गुलनार पे ज़ुल्फों का परेशां होना

.

वक़्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है 

भूल से भी न कभी वक़्त पे नाजां होना 

.

दिल पे अज्ञात के जो गुजरा है वो ज़ाहिर है 

इस तरह आप का लहरा के पेरीजां होना 

.

ज़ेब = शोभा , नाजाँ =…

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Added by Ajay Agyat on June 13, 2013 at 9:00pm — 9 Comments

ज़र्द दस्तावेज़

     

जिन्हें जन्म दिया

पाला-पोसा बड़ा किया

उन्हीं जिगर के टुकड़ों ने

माँ –बाप को घर से निकाल दिया

 

संगम पर मिली मुझे इक बेबस माँ

वो मेरे साथ होली

इक रोटी मांगी और बोली

“ मैं अनपढ़ हूँ भिखारिन नहीं हूँ ,

 पिछले बरस मेरा बेटा मुझको यहाँ छोड़ गया है ,

 तबसे उसका इंतज़ार करती हूँ ,

 हर आने जाने वाले से रोटी मांगकर ,

 उसका पता पूछती हूँ ”

 

हाय ! वृद्धा माँ से छुटकारा पाने के लिए

बेटा माँ…

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Added by vijayashree on June 13, 2013 at 5:00pm — 17 Comments

सुबह-सुबह

मेरे आंगन में आती

सुबह-सुबह

किरणे सूरज की

आंगन की बेल का उठ…

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Added by Sumit Naithani on June 13, 2013 at 4:00pm — 21 Comments

दृष्टिकोण

   

कल ही की तो बात है

अध्यापन शुरू किया था मैंने

आज आया है एक नया सवेरा

विदाई समारोह होना है मेरा

समय चक्र घूमता ही रहता

हमें इसका आभास न होता

पर सच्चाई यही थी

सहकर्मियों व कर्मस्थली से

होनी मेरी आज विदाई थी

जीवन में आनेवाली शून्यता का

अहसास हो रहा था

इस पीड़ा को व्यक्त करना  

शब्दों में असंभव था

खैर ..विदाई तो होनी थी हो गई

मेरी कर्मस्थली मुझसे जुदा हो गई

अब क्या करूँ ..कैसे करूँ…

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Added by vijayashree on June 13, 2013 at 12:56pm — 11 Comments

सच

सच एक सवाल हो गया

झूठ का धमाल हो गया

कमाल हो गया, कमाल हो गया

नोट है तो वोट है

हर चीज में खोट है

चोट पर चोट है, चोट पर चोट है

धूप है छाँव है

अनकहे,अनछुए घाव ही घाव हैं

नोचता ,कचौटता मन को मसौसता

राह का पता नही ढ़ूढ़ता फिर रहा

कोई तो बता दे

ये सच कहाँ रहता है

 

 

 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Pragya Srivastava on June 13, 2013 at 12:33pm — 7 Comments

सोचा न था..

यूँ तो तक़दीर ने देखे हैं मोड़ कई ...

जिंदगी यूँ ही मुड़ेगी कभी सोचा न था..

कई ज़माने से  प्यासा हूँ में यहाँ ..

ओस से प्यास बुझेगी कभी सोचा न था..

यूँ तो फिरते हैं कई लोग यहाँ ..

गुदड़ी में लाल मिलेगा कभी सोचा न था ..

किस्मत ने दी है हर जगह दगा ..

मुकद्दर यूँ ही चमकेगा कभी सोचा न था ..

खून करे हैं सभी के अरमानों के हमने..

खून मेरा भी होगा कभी सोचा न था..…

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Added by Amod Kumar Srivastava on June 13, 2013 at 10:35am — 6 Comments

रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है

क्षुद्र बुद्धि और है पराक्रम भी क्षुद्र आज ज्ञान से मनुष्य ने बना ली बड़ी दूरी है
मायावी प्रपंच से प्रभावित हैं जन सभी कलि पाश दृढ हुआ यही मजबूरी है
शाश्वत परम्पराएं त्यागने लगे तभी तो धनवान हुए किन्तु साधना अधूरी है
खप्पर भवानी कालिका का रिक्त हो रहा है शत्रु शीश काट रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा मौलिक अप्रकाशित

Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 13, 2013 at 9:30am — 10 Comments

राम सिया की भक्ति/ चौपाई एवं दोहों में (जवाहर)

रामसिया का रूप

राम सिया की जोड़ी कैसी, काम रती की जोड़ी जैसी.

राम सिया को जो नर ध्यावे, सब सुख आनंद वो पा जावे.

राम सिया जग के सुख दाता, जो मांगे वर वो पा जाता.

शुबह शाम नर नाम सुमीर तू, अपना काम समय पर कर तू.

कष्ट न दूजे को दे देना, सम्भव हो तो दुःख हर लेना.

परमारथ सा धरम न दूजा, नहीं जरूरत कोई पूजा.

वेद्ब्यास मुनि सब समझावे, गाथा बहु विधि कहहि सुनावे.

अन्तकाल में कष्ट जो पावे, सकल अतीत समझ में आवे.

कहत जवाहर हे रघुराई, मूरख मन से करौं बराई.

मरा मरा…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 13, 2013 at 7:30am — 12 Comments

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