For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी हम यूँ भी अकेले होंगे ,

भीड़ होगी ,तन्हाई के मेले होंगे ,

याद आएगा एक वह आँगन 

जिसमे हम मौज से खेले होंगे !
*
आंधियां,तूफ़ान हों ,ये चाहते हैं हम,

दुश्वारियों को खूब ही सराहते हैं हम ,

हम तो चलेंगे रोज की रफ़्तार से यारो,
दूर है मंजिल तो क्या निबाहते हैं हम !

*

ज़िंदगी किताब सी ,आइये पढ़ें ,

लिखी बे-हिसाब सी ,आइये पढ़ें ,

पाठ सारे सवालों के हैं फिर भी 

लगती जवाब सी ,आइये पढ़ें  !
*
पढ़ लीजिए चेहरों को ज़रा देख-भाल कर ,

वंदन -प्रशस्ति कर रहे कीचड़ उछालकर ,

क्या खूब ये नुमाइंदे ,क्या खूब इनके ढंग 

हमने जिन्हें चुना था बहुत ही सम्हाल कर !

*

राजनीति तेरे क्या खूब हैं नज़ारे ,

आज मुंह फेर चले ,कल थे हमारे ,

बात नही मानी ,तो हम चले जानी 
उगा नया सूरज  प्रणाम करो प्यारे !

________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on June 20, 2013 at 9:18pm

पढ़ लीजिए चेहरों को ज़रा देख-भाल कर ,

वंदन -प्रशस्ति कर रहे कीचड़ उछालकर ,

क्या खूब ये नुमाइंदे ,क्या खूब इनके ढंग 

हमने जिन्हें चुना था बहुत ही सम्हाल कर !

 

सुंदर मुक्तक ...ढेंरो बधाई लीजिये 

Comment by Meena Pathak on June 20, 2013 at 5:01pm

बहुत सुन्दर मुक्तक .... बधाई स्वीकारें 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 20, 2013 at 2:52pm

मुक्तक तनाव से मुक्त कर गए ...आँखों से उतरे दिल में घर कर गए ...सादर बधाई  

Comment by vijay nikore on June 20, 2013 at 12:05pm

मुक्तक अच्छे लगे। बधाई।

सा्दर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on June 20, 2013 at 8:44am

बहुत ही सुन्दर मुक्तक! मेरी ढेरों बधाई स्वीकारें!

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2013 at 11:09pm

ज़िंदगी किताब सी ,आइये पढ़ें ,

लिखी बे-हिसाब सी ,आइये पढ़ें ,

पाठ सारे सवालों के हैं फिर भी 

लगती जवाब सी ,आइये पढ़ें  ... सुंदर अभिवयक्ति आदरणीय .. बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on June 19, 2013 at 12:09pm
" पढ़ लीजिए चेहरों को ज़रा देख-भाल कर ,
वंदन -प्रशस्ति कर रहे कीचड़ उछालकर ,
क्या खूब ये नुमाइंदे ,क्या खूब इनके ढंग
हमने जिन्हें चुना था बहुत ही सम्हाल कर !"
- भारत की आत्मा पर होते आघातों का स्पष्ट चित्रण , पढते लगा कि मेरे मन की है और कविता की आख़िरी दो पंक्तियाँ तो मानो एक दिक्दर्शन ही है .आपकी यह कविता आज के समय का तकाजा है.बधाई विश्वम्भरजी .
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 18, 2013 at 6:46pm

आ0 विश्वम्भर सर जी,  बहुत ही सुन्दर मुक्तक।  बधाई स्वीकारें।  सादर, 

Comment by Pragya Srivastava on June 18, 2013 at 2:41pm

मन को छू गए............................................बहुत बढ़िया

Comment by Shyam Narain Verma on June 18, 2013 at 12:40pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ..........................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service