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पुन्न (पुण्य) लधु कथा

पुन्न (पुन्य)

आज बड़ी बुआ आ गई,थैला और पेटी के साथ ।

"ये लल्लू ,पइसा दे दे रिक्शा बाले को,मेरे पास फुटकर नहीं हैं ।"

रिक्शा के पैसे दे ,चरणस्पर्श का आशीर्वाद लेकर पेटी अम्मा के कमरे में रख दी ।बुआ ने पेटी पलंग के नीचे खिसका ,ताला हिला कर तसल्ली कर ली ।इस बार पेटी कुछ ज्यादा ही भारी है।पेटी पर लगा अलीगढ़ी ताला ,जिसकी चाबी उनके गले में पड़ी तीन तोले की चेन में लटकी रहती ।

क्या किस्मत है,इस लोहे की चाबी की ,चौदह वर्ष की उम्र से ब्लाउज के अंदर उनके साथ। बाल विधवा बुआ ने…

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Added by Pawan Jain on March 21, 2016 at 2:30pm — 5 Comments

संग तुम्हारे नाम के ......

संग तुम्हारे नाम के ......

इस लम्हा

जब शून्यता ने

मुझे अंगीकार कर लिया है //

मेरे ख्वाब

सूखे शज़र के ज़र्द पत्तों से

बिखर गए हैं 

कम से कम

मुझ पर इतना तो रहम कर दो

तुम अपनी याद का

इक चराग तो जलने दो//

इस लम्हा

जब मेरा वज़ूद

ख़ाक में मिलने से पहले

अंतिम साँसों से

जीने की जिद्दो ज़हद में उलझा है

अपने अस्तित्व की याद को

मेरे ज़हन में जी लेने दो//

इस लम्हा जब

मेरी तमाम हसरतें…

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Added by Sushil Sarna on March 21, 2016 at 2:15pm — 4 Comments

ज़िंदा अभी तलक हैं, रावण दहेज़ वाले

2212 122 2212 122

दुःख सर पे चढ़ गया है, पीड़ा पिघल रही है।

हालात की तपिश से, नदिया निकल रही है।।

 

मरघट सा हो गया है, हर रास्ता शहर का।

इंसानियत चिता पर, हर ओर जल रही है।।

 

ज़िंदा अभी तलक हैं, रावण दहेज़ वाले।

अब भी दहेज़ वाली, क्यों सोच पल रही है।।

 

विद्रोह कर रही है, अब सोच भी हमारी।

क्यों मौन हूँ अभी तक, ये बात खल रही है।।

 

ग़र चे कलम के बदले, हथियार उठ गया तो।

पंकज से फिर न…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 21, 2016 at 11:30am — 6 Comments

गीत-ये प्रथम मिलन की रात

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।

तन-यौवन-रूप सजाया ज्यों,

घर-बार सजाना।।

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।



सुख-दुख में तुम सहभागी अब,

ये मन तुम पर अनुरागी अब।

तुमसे कुछ नही छिपाना है,

हिय का सब हाल बताना है।।

निश्छल मन में, निश्छल मन से,

अब तुम बस जाना।

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।।



पतझड़-सा सूना जीवन था,

नीरस मेरा घर आँगन था।

अब तुम जीवन में आई हो,

सतरंगी सपने… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 21, 2016 at 10:57am — 11 Comments

जोंक (लघुकथा )राहिला

"हजूर,मांई बाप! कुछ रूपया मिल जाता तो बड़ी मेहरबानी हो जाती।"

"कितने चाहिये?"आवाज में दबंगी की खनक थी ।

"यात्रा लाक(लायक)हजूर!बस दो हजार।"

"अच्छा...चैत काटने जा रहे हो।"

"हओ मालिक! "

"हूँsss..कोई गारंटी या कुछ गिरवी रखने लाये हो?"जोंक को जैसे शिकार मिला ।

"काहे मजाक करते हो सरकार!हम गरीबों के पास क्या धरा?"

"देखो भई!मैं लेनदेन का काम कच्चा करता ही नहीं ।बिना कुछ गिरवी रखे एक दमड़ी नहीं दूंगा।"शब्दों को चबाते हुये वे कुछ रूके,फिर पुनः बोले-वैसे...,एक चींज है… Continue

Added by Rahila on March 20, 2016 at 11:10pm — 18 Comments

एक ग़ज़ल

२१२२ २२१२ २२,

जख्म जब दिल कोई छुपाता है।

दर्द होठों पर मुस्कुराता है।

******

मद भरी आँखे होठ के प्याले,

शाम ढलते ही याद आता है।

******

वो भला कैसे सँभलना जाने,

जो नही कोई चोट खाता है।

******

जाम पीकर भी प्यास कब बुझती,

बस कदम ही तो लड़-खड़ाता है।

******

लूट ले फिर इक बार आ करके,

आ तुझे दिल फिर बुलाता है।

*******

ख़ाक परवाने हो चलें देखो,

अब चिरागों को क्यों बुझाता है।

******

मौलिक अप्रकाशित…

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Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 20, 2016 at 11:30am — No Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : खेती (गणेश जी बागी)

ऊँची, नीची, मैदानी, पठारी, 

उथली, गहरी...

दूर तक विस्तृत

उपजाऊ जमीन.

 

यहाँ नहीं उपजते

गेहूँ, धान

फल, फूल,

न उगायी जाती हैं साग, सब्जियाँ

किन्तु,

जो उपजता हैं

उससे....

करोड़ों कमाती हैं

बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ

 

तय होतें हैं

सियासी समीकरण

 

बनती बिगड़ती हैं

सरकारें

 

पैदा होता है

विकास

आते हैं

अच्छे…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2016 at 9:00am — 16 Comments

पीढ़ियां.....

पीढ़ियां !

सीढ़ियों पर चढ़ कर

पीढ़ियां !

थूंकती आसमान पर

धरा आर्द्रवश सहेज लेती

नदियों के कछार

दलदल - सदाबहार वन

आमंत्रित मेघ

बरसते नहीं.

पीढ़ियां !

असमय कड़क कर चमकतीं

गिरती बिजलियां

जलते घास-पूस के छप्पर

ढह जाते दुर्ग

सम्मान के...

संस्कृति के.

बिखरे अवशेष कराहते

खण्डहर में उग आते बांस

सीढ़ियां बनने को उत्सुक

पीढ़ियां उत्साह में फिसल…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2016 at 8:30am — No Comments

दो बह्र एक गजल ...

दो बहरी गजल:-

1बह्र:-2122-1122-1122-112

2बह्र:-2122-2122-2122-212



बेसबब रिश्ते -ओ-नातों के लिए बिफरे मिले।।

जब मिले मुझको मेरे सपने बहुत उलझे मिले।।



ज़िन्दगी जिनसे मिला सब ही बड़े नम से मिले।।

मैं उसे समझू मसीहा जो जरा हँस के मिले।।



रुक जरा पूछे इन्हे कैसी कठिन राहें रही।

ये मुसाफिर हैं पुराने आज हम जिनसे मिले।।



उस नदी का है समर्पण जो सदा बहती रहे।

राह जीवन की चले चलते हुए सब से मिले।।



जिंदगी जिनसे गुलाबी है… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 20, 2016 at 7:18am — 1 Comment

गद्दार (लघुकथा)

"ये लो इस गद्दार की लाश" एक सैनिक उस घर के बाहर खड़ा होकर चिल्लाया| आवाज़ सुनकर मोहल्ले के लोगों की भीड़ जमा हो गयी|

"इनका परिवार पुश्तों से सेना में है और आखिरी वंशज गद्दार निकला" मोहल्ले के लोगों में फुसफुसाहट होने लगी|

उसका पिता सिर झुकाये चुपचाप घर से बाहर निकला| उसकी लाल आँखें और उतरा हुआ चेहरा बता रहा था कि कुछ रातों से वह सोया नहीं है|

"देश के लोगों के खून के साथ होली खेलनी थी ना, तो आज होली के दिन ही लाये हैं" दूसरा सैनिक तल्खी से बोला|

"अब इस पर हस्ताक्षर…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 19, 2016 at 10:30pm — 5 Comments

आपके तो पर परिंदों -ग़ज़ल -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    212

*******************************

दुश्मनों के डर को उसने अपना ही डर कर लिया

और दामन  दोस्तों  के  खून  से  तर कर लिया ।1।



जब  नगर  में  रह न पाए  दोस्तो  महफूज हम

आदिमों  के  बीच  हमने दश्त  में घर कर लिया ।2।



चोट  खाकर भी  हँसे  हैं   आँख  नम  होने न दी

सब गमों  को आज  हमने देखिए सर कर लिया ।3।



आपके तो  पर  परिंदों  फिर  भी  क्यों लाचार हो

हर कठिन परवाज  भी यूँ  हमने बेपर कर लिया ।4।



कह न  पाए  बात कोई…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2016 at 12:31pm — 10 Comments

आया सुखमय बसन्त-चौपाई छंद

आया सुखमय बसंत आया।

अंग-उमंग तरंगहि लाया।।

राग-रंग का ऋतु है भैया।

नाचे तन-मन ता ता थैया।।

नव पल्लव तरुओं पर आये।

पछुआ गुन-गुन गीत सुनाये।।

आम्रकुंज फूले बौराये।

सुरभित वात हृदय महकाए।।

सरसों के सुम पीले-पीले।

पीताम्बर-से भू पर फैले।।

सजी धरा-वधु हिय पुलकाए।

पीत वसन ज्यों तन पर छाए।।

पशु-पक्षी सब नाचे गायें।

कोयल नित नव राग सुनाये।।

मोर-मोरनी विहरें वन में।

नाचे-झूमें हरखें मन में।।

स्वच्छ गगन दिनकर ले… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 19, 2016 at 11:26am — 2 Comments

हाइकू धूप

                               

राहत देती

घुटने सहलाती

टुकड़ा धूप

पहाड़ स्पर्श

आचमन झीलों का

पधारी धूप

वक्त की छन्नी

बारीक-दरदरा

छानती धूप

थी गुलाब वो

बनी है अब शूल

धूप बबूल

तप के आई

बादलों से लड़ती

साहसी धूप

खेत में सोना

फलियों में मणिका

बो गई धूप

भोर को लाल

संध्या को सुनहरा

रंगती…

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Added by Manisha Saxena on March 19, 2016 at 12:00am — 3 Comments

ग़ज़ल -फिर ‘नूर’ हर्फ़ हर्फ़ वहाँ तितलियाँ रहीं.

221/2121/122/1212

.

आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं, 

गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.

.

क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार, 

यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.

.

नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,  

ज़्यादा कुसूरवार  तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.

.

ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र

हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.

.

क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए

कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.

.

मिलते…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2016 at 9:08pm — 19 Comments

कैक्टस का फ़ूल –( लघुकथा ) –

कैक्टस का फ़ूल –( लघुकथा ) –

कालेज की ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में सुबोध इस बार अपने मित्र आनंद का आग्रह टाल ना सका और उसके गॉव आगया!काफ़ी बडा गॉव था!कहने को गॉव था पर शहरी हर सुविधा मौज़ूद थी!रेलवे स्टेशन,बस स्टॉप,अस्पताल,बैंक ,बिजली,पानी,टी वी,इंटरनैट आदि सब उपलब्ध था!

बैठक में सुबोध अकेला बैठा था कि एक सज्जन मिलने आगये!बडा अजीब प्रश्न किया,"क्या तुम भी माया को देखने आये हो"!

सुबोध कुछ कहता उससे पहले ही आनंद आगया और वह सज्जन खिसक लिये!सुबोध को कुछ समझ नहीं आया अतः आनंद से…

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Added by TEJ VEER SINGH on March 18, 2016 at 8:06pm — 6 Comments

गीत-देखो आये ऋतुराज प्रिये!

देखो आये ऋतुराज प्रिये!

अंग-उमंग, तरंग भरे उर,

राग-रंग सुर-साज लिए।

देखो आये ऋतुराज प्रिये!



नित नवीन पल्लव तरु आए,

 सारे आम्रकुंज बौराए।

आये, कामदेव-सुत आये,

सुरभि-सुगंधित साथ लिए।

देखो आये ऋतुराज प्रिये!



चारो ओर कुसुम हर्षाएँ।

पुष्प पराग कलश छलकाएँ।।

तितली-भौंरे अति इतराएँ,

मन-मधुरस की आस लिए।

देखो आये ऋतुराज प्रिये!





पिक उपवन में कूक लगाएं,

हरखें, राग वागश्री गायें।

मोर-मोरनी रास… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 7:58pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद

सरस्वती माँ! शारदे, करूँ वंदना आज।
हर लो तम उर ज्ञान दो, सफल करो सब काज।।
सफल करो सब काज, जननि सुर में बस जाओ।
भर दो नित नव राग, हृदय में ज्योंति जगाओ।।
हरूँ जनों के त्रास, सुखी होए धरती माँ।
ऐसा दो वरदान, जयति जय सरस्वती माँ ।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 7:49pm — 3 Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22 (112)

लोग मिलते नहीं रिश्तो को निभाने वाले 

बीच मँझधार में कश्ती को बचाने वाले ||१||

कौन कीमत समझते हैं किसी की खुशियों की 

लोग मिलते हैं यहाँ ख्वाब चुराने वाले ||२||

जानते हैं मगर इस दिल को कैसे समझायें

लौट के आते नहीं छोड़ के जाने वाले ||३||

आँख में हो अना बाक़ी यही तो दौलत है 

हाँ मगर देखे हैं कागज को कमाने वाले ||४||

ज़िन्दगी भर हमे रखते रहे अंधेरों मे॥

रोज तुरबत पे आके शमआ जलाने वाले॥…

Continue

Added by Rama Verma on March 18, 2016 at 4:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल--क्यूं कभी मेरी किसी से या खुदा बनती नहीं।

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



क्यूं कभी मेरी किसी से या खुदा बनती नहीं।

आपने मेरे लिए कोई खुशी सोची नहीं ।



लोग जो अच्छे है मुझको सोच लेते हैं बुरा।

क्या मेरी नादानियों की आदतें अच्छी नहीं ।



मैंने उनसे सिर्फ अपनी भावनाएँ बाँटी थी।

बेवजह गुस्सा ये उनका क्या गलतफहमी नहीं।



मान ली मैंने चलो मुझसे खता कुछ हो गयी।

हो गयी अनजाने में अब क्या मुझे माफी नहीं।



सीख में आकर जमाने की किया है फैसला।

बात की दहलीज तक तो आप पहुँचे भी… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on March 18, 2016 at 8:10am — 3 Comments

होली, का त्योहार

रंगो का त्योहार है होली आओ मिलकर खेले

भेद भाव सब दूर भगाकर आओ होली खेले ॥

जो अपने भूले भटके हैं

धर्म दीवारों से बिछड़े हैं

और दूर देश में अटके हैं

कड़वी पर यह सच्चाई है

एक प्यार भरा संदेशा है

यह आज सुनहरा मौका है

रंगो का त्योहार है होली आओ मिलकर खेले

भेद भाव सब दूर भगाकर आओ होली खेले ॥

दुख सुख का यह जीवन है

यहाँ मिलकर सबको रहना है

हमें जीवन बाधा से लड़ना है

दुश्मन से देश को बचाना है

हमें मिलकर आगे…

Continue

Added by Ram Ashery on March 18, 2016 at 8:00am — 1 Comment

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