खोलो दिल के वातायन प्रिय मैं आऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
अलकन में नम शीत मलय की
बाँध पंखुरी
पंकज की पाती से भरकर
मेह अंजुरी
ऊषा की लाली से लाल
हथेली रचकर
कंचन के पर्वत से पीली
धूप खुरच कर
कोना कोना मैं ऊर्जा से भर जाऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
सुरभित कुसुमो के सौरभ को
भींच परों में
चार दिशाओं के गुंजन को
सप्तसुरों में
बन…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 11, 2016 at 8:30am — 14 Comments
बह्र : 2122 2122 2122 212
कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना
चन्द पल में सैकड़ों युग दूर जाती कल्पना
स्वप्न है फिर सत्य है फिर है निरर्थकता यहाँ
और ये जीवन उसी में अर्थ कोई ढूँढ़ना
हुस्न क्या है एक बारिश जो कभी होती नहीं
इश्क़ उस बरसात में तन और मन का भीगना
ग़म ज़ुदाई का है क्या सुलगी हुई सिगरेट है
याद के कड़वे धुँएँ में दिल स्वयं का फूँकना
प्रेम और कर्तव्य की दो खूँटियों के बीच…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 10, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 10, 2016 at 8:15pm — 3 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 10, 2016 at 3:44pm — 2 Comments
रंग बिरंगे हाइकु
*************
1.
ग्रीष्म की रुत
सांकल सी खटकी
पीली लू आयी
२.
लिखती रही
रंगीन सा हाइकू
रात भर मैं
३.
सफ़ेद छोने
बर्फ के सिरहाने
फाये रुई के
...आभा
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 12:32pm — 3 Comments
चले बराती मेघ के ,गरज तरज के साथ |
ओलों ने नर्तन किये ले हाथों में हाथ |1|
आँखों में जब आ गए अश्रु की तरह मेघ |
रोके से भी न रुके तीव्र है इनका वेग |2|
सूर्य किरण हैं कर रहीं नदिया में किल्लोल |
चमक दमक से हो रहा जीवन भी अनमोल |3|
आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 8:00am — 5 Comments
बहर २१२२ २१२२ २१२२ २१२
दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले
चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले |
यारों का अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं
जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|
गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह
सुख कर गुल झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले |
कोशिशें हों ऐसी हर इंसान का होवे भला
उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले |
देश भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 10, 2016 at 7:30am — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 10, 2016 at 12:28am — 6 Comments
212 212 212 212
वो कहें लाख चाहे ये सरकार है।
मैं कहूँ चापलूसों का दरबार है।।
मेरी लानत मिले रहनुमाओं को उन।
देश ही बेचना जिनका व्यापार है।।
कौम की खाद है वोट की फ़स्ल में।
और कहते उन्हें मुल्क़ से प्यार है।।
सब चुनावी गणित नोट से हल किये।
जीत तो वो गये देश की हार है।।
चट्टे बट्टे सभी एक ही थाल के।
बस सियासत ही है झूठी तकरार है।।
अब बयां क्या करे इस चमन को पवन।
शाख़ पर उल्लुओं की तो…
Added by डॉ पवन मिश्र on September 9, 2016 at 9:02pm — 6 Comments
कृष्ण तुमने छल किया है.
छलिया हो तुम
सारी दुनिया को काम पर लगा दिया
कह कर ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’.
फ़ल की आशा किससे न करे?
तुमसे?
चलो, तुम तो सखा हो
मीत को सताना तुम्हारा हक है.
प्रेम भी तो करते हो.
पर तुम्हारे जो ये कारिन्दें है न,
जीना मुश्किल कर दिया है.
हक मांगने जाओ, तो तुम्हारी बात दुहराते हैं.
अब, तुम तो आओगे नही
हमसे काम लेने.
वैसे तुम्हारा काम तो मै बिना दाम भी कर देता.
तुम…
ContinueAdded by विजय कुमार अग्रहरि 'आलोक' on September 9, 2016 at 8:30pm — 2 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 9, 2016 at 7:33pm — 7 Comments
हे! सर्जक
मिट्टी,बालू,ईंट,पत्थर
जोड़ते, तुम्हारे हाथ
सड़क,पुल,बाँध बनाते-
तेरे हाथ
बड़े-बड़े फ्लैट-
मकान, होटल,
सुख-सुविधा
और ऐशो-आराम
जुटाते, तेरे हाथ
रिक्त-के-रिक्त०
बड़े और बड़े हो रहे
तुम और छोटे
गयी है तो सिर्फ प्रथा
बुर्जुआ सोच नहीं॰
तुम ठगे जाते हो-
नीतिगत प्रबंधन मे-
सड़े राशन और
खैराती अस्पतालों से
और तुम्हारा सम्मान
किया जाता है-
‘मजदूर दिवस’ मना कर०
मौलिक एवं…
Added by PARITOSH KUMAR PIYUSH on September 9, 2016 at 7:30am — 1 Comment
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 9, 2016 at 5:31am — 2 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो
रात रो देते हैं बच्चे और जी जाता है वो
आपको जो नर्क लगता, स्वर्ग के मालिक, सुनें
बस वहीं पाने को थोड़ी सी खुशी जाता है वो
जिन की रग रग में बहे उसके पसीने का नमक
आज कल देने उन्हीं को खून भी जाता है वो
वो मरे दिनभर दिहाड़ी के लिए, तू ऐश कर
पास रख अपना ख़ुदा ऐ मौलवी, जाता है वो
खौलते कीड़ों की चीखें कर रहीं पागल उसे
बालने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2016 at 12:07am — No Comments
दोहे (एक प्रयास )
-.-
नैनन में ममता लिए,होंठों पर मुस्कान।
भिड़ जाए सन्सार से , जातक पे कुर्बान।।
-.-
अञ्चल में माँ सींचती,अमृत का भण्डार।
ऋषि हो चाहे देवता ,सीस झुकाते द्वार।।
-.-
संघर्षों से डरू नहीं ,माँ तुम हो जो पास ।
अंधेरे जब बढ़ गए,पाई तुमसे आस ।।
-.-
माता तुम जो बोलती, वहि मेरा है कर्म।
पाया भाव यहि तुमसे , जीवित रखना धर्म।।
-.-
कान्हा हो सुत रूप में ,चाहे हो बलराम।
मात यसोदा रूप है, नित्ये करो प्रणाम…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 8, 2016 at 3:30pm — 7 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2016 at 11:09pm — 5 Comments
तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें
1222 1222 122
*****************************
ये रिश्ते भी न बदतर होके लौटें
तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें
ये चट्टानें , न ऐसा हो कि इक दिन
मैं टकराऊँ तो कंकर हो के लौटें
इसी उम्मीद में कूदा भँवर में
मेरे ये डर शनावर हो के लौंटें
बनायें ख़िड़कियाँ दीवार में जब
दुआ करना, कि वो दर हों के लौटें
दिवारो दर, ज़रा सी छत औ ख़िड़की
मै छोड़ आया कि वो घर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 7, 2016 at 9:15am — 29 Comments
बहर : २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २
आई जब तू जिन्दगी हँसने लगी
तू मेरे हर सपने में रहने लगी |
धीरे धीरे तेरी चाहत बढ़ गई
देखा तू भी प्रेम में झुकने लगी |
जिन्दगी का रंग परिवर्तन हुआ
प्रेम धारा जान में बहने लगी |
राह चलते हम गए मंजिल दिखा
फिर भी जीना जिन्दगी गिनने लगी |
देखिये शादी के इस बाज़ार में
हाट में दुल्हन यहाँ बिकने लगी |
शमअ बिन तो तम…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 7, 2016 at 7:30am — 8 Comments
Added by Pushpendra pushp on September 7, 2016 at 6:13am — 3 Comments
बिना तेरे हर एक लम्हा मुझे दुशवार है जानाँ
अगर ये प्यार है जानाँ, तो मुझको प्यार है जानाँ
हसीं चेहरे बहुत देखे फ़िदा होना भी मुमकिन था
फ़िदा हो कर फ़ना होना ये पहली बार है जानाँ
हमें कहना नहीं आया ,और समझा भी नहीं तुमने
मेरा हर लफ़्ज़ तुमसे प्यार का इज़हार है …
Added by saalim sheikh on September 7, 2016 at 5:30am — 3 Comments
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