For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कब तक खिंजां का साथ निभाया करेंगे आप।

2212 121 122 121 21
चिलमन तमाम वक्त हटाया करेंगे आप ।
तश्वीर महफ़िलों में दिखाया करेंगे आप ।।

चुप चाप आसुओं को छुपाया करेंगे आप ।
कुछ बात मशबरे में बताया करेंगे आप।।

मुझको मेरे नसीब पे यूं छोड़िये जनाब ।
कब तक खिंजां का साथ निभाया करेंगे आप।।

तहज़ीब मिट चुकी है जमाने के आस पास ।
बुझते मसाल को न जलाया करेंगे आप।।

यह बात सच लगी कि मुकद्दर नही है साथ ।
मेरे ज़ख़म पे ईद मनाया करेंगे आप ।।

आजाद आसमा के परिंदे हैं बदजुबान ।
अपना वजूद सिर्फ मिटाया करेंगे आप ।।

जब भी ग़ज़ल हुई है कोई इश्क था मुहाल ।
अशआर सब हवा में उड़ाया करेंगे आप ।।

कुछ हसरतों के नाम लिखे खत थे जो हुजूर ।
पढ़ पढ़ के बिस्तरों में दबाया करेंगे आप।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 348

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 3:59pm

आदरणीय नवीन मणि  भाई , अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको । आदरनीय समर भाई गज़ल पे कह ही चुके हैं , खयाल करियेगा , साथ् ही  , तश्वीर  को भी तस्वीर किया जाना उचित होगा ऐसा लगता है मुझे ।

Comment by Samar kabeer on September 10, 2016 at 11:19pm
जनाब नवीन मणि जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

तीसरे शैर में 'खिंजां' को "ख़ज़ाँ" कर लें ।
चौथे शैर में 'मसाल' को "मशाल" कर लें ।
पाँचवे शैर में 'ज़ख़म' सही शब्द नहीं है,सही शब्द है "ज़ख़्म",अब यहाँ ये सवाल उठता है कि अगर आप सही शब्द लिखेंगे तो मिसरा बे बह्र हो जायेगा ,और अगर ऐसे ही रहने देते हैं तो आपका शैर एक ग़लत शब्द के साथ याद रहेगा,ये मिसरा इस तरह सही हो सकता है :-

"ज़ख़्मों पे मेरे ईद मनाया करेंगे आप"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service