For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मसाला तो है ही नहीं! (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

स्मार्ट फोन के पटल (स्क्रीन) पर सोशल साइट की एक तस्वीर को देखकर रोहित ने अपने मित्र विशाल से कहा- "यह चित्र किसी फ़िल्म का हो, या सच्ची घटना का, तुम तो यह बताओ कि बीच सड़क पर बिखरे हुए काग़ज़ों व दस्तावेज़ों के बीच अकेला ये कौन बैठा हुआ है? अभागा या अभागिन? शोषित या शोषिता?"

"इसकी वेशभूषा, बैठने के अंदाज़ और घुटनों पर कसी हुई मांसपेशियों वाली भुजाओं की मुद्रा देखकर तो यह कोई दृढ़ संकल्पित, आंदोलित, कुछ परेशान सा युवक लग रहा है!"- विशाल ने उत्तर दिया।

"युवक नहीं, युवती है यार! कंधे तक की ज़ुल्फ़ें, पैरों और पोषाक से नहीं समझ पा रहे हो क्या?" -रोहित ने चुटकी लेते हुए कहा।

"पर ऐसे बाल और कपड़े तो आजकल के लड़कों के फैशन में भी हैं! मुझे तो यह युवक ही लग रहा है, बेरोज़गार या हताश !" विशाल ने चित्र को पुनः ग़ौर से देख कर कहा।

"नहीं, मुझे तो कोई पीड़ित युवती ही लग रही है!"

रोहित की बात से असहमत होकर विशाल ने चित्र में सड़क के किनारे खड़ी कार व लोगों का समूह देखते हुए कहा- "यदि युवती होती, तो भीड़ और अधिक होती, वह पुलिस वाला भी उसके नज़दीक़ कहीं होता!"

"नहीं मित्र, भीड़ तो निश्चित रूप से ज़्यादा होती, मीडिया व कैमरे भी होते, अगर इस युवती का पूरा शरीर यूं कपड़ों से ढका न होता! कुछ तो दिखता या रक्त-रंजित होता!" -रोहित ने चित्र के आकार को पटल पर बड़ा कर विशाल को दिखाते हुए कहा- "मसाला तो है ही नहीं!"

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 421

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 12, 2016 at 3:01pm
मेरी रचना पर अपने विचार साझा करते हुए अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा नीता कसार जी।
Comment by Nita Kasar on September 10, 2016 at 1:36pm
टी ०आर० पी० का खेल और दिन रात चलने वाली ब्रेकिंग न्यूज़ के लिये मसाला तो है ही नही,कथा के जरिये कटु व्यंग्य किया है आपने आज की व्यवस्था पर ।भले ही कितने बेरोज़गार ज़रूरतमंद परेशान हो किसी का क्या जाता है ।बधाई आपको आद०शेख शाहिद उस्मानी जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service