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June 2016 Blog Posts (172)

तज़मीन बर तज़मीन

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन



तज़मीन बर तज़मीन हज़रत "क़मर" उज्जैनी बर ग़ज़ल हज़रत-ए-'मख़मूर दहलवी'





दिल-ए-बर्बाद ये हसरत ,ये अरमाँ कौन देखेगा

हमारे दिल में जो है दर्द पिन्हाँ कौन देखेगा

बताओ तो ज़रा ये ग़म का तूफ़ाँ कौन देखेगा

'ख़ुशी देखी है बर्बादी का समाँ कौन देखेगा'

'चमन से रुख़्सत-ए-दौर-बहाराँ कौन देखेगा'

'जलाकर दिल मिसाल-ए-शम्अ-ए-सौज़ाँ कौन देखेगा'

"मुहब्बत में शब-ए-तारीक-ए-हिजराँ कौन देखेगा

हमीं देखेंगे ये ख़्वाब-ए-परीशाँ कौन… Continue

Added by Samar kabeer on June 3, 2016 at 12:00am — 20 Comments

ग़ज़ल.....अब आजमा लें दर्द को

इस्लाह के लिए विशेषकर काफ़िए को लेकर मन में शंकायें हैं 

2122       2122       2122       212

​क्यों नहीं अपनी रगों से हम निकालें दर्द को

है ग़मों की इन्तहां अब आजमा लें दर्द को

बात पहले प्यार से फिर भी नहीं जो मानता 

गेंद की तरहा हवा में फिर उछालें दर्द को

गर ग़मों की चाहतें हैं ज़िन्दगी भर साथ की 

हमसफ़र अपना बना उर में छुपा लें दर्द को

नफरतों के राज में क्या रीत…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:36pm — 12 Comments

बह्र नई सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं- ग़ज़ल

2222 2222 2222 222

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आपकी नज़रें ताज़ा ताज़ा, फूल कमल ही लगती हैं।

बह्र नयी सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं।।



चाह रहे हैं छू लें लेकिन, रुसवाई से हम डर जाते।

जबकी मुस्का कर मिलती हैं, आप सरल ही लगती हैं।।



इसकी प्यास कई सदियों की, है मन का पंछी व्याकुल।

आप स्रोत सब मदिराओं की, असली तरल ही लगती हैं।।



जितने रूप धरा के सुन्दर, सारे हैं फीके फीके।

आपकी फ़ोटो कॉपी सारे, आप… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 2, 2016 at 8:00pm — 4 Comments

सीखना होगा

खुशियों में , गम के साये में
जीना सीखना होगा

प्यार में , नफरत के साये में

संभल कर खुद को ही चलना  होगा

इज़हार ख़ुशी का न गम की नुमाईश
एक साथ दोनों को पीना होगा

भ्रम बनकर सतायेंगी गर यह
इस चक्र से निकल कर आगे बढ़ना होगा

जीवन को समझकर बढ़ना होगा
सोच कर हर कदम रखना होगा |

मौलिक एवं अप्रकाशित



Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 5:30pm — 3 Comments

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

कुछ भी तो नहीं बदला

नसीम-ऐ-सहर

आज भी मेरे अहसासों को

कुरेद जाती है

मेरी पलकों पे

तेरी नमनाक नज़रों की

नमी छोड़ जाती है

कहाँ बदलता है कुछ

किसी के जाने से

बस दर्द मिलता है

गुजरे हुए लम्हात की मरकदों पे

यादों के चराग़ जलाने में

और लगता है वक्त

लम्हा लम्हा मिली

अनगिनित खराशों को

ज़िस्म-ऐ-ज़हन से मिटाने में

अपनी ज़फा से तुमने

वफ़ा के पैरहन को

तार तार कर दिया

आरज़ू के हर अब्र…

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Added by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 1:55pm — 6 Comments

चिर-दिनों तक तुम हो मेरी

चिर-दिनों तक तुम हो मेरी,

युगों युगों तक रहूँ तुम्हारा|

इक दूजे से अलग नही हम,

जनम-जनम तक साथ हमारा|



जितनी मर्जी उतना रुठो,

जितना मन हो रहो बेखबर,

तुम्हे मनाऊँ चिर-जीवन तक,

बिछड़न तुमसे नही गँवारा|



आस मेरी तुम साँस मेरी तुम,

तुम ही मेरे दिल की धड़कन,

अब तो सबकुछ तुम ही मेरी,

नजरों को बस तुम्ही नजारा|



तुमको चाहूँ तुम्हे सराहूँ,

तेरे ही बारे मे सोचूँ,

उस जीवन को भूल गया हूँ,

जो कुछ तेरे बिना… Continue

Added by आशीष यादव on June 2, 2016 at 11:21am — 6 Comments

भूखी रचनाएँ और वेक अप कॉल (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

क़ुरैशी साहब की रचनाएँ संभाग से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं थीं, लेकिन दूसरे साथी लेखकों की प्रकाशित रचनाओं, संग्रहों और उनको मिलने वाले छोटे-बड़े सम्मानों से वे बहुत विचलित रहा करते थे। प्रकाशन की भूख उन्हें बहुत सताया करती थी, पर क्या करें न तो आर्थिक स्थिति अच्छी थी और न ही कोई सहारा। बहुत से सम्पादकों से मधुर संबंध होने के बावजूद जब कभी उनकी रचनाएँ अस्वीकृत हो जातीं, तो उनकी नींद हराम हो जाती थी। इस बार तो एक पत्रिका के संपादक…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 6:00am — 16 Comments

सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको

बहर -1222 1222 1212 2222

सदा ही ख्वाब में आऊ सदा जगाऊ मैं तुमको

खुले जब आँख लूँ जब नाम पास पाऊ मैं तुमको

तेरी जब गोद में रखकर के सर गजल मैं पढता था

मेरा अरमान है इक बार फिर सुनाऊ मैं तुमको

गये जब से अकेला छोड़ हम तभी से रोते हैं

नहीं हसरत मेरी रोऊँ नहीं रुलाऊ मैं तुमको

भटकता दर-ब-दर हूँ फिर रहा कहाँ हो बोलो ना

सहा क्या क्या गवायाँ क्या मिलो गिनाऊ मैं तुमको

सहा जाता न अब हमसे विरह भरा मेरा जीवन

मेरी बाहें खुली आओ गले लगाऊ मैं…

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Added by maharshi tripathi on June 1, 2016 at 11:10pm — No Comments

मुलाकातें....

(22 22 22)

छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी रातें

.

छोटे छोटे लम्हे
जीवन की सौगातें

.

भीगा भीगा मौसम
गुन गुन करती रातें

.

दिल में आग लगायें
रिमझिम सी बरसातें

.

तेरे मेरे सपने

दिल से दिल की बातें

.

आंसू आंसू शिकवा
आंसू आंसू बातें

.

याद रही खामोशी
भूले न मुलाकातें

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 1, 2016 at 1:30pm — 4 Comments

एक और प्रयास/सुरेश कुमार ' कल्याण '

करके याद हमें अब दिल जलाते हैं वो,

बेवफाई का मातम अब मनाते हैं वो।



हमारे बीते हुए लम्हों को याद कर,

अब अपना पल पल बिताते हैं वो।



जाहिर हो जाता है उनके चेहरे पे गम,

खुशी के लम्हे भी गम में बिताते हैं वो।



खुश नजर आने की कोशिश करते हैं मगर,

दिवानगी में दुःख की बात कह जाते हैं वो।



हमें तरस आता है उनकी हालत पर,

पर हमारे सामने आने से कतराते हैं वो।



रात में बिस्तर पर करवटें बदलते हुए,

फिर भी हमारी यादों में खो जाते…

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 1, 2016 at 1:26pm — 12 Comments


प्रधान संपादक
अपनी अपनी भूख (लघुकथा)

पिछले कई दिनों से घर में एक अजीब सी हलचल थीI कभी नन्हे दीपू को डॉक्टर के पास ले जाया जाता तो कभी डॉक्टर उसे देखने घर आ जाताI दीपू स्कूल भी नहीं जा रहा थाI घर के सभी सदस्यों के चेहरों से ख़ुशी अचानक गायब हो गई थीI घर की नौकरानी इस सब को चुपचाप देखती रहतीI कई बार उसने पूछना भी चाहा  किन्तु दबंग स्वाभाव मालकिन से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुईI आज जब फिर दीपू को डॉक्टर के पास ले वापिस घर लाया गया तो मालकिन की आँखों में आँसू थेI रसोई घर के सामने से गुज़र रही मालकिन से नौकरानी ने हिम्मत जुटा कर पूछ…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on June 1, 2016 at 12:51pm — 17 Comments

प्रस्तावित है कुछ खुशियाँ - गीत

स्तावित खुशियाँ

प्रस्तावित है कुछ खुशियाँ

कुछ सपनों का अनुबंध

दीवारों ने कब देखी है

नील गगन की क्यारी

सोच रही है तन्हाई

कब जायेगी लाचारी

हिम्मत के जब पाँव बढ़े

दानों का हुआ प्रबंध

अरमानों की किस्मत में

क्यों होता कहर जरूरी

समझोते की भठ्ठी में

करता है मौन मजूरी

स्वीकारा प्रतिक्षण ऋतू ने

परिवर्तन से सम्बन्ध

बजते बजते सरगम की

सब टूट…

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Added by asha deshmukh on June 1, 2016 at 11:00am — 6 Comments

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