For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

June 2015 Blog Posts (183)

गुरुमंत्र ( लघुकथा )

" डॉक्टर साहब , बच्चा बच तो जायेगा न ", उसके दोनों हाँथ जुड़े थे ।
" देखो हम लोग पूरी कोशिश करेंगे , आगे ऊपरवाले की मर्ज़ी । बस पैसों का इंतज़ाम कर लेना "।
सुबह जूनियर डॉक्टर ने फोन किया " सर , स्पेशलिस्ट का फोन आया था कि वो नहीं आ पाएंगे | इसको डिस्चार्ज कर देते हैं , कहीं और करवा लेगा ऑपरेशन "।
" क्यों , ऑपरेशन क्या असफ़ल नहीं होते ", डॉक्टर साहब ने समझाया । ऑपरेशन की तैयारियाँ होने लगीं ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on June 4, 2015 at 4:35pm — 20 Comments

नज़्म: सवाल

एक तवील ख़ामोशी

ज़हन के दरीचे में

ख़ामोशी ज़बाँ की नहीं

ख़ामोशी ख्यालों की

ज़हन में जो उठते थे

उन सभी सवालों की

सवाल कुछ हैं दुनिया से

जवाब जिनके मिलने की

उम्मीद छोड़ दी मैंने

सवाल कुछ है अपनों से

जवाब जिनके मालुम हैं

पर उन्ही से सुनने हैं

सवाल कुछ हैं खुद से भी

सवाल हर एक लम्हे का

ज़िन्दगी के सफ्हे पर

जो गुज़र गया पहले

या गुजरने वाला है

क्या वो दे गया मुझको

बजुज़ चंद और सवालों के

जवाब जिनके मिलने तक…

Continue

Added by saalim sheikh on June 4, 2015 at 1:40pm — 11 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
टॉकिंग इन हिंदी (लघु कथा)

“मिस मिस ! नीरज इस टॉकिंग इन हिंदी अगेन”.मनीष ने चुगली लगाते हुए टीचर से कहा .... चटाक !!!! और शिक्षाविभाग के मंत्री  नीरज श्रीवास्तव जी का हाथ अचानक गाल पर पँहुचा फिर  वर्तमान के धरातल पर लौट कर सामान्य होते हुए तेवरी स्वर में  बोले

“कई बार चेतावनी देने के बाद आँकड़ों के अनुसार तुम्हारे विभाग में कुल २० प्रतिशत हिंदी में काम होता है मनीष जी,आय एम् टॉकिंग अगेन इन हिंदी... तुम्हारे निलंबन के आदेश दो दिन में पँहुच जायेंगे” मनीष का कद मानो यकायक छोटा हो गया.    

(मौलिक एवं…

Continue

Added by rajesh kumari on June 4, 2015 at 10:00am — 22 Comments

ग़ज़ल :- तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की

मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन





तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की

हमें न अब सुनाइये कहानियाँ बहार की



फ़क़ीर की,न शाह की,न जोहरी ,सुनार की

यहाँ पे बात कर रहा हूँ मैं तो सिर्फ़ प्यार की



ज़रा सी देर बाद ये चराग़ बुझ ही जाएगा

हदें तमाम ख़त्म हो रही हैं इन्तिज़ार की



चढ़े दिमाग़ पर तो फिर कभी न वो उतर सके

मुझे तलाश है जनाब-ए-मन उसी ख़ुमार की



नदी किनारे झाड़ियों में छुप के बैठता है वो

सताए उसको भूक जब तलब लगे शिकार… Continue

Added by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:04pm — 25 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
नज़र झुकाई जो इक बार तो उठा न सके- ग़ज़ल

1212 1122 1212 112/22

वो मेरे सामने आने पे मुस्कुरा न सके

नज़र झुकाई जो इक बार तो उठा न सके

 

हज़ार कोशिशें की रश्क़ तो छुपा न सके

मगर हँसी में मेरी बात भी उड़ा न सके

 

उन्होंने जिक्र मेरा छेड़ तो दिया सरे बज़्म

वही बातें मेरे होते वो दोहरा न सके

 

हर एक सम्त से नज़रें उठीं हमारी तरफ

कि कहते कहते भी वो हालेदिल सुना न सके

 

बस एक रोज़ की थी ज़िन्दगानी फूलों की

वो बदनसीब रहे जो चमन सजा न…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on June 3, 2015 at 6:25pm — 16 Comments

सजा पायी है

क्या कहूँ सच का हाल इस दौर में मित्रों 

मैंने अपनों से सच कहने की सजा पायी है 

अब तो हद है जुल्मों सितम गरीबों पर 

आम को इमली न कहने की सजा पायी है 

अब तो जुर्म करने वाले भी बेबाक घूमते हैं

कईयों ने तो जुर्म सहने की सजा पायी है

 बक्शा नही प्रभु ने मेरे आलिन्द गिरा दिए 

मैंने माँ को बेघर करने की सजा पायी है 

टूटा है दिल मेरा आँखों में सिर्फ पानी है 

हाँ मैंने इश्क़ करने की सजा पायी है 

कैद हैं पिजड़े में, माँ संग नीड में रहने…

Continue

Added by maharshi tripathi on June 3, 2015 at 6:01pm — 11 Comments

मान्यता(लघु कथा,मनन कु. सिंह)

पाठ्य पुस्तक में अपनी कविता देखकर कविता बहुत खुश हुई।पर यह क्या,कवयित्री की जगह तो नाम किसी कामिनी देवी का था।उसने कामिनी देवी का पता नोट किया,पता करने पर पता चला कि कामिनी एक बहुत ही लब्ध-प्रतिष्ठ हिंदी साहित्यकार के खानदान से है,जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।कविता कामिनी से मिलने पहुँच गयी,बोली-

'तुमसे ऐसी उम्मीद न थी ।तूने मेरी कविता अपने नाम से पाठ्य क्रम में शामिल करा लिया।'

- 'ऐसी उम्मीद तो तुमसे मुझे नहीं थी,तू मेरी कविता को अपनी कह रही।'

-'अच्छा,चोरी और सीनाजोरी?'…

Continue

Added by Manan Kumar singh on June 3, 2015 at 5:00pm — 14 Comments

जागरूकता -- डॉo विजय शंकर

वह ऑटो से उतरा, पैसे दिए और जल्दी से पीछे हट गया ,उसे डर था कि अभी ऑटो खूब ढेर सा धुंआ उसके सामने उगल कर चला जाएगा , पर ऐसा हुआ नहीं , ऑटो लहरा कर निकल गया, उसने गौर से देखा ऑटो सी एन जी वाला था। चारों तरफ फैले धुएं धुएं से उसे घुटन सी हो रही थी. जेब से कार्ड निकाल कर उसने पास खड़े कुछ एडजूकेटेड लोगों की और बढ़ कर पता पूछा , उन्होंने बड़ी शालीनता से उसी समझाया, वो जो ऊपर पांच चिमनियां देख रहें हैं , वो जिनसे काला काला धुअाँ निकल रहा है, हाँ, वही. उसने सर उठा कर देखा दूर दूर तक आसमान स्लेटी…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 3, 2015 at 3:00pm — 20 Comments

ग़ज़ल-नूर - नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

१२१२/११२२/१२१२/११२

नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

मैं आदमी न हुआ और वो ख़ुदा न हुआ
.

.

सहर मलेगी अभी मुँह पे, रात के कालिख़

वो आफ़्ताब उछालूँगा जो हवा न हुआ. 

.

अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ

वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.

.

ये कायनात कहाँ और ऐ बशर तू कहाँ

बड़ा समझने से ख़ुद को…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:10am — 28 Comments

ग़ज़ल -- मेहनत से कमाता हूँ मैं ...

२२१-१२२१-१२२१-१२२



तलवार से तीरों से न ख़ंज़र से लड़ा हूँ

ख़ुद अपनी अना ही के मुक़ाबिल मैं खड़ा हूँ



मेहमान नवाज़ी मैं दिलो जान से करता

दौलत तो नहीं पास मेरे, दिल का बड़ा हूँ



मेहनत से कमाता हूँ मैं हर अपना निवाला

ईमाँ की कसौटी पे मैं कुन्दन का कड़ा हूँ



घर के लिए राशन लूँ या बच्चों की किताबें

मँहगाई के इस दौर में, मुश्किल में पड़ा हूँ



कहते हैं मुझे लोग मुहब्बत का मसीहा

दुनिया से मैं नफ़रत को मिटाने पे अड़ा हूँ



ये… Continue

Added by दिनेश कुमार on June 2, 2015 at 11:30pm — 18 Comments

कोई मांग रहा, कोई छीन रहा।

कोई मांग रहा,

कोई छीन रहा।

तेरा मेरा करता मानव,

सब पा कर भी क्यों दीन रहा।



पत्थर युग से,

मंगल युग तक।

सूरत बदली मूरत बदली,

मन से फिर भी हीन रहा।



छू ले चांद,

कई बार भले।

पर धरती की अनदेखी है,

जहां बचपन कूड़ा बीन रहा।



क्षण भर 'देवी',

फिर खेल खिलौना।

धरा गगन को रोना आया,

तू ईश होकर भी,

समाधि में ही लीन रहा।



जीत लिया जग,

बना सिकंदर।

जाते जाते अपने दो क्षण,

विश्व विजेता मुर्दो…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 2, 2015 at 7:00pm — 17 Comments


प्रधान संपादक
भारत भाग्य विधाता (लघुकथा)

"अरे ताऊ इलेक्शन आ गए हैं, इस बार वोट किस को दे रहे हो ?"

"अरे हमें तो अभी ये ही नहीं पता कि इस बार ससुरा खड़ा कौन कौन है।"

"एक तो वही कुर्सी पार्टी वाला है।"

"अरे वो चोर ? छोडो, साले पूरा देश लूट कर खा गये।"

"नई पार्टी वाला भी खड़ा है।" 

"कौन ? वो जो आपस में लोगों को लड़ाता फिरता है? दफ़ा करो उसको।"

"एक नीली पार्टी वाली भी है न।"

"उसको वोट दे दिया तो पीछे वाली बस्ती सर पर मूतेगी हमारे।"

"तो फिर कामरेडों को वोट किया जाए?"

"कौन वो ज़िंदाबाद मुर्दाबाद…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on June 2, 2015 at 12:25pm — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तेज़ है दुनिया की निगाह बहुत-ग़ज़ल

2122 1212 112/22
सर्द है आज मेरी आह बहुत
फिर उठी दिल में तेरी चाह बहुत

खुदनुमाई से बाज़ आ नादाँ
तेज़ है दुनिया की निगाह बहुत

तोड़ना दिल किसी का क्या मुश्किल
हाँ कठिन इश्क़ की है राह बहुत

सोच उनकी है साइलों जैसी
पर बने फिरते हैं वो शाह बहुत

हश्र के रोज़ देख लेना तुम्हें
याद आयेगा हर गुनाह बहुत

मौलिक,अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on June 2, 2015 at 11:30am — 7 Comments

खुदा है दिल में मेरी बात मान लो आशू

 1212   1212 1212 1212

बशर तमाम भीड़ में मुकाम ढूंढते रहे 

जमी पे हैं मगर फलक पे नाम  ढूंढते रहे 

हुनर तराशने की उम्र मस्ती में ही काटकर 

बिना हुनर मियां कहाँ पे काम ढूंढते रहे 

कभी भी बीज आम के चमन में बोये जब नहीं 

तो फिर चमन में क्यूँ यूं आप आम ढूंढते रहे 

जो रिंद हैं उन्हें तो मयकशी ही रास आयेगी 

वो मयकदे तलाशते हैं जाम ढूंढते रहे 

जतन तमाम ही किये पढ़ाने लाडले को जब 

तभी से मन ही मन वो…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on June 2, 2015 at 11:30am — 24 Comments

अधूरी कहानी ...(अगज़ल) ...इंतज़ार

पल्लू लहरा देते हैं वो हवा का रूख़ देख कर

बीमार हो जाते हैं हम भी हसीं दवा देख कर ! 

यूँ तो हम तुम्हारे सिवा किसी और पे मरते नहीं

महफ़िल हसीनाओं की हो तो शिरकत से डरते नहीं ! 

तूने अगर दिल में अपने मुझे घर दिया होता

तन्हाईओं की बारिशों से मैं ना गल गया होता ! 

सुना है मिजाज़ गर्म और नज़र तिरछी है उनकी

'इंतज़ार' हम कहाँ मरते हैं हसीं बद दुआओं से उनकी ! 

तुम बिन ख़त्म हो जायेगी तिलस्मी दुनियाँ मेरी

अधभरे पन्नों में…

Continue

Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:30am — 19 Comments

चुनाव-चर्चा(गजलनुमा कविता, मनन कु॰ सिंह)

अब चुनावों की आती बारात देखिये,

लुटता है कौन अब इस रात देखिये।

जात-पाँत की चर्चा जोरों की होगी,

पहले देखी,फिर से यह बात देखिये।

क्या होगा,न होगा, है सब गाछ पर,

है नमूनों की बनती जमात देखिये।

सहेजने में लगे हैं छितराई छतरी,

बातों की तो इनकी बिसात देखिये।

कन्हुआ-कन्हुआ गिनते सब कुर्सी,

दिखा रहे, इनकी औकात देखिये।…

Continue

Added by Manan Kumar singh on June 2, 2015 at 10:00am — 4 Comments

यातना ( लघुकथा )

"पहले तो हमें नौकरी ही नहीं मिलती। अगर मिल भी जाए तो सालों साल रगड़ते रहो, कोई प्रमोशन नहीं। और एक ये हैं ?"

"और लो जन्म ऊँची जात में।"

पिघले हुए सीसे की तरह ये शब्द उसके कानों में उतर रहे थे । 

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on June 2, 2015 at 1:00am — 17 Comments

मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

मैं नहीं लिखता ;

कोई मुझसे लिखाता है !

कौन है जो भाव बन ;

उर में समाता है !

....................................

कौंध जाती बुद्धि- नभ में

विचार -श्रृंखला दामिनी ,

तब रची जाती है कोई

रम्य-रचना कामिनी ,

प्रेरणा बन कर कोई

ये सब कराता है !

मैं नहीं लिखता ;

कोई मुझसे लिखता है !

.........................................................

जब कलम धागा बनी ;

शब्द-मोती को पिरोती ,

कैसे भाव व्यक्त हो ?

स्वयं ही शब्द…

Continue

Added by shikha kaushik on June 1, 2015 at 11:00pm — 11 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुहब्बत का मेरी कोई नशा है क्या नहीं (ग़ज़ल 'राज')

१२२२ १२२२ १२२२ १२

तेरी तहरीर में हर्फ़े वफ़ा है क्या  नहीं

कहीं दिल में मेरी कोई जगा (जगह )है क्या  नहीं

 

पँहुचते ही नहीं मुझ तक कभी तेरे ख़ुतूत

लिखा उन पर मेरे घर…

Continue

Added by rajesh kumari on June 1, 2015 at 9:30pm — 21 Comments

खुदाया करम हो

बहरे मुतकारिब मुसम्मन (8) सालिम

अरकान-122 122 122 122

फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन

----------------------------

नजर में हया हो सभी रुख नरम हो।

खुदाया करम हो,करम हो करम हो।

******

मिले अक्ल सबको दिलों को मुहब्बत,

करें सब दुआ ये न कोई सितम हो।

******

लगे भी ठगी का हमें जो पता तो,

भूलें दुश्मनी सब सुहाना वहम हो।

******

जलें चाँद तारें मुड़े हर सहारे,

मेरे हाथ में हाथ तेरा सनम हो।

******

रवायत न रस्में न बंधन रहे… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 1, 2015 at 6:51pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
58 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service