For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुदा है दिल में मेरी बात मान लो आशू

 1212   1212 1212 1212

बशर तमाम भीड़ में मुकाम ढूंढते रहे 

जमी पे हैं मगर फलक पे नाम  ढूंढते रहे 

हुनर तराशने की उम्र मस्ती में ही काटकर 

बिना हुनर मियां कहाँ पे काम ढूंढते रहे 

कभी भी बीज आम के चमन में बोये जब नहीं 

तो फिर चमन में क्यूँ यूं आप आम ढूंढते रहे 

जो रिंद हैं उन्हें तो मयकशी ही रास आयेगी 

वो मयकदे तलाशते हैं जाम ढूंढते रहे 

जतन तमाम ही किये पढ़ाने लाडले को जब 

तभी से मन ही मन वो ऊंचे दाम ढूंढते रहे 

हया से चाहे बेरुखी से पलकें उनकी झुकती हों 

नजर में बस ह्सीं की हम सलाम ढूंढते रहे 

मुसल्मा और हिन्दू साथ साथ जब भी बैठे हैं 

उन्हें भिडाने की जुगत इमाम ढूंढते रहे 

बुझे हैं शोले दिल के राख में तपिश नहीं जरा 

मगर तपिश भरे ही वो कलाम ढूंढते रहे 

है इश्क मर्ज लाइलाज जानकार भी क्यूँ भला 

इलाज सब जमाने में तमाम ढूंढते रहे 

किया जो काम दाम उसके मांगते ही नहीं 

तो खुद ही समझो बच्चे क्या ईनाम ढूंढते रहे 

ये जलजला जो आ गया तो बेबसी दिखी बड़ी 

टिका फलक पे नजरें सब पयाम ढूंढते रहे 

है मुल्क मेरा ये गुलाम तो नहीं फिर भी

ये हुक्मरान जाने  क्यूँ गुलाम ढूंढ रहे

मेरा वतन नहीं गुलाम सब को है पता फिर भी 

ये हुक्मरान जाने क्यूँ गुलाम ढूंढते रहे 

खुदा जो दिल में था उसे भी पागलो की तरह 

इमारतों में आशू सुबहो शाम ढूंढते रहे 

मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 820

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 10:01am

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल अच्छी हुई है , और आ. वीनस भाई की सलाह भी आपको मिल चुकी है , दोनो के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 9:36am

आदरणीय वीनस जी..आपके मशविरे पर अवश्य अमल करूंगा ..मेरी रचनाओं को आपके बेशकीमती वक़्त में से थोडा सा वक़्त यूं ही मिलता रहे तो मुझे बहुत हौसला मिल जाएगा ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 9:34am

आदरणीय श्री सुनील जी ..रचना आपको पसंद आयी ..यह प्रतिक्रिया मेरे लिए उत्साहवर्धक है सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 9:33am

आदरणीय श्याम नारायण जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 9:32am

आदरणीय समर कबीर जी ..उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल आपका शुक्रगुजार हूँ सादर 

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2015 at 1:16pm

ढूंढ रहे को ढूंढते रहे कर दीजिये तो ले कई गुना बढ़ जाए ... अंतिम रुक्न ११२ की जगह १२१२ हो जाएगा

बाकी ग़ज़ल पर फिर से आता हूँ

Comment by shree suneel on June 4, 2015 at 9:09am
हुनर तराशने की उम्र मस्ती में काटी
बिना हुनर मियां कहाँ पे काम ढूंढ रहे.. ख़ूब आदरणीय.
कई अशआर ख़ूब भाऐ. बधाइयाँ आपको.
Comment by Shyam Narain Verma on June 3, 2015 at 5:16pm

क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 

सादर

Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 2:54pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 3, 2015 at 10:39am

आदरणीय गोपाल सर सादर प्रणाम ..आपका आशीर्वाद मुझे मिला मेरे लिए बेहद खुशी की बात है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service